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समाजभारत

लागू होने से पहले किन चुनौतियों से दो-चार हो रहा है अपार?

रामांशी मिश्रा
८ नवम्बर २०२४

अपार आईडी को सरकार ने शैक्षणिक पासपोर्ट का नाम दिया है. विशेषज्ञों का मानना है कि एक ही जगह पर विद्यार्थियों का शैक्षणिक रिकॉर्ड साइबर हमले का खतरा भी पैदा कर सकता है.

मलीशा खारवा भारतीय इंफ्लूएंसर हैं
तस्वीर: HEMANSHI KAMANI/REUTERS

भारत के सरकारी और निजी स्कूलों में जल्द ही 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए ऑटोमेटेड परमानेंट एकेडमिक अकाउंट रजिस्ट्री (अपार) आईडी तैयार की जाएगी. इसे लेकर केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं. इसे लागू करने से छात्रों को कई फायदे मिलेंगे. मसलन, बच्चे इस कार्ड से प्रतियोगी परिक्षाओं के शुल्क में छूट पा सकेंगे. साथ ही बस यात्रा, छात्रावास और मनोरंजन पार्क में सब्सिडी मिलेगी, लाइब्रेरी और संग्रहालयों में निशुल्क प्रवेश के साथ किताबों और स्टेशनरी पर भी छूट पा सकेंगे. 

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भारत सरकार का कहना है की अपार आईडी सभी छात्र-छात्राओं के लिए अनिवार्य है. यह आधार की तरह ही विद्यार्थियों के लिए 12 अंकों का यूनिक आइडेंटिफिकेशन कार्ड होगा, जिसमें उनकी शैक्षिक उपलब्धियां और अन्य रिकार्ड भी शामिल होंगे. नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत शुरू हुए ‘वन नेशन वन स्टूडेंट आईडी' के तौर पर ही यह अपार आईडी काम करेगा. सरकार की ओर से इसे एक ऑनलाइन एकेडमिक बैंक के तौर पर देखा जा रहा है. उसका उद्देश्य यह है कि एक आईडी के माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में एक भारतीय विद्यार्थी अपने शैक्षणिक रिकॉर्ड को डिजिटली देख सके और उसका उपयोग कर सके. जहां एक ओर राज्य सरकारों पर अपार आईडी को बनाने को लेकर दबाव बढ़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ इसकी कार्य प्रणाली को लेकर सवाल भी उठा रहे हैं.

अपार को भी आधार से जोड़ा जाएगातस्वीर: Aamir Ansari/DW

कैसे बनेगी अपार आईडी

अपार आईडी बनाने के लिए छात्रों को डिजिलॉकर के एप्लीकेशन पर आधार कार्ड के जरिए अपना अकाउंट बनाना होगा. यह अकाउंट अपार में ई-केवाईसी के लिए उपयोग किया जाएगा. इसके बाद विद्यार्थी के स्कूल में अभिवावकों को सहमति देने के लिए एक फार्म भरना होगा. माता-पिता की सहमति मिलने के बाद ही स्कूल यूनीफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यूडीआईएसई) पर छात्र की अपार आईडी तैयार करेंगे. इसमें 12 अंकों का यूनीक आईडी नंबर होगा. अपार आईडी बनने के बाद इसे डिजिलॉकर अकाउंट में जोड़ा जाएगा. यहां से विद्यार्थी अपनी अपार आईडी को ऑनलाइन डाउनलोड कर सकेंगे.

स्कूल के अलावा खुद से यह आईडी बनाने के लिए छात्रों को एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स (एबीसी बैंक) की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा. एबीसी आईडी कार्ड को आमतौर पर एडमिशन, छात्रवृत्ति, परीक्षा और शैक्षणिक कार्यक्रम जैसे विभिन्न दस्तावेजों के लिए प्रयोग किया जाता है, यह छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण आईडेंटिटी कार्ड है. वहां ‘माई अकाउंट' के ऑप्शन पर जाकर ‘स्टूडेंट' विकल्प चुनना होगा. इसके बाद डिजिलॉकर में अपना आधार नंबर, मोबाइल और पता दर्ज कर अकाउंट बनाना होगा. इसका रजिस्ट्रेशन पूरा होने पर मोबाइल नंबर पर यूजरनेम और पासवर्ड की जानकारी आएगी. इसका उपयोग करके डिजिलॉकर में के अकाउंट में लॉगिन करना होगा. इसके बाद केवाईसी वेरीफिकेशन के लिए एबीसी और आधार कार्ड की जानकारी साझा करने की सहमति देनी होगी. इसके बाद इसमें छात्रों की सभी शैक्षणिक जानकारियों को दर्ज करनी होगी तब उन्हें अपना ‘अपार आईडी कार्ड' स्क्रीन पर दिखेगा.

देशभर में कैसे लागू हो पाएगा अपार

पवन दुग्गल भारत में एक साइबर लॉ विशेषज्ञ और इंटरनेशनल कमीशन ऑन साइबर सिक्योरिटी लॉ के अध्यक्ष हैं. अपार को देशभर में लागू करने के बारे में उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि शैक्षणिक प्रगति को सटीक बनाने के लिए यह एक बेहतर कदम हो सकता है लेकिन इसमें कई ऐसी चुनौतियां भी हैं जिनके बारे में सरकार अब तक खुल कर बात नहीं कर रही है.

सबसे बड़ी चुनौती अपार को पूरे भारत में लागू करने की है. पवन दुग्गल कहते हैं, "हम दुनिया के सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राष्ट्र बन चुके हैं. यहां हर राज्य की अपनी शिक्षा पद्धति है. कई राज्य अभी भी ग्रामीण अंचल से अधिक जुड़े हैं जबकि कई शहर मेट्रो सिटी की तर्ज में शुमार हो चुके हैं. डिजिटल साक्षरता और डिजिटल शिक्षा सभी स्कूलों तक नहीं पहुंच पाई है. ऐसे में अपार की पारदर्शिता और उपलब्धता संदिग्ध है. इसके अलावा जिन गांवों में अभी पूरी तरह से इंटरनेट की सुविधा ही नहीं मिल पाई है वहां के विद्यार्थी अपार के लाभ से वंचित रह सकते हैं."

शहरों का डिजिटल ढांचा गांवों तक कैसे पहुंचेगातस्वीर: Mahima Kapoor/DW

हालांकि इसे लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी में डीन ऑफ प्लानिंग प्रोफेसर निरंजन कुमार का मत अलग है. वह कहते हैं, "जैसे-जैसे दुनिया वैश्विक हो रही है वैसे ही अब विकास की भी नई परिभाषा सामने आ रही है. 500 वर्ष पहले शुरू हुए गुरुकुल पद्धति से अब हम नई शिक्षा नीति तक पहुंच गए हैं, जहां पर ज्ञान के साथ-साथ आपके एकेडमिक रिकॉर्ड भी एक बहुत अहम जिम्मेदारी निभाते हैं. उन एकेडमिक रिकॉर्ड्स के जांच, परख और देश-विदेश में के शैक्षणिक संस्थाओं के सामने उन्हें प्रस्तुत करने समेत कई ऐसे पक्ष हैं जिनके लिए अपार आईडी एक बहुत ही मजबूत और अहम रोल निभाती है."

प्रोफेसर निरंजन कुमार ने डीडब्ल्यू से कहा, "नई शिक्षा नीति में विद्यार्थी को एक संस्थान से दूसरे संस्थान में आसानी से जाने की सुविधा मिली है. इसमें अपार आईडी का उपयोग बेहतर हो सकता है. आज गांव से निकला हुआ बच्चा भी विदेश तक जाकर पढ़ाई कर सकता है. उस सफर के दौरान अपने शैक्षणिक रिकॉर्ड की सुरक्षा भी उसकी जिम्मेदारी है. अपार आईडी लागू हो जाने से विद्यार्थी को उन रिकॉर्ड्स को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की आवश्यकता नहीं होगी और वह दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर उसका उपयोग कर सकता है."

केंद्र सरकार का पक्ष हावी हो सकता है?

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अपार के लागू हो जाने से शिक्षा के मामले में केंद्र सरकार का पक्ष भारी होने वाला है. इसका सीधा असर स्थानीय शासन (सरकार) पर पड़ेगा. केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में एनईपी को अब तक पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है. उन राज्यों में विद्यार्थियों की अपार आईडी बनने पर भी अभी संदेह है. इस बारे में प्रोफेसर निरंजन कहते हैं, "राज्य सरकारें अपने स्तर पर पढ़ाई करवा सकती हैं. इसमें कोई मनाही नहीं है, लेकिन अगर विद्यार्थियों के हित के लिए डिजिटल व्यवस्था की जा रही है तो उसमें उनके रिकॉर्ड दर्ज करने में राज्य सरकारों को परेशानी नहीं होनी चाहिए. उदाहरण के तौर पर यदि केरल से कोई बच्चा उत्तर भारत में पढ़ने या फिर जम्मू का कोई बच्चा कर्नाटक में पढ़ने जाए तो अपार आईडी में उपलब्ध डाटाबेस के जरिए विद्यार्थी के लिए किसी संस्थान में एडमिशन लेना आसान हो जाएगा. यदि अपार आईडी को यह राज्य लागू नहीं करते हैं तो यह है विद्यार्थियों को बेहतर व्यवस्था से वंचित करने वाली बात होगी."

करोड़ों भारतीयों के डाटा की सुरक्षा भी एक चिंता की वजहतस्वीर: Aamir Ansari/DW

साइबर सुरक्षा एक अहम पहलू

अपार को आधार से भी जोड़ा जाएगा. ऐसे में अपार को लेकर निजी अधिकार कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों की एक अहम चिंता साइबर सुरक्षा पहलूको लेकर है. पवन दुग्गल कहते हैं, "जब हम अपार प्रणाली बनाने वाले हैं, तो मुझे लगता है कि साइबर सुरक्षा को उसकी संरचना का अभिन्न हिस्सा बनाना पड़ेगा. अगर सरकार 'वन आइडेंटीफिकेशन सिस्टम' बना रही है तो सबसे जरूरी है कि ये प्रणाली पूरी तरह से सुरक्षित हो और इसमें सेंध लगने की कोई गुंजाइश न रहे. क्योंकि अगर इस प्रणाली में साइबर सुरक्षा के हवाले से कोई भी चूक होती है तो यह न केवल विद्यार्थियों के जीवन भर की मेहनत के साथ खिलवाड़ होगा बल्कि पूरा सिस्टम धराशायी हो जाएगा."

पवन आगे कहते हैं, "आधार का अधिकतर डाटाबेस वर्तमान में डार्कवेब पर मौजूद है. इसका रखरखाव करने वाला भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) साइबर सुरक्षा में सेंध लगने के लिहाज से हर साल करीबन 50 से ज्यादा प्राथमिकी दर्ज कराता है. अगर आधार का डाटा पूरी तरीके से सुरक्षित होगा तो प्राधिकरण मुकदमा क्यों कराएगा?”

हालांकि सुरक्षा के लिहाज से प्रो. निरंजन का मानना है कि कई बेहतर उपाय अब सरकार के पास मौजूद हैं. वह कहते हैं, "तकनीक का बेहतर उपयोग इस समय किया जा रहा है. भारत में भी सुरक्षा प्रणालियां सक्रिय हैं. कई खुफिया जानकारियां भी एक जगह से दूसरी जगह साझा की जाती हैं जिनमें कभी सेंधमारी नहीं हो पाती. ऐसे में यदि सरकार देशभर में एक नई प्रणाली लेकर आ रही है तो उसकी सुरक्षा की  व्यवस्था भी जरूर करेगी, इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए."

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