दिल्ली यूनिर्सिटी का चुनाव इस बार किन मुद्दों पर लड़ा गया
१९ सितम्बर २०२५
इस साल डीयूएसयू यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के चुनाव में एबीवीपी के आर्यन मान 28,841 वोटों के साथ डीयूएसयू अध्यक्ष चुने गए. एनएसयूआई के राहुल झांसला ने 29,339 वोट हासिल कर उपाध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की. वहीं एबीवीपी के ही कुणाल चौधरी ने 23,779 वोटों से सचिव पद अपने नाम किया और दीपिका झा ने 21,825 वोट पाकर सह-सचिव पद हासिल किया.
डीयूएसयू चुनाव से पहले प्रचार अभियान के दौरान आर्यन मान ने छात्र हित और कैंपस विकास को अपना मुख्य एजेंडा बनाया था. उन्होंने जिन वादों पर जोर दिया, उनमें सब्सिडी वाले मेट्रो पास, मुफ्त वाई-फाई, एक्सेसिबिलिटी ऑडिट, खेल सुविधाओं का सुधार और अंतिम वर्ष के शोध छात्रों को वित्तीय सहायता शामिल थे.
देश की राजनीतिक दिशा का चुनाव
दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू ने 9 अप्रैल 1949 में किया था. डीयूएसयू के पहले चुनाव 1954 में हुए थे. तब से लेकर अब तक यह चुनाव देश और दुनिया की नजरों में रहता है. खासतौर से देश भर के युवा इसे बड़ी दिलचस्पी से देखते हैं. देश की राजनीतिक दिशा और हवा बेशक यह तय ना करता हो लेकिन उस दिशा और हवा की झलक जरूर दिखा देता है.
यह चुनाव दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक छात्रसंघ चुनाव का हिस्सा है. इस साल 1.53 लाख पंजीकृत मतदाताओं में से 60,272 छात्रों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जिससे इस वर्ष डीयूएसयू चुनाव का कुल मतदान प्रतिशत 39.36% रहा. जिसमें महिलाओं और पुरुषों दोनों की ही भागीदारी रही.
दिल्ली की मुख्यमंत्री, रेखा गुप्ता भी इसी छात्रसंघ चुनाव से निकली हैं. 1996-97 में दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन की अध्यक्ष रही रेखा गुप्ता ने 2025 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनकर राजधानी की कमान संभाली. भारतीय राजनीति ने अनेक पूर्व डीयूएसयू नेताओं, विशेषकर संघ अध्यक्ष को उच्च मंत्री पदों तक पहुंचते देखा है. यह परंपरा भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दलों में समान रूप से दिखती है. डीयूएसयू के कई नेताओं ने आगे चलकर भारतीय राजनीति में अहम भूमिकाएं निभाईं है, जिनमें पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली, अजय माकन, अलका लांबा जैसे नाम शामिल हैं.
कॉलेज में दाखिले की मारामारी और बदहाल शिक्षा तंत्र
मुफ्त के रेवड़ियां बंटी यहां भी
इस साल के डीयूएसयू चुनाव भी पारम्परिक तरीके से हुए लेकिन परंपरा जारी रखने के साथ-साथ बदलती दुनिया की नई परेशानियों का भी इस चुनाव में ध्यान रखा गया. चुनाव की यह प्रक्रिया भी विधानसभा या लोकसभा चुनाव जैसी ही होती है. जिसमें उम्मीदवार नामांकन दाखिल करते हैं, प्रचार होता है और फिर वोटिंग. इस चुनाव का असर मुख्य राजनीतिक धारा में दिखता है. ठीक उसी प्रकार से मुख्य राजनीतिक चुनाव का असर भी इस चुनाव में साफ दिखाई देता है.
इस साल छात्रसंघ चुनाव में पैसे का खूब दम-खम दिखा. छात्रों की कैंटीन मुफ्त कराने से लेकर, उन्हें फिल्म दिखाने लेकर जाना या वाटर पार्क की सैर करना. महंगी से महंगी गाड़ियों का काफिला हो या भर-भर के पानी और कोल्ड-ड्रिंक्स बांटना. इस चुनाव में सब कुछ था.
छात्रों के लिए सुरक्षा जरूरी
हालांकि, छात्रों के मुद्दे कोल्ड-ड्रिंक्स और वाटर पार्क से काफी अलग थे. बी.ए. इंग्लिश के छात्र मानवेन्द्र ने डीडब्ल्यू को बताया कि उनके लिए मुख्य मुद्दा पानी, यातायात और कॉलेज का इंफ्रास्ट्रक्चर था. उन्होंने बताया कि उन्होंने उसे वोट दिया है, जिसने उनके लिए कॉलेज में ठंडे और साफ पानी के लिए वाटरकूलर का इंतजाम करवाया है.
इसके अलावा लड़कियों से बात करते हुए साफ हुआ कि दिल्ली की महिलाओं की तरह उनके लिए भी मुख्य मुद्दा बस और मेट्रो की यात्रा है ताकि वह आसानी से बिना किसी देरी के अपने घर से कॉलेज तक का सफर कर सकें. पिछले महीने ही दिल्ली की मुख्यमंत्री, रेखा गुप्ता ने दिल्ली विश्वविद्यालय स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से नई इलेक्ट्रिक बसों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था और कॉलेज छात्रों के लिए यूनिवर्सिटी स्पेशल (यू-स्पेशल) बस सेवा को दोबारा शुरू किया था. उस समय उन्होंने इसे "सुरक्षित, स्वच्छ और छात्र-हितैषी सार्वजनिक परिवहन” की दिशा में बड़ा कदम बताया था.
नई बसों में सीसीटीवी कैमरे, पैनिक बटन और इन-बिल्ट रेडियो जैसी सुविधाएं भी दी गई. यह यू-स्पेशल सेवा नॉर्थ कैंपस, साउथ कैंपस, जेएनयू, आईआईटी दिल्ली और प्रमुख रिहायशी इलाकों को जोड़ेगी और छात्रों की सुविधा के लिए नरेला–पटेल चेस्ट, नजफगढ़–औरंगजेब कॉलेज, पूर्णचंद्र हॉस्टल–रामजस कॉलेज और रिठाला मेट्रो–अदिति कॉलेज जैसी रूट तय किए गए. हालांकि, इन बसों से सब छात्रों का सफर आसान नहीं हुआ. क्योंकि यह सब रुट्स को कवर नहीं करती हैं लेकिन इस कदम ने कुछ छात्रों के लिए यात्रा जरूर आसान की है.
जलवायु परिवर्तन भी चर्चा का विषय
क्लाइमेट चेंज का ध्यान रखते हुए इस साल कई वर्षों में पहली बार विश्वविद्यालय ने "क्लीन और ग्रीन चुनाव” का अनुभव किया. चुनाव में लिंगदोह समिति की एंटी-डिफेसमेंट (दीवारों व परिसर को गंदा करने पर रोक) संबंधी गाइडलाइंस का सख्ती से पालन कराया गया.
इस साल चुनाव के लिए कागज के पर्चे छपवाना भी प्रतिबंधित था. पर्चे छपवाना जरूर मना था लेकिन इसके लिए भी छात्रों ने तोड़ निकाल ही लिया था. एक छात्र ने बताया कि उन्होंने रात भर जाग कर कागजों पर अपने हाथों से अपने उम्मीदवार का नाम लिखा. इसके साथ ही डिजिटल तरीके से प्रचार के तरीकों को भी अपनाया.