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सिंगल यूज प्लास्टिक बैन से कितनी बदल जाएगी जिंदगी?

१७ अगस्त २०२१

पहले ही कोरोना महामारी से परेशान प्लास्टिक कंपनियां सिंगल यूज प्लास्टिक से जुड़े नियमों में बदलाव के बाद कई समस्याओं का सामना कर रही हैं. बहुत सी कंपनियों को कर्मचारियों की छंटनी भी करनी पड़ सकती है.

तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Faget

भारत की केंद्र सरकार ने अगले साल जुलाई से सिंगल-यूज प्लास्टिक को बैन करने का फैसला किया है. पर्यावरण मंत्रालय ने पिछले हफ्ते यह घोषणा की. इसके मुताबिक प्लास्टिक के चम्मच-कांटे, प्लास्टिक स्टिक वाले इयरबड और आईसक्रीम की प्लास्टिक डंडियां भी बैन की जाएंगी.

प्लास्टिक कचरा प्रबंधन सुधार नियम, 2021 पर पर्यावरण मंत्रालय ने कहा, "पॉलिस्टरीन और पॉलिस्टरीन के इस्तेमाल वाले अन्य सिंगल-यूज प्लास्टिक के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर 1 जुलाई 2022 से रोक होगी."

प्लास्टिक बैन पर प्रतिबद्ध सरकार

भारत में 50 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक थैलियां पहले से ही बैन हैं. अब सरकार ने चरणबद्ध तरीके से इससे ज्यादा मोटाई वाली प्लास्टिक थैलियों और अन्य सिंगल-यूज प्लास्टिक सामान को भी बैन करने का प्लान तैयार किया है.

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इसके तहत इसी साल 30 सितंबर से 75 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक थैलियों के प्रयोग की अनुमति नहीं होगी. 31 दिसंबर तक 120 माइक्रोन से कम से पॉलिथिन बैग प्रतिबंधित कर दिए जाएंगे.

एक मीडिया इंटरव्यू में मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, "ऐसा प्लास्टिक पर्यावरण के लिए तो खतरनाक है ही, इसके निस्तारण का खर्च भी ज्यादा होता है." उन्होंने ऐसे प्लास्टिक के कलेक्शन और उसके निस्तारण को मुख्य समस्या बताया और कहा कि बैन से होने वाला आर्थिक नुकसान सिंगल यूज प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के मुकाबले बहुत कम होगा.

धीरे-धीरे ये प्लास्टिक प्रोडक्ट होंगे बैन

जिन उत्पादों को सरकार ने 1 जनवरी से ही बैन करने का फैसला किया है, वे हैं- प्लास्टिक स्टिक वाले इयरबड्स, गुब्बारे के नीचे लगने वाली प्लास्टिक की डंडी, झंडे, लॉलीपॉप और आइसक्रीम के नीचे लगने वाली प्लास्टिक की डंडी और सजावट में इस्तेमाल होने वाला थर्मोकोल.

दूसरी कैटेगरी के उत्पाद, जिन्हें 1 जुलाई, 2022 से बैन किया जाना है, वे हैं- प्लास्टिक के प्लेट, कप, ग्लास और चम्मच, कांटे, स्ट्रॉ, ट्रे आदि. इसके अलावा मिठाई के डिब्बे और सिगरेट के पैकेट पर चढ़ाई जाने वाली प्लास्टिक की फिल्म, इनविटेशन कार्ड और 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैनर.

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इसके बाद तीसरी कैटेगरी में 240 माइक्रोन मोटाई से कम की प्लास्टिक थैलियों को बैन किए जाने का भी प्रस्ताव है. भारत में बड़ी मात्रा में कपड़ों की शॉपिंग आदि में इस्तेमाल होने वाले इस बैग को पहली बार सिंगल यूज प्लास्टिक की कैटेगरी में रखा गया है.

इसमें पहली बार ही थर्मोसेट प्लास्टिक को भी सिंगल यूज प्लास्टिक बताया गया है. सरकार का बाजार में मौजूद प्लास्टिक छुरी-कांटे का विकल्प बनाने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन देने का प्लान भी है.

प्लास्टिक इंडस्ट्री मुसीबत में

जानकार बताते हैं कि 75 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक थैलियों पर बैन के फैसले को तुरंत लागू कराया जा सकता है क्योंकि वर्तमान में काम कर रही मशीनें इससे ज्यादा मोटाई वाली प्लास्टिक थैलियां बनाने में भी सक्षम हैं.

लेकिन इन्हीं मशीनों से और ज्यादा मोटाई की थैलियां बनाना मुश्किल होगा और इसके लिए अलग तरह की मशीनों की जरूरत होगी. इसीलिए सरकार की ओर से 120 माइक्रोन तक की प्लास्टिक थैलियां बैन किए जाने से पहले निर्माताओं को काफी समय दिया गया है.

हालांकि मशीनों का इंतजाम आसान नहीं है. जानकारों के मुताबिक पहले ही कोरोना वायरस के चलते प्लास्टिक उत्पादन और वितरण तंत्र में समस्याएं आ गई हैं और कंपनियां जबरदस्त घाटे से जूझ रही हैं. इस बैन के फैसले से समस्याएं और बढ़ेंगी.

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त्रिमूर्ति पॉलीमर्स के डायरेक्टर नरेश चंद्रन बताते हैं, "जो व्यापारी समय रहते व्यापार और मशीनों में बदलाव कर लेंगे वे बच जाएंगे लेकिन ज्यादातर को इसका नुकसान उठाना होगा. इसकी वजह है बदलाव की प्रक्रिया आसान नहीं होगी. कोरोना के चलते व्यापारियों के पास नई मशीनें खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं."

लाखों लोग होंगे बेरोजगार

जानकार बताते हैं कि हर बार अलग-अलग तरह के प्लास्टिक बैन के साथ कई फैक्टरियां बंद हो जाती हैं. इससे कई लोगों की नौकरियां भी चली जाती हैं. नरेश चंदन के मुताबिक यह सेक्टर कई लाख लोगों को रोजगार देता है.

नए बदलावों से न सिर्फ लोगों के रोजगार जाने का डर है बल्कि जो लोग लोन लेकर अपनी फैक्ट्रियां चला रहे हैं, वो लोन चुकाने की हालत में भी नहीं होंगे, जिससे बैंकों को भी भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है. इन्हें रोजगार देने की फिलहाल कोई तैयारी नहीं है.

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जानकार बताते हैं कि इन बदलावों के बाद आम दुकानदार ग्राहकों को प्लास्टिक थैलियां देना बंद कर देंगे. अगर वे इन्हें ग्राहकों को देंगे तो इसके लिए पैसे लेंगे. उनके मुताबिक जैसे फिलहाल 3 किलो में 1 हजार प्लास्टिक थैलियां मिल जाती हैं लेकिन इनके मोटा हो जाने पर इतनी ही थैलियों के लिए दुकानदार 9 से 12 किलो प्लास्टिक की कीमत चुकाएंगे. जाहिर है इसमें अच्छा-खासा खर्च आएगा, ऐसे में अगर दुकानदार ग्राहकों को थैली देंगे तो उसका खर्च उनसे ही वसूलेंगे.

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