भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना टीकाकरण जोर शोर से चल रहा है. लेकिन उनके असर और कोरोनो के नए प्रकारों को लेकर कई सवाल भी पैदा हुए हैं. चलिए इनके जवाब खोजते हैं.
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जर्मनी के शहर ओस्नाब्रुक में फाइजर-बायोनटेक टीके की दोनों डोज लगवाने के बावजूद एक नर्सिंग होम में 14 बुर्जुग कोरोना पॉजिटिव मिले. वे कोविड-19 के बी117 वैरिएंट से संक्रमित हुए, जो सबसे पहले ब्रिटेन में मिला था. अधिकारियों का कहना है कि टीका लगवाने के बाद भी बिना लक्षणों के टेस्ट पॉजिटिव आना या हल्की सी बीमारी हो जाना सामान्य बात है.
टीका लगने के बाद क्यों होता है कोविड-19?
टीके से शरीर में दो तरह की इम्युनिटी पैदा होती है. एक इफेक्टिव इम्युनिटी और दूसरी स्टरलाइजिंग इम्युनिटी. स्टरलाइजिंग इम्युनिटी वायरस से पूरी तरह सुरक्षा मुहैया कराती है. इसका मतलब है कि फिर वायरस का कोई कण शरीर की कोशिकाओं में नहीं घुस सकता. शरीर में वारयस अपने जैसे वायरस भी नहीं बना पाता और आगे उसका प्रसार भी रुक जाता है. लेकिन कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में क्लीनिकल रिसर्च फेलो सारा कैंडी कहती हैं, "इसे हासिल करना मुश्किल है. शरीर में वायरस के प्रवेश को रोक पाना लगभग असंभव है."
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वहीं इफेक्टिव इम्युनिटी शरीर में वायरस को गंभीर बीमारी पैदा करने से रोकती है. लेकिन इससे आप ना तो संक्रमण से बच सकते हैं और ना ही वायरस को आगे फैलने से रोका जा सकता है.
ज्यादातर टीके शरीर में वायरस को सीमित करते हैं, फिर भी वायरस अपने जैसे दूसरे वायरस बना सकते हैं. लेकिन कैंडी कहती हैं कि टीका लगवाने से शरीर को पर्याप्त एंटीबॉडी मिलते हैं और वायरस से दूसरे वायरस बनने की रफ्तार भी धीमी होती है. उनके मुताबिक, "इसीलिए हमें बीमारी में कमी देखने को मिल रही है, जो अच्छी बात है. लेकिन अब भी हमें वायरस रेप्लीकेशन के मामले दिख रहे हैं, जिससे बिना लक्षणों वाला संक्रमण होता है."
क्या टीका लगवाने वाले बीमारी को आगे फैला सकते हैं?
जर्मनी की रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट का कहना है कि इस बारे में अभी पर्याप्त डाटा नहीं है कि क्या एमआरएनए और वेक्टर आधारित कोविड-19 के टीके संक्रमण के फैलाव को रोकते या कम करते हैं. जब तक इस बारे में जानकारी मिलती है, तब तक टीका लगवाने वाले और उनके आसपास मौजूद लोगों को मास्क पहनने, दूरी बनाए रखने और नियमित तौर पर हाथ धोने जैसे उपायों पर अमल करते रहना चाहिए. कैंडी कहती हैं कि ज्यादातर टीके संक्रमण के फैलाव को रोकते हैं, भले ही वे स्टरलाइजिंग इम्युनिटी मुहैया ना करा सकें.
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कोरोना वैक्सीन के हैं ये साइड इफेक्ट
कोरोना की वैक्सीन जितनी जल्दबाजी में बनी हैं, उसे देखते हुए कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि इसे लेना ठीक भी रहेगा या नहीं. जानिए कौन सी कंपनी की वैक्सीन के क्या साइड इफेक्ट हैं ताकि आपके सभी शक दूर हो जाएं.
कुछ सामान्य साइड इफेक्ट
कोई भी टीका लगने के बाद त्वचा का लाल होना, टीके वाली जगह पर सूजन और कुछ वक्त तक इंजेक्शन का दर्द होना आम बात है. कुछ लोगों को पहले तीन दिनों में थकान, बुखार और सिरदर्द भी होता है. इसका मतलब होता है कि टीका अपना काम कर रहा है और शरीर ने बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी बनाना शुरू कर दिया है.
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बड़े साइड इफेक्ट का खतरा?
अब तक जिन जिन टीकों को अनुमति मिली है, परीक्षणों में उनमें से किसी में भी बड़े साइड इफेक्ट नहीं मिले हैं. यूरोप की यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी (ईएमए), अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) और विश्व स्वास्थ्य संगठन तीनों ने इन्हें अनुमति दी है. एक दो मामलों में लोगों को वैक्सीन से एलर्जी होने के मामले सामने आए थे लेकिन परीक्षण में हिस्सा लेने वाले बाकी लोगों में ऐसा नहीं देखा गया.
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बायोनटेक फाइजर
जर्मनी और अमेरिका ने मिलकर जो टीका बनाया है वह बाकी टीकों से अलग है. वह एमआरएनए का इस्तेमाल करता है यानी इसमें कीटाणु नहीं बल्कि उसका सिर्फ एक जेनेटिक कोड है. यह टीका अब कई लोगों को लग चुका है. अमेरिका में एक और ब्रिटेन में दो लोगों को इससे काफी एलर्जी हुई. इसके बाद ब्रिटेन की राष्ट्रीय दवा एजेंसी एमएचआरए ने चेतावनी दी कि जिन लोगों को किसी भी टीके से जरा भी एलर्जी रही हो, वे इसे ना लगवाएं.
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मॉडेर्ना
अमेरिकी कंपनी मॉडेर्ना का टीका भी काफी हद तक फाइजर के टीके जैसा ही है. परीक्षण में हिस्सा लेने वाले करीब दस फीसदी लोगों को थकान महसूस हुई. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके चेहरे की नसें कुछ वक्त के लिए पेरैलाइज हो गई. कंपनी का कहना है कि अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि ऐसा टीके में मौजूद किसी तत्व के कारण हुआ या फिर इन लोगों को पहले से ऐसी कोई बीमारी थी जो टीके के कारण बिगड़ गई.
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एस्ट्रा जेनेका
ब्रिटेन और स्वीडन की कंपनी एस्ट्रा जेनेका के टीके के परीक्षण को सितंबर में तब रोकना पड़ा जब उसमें हिस्सा लेने वाले एक व्यक्ति ने रीढ़ की हड्डी में सूजन की बात बताई. इसकी जांच के लिए बाहरी एक्सपर्ट भी बुलाए गए जिन्होंने कहा कि वे यकीन से नहीं कह सकते कि सूजन की असली वजह वैक्सीन ही है. इसके अलावा बाकी के टीकों की तरह यहां भी ज्यादा उम्र के लोगों में बुखार, थकान जैसे लक्षण कम देखे गए हैं.
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स्पूतनिक वी
रूस की वैक्सीन स्पूतनिक वी को अगस्त में ही मंजूरी दे दी गई थी. किसी भी टीके को तीन दौर के परीक्षणों के बाद ही बाजार में लाया जाता है, जबकि स्पूतनिक के मामले में दूसरे चरण के बाद ही ऐसा कर दिया गया. रूस के अलावा यह टीका भारत में भी दिया जाना है. जानकारों की शिकायत है कि इसके पूरे डाटा को सार्वजनिक नहीं किया गया है, इसलिए साइड इफेक्ट्स के बारे में ठीक से नहीं बताया जा सकता.
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन भी स्पूतनिक की तरह विवादों में घिरी है. सरकार ने इसे इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए अनुमति दी है लेकिन इसके भी तीसरे चरण के परीक्षणों के बारे में जानकारी नहीं है और ना ही यह बताया गया है कि यह कितनी कारगर है. भारत में महामारी पर नजर रख रही संस्था सेपी की अध्यक्ष गगनदीप कांग ने कहा है कि वे सरकार के फैसले को समझ नहीं पा रही हैं और अपने करियर में उन्होंने कभी ऐसा होते नहीं देखा.
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बच्चों के लिए टीका?
आम तौर पर पैदा होते ही बच्चों को टीके लगने शुरू हो जाते हैं लेकिन कोरोना के टीके के मामले में ऐसा नहीं होगा. इसकी दो वजह हैं: एक तो बच्चों पर इसका परीक्षण नहीं किया गया है और ना ही इसकी अनुमति है. और दूसरा यह कि महामारी की शुरुआत से बच्चों पर कोरोना का असर ना के बारबार देखा गया है. इसलिए बच्चों को यह टीका नहीं लगाया जाएगा. साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी फिलहाल यह टीका नहीं दिया जाएगा.
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सुरक्षित टीका क्या होता है?
जर्मनी में कोरोना पर नजर रखने वाले रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट की वैक्सीनेशन कमिटी के सदस्य के सदस्य क्रिस्टियान बोगडान बताते हैं कि किसी टीके से अगर एक वृद्ध व्यक्ति की उम्र 20 प्रतिशत घटती है लेकिन साथ ही अगर 50 हजार में से सिर्फ एक व्यक्ति को उससे एलर्जी होती है, तो वे ऐसे टीके को सुरक्षित मानेंगे. उनके अनुसार यूरोप में इसी पैमाने पर टीकों को अनुमति दी जा रही है.
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क्या टीका लगवाने के बाद कोविड-19 बीमारी हो सकती है?
हां, यह संभव है कि टीका लगवाने के बाद आपको कोविड-19 की बीमारी हो जाए. लेकिन टीका लगने की वजह से बीमारी गंभीर नहीं होगी. आपकी जान को खतरा नहीं होगा. अगर टीका लगा है तो आपको बिना लक्षण वाला संक्रमण हो सकता है और बीमारी का असर हल्का ही होगा. फाइजर-बायोनटेक टीका मूल वायरस से होने वाली बीमारी की रोकथाम में 95 प्रतिशत तक कारगर है जबकि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका 76 प्रतिशत तक प्रभावी है.
क्या टीका बी1351 और बी117 जैसे वायरस के नए वैरिएंट से भी बचाता है?
वायरस नए नए रूपों में सामने आ रहा है. इससे टीके के प्रभाव में कमी आएगी. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का कहना है कि फाइजर/बायोनटेक टीका बहुत ही ज्यादा संक्रामक बी117 वेरिएंट के खिलाफ भी प्रभावी हो सकता है, लेकिन इसके चलते उसका प्रभाव कुछ तो कम होगा.
दक्षिण अफ्रीका में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका टीके लगाने का अभियान रोक दिया क्योंकि एक अध्ययन में पता चला कि टीका प्रभावी ही नहीं है. जोहानिसबर्ग की विटवॉटरसरैंड यूनिवर्सिटी में टीका विशेषज्ञ शाबिर माधी कहते हैं कि हाल में जारी वैज्ञानिक डाटा बताता है कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका टीका 501वाईवी2 (जिसे बी1351 के नाम के भी जानते हैं) के खिलाफ सिर्फ 22 प्रतिशत प्रभावी है. दक्षिण अफ्रीका ज्यादातर वायरस के इसी वैरिएंट से प्रभावित है.
क्या कोरोना वैक्सीन की वजह से कोविड-19 का टेस्ट पॉजिटिव आ सकता है?
फाइजर-बायोनटेक, मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका टीकों के कारण आपका कोरोना टेस्ट पॉजिटिव नहीं आ सकता. इन टीकों में कोरोना वायरस नहीं है.
वहीं अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) का कहना है कि अगर आपका शरीर प्रतिरोध क्षमता विकसित कर लेता है जो टीकाकरण का लक्ष्य है तो फिर हो सकता है कि आपके कुछ एंटीबॉडीज पर किए गए टेस्ट पॉजिटिव आएं. इससे पता चलता है कि आपको पहले कभी कोरोना संक्रमण हुआ था.