नई खोजः खेती शुरू होने से पहले भी शाकाहार करता था इंसान
३० अप्रैल २०२४
अब तक माना जाता रहा है कि खेती शुरू करने से पहले आदिमानव मुख्यतया मांसाहारी थे. एक नए अध्ययन ने इसके उलट सबूत पेश किए हैं.
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खेती की शुरुआत लगभग 11,500 साल पहले मध्य पूर्व में हुई थी. यह मानव विकास की यात्रा का एक बेहद अहम पड़ाव था. इससे ना सिर्फ उसका खान-पान बदला बल्कि पूरी जीवनशैली में बदलाव आया. उसके बाद इंसान घुमंतू शिकारी ना होकर एक जगह बस कर रहने वाला प्राणी बन गया.
उससे पहले लगभग तीन लाख साल से इंसान अफ्रीका में जन्मा और जंगल-जंगल घूमता रहा. उस दौरान उसका खान-पान क्या था, इसका अंदाजा तो लगाया जा सकता है क्योंकि वह शिकार करता था, यानी मांस खाता था. लेकिन इस बारे में कोई ठोस जानकारी अब तक हासिल नहीं थी. इसलिए आदिमानव की जीवनशैली के बारे में सही-सही पता नहीं था.
एक नई खोज ने इस रहस्य से पर्दा उठाने में मदद की है. वैज्ञानिकों ने उत्तरी अफ्रीका में रहने वाले आदिमानवों के खान-पान का एक नक्शा तैयार किया है और हैरतअंगेज रूप से उसके खान-पान में पेड़-पौधों पर आधारित यानी शाकाहारी भोजन बेहद अहम हिस्सा था.
क्या खाते थे आदिमानव
वैज्ञानिकों ने लगभग 15,000 साल पहले के अवशेषों का रासायनिक परीक्षण किया है. ये सात लोगों के अवशेष हैं जो उत्तर-पूर्वी मोरक्को के ताफोराल्ट गांव के करीब एक गुफा में मिले थे. ये लोग इबेरोमौरूशियन संस्कृति के थे.
कैसे पता चला हमारे पूर्वजों के बारे में
इस्राएल में हाल ही में पाए गए मानव अवशेषों से मानव विकास की कहानी में नई परतें जुड़ गई हैं. एक नजर इस तरह की और भी अहम खोजों पर जो हमारे पूर्वजों और उनकी जीवन शैली पर रोशनी डालती हैं.
तस्वीर: Avi Levin/AP/picture alliance
वंश वृक्ष की एक नई शाखा
इस्राएल में खुदाई के दौरान कुछ ऐसे अवशेष मिले हैं जो एक ऐसी मानव प्रजाति के हैं जिसके बारे में आज तक कोई जानकारी नहीं थी. अभी तक यह पता चल पाया है कि यह आदिमानव 1,00,000 सालों से भी ज्यादा पहले हमारी प्रजाति यानी होमो सेपिएंस के साथ साथ ही रहता होगा.
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
'नेशर रामला होमो'
ये अवशेष इस्राएल के नेशर रामाल्लाह नाम की जगह पर मिले. माना जा रहा है कि ये प्राचीन मानवों के "आखिरी उत्तरजीवियों" में से एक मानव के हैं, जिसका यूरोपीय नियान्डेरथल से करीबी संबंध हो सकता है. यह भी माना जा रहा है कि इनमें से कुछ मानव पूर्व में भारत और चीन की तरफ भी गए होंगे. पूर्वी एशिया में मिले कुछ अवशेषों में इन नए अवशेषों से मिलती जुलती विशेषताएं पाई गई हैं.
नियान्डेरथलों को लोकप्रिय रूप से अक्सर गलत छवि दिखाई गई है. उन्हें अक्सर पीठ पर कूबड़ वाले और हाथों में मुगदर लिए आदिमानवों के रूप में दिखाया जाता है. यह छवि 1908 में मिले एक कंकाल के पुराने और छिछले अध्ययनों पर आधारित है. इस कंकाल की रीढ़ विकृत थी और घुटने मुड़े हुए थे.
तस्वीर: Federico Gambarini/dpa/picture alliance
जितना हम सोचते हैं उससे ज्यादा करीबी
लेकिन 21वीं सदी में पता चला कि नियान्डेरथल आधुनिक मानव के काफी करीब थे. वो उपकरण बनाने के लिए काफी विकसित तरीके इस्तेमाल करते थे, अपने आस पास की चीजों का इस्तेमाल कर आग और ज्यादा तेजी से लगा लिए करते थे, बड़े जानवरों का शिकार करते थे और आधुनिक मानवों के साथ प्रजनन भी करते थे.
तस्वीर: Imago/F. Jason
जिस पूर्वज का नाम बीटल्स की वजह से पड़ा
'लूसी' एक महिला का कंकाल है जिसे पूरी दुनिया में पाए गए सबसे पुरानी मानव पूर्वज प्रजातियों में से माना जाता है. इसकी खोज अफ्रीका के इथियोपिया के हदर में 1974 में जीवाश्मिकी वैज्ञानिक डॉनल्ड सी जोहानसन ने की थी. जिस दिन इसकी खोज हुई उस दिन खोज के जश्न में आयोजित की गई एक पार्टी में बार बार बीटल्स का एक गाना बज रहा था - "लूसी इन द स्काई विद डायमंड्स" और उसी के नाम पर कंकाल का नाम लूसी रख दिया गया.
तस्वीर: Jenny Vaughan/AFP/Getty Images
फ्लो, उर्फ 'द हॉब्बिट'
'फ्लो' की खोज इंडोनेशिया के द्वीप फ्लोरेस में 2004 में हुई थी. होमो फ्लोरेसिएन्सिस प्रजाति की एक आदिम मानव के इन अवशेषों को 12,000 साल पुराना माना जाता है. फ्लो सिर्फ 3.7 फिट लंबी थी, जिसकी वजह से उसका नाम 'लॉर्ड ऑफ द रिंग्स' फिल्मों के एक किरदार के नाम पर 'द हॉब्बिट' रख दिया गया.
तस्वीर: AP/STR/picture alliance
दो पैरों पर चलने का सबूत
1924 में दक्षिण अफ्रीका के ताउन्ग में शरीर रचना विशेषज्ञ रेमंड डार्ट ने एक खदान में पाई गई एक विचित्र सी खोपड़ी का निरीक्षण करने पर पाया कि वो एक तीन साल के आदिमानव की थी, जिसका उन्होंने नाम रखा ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रिकानस. ये करीब 28 लाख साल पहले जीवित रहा होगा और इसे मानवों के दो पैरों पर चलने का प्रारंभिक सबूत भी माना जाता है. इससे मानवों के अफ्रीका में विकास होने की अवधारणा को भी बल मिला.
तस्वीर: imago stock&people
डीएनए से मदद
2008 में पुरातत्वविद माइकल शून्कोव को रूस और कजाकिस्तान की सीमा पर अल्ताई पर्वत श्रृंखला के काफी अंदर एक गुफा में एक अज्ञात आदिमानव के अवशेष मिले. आनुवांशिकी विज्ञानियों ने पाया कि इन अवशेषों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का संबंध एक अज्ञात पूर्वज से था. इन्हें उस गुफा के नाम पर डेनिसोवियन्स कहा गया. ये भी अफ्रीका से ही निकले थे, लेकिन शुरुआती नियान्डेरथल और होमो सेपिएंस से अलग.
तस्वीर: Maayan Harel/AP/picture alliance
होमो सेपिएंस के नए रिश्तेदार
2015 में दक्षिण अफ्रीका की राइजिंग स्टार गुफाओं में कम से कम 15 लोगों के 1,500 से भी ज्यादा अवशेष मिले थे, जिनमें होमो नलेडी समूह के शिशुओं से लेकर बुजुर्ग तक शामिल थे. हालांकि विशेषज्ञों के बीच इनकी पहचान को लेकर सहमति नहीं थी: क्या ये प्राचीन मानव थे या प्रारम्भिक होमो इरेक्टस?
प्राचीन मानवों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों में भी हमारे अतीत के सुराग होते हैं. कोलंबिया के चिरिबिकेट राष्ट्रीय उद्यान में पाए गए ये गुफा चित्र 22,000 साल से भी ज्यादा पुराने हैं. कुछ दूसरे पुरातत्व-संबंधी सबूतों के साथ ये चित्र इस अवधारणा के ओर इशारा करते हैं कि आज उत्तर और दक्षिणी अमेरिका कहे जाने वाले इलाके में मानवों का 20,000 से 30,000 साल पहले कब्जा था.
तस्वीर: Jorge Mario Álvarez Arango
अभी तक के सबसे प्राचीन गुफा चित्र
2021 में ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के पुरातत्वविदों को इंडोनेशिया के सुलावेसी में और भी पुराने गुफा चित्र मिले. ये लिखित इतिहास के पहले के इंडोनेशियाई सूअरों की तस्वीरें थीं जो ओकर नाम के एक अकार्बनिक पदार्थ से बनाई गई थीं जिसकी कार्बन-डेटिंग नहीं हो पाती है. तो शोधकर्ताओं ने चित्रों के इर्द-गिर्द चूने के स्तंभों की डेटिंग की और पाया कि सबसे पुराने चित्र को कम से कम 45,500 साल पहले बनाया गया होगा.
तस्वीर: Maxime Aubert/Griffith University/AFP
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वैज्ञानिकों ने इन अवशेषों में उपलब्ध हड्डियों और दांतों का रसायनिक परीक्षण किया है. विश्लेषण में वैज्ञानिकों को इन अवशेषों में कार्बन, नाइट्रोजन, जिंक, सल्फर और स्ट्रोनियम के अंश मिले हैं, जो इस बात का संकेत हैं कि वे किस तरह की वनस्पति और मांस खाते थे.
वैज्ञानिकों का कहना है कि ये अंश खाए जा सकने लायक जंगली पौधों जैसे कि सूखे मेवे, पिस्ता, जई, बलूत और दाल हैं. गुफा से जो अन्य जीवों की हड्डियां मिली हैं, वे मुख्यतया भेड़ की हैं.
जर्मनी के माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर इवॉल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी में पीएचडी कर रहीं जैनब मोब्ताहिज इस रिसर्च की मुख्य शोधकर्ता हैं, जो ‘नेचर ईकोलॉजी एंड इवॉल्यूशन' नामक पत्रिका में प्रकिशत हुआ है.
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शाकाहार अहम हिस्सा था
मोब्ताहिज कहती हैं, "अब तक यही माना जाता रहा है कि घुमंतू शिकारी आदिमानवों के आहार का मुख्य हिस्सा जानवरों से मिलने वाला प्रोटीन था. लेकिन ताफोराल्ट से मिले सबूत दिखाते हैं कि उनकी थाली में बड़ा हिस्सा वनस्पति आधारित खाने का था.”
मिलिए नई तरह के आदिमानव से
इस्राएली पुरातत्वविदों ने कहा है कि उन्हें नई तरह का आदिमानव मिला है. उन्होंने कहा कि उन्हें जो अवशेष मिले हैं, वे किसी भी तरह की पहले से ज्ञात मानव जातियों से मिलते-जुलते नहीं हैं.
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
नेशर रामला होमो
सांइस पत्रिका में छपे एक शोध में तेल अवीव यूनिवर्सिटी के मानवविज्ञानियों और पुरातत्वविदों ने इस नए प्रकार के आदिवासियों को ‘नेशर रामला होमो’ नाम दिया है. योसी जैंडर के नेतृत्व में छपे इस शोध में कहा गया है कि नेशर रामला होमो टाइप आदिमानवों की मुखाकृति नियान्डेरथल और होमो दोनों से मिलती है.
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
ऐसा कोई नहीं
इस्राएली शोधकर्ताओं ने यह बात कही है जो रामाल्लाह शहर के नजदीक खुदाई कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें जो अवशेष मिले हैं, वे किसी भी तरह की पहले से ज्ञात मानव जातियों से मिलते-जुलते नहीं हैं.
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
कब हुए नेशर रामला
खोजियों को कुछ हड्डियां मिली हैं, जिनके अध्ययन से यह अनुमान लगाया गया है. इससे पता चलता है कि ये आदिमानव 140,000 से 120,000 साल पूर्व रहे होंगे.
तस्वीर: Tel Aviv University/dpa/AP/picture alliance
बिना ठोड़ी की खोपडी
शोध कहता है कि समानताओं के बावजूद इन आदिमानव का रूप आधुनिक मानव से एकदम अलग है. शोधकर्ता कहते हैं, “उनकी खोपड़ी का आकार एकदम अलग है. कोई ठोड़ी नहीं है और दांत बहुत बड़े हैं.” मानव हड्डियों के अलावा खोजियों को जानवरों की हड्डियों और पत्थरों के औजार भी मिले हैं.
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
अब तक की समझ पर सवाल
पुरातत्वविद योसी जैंडर ने बताया, “मानव जीवाश्मों से जुड़ी जो पुरातात्विक चीजें मिली हैं, वे दिखाती हैं कि नेशर रामला होमो आदिमानवों के पास पत्थरों से बने औजारों की तकनीक थी. और बहुत संभव है कि वे स्थानीय होमोसेपियन्स से संपर्क में थे. हमने कभी सोचा भी नहीं था कि मानव इतिहास के इतने बाद के दौर में होमोसेपियन्स के साथ पुरातन आदिमानव भी धरती पर गुजरे होंगे.”
तस्वीर: Yossi Zaidner/dpa/AP/picture alliance
नया मानव इतिहास
नेशर रामला की खोज उस सिद्धांत पर भी सवाल उठाती है कि नियान्डरथल दक्षिण की ओर जाने से पहले यूरोप में उभरे थे. तेल अवीव यूनिवर्सिटी के मानवविज्ञानी इस्राएल हेर्षकोवित्स कहते हैं, “हमारी खोज यह कहती है कि पश्चिमी यूरोप के मशहूर नियानडरथल असल में लेवांत इलाके में रहने वाले लोगों की ही संतानें थीं, ना कि वहां से लोग यहां आए.”
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
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शोध में शामिल एक अन्य शोधकर्ता फ्रांसीसी रिसर्च एजेंसी सीएनआरएस की क्लेविया यावेन कहती हैं कि यह एक अहम निष्कर्ष हैं. उन्होंने कहा, "यह अहम है क्योंकि यह दिखाता है कि खेती शुरू होने से पहले ही धरती पर रहने वाले कई समुदायों ने शाकाहार को अपने भोजन का हिस्सा बना लिया था.”
इबेरोमौरूशियन लोग भी घुमंतू शिकारी थे जो 25 हजार से 11 हजार साल पूर्व के बीच मोरक्को और लीबिया में रहते थे. अब तक मिले सबूत दिखाते हैं कि ये भी मुख्यतया गुफाओं में ही रहते थे लेकिन अपने मृत परिजनों को दफन करते थे.
शोधकर्ता कहते हैं कि गुफाओं का अत्यधिक प्रयोग दिखाता है कि ये साल के अधिकतर हिस्से एक जगह टिककर बिताते थे. उन्होंने अलग-अलग मौसमों में जंगली पौधों के पके हुए फलों का इस्तेमाल किया. इनके दांतों से सबूत मिलते हैं कि वे पौधों से मिलने वाले स्टार्च का खूब इस्तेमाल करते थे.
बच्चों को भी शाकाहार
ऐसे भी संकेत हैं कि वे सालभर खाने की आपूर्ति बनाए रखने के लिए खाद्य वनस्पतियों का भंडारण करते थे. लेकिन यह स्पष्ट है कि उन्होंने खेती करना शुरू नहीं किया था और वे जंगली पौधों पर ही निर्भर थे.
बर्फ में 5,300 सालों से दबा पाषाण युग का मानव "ओट्जी"
हजारों सालों से एक ग्लेशियर में दबे "ओट्जी" की खोज सितंबर 1991 में हुई थी, लेकिन वह आज भी लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है.
तस्वीर: Picture-alliance/dpa/M. Rattini/Port au Prince Pictures
सनसनीखेज खोज
जर्मन कपल एरिका और हेल्मुट साइमन को नौ सितंबर को ओट्ज्टाल ऐल्प्स पहाड़ों में बर्फ में जमा हुआ एक मानव मिला. यह जगह ऑस्ट्रिया और इटली की सीमा पर कहीं स्थित थी. शुरू में समझा गया कि यह शायद किसी हाइकर का शव है जिसकी किसी वजह से अचानक मौत हो गई होगी लेकिन बाद में पता चला कि यह पाषाण युग के एक आदमी का शरीर है, जो 5,300 सालों से बर्फ में पड़ा हुआ है. फिर इसे "ओट्जी" का उपनाम दिया गया.
तस्वीर: Picture-alliance/dpa/M. Rattini/Port au Prince Pictures
आकर्षण का केंद्र
कई सालों की सौदेबाजी के बाद एरिका को दक्षिणी टायरॉल राज्य की सरकार से 2,04,899 डॉलर का इनाम मिला. तब तक उनके पति का देहांत हो चुका था. वो पहाड़ों में हाइक करते हुए एक हादसे में मारे गए थे, जिसकी वजह से "ओट्जी के श्राप" जैसी बातें भी चल निकलीं. इसके बावजूद कोविड से पहले बोल्जानो स्थित पुरातत्व संग्रहालय में "ओट्जी" को हर साल देखने आने वालों की संख्या 3,00,000 के आस पास हो गई थी.
तस्वीर: Robert Parigger/APA/dpa/picture alliance
कैसा दिखता होगा
"ओट्जी" के शरीर को संग्रहालय में 99 प्रतिशत आर्द्रता वाले एक बर्फीले कमरे में रखा जाता है. उस पर नियमित रूप से रोगाणु-हीन पानी का छिड़काव किया जाता है. अगर शरीर में कुछ बदलाव हुए तो उनका पता लगाने के लिए एक तोलन यंत्र भी लगा हुआ है. इसे निरीक्षण के लिए सामान्य तापमान के माहौल में कम ही लाया जाता है और वो भी बहुत ही कम समय के लिए. इस तस्वीर के जरिए कल्पना की गई है कि "ओट्जी" कैसा दिखता होगा.
तस्वीर: dapd
किसका "ओट्जी"?
"ओट्जी" की खोज की अहमियत जैसे ही स्पष्ट हुई ऑस्ट्रिया और इटली के बीच इस बात पर झगड़ा शुरू हो गया कि उसे कौन रखेगा. अंत में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उसे दोनों देशों के बीच की सीमा से 92.56 मीटर दूर, इटली की सीमा के अंदर पाया गया था.
तस्वीर: AP
शरीर पर टैटू
"ओट्जी" के शरीर पर 61 टैटू पाए गए. क्रॉस और रेखाएं वाले इन टैटूओं को बनाने वाले ने "ओट्जी" की त्वचा को काट दिया था और बाद में घावों को सख्त कोयले से भर दिया था. यह काफी दर्द भरा तरीका रहा होगा. "ओट्जी" की मौत उसके कंधे में एक तीर के लग जाने से हुई थी. जब उसके शरीर की खोज हुई, वह तीर तब भी उसके शरीर में गड़ा हुआ था.
"ओट्जी" के पेट में जो भी था उसका भी गहन अध्ययन किया गया और पता चला कि उसे अपनी मौत से ठीक पहले काफी गरिष्ठ और चर्बीयुक्त खाना खाया था. इस भोजन में अनाज की एक काफी पुराना किस्म "आइनकॉर्न गेहूं" और बकरे का मांस मिला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M.Samadelli
आधुनिक तकलीफें
"ओट्जी" को ऐसी कई स्वास्थ्य समस्याएं थीं जो आज भी पाई जाती हैं. उसे दांतों का खराब होना, लाइम बीमारी और शरीर में पिस्सू होना जैसी समस्याएं थीं. उसे लैक्टोज असहनशीलता भी थी और आग के आस पास काफी ज्यादा वक्त बिताने से उसके फेंफड़े किसी सिगरेट पीने वाले के फेंफड़ों जैसे हो गए थे. उसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी नाम की पेट की समस्या भी थी और हृदय रोग भी थे.
तस्वीर: dpa
"ओट्जी" 2.0"
"ओट्जी" के बारे में और लोग जान सकें इस उद्देश्य से अप्रैल 2016 में उसकी एक प्रति बनाई गई. इटली के युरैक रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने एक थ्रीडी प्रिंटर की मदद से राल का इस्तेमाल कर उसकी एक प्रति बनाई. उसके बाद अमेरिकी पैलियो आर्टिस्ट गैरी स्ताब ने उसकी बारीकियों को उभारा. वो अब न्यू यॉर्क के कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैबोरेटरी के डीएनए लर्निंग सेंटर में है. (टॉर्स्टन लैंड्सबर्ग)
मोब्ताहिज कहती हैं, "यह दिलचस्प है कि हमारे शोध में समुद्री या ताजा पानी के जीवों को खाने का न्यूनतम संकेत मिला है. साथ ही यह भी प्रतीत होता है कि उन्होंने अपने शिशुओं के खाने में जंगली पौधों का इस्तेमाल पहले के अनुमान से कहीं जल्दी शुरू कर दिया था.”
ताफोराल्ट की गुफा में जिन सात लोगों के अवशेष मिले थे, उनमें दो शिशु भी थे. उनके दांतों की तुलना जब मां के दूध और ठोस आहार की आयु के बीच की गई तो पाया गया कि आयु बढ़ने के साथ-साथ उनके भोजन में बदलाव हुए थे. शोध के मुताबिक 12 महीने की आयु से उन्हें ठोस आहार देना शुरू किया गया.
मोब्ताहिज कहती हैं कि कुछ घुमंतू शिकारियों ने खेती शुरू की, जबकि अन्य समूहों ने नहीं, इस जानकारी से खेती के विकास और मानव समाज के नई रणनीतियों को अपनाने के बारे में अहम सुराग मिल सकते हैं.