अयोध्या: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मामला सुलझेगा या उलझेगा?
मारिया जॉन सांचेज
२१ मार्च २०१७
दशकों से चल रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसे आपसी बातचीत से हल किया जाएगा. इस फैसले के मायने समझा रहे हैं कुलदीप कुमार.
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली अभूतपूर्व सफलता और उसके बाद कट्टर हिंदुत्ववादी और मुस्लिम-विरोधी बयानों के लिए कुख्यात योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के फलस्वरूप अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त होता दिख रहा है.
बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर, 1992 के दिन संघ परिवार और शिवसेना के कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों ने गिरा दिया था क्योंकि उनका मानना था कि मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे भगवान राम का जन्म हुआ था और मस्जिद को राम मंदिर तोड़ कर ही बनाया गया था. बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद आनन-फानन में वहां एक छोटे-से अस्थायी मंदिर का निर्माण कर दिया गया था जिस पर पूजा-अर्चना होती है. भारतीय जनता पार्टी का वादा था कि केंद्र में अपने बलबूते पर सरकार बनाने के वह मंदिर निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाएगी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को सत्ता में आए हुए लगभग तीन साल होने के बाद भी अभी तक कुछ नहीं हुआ है.
लेकिन मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्देश दिया है, उससे मंदिर निर्माण का रास्ता खुल सकता है. भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि क्योंकि यह मामला बेहद संवेदनशील है और इससे दोनों ही पक्षों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं, इसलिए दोनों पक्ष आपस में मिल-बैठकर हल करने का प्रयास करें.
अयोध्या: कब क्या हुआ
भारतीय राजननीति में अयोध्या एक ऐसा सुलगता हुआ मुद्दा रहा है जिसकी आग ने समाज को कई बार झुलसाया है. जानिए, कहां से कहां तक कैसे पहुंचा यह मुद्दा...
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कुछ हिंदू नेताओं का दावा है कि इसी साल मुगल शासक बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी.
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1853
इस जगह पर पहली बार सांप्रदायिक हिंसा हुई.
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1859
ब्रिटिश सरकार ने एक दीवार बनाकर हिंदू और मुसलमानों के पूजा स्थलों को अलग कर दिया.
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1949
मस्जिद में राम की मूर्ति रख दी गई. आरोप है कि ऐसा हिंदुओं ने किया. मुसलमानों ने विरोध किया और मुकदमे दाखिल हो गए. सरकार ने ताले लगा दिए.
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1984
विश्व हिंदू परिषद ने एक कमेटी का गठन किया जिसे रामलला का मंदिर बनाने का जिम्मा सौंपा गया.
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1986
जिला उपायुक्त ने ताला खोलकर वहां हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी. विरोध में मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
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1989
विश्व हिंदू परिषद ने मस्जिद से साथ लगती जमीन पर मंदिर की नींव रख दी.
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1992
वीएचपी, शिव सेना और बीजेपी नेताओं की अगुआई में सैकड़ों लोगों ने बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई की और उसे गिरा दिया.
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जनवरी 2002
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने दफ्तर में एक विशेष सेल बनाया. शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुस्लिम नेताओं से बातचीत की जिम्मेदारी दी गई.
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मार्च 2002
गोधरा में अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों को जलाकर मारे जाने के बाद भड़के दंगों में हजारों लोग मारे गए.
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अगस्त 2003
पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया कि जहां मस्जिद बनी है, कभी वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं.
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जुलाई 2005
विवादित स्थल के पास आतंकवादी हमला हुआ. जीप से एक बम धमाका किया गया. सुरक्षाबलों ने पांच लोगों को गोलीबारी में मार डाला.
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2009
जस्टिस लिब्रहान कमिश्न ने 17 साल की जांच के बाद बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना की रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया गया.
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सितंबर 2010
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विवादित स्थल को हिंदू और मुसलमानों में बांट दिया जाए. मुसलमानों को एक तिहाई हिस्सा दिया जाए. एक तिहाई हिस्सा हिंदुओं को मिले. और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. मुख्य विवादित हिस्सा हिंदुओं को दे दिया जाए.
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मई 2011
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित किया.
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मार्च 2017
रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों को यह विवाद आपस में सुलझाना चाहिए.
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मार्च, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की मध्यस्थता के लिए एक तीन सदस्यीय समिति बनाई. श्रीश्री रविशंकर, श्रीराम पांचू और जस्टिस खलीफुल्लाह इस समिति के सदस्य थे. जून में इस समिति ने रिपोर्ट दी और ये मामला मध्यस्थता से नहीं सुलझ सका. अगस्त, 2019 से सुप्रीम कोर्ट ने रोज इस मामले की सुनवाई शुरू की.
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नवंबर, 2019
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया कि विवादित 2.7 एकड़ जमीन पर राम मंदिर बनेगा जबकि अयोध्या में मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन सरकार मुहैया कराएगी.
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अगस्त, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में बुधवार को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी. कोरोना वायरस की वजह से इस कार्यक्रम को सीमित रखा गया था और टीवी पर इसका सीधा प्रसारण हुआ.
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प्रधान न्यायाधीश ने यहां तक कहा कि यदि उनसे मध्यस्थता करने को कहा जाएगा तो वे इसके लिए भी तैयार हैं लेकिन फिर वे मामले की सुनवाई में हिस्सा नहीं लेंगे. सुब्रह्मण्यम स्वामी का कहना है कि मस्जिद अयोध्या में किसी और स्थल पर बनाई जा सकती है. उधर वक्फ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. इसके पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि विवादित भूमि को दोनों पक्षों में बांट दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश काफी चौंकाने वाला है. अयोध्या विवाद कोई नया विवाद नहीं है. आपसी बातचीत के जरिये इसे सुलझाने की अनेक कोशिशें की जा चुकी हैं. जब ये कोशिशें चल ही रही थीं और उत्तर प्रदेश में भाजपा के नेतृत्व में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सरकार सत्ता में थी, तभी सुनियोजित ढंग से बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया. अब फिर राज्य में भाजपा की सरकार है और उसके पास विधानसभा में तीन-चौथाई से भी अधिक बहुमत है. मौजूदा मुख्यमंत्री भी कल्याण सिंह के मुकाबले अधिक कट्टर हिंदुत्ववादी हैं.
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड कर गेंद को फिर से मुकदमा लड़ रहे पक्षों के पाले में फेंक देना हैरत में डालने वाली बात है. संघ के विचारक एमजी वैद्य ने विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही बयान दिया था कि उत्तर प्रदेश की जनता ने दिखा दिया है कि वह राम मंदिर निर्माण के पक्ष में है. इसलिए इस ऐतिहासिक जनादेश को यदि भाजपा राम मंदिर के पक्ष में जनादेश की तरह व्याख्यायित करे, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. यूं हकीकत यह है कि वोट ‘सबका साथ, सबका विकास' के नारे पर मांगा गया था, राम मंदिर निर्माण के नाम पर नहीं.
कौन हैं रामनामी, जो राम नाम का टैटू बनवाते आए हैं
भारत के छत्तीसगढ़ में रहने वाले रामनामी समाज के लोग 100 साल से भी लंबे समय से अपने शरीर के हर हिस्से में राम का नाम गुदवाते हैं. देखिए कौन सा अनोखा संदेश छुपा है इस टैटू परंपरा में.
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विद्रोही सोच
टैटू गुदवाने की इस परंपरा के साथ समाज की वंचित जातियों के लोग 'अगड़ी जातियों' को खास अंदाज में एक संदेश देते आए हैं. संदेश यह कि भगवान केवल 'सवर्णों' के नहीं, बल्कि सबके होते हैं.
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समर्पित
मंदिरों में प्रवेश करने से रोके जाने के कारण इन्होंने अपने पूजनीय भगवान राम के प्रति असीम श्रद्धा दिखाते हुए अपने शरीर पर ही उनके सैकड़ों प्रचलित नाम गुदवा लिए. जैसे - राम, राघव, कौशलेंद्र, रामभद्र, मर्यादापुरुषोत्तम वगैरह.
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वर्जनाएं
रामनामी समाज ने तथाकथित ऊंची जाति के लोगों के भेदभाव के खिलाफ एक शांतिपूर्ण विद्रोह के रूप में इसकी शुरुआत की. हालांकि भारत में जाति के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव की सख्त मनाही है.
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संस्कृत
ये लोग प्राचीन भारतीय भाषा संस्कृत में अपनी त्वचा पर राम के विभिन्न नाम गुदवाते हैं. संस्कृत को देवभाषा का दर्जा प्राप्त है. शरीर को मंदिर की तरह पवित्र मानते हुए ये लोग मांस और शराब का सेवन नहीं करते.
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जीवनशैली
लगभग हर परिवार अपने घर में भगवान राम पर लिखा एक महाग्रंथ या महाकाव्य रखता है. यहां तक की घरों की सजावट में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों पर भी राम नाम अंकित होते हैं.
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महिलाएं
इस समाज के करीब एक लाख लोगों में इस एक मामले में महिला-पुरुष का कोई अंतर नहीं है. रामनामी समाज की औरतें भी राम नाम के टैटू बनवाती हैं.
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बदलती पीढ़ियां
इस समुदाय के सभी युवा अब अपने पूरे शरीर पर ऐसे टैटू नहीं गुदवाना चाहते. लेकिन नई पीढ़ी ने सदियों से चली आ रही अपनी इस परंपरा को पूरी तरह त्यागा भी नहीं है.
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एक तरफ यह सब चल रहा है, तो दूसरी तरफ बुधवार को सुप्रीम कोर्ट इस बारे में फैसला सुनाने वाला है कि बाबरी मस्जिद ध्वंस की साजिश वाले मामले से तकनीकी आधार पर लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे कई बड़े नेताओं का नाम हटाया जाना सही था या नहीं. यदि उसने इसे सही नहीं पाया, तो फिर इन सभी बड़े नेताओं पर इस मामले में आरोप फिर से लागू हो जाएंगे और मुकदमा फिर से शुरू होगा.
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश भाजपा के लिए बहुत सही समय पर आया है. विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद मुस्लिम समुदाय का मनोबल खासा गिरा हुआ है. हताशा के इन दिनों में बाबरी मस्जिद आंदोलन के नेता समझौते पर राजी हो सकते हैं. यदि ऐसा हुआ तो भाजपा अपनी जीत पर जश्न मनाएगी. और यदि वे ना माने, तो उसका मुस्लिमविरोधी प्रचार और अधिक तेज हो जाएगा जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मिजाज के अनुरूप भी है. आने वाले दिन इस दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं.
योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के गोरखनाथ मठ के महंत हैं. वे महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी हैं जो महंत दिग्विजयनाथ के उत्तराधिकारी थे. 1949 में महंत दिग्विजयनाथ द्वारा अयोध्या में आयोजित एक लंबे धार्मिक आयोजन के समापन के समय रहस्यमय ढंग से राम लला और सीता की मूर्तियां बाबरी मस्जिद में प्रकट हो गई थीं. दरअसल बाबरी मस्जिद के स्थान पर भव्य राम मंदिर बनाने की मूल प्रतिज्ञा महंत दिग्विजयनाथ की ही थी. इससे स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ किस परंपरा के उत्तराधिकारी हैं.