यूक्रेन को इतनी मदद देकर भी आलोचना झेल रहा है जर्मनी
२० अप्रैल २०२२
यूक्रेन और जर्मनी की सरकारों के बीच अविश्वास बीते दिनों में उभरा है. जर्मनी, नाटो की नीति के मुताबिक, यूक्रेन को बड़े हथियार नहीं भेज रहा और यूक्रेन जर्मन नेताओं की कड़ी आलोचना कर रहा है.
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जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने 19 अप्रैल को बर्लिन में यूक्रेन के बारे में एक संक्षिप्त भाषण दिया. यह यूक्रेन युद्ध और उसमें जर्मनी के प्रयासों के बारे में था. शॉल्त्स की बातें उनके लिए खरी-खरी थीं जो लगातार यूक्रेन युद्ध को लेकर जर्मनी की आलोचना कर रहे हैं. यूरोप की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति जर्मनी पर यूक्रेन की मदद के लिए बाहर और खुद अपनी राजनीतिक पार्टियों का दबाव है. शॉल्त्स और कैबिनेट से सवाल किए जा रहे हैं कि आखिर वे क्यों यूक्रेन को उन्नत हथियार मुहैया नहीं करवा रहे.
शॉल्त्स ने क्या कहा
अपने संबोधन में शॉल्त्स ने कहा कि जर्मन सेना, बुंडसवेयर के पास अब ऐसे खास हथियार नहीं हैं जो यूक्रेन को दिए जा सकें, इसकी बजाय उनकी सरकार सीधे जर्मनी के हथियार बनाने वालों को पैसा दे रही है. शॉल्त्स ने कहा, "हमने जर्मनी की हथियार उद्योग से पूछा है कि वो हमें निकट भविष्य में हमें क्या-क्या हथियार सप्लाई कर सकते हैं."
उन्होंने जोड़ा कि जर्मनी, यूक्रेन के संपर्क में था ताकि आर्थिक तौर पर मदद की जा सके. इसके अलावा शॉल्त्स ने बताया कि एंटी-टैंक, एयर डिफेंस सिस्टम और गोला-बारूद यूक्रेन को दिए गये हैं. साथ ही जर्मनी नाटो सहयोगियों से यूक्रेन को मिले हथियारों के कुछ स्पेयर पार्ट भी मुहैया करवा रहा है.
चांसलर ने कहा, "यूक्रेन को हमारा सहयोग और समर्थन है. साथ ही देश और सरकारों के प्रमुख होने के नाते हमारा फर्ज है कि हम जंग को बाकी देशों तक पहुंचने से रोकें. इसलिए नाटो सीधे तौर पर जंग में शामिल नहीं होना चाहता और ना होगा. हमारी नीति का सिद्धांत यही है, यूक्रेन को भरपूर मदद की जाएगी, लेकिन बिना नाटो को शामिल किए."
रूसी सेना पर भारी पड़ रहे हैं यूक्रेन को मिले ये हथियार
छोटी सी यूक्रेनी सेना, रूस को इतनी कड़ी टक्कर कैसे दे रही है? इसका जवाब है, यूक्रेन को मिले कुछ खास विदेशी हथियार. एक नजर इन हथियारों पर.
ये अमेरिकी पोर्टेबल एंटी टैंक मिसाइलें हैं. इन्हें आसानी से कंधे पर रखकर कहीं भी ले जाया जा सकता है. पेड़ या इमारत की आड़ में छुपा एक सैनिक भी इसे अकेले ऑपरेट कर सकता है. इस मिसाइल ने यूक्रेन में रूसी टैंकों को काफी नुकसान पहुंचाया है.
यूक्रेन को अमेरिका और तुर्की ने बड़ी मात्रा में हमलावर ड्रोन मुहैया कराए हैं. बीते एक दशक में तुर्की हमलावर ड्रोन टेक्नोलॉजी में बहुत आगे निकल चुका है. अमेरिकी ड्रोन भी अफगानिस्तान में जांचे परखे जा चुके हैं. यूक्रेन को मिले इन ड्रोनों ने रूसी काफिले को काफी नुकसान पहुंचाया है.
तस्वीर: UPI Photo/imago images
S-300 मिसाइल डिफेंस सिस्टम
स्लोवाकिया की सरकार ने यूक्रेन को रूस में बने S-300 एयरक्राफ्ट एंड मिसाइल डिफेंस सिस्टम दिया है. यह सिस्टम 100 किलोमीटर की दूरी से लड़ाकू विमानों और मिसाइलों का पता लगा लेता है. इस सिस्टम के मिलने के बाद यूक्रेन के ऊपर रूसी लड़ाकू विमानों का प्रभुत्व कमजोर पड़ चुका है.
तस्वीर: AP
MI-17 हेलिकॉप्टर
अमेरिका ने यूक्रेन को रूसी MI-17 हेलिकॉप्टर भी दिए हैं. अमेरिका ने काफी पहले रूस से ये हेलिकॉप्टर खरीदे थे. रूस के यही हेलिकॉप्टर अब रूसी सेना के लिए आफत बन रहे हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के देश अब तक यूक्रेन को 1.5 अरब डॉलर की सहायता दे चुके हैं.
तस्वीर: Reuters/Kacper Pempel
NLAW-लाइट एंटी टैंक वीपन
टैंकों को निशाना बनाने वाला बेहद हल्का यह मिसाइल सिस्टम स्वीडिश कंपनी साब बनाती हैं. 12.5 किलोग्राम वजन वाला ये सिस्टम 800 मीटर दूर तक सटीक मार करता है. ब्रिटेन ने अब तक ऐसे करीब 3600 लाइट एंटी टैंक वीपन यूक्रेनी सेना को दिए हैं.
तस्वीर: picture alliance/Vadim Ghirda/AP Photo
हमर और रडार सिस्टम
अमेरिका ने यूक्रेन को 70 हमर गाड़ियां दी हैं. साथ ही यूक्रेन को दी गई करोड़ों डॉलर की सैन्य मदद के तहत अमेरिका ने आधुनिक रडार सिस्टम और गश्ती नाव भी दी हैं.
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FIM-92 स्ट्रिंगर
एक इंसान के जरिए ऑपरेट किया जाने वाला FIM-92 स्ट्रिंगर सिस्टम असल में एक पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम है. अमेरिका में बनाया गया यह सिस्टम तेज रफ्तार लड़ाकू विमानों और हेलिकॉप्टरों को निशाना बनाता है. अमेरिका और जर्मनी ने ऐसी 1900 यूनिट्स यूक्रेन को दी हैं.
तस्वीर: picture alliance/newscom/D. Perez
बुलेटप्रूफ बख्तरबंद गाड़ियां
जर्मनी ने यूक्रेन की सेना को 80 बुलेटप्रूफ बख्तरबंद गाड़ियां दी हैं. इन गाड़ियों से फायरिंग और रॉकेट लॉन्च किए जा सकते हैं. जर्मनी ने यूक्रेन को 50 एंबुलेंस भी दिए हैं.
तस्वीर: Daniel Karmann/dpa/picture alliance
नीदरलैंड्स के हथियार
यूक्रेन को सबसे पहले सैन्य मदद देने वाले यूरोपीय देशों में नीदरलैंड्स भी शामिल है. डच सरकार ने कीव को 400 एंटी टैंक वैपन, 200 एंटी एयरक्राफ्ट स्ट्रिंगर मिसाइलें और 100 स्नाइपर राइफलें दीं.
तस्वीर: Bundeswehr/Walter Wayman
नाइट विजन इक्विपमेंट्स
अमेरिका से मिले नाइट विजन ग्लासेस भी यूक्रेनी सेना की बड़ी मदद कर रहे हैं. पश्चिमी देशों से मिले नाइट विजन चश्मे और ड्रोन, इंफ्रारेड व हीट सेंसरों से लेस है. रूस फिलहाल इस टेक्नोलॉजी में पीछे है.
तस्वीर: Philipp Schulze/dpa/picture alliance
इंटेलिजेंस सपोर्ट
अमेरिका और यूरोपीय संघ के पास ऐसी कई सैटेलाइट हैं जो बेहद हाई रिजोल्यूशन में धरती का डाटा जुटाती हैं. इन सैटेलाइटों और दूसरे स्रोतों से मिला खुफिया डाटा भी इस युद्ध में यूक्रेनी सेना की काफी मदद कर रहा है.
तस्वीर: Maxar Technologies/AFP
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क्यों आलोचना हो रही है
यूक्रेनी राष्ट्रपति समेत कई बड़े नेता और राजनयिक जर्मनी से बड़े हथियार देने की मांग कर रहे हैं. इसपर जर्मनी ने साफ किया है कि नाटो (सदस्य) टैंक, फाइटर जेट जैसे बड़े हथियार यूक्रेन को नहीं दे सकता. ऐसा करना एक तरह से युद्ध में शामिल होना होगा, जो निश्चित तौर पर कोई भी देश नहीं चाहेगा.
जर्मनी का यही रवैया यूक्रेनी सरकार को पसंद नहीं है. वे कई मौकों पर जर्मनी की इस नीति की आलोचना करते रहे हैं. शॉल्त्स के संबोधन के बाद बर्लिन में यूक्रेनी राजदूत आंद्रिये मेलनायक ने जर्मन न्यूज एजेंसी डीपीए से कहा कि "शॉल्त्स के इस संबोधन को यूक्रेन में बड़ी निराशा और कड़वाहट की तरह देखा गया है." यह पहला मौका नहीं है जब यूक्रेन ने जर्मनी पर अविश्वास जताया हो. अप्रैल के शुरुआती दिनों में जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रांक वॉल्टर शटाइनमायर कीव जाना चाहते थे. ऐन मौके पर उन्होंने बताया कि यूक्रेनी सरकार नहीं चाहती कि वो यूक्रेन आएं. यूक्रेन मानता है कि विदेश मंत्री रहने के दौरान श्टाइनमायर का रवैया रूस के पक्ष में था. राष्ट्रप्रमुख के साथ हुई ऐसी घटना के बाद भविष्य में शॉल्त्स के कीव जाने के आसार भी लगभग ना करे बराबर हो गए हैं. समीक्षक इसे यूक्रेन की कूटनीतिक गलती मानते हैं.
यूक्रेन को दूसरी शिकायत रूस से गैस खरीदने के बारे में भी है. जर्मनी की गैस जरूरत का एक बड़ा हिस्सा रूस से आ रहा है. कुछ ही दिनों में गैस आपूर्ति रोक देना आसान नहीं है. दूसरी ओर यूक्रेन चाहता है कि जर्मनी समेत यूरोप और अन्य देश रूस से तेल खरीदना बंद कर दें. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेस्की कई मंचों पर कह चुके हैं कि रूस से तेल खरीदने का मतलब है कि आप यूक्रेन की तबाही के लिए पैसा दे रहे हैं.
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यूक्रेन को मदद
जर्मनी ने सैन्य और आर्थिक तरीके से यूक्रेन की मदद की है. शुरुआत में हेल्मेट भेजकर आलोचना की शिकार हुई जर्मन सरकार ने बाद के दिनों में एंटी-टैंक और एयर डिफेंस जैसे सुरक्षात्मक हथियार भेजे हैं. इसलिए अलावा 2 अरब यूरो की सैन्य मदद देने का ऐलान किया है.
रूस के पड़ोसी देश लातविया के दौरे पर आईं जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने पूछे जाने पर हथियारों के नाम तो नहीं बताए, लेकिन कहा, "जर्मनी ने एंटी-टैंक मिसाइल, स्टिंगर्स और अन्य हथियार भेजे हैं. जो हथियार हम नहीं दे सकते और हमारे सहयोगी (यूक्रेन को) पहुंचा सकते हैं, ऐसे उन्नत हथियारों के रखरखाव और सैनिकों को प्रशिक्षण देने में हम यूक्रेन की मदद करेंगे."
जर्मनी ने दूसरे पश्चिम यूरोपीय देशों को मुकाबले ज्यादा यूक्रेनी नागरिकों को शरण दी है. 16 अप्रैल तक 3,20,000 हजार यूक्रेनी नागरिक जर्मनी में आ चुके हैं. जंग रोकने के लिए शॉल्त्स मॉस्को का दौरा भी कर चुके हैं और कई मौकों पर यूक्रेन के लिए मजबूत पक्ष रखते रहे हैं.
इतने बदलाव के बाद भी जर्मनी निशाने पर
यूक्रेन का साथ देने के लिए जर्मनी ने अपनी नीतियों में बड़े बदलाव किये हैं, जिसके लिए उसे भारी कूटनीतिक और आर्थिक कीमत आने वाले सालों में चुकानी पड़ सकती है. इनमें रूस से सीधा जर्मनी तक गैस पहुंचाने के लिए बनाई जा रही महत्वकांक्षी नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन को युद्ध शुरू होने के बाद बंद करना पहला बड़ा कदम था.
जर्मनी की एक और नीति है कि वह युद्ध क्षेत्र में हथियार ना बेचेगा और ना भेजेगा. लेकिन यूक्रेन के मामले में वो हथियारों की सप्लाई के लिए पैसा खर्च कर रहा है. जर्मनी को रूस से तेल और गैस ना खरीदनी पड़े, इसलिए ऊर्जा मंत्री ने मध्य-पूर्व के देशों का दौरा किया ताकि वैकल्पिक इंतजाम किए जा सकें. जर्मनी में कुछ सालों के भीतर कोयला और परमाणु ऊर्जा सयंत्रों को बंद करने का ऐलान पहले ही किया जा चुका है.
यूक्रेन का रवैया जर्मनी के प्रति दोस्ताना नहीं रहा है. हालांकि कुछ देश ऐसे हैं जिनके साथ यूक्रेन की सार्वजनिक रूप से बेहतर आपसी समझ दिखती है. डीडब्ल्यू के मार्को म्यूलर लिखते हैं,
"कुछ देशों की कारगुजारी से आभास हो सकता है कि काफी कुछ बेहतर छवि बनाए रखने के लिए किया जा रहा है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने कई बार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की. फुटबॉल चैंपियन लीग का रूस में प्रस्तावित मैच फ्रांस में करवाया. लेकिन जब बात शरणार्थियों को रखने की आती है तो माक्रों इतनी जल्दी फैसला नहीं ले पाते. पोलैंड यूक्रेन को लड़ाकू विमान देने की बात करता है, लेकिन अमेरिका के जरिये और जर्मनी में बने एयरबेस से. विमान ना पहुंचने की सूरत में जिम्मेदारी अमेरिका या जर्मनी पर डाल देता है."
यूक्रेन और जर्मन सरकार के बीच अविश्वास
जर्मनी के राष्ट्रपति को यूक्रेन ना आने देना और लगातार शॉल्त्स समेत जर्मन सरकार की आलोचना करना, यूक्रेन और जर्मन सरकार के बीच पैदा अविश्वास को दिखाता है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कह चुके हैं कि उन्हें जर्मनी के साथ पर कोई शक नहीं है और नाटो एकजुट है. हालांकि नाटो के ही कई सदस्य देश जर्मनी पर लगातार उंगली उठा रहे हैं. जबकि युद्ध में यूक्रेन की सबसे ज्यादा आर्थिक सहायता करने वाले देश अमेरिका और जर्मनी ही हैं.
यूरोपीय संघ और नाटो के बीच अगर मतभेद होता है, तो इसका सबसे ज्यादा फायदा क्रेमलिन में बैठे व्लादिमीर पुतिन को होगा जिनके आदेश से यूक्रेन पर हमले का दूसरा चरण शुरू हो चुका है.
आरएस/एनआर (रॉयटर्स, डीपीए)
पुतिन के युद्ध का दुनिया पर असर
रूस के यूक्रेन पर हमले का असर पूरी दुनिया में महसूस किया जा रहा है. खाने पीने की चीजों और ईंधन की कीमतें आसमान पर हैं. कुछ देशों में तो महंगाई के कारण लोग सड़कों पर उतर आए हैं.
तस्वीर: PIUS UTOMI EKPEI/AFP via Getty Images
यूक्रेन के कारण महंगाई
जर्मनी में लोगों की जेब पर यूक्रेन युद्ध का असर महसूस हो रहा है. मार्च में जर्मनी की मुद्रास्फीति दर 1981 के बाद सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है.
तस्वीर: Moritz Frankenberg/dpa/picture alliance
केन्या में लंबी लाइन
केन्या के नैरोबी में पेट्रोल पंपों के सामने लंबी-लंबी कतारें देखी जा सकती हैं. तेल महंगा हो गया है और सप्लाई बहुत कम है. इसका असर खाने-पीने और रोजमर्रा की जरूरत की बाकी चीजों पर भी नजर आ रहा है.
तस्वीर: SIMON MAINA/AFP via Getty Images
तुर्की में ब्रेड हुई महंगी
रूस दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक है और रूसी उत्पादों पर लगे प्रतिबंधों के कारण गेहूं की आपूर्ति प्रभावित हुई है. यूक्रेन भी गेहूं के पांच सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. नतीजतन कई जगह ब्रेड महंगी हो गई है.
तस्वीर: Burak Kara/Getty Images
इराक में गेहूं बस के बाहर
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से इराक में गेहूं के दाम आसमान पर हैं. इराक ने फिलहाल यूक्रेन के मुद्दे पर निष्पक्ष रुख अपनाया हुआ है. हालांकि देश में पुतिन समर्थक पोस्टर बैन कर दिए गए हैं.
तस्वीर: Ameer Al Mohammedaw/dpa/picture alliance
लीमा में प्रदर्शन
पेरू की राजधानी लीमा में महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन करते लोगों की पुलिस से खासी झड़प हुई. सरकार ने कुछ समय के लिए कर्फ्यू भी लगाकर रखा था लेकिन जैसे ही कर्फ्यू हटाया गया, प्रदर्शन फिर शुरू हो गए.
तस्वीर: ERNESTO BENAVIDES/AFP via Getty Images
श्रीलंका में संकट
श्रीलंका इस वक्त ऐतिहासिक आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुजर रहा है. पहले से ही खराब देश की आर्थिक हालत को यूक्रेन युद्ध ने और ज्यादा बिगाड़ दिया है और लोग अब सड़कों पर हैं.
स्कॉटलैंड में लोगों ने महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया. पूरे युनाइटेड किंग्डम में ट्रेड यूनियनों ने बढ़ती महंगाई का विरोध किया है. पहले ब्रेक्जिट, फिर कोविड और अब यूक्रेन युद्ध ने लोगों की हालत खराब कर रखी है.
तस्वीर: Jeff J Mitchell/Getty Images
मछली पर मार
ब्रिटेन के राष्ट्रीय डिश फिश एंड चिप्स पर यूक्रेन युद्ध का असर नजर आ रहा है. सालभर में 38 करोड़ ‘फिश एंड चिप्स’ खाने वाले ब्रिटेन में अब रूस से आने वाली व्हाइट फिश और खाने का तेल इतना महंगा हो गया है कि लोगों को इससे मुंह मोड़ना पड़ा है. फरवरी में यूके की मुद्रास्फीति दर 6.2 प्रतिशत थी.
तस्वीर: ADRIAN DENNIS/AFP via Getty Images
नाइजीरिया के लिए मौका
यूक्रेन युद्ध को नाइजीरिया के उत्पादक एक मौके की तरह देख रहे हैं. वे रूस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं. देश के सबसे धनी व्यक्ति अलीको दांगोट ने हाल ही में नाइजीरिया का सबसे बड़ा खाद कारखाना खोला है.