अफ्रीका के कुछ हिस्सों में शहद निकालने के लिए पक्षी और इंसान मिलकर काम करते हैं. एक नया अध्ययन बताता है कि दोनों के बीच का रिश्ता हमारे अनुमान से कहीं ज्यादा गहरा है.
शहद जमा करने वाला एक शख्स अपनी मददगार सहकर्मी हनीगाइड पक्षी के साथ...तस्वीर: Claire Spottiswoode/University of Cambridge
विज्ञापन
अफ्रीका के कई हिस्सों में मनुष्यों और जंगली हनीगाइड पक्षियों ने एक सहजीवी संबंध विकसित किया है. इंसान, शहद-खोजी पक्षियों को बुलाते हैं और वो पक्षी उन्हें मधुमक्खी के छत्ते तक ले जाते हैं. मनुष्य शहद इकट्ठा करते हैं और मोम वाला छत्ता पक्षियों के लिए छोड़ देते हैं.
अब शोधकर्ताओं ने पाया है कि हनीगाइड पक्षी बाहरी लोगों की तुलना में स्थानीय लोगों के बुलावे के प्रति अधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं. इससे यह पता चलता है कि पक्षी स्थानीय बोली को पहचानते हैं. 7 दिसंबर को शोधकर्ताओं ने नेचर पत्रिका में अपने निष्कर्षों की जानकारी दी है.
मधुमक्खी के छत्ते से शहद निकालना बड़ा तकनीकी काम है. इसमें कुल्हाड़ी और धुएं की जरूरत पड़ती है. तस्वीर: Claire Spottiswoode/University of Cambridge
शोध की सह-प्रमुख लेखक क्लेयर स्पॉटिसवुडे, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और केपटाउन विश्वविद्यालय के जंतुविज्ञान विभाग में एक विकासवादी जैव वैज्ञानिक हैं. वह पिछले कई साल से मोजाम्बिक में हनीगाइड पक्षी और शिकारी मनुष्यों के संबंधों का अध्ययन कर रही हैं.
पक्षियों को बुलाने के लिए अलग-अलग आवाजें
वहां स्थानीय याओ शिकारी एक तरह की लहरदार आवाज वाली सीटी (ट्रिल) के बाद एक खास आवाज (ग्रंट) निकालकर पक्षियों को बुलाते हैं.
स्पॉटिसवुडे को पहले से ही पता था कि पूरे अफ्रीका में अलग-अलग जगहों पर हनीगाइड कॉल, यानी शहद खोजने वाले पक्षियों को बुलाने के लिए दी जाने वाली हांक, अलग-अलग तरह की होती हैं. पूरे महाद्वीप में अलग-अलग लोग शहद इकट्ठा करने में मदद के लिए अलग-अलग तरह से पक्षियों को आकर्षित करते हैं. स्पॉटिसवुडे ने यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या पक्षियों के बाहरी लोगों के मुकाबले स्थानीय लोगों की आवाज का जवाब देने की संभावना ज्यादा होती है.
ये हनीगाइड पक्षी, शहद जमा करने वाले लोगों को राह दिखाते हैं. उन्हें शहद के छत्ते तक पहुंचाते हैं. इंसान शहद ले लेता है और मोम वाला छत्ता, अपने मददगार और गाइड पक्षी के लिए छोड़ देता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह इंसानों और वन्यजीवों ते बीच सहयोग और सहजीविता की दुर्लभ मिसाल है. तस्वीर: Claire Spottiswoode/University of Cambridge
इसके लिए उन्होंने ब्रायन वुड के साथ मिलकर काम किया. ब्रायन वुड कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजेलिस और माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपॉलजी में हनीगाइड शोधकर्ता हैं. शोध के लिए दो खास इलाके चुने गए: तंजानिया की किडेरो पहाड़ियां और मोजांबिक में नियासा स्पेशल रिजर्व.
मोजांबिक में हनीगाइड पक्षी की मदद से मधुमक्खी के छत्ते को खोजकर उससे शहद निकालते लोगतस्वीर: Claire Spottiswoode/University of Cambridge
स्थानीय लोगों की आवाजों को ज्यादा तवज्जो
अपने प्रयोग के दौरान जब स्पॉटिसवुडे मोजांबिक और तंजानिया में शहद खोजने के रास्ते पर थीं, तब उन्होंने एक स्पीकर पर अलग-अलग हनीगाइड कॉल्स बजाईं. उन्होंने पाया कि हनीगाइड पक्षी, स्थानीय कॉल्स यानी आवाजों को लेकर बहुत नखरेबाज होते हैं.
शोधकर्ताओं ने पाया कि मोजांबिक में हनीगाइड पक्षी तंजानिया की हड्जा सीटी के मुकाबले स्थानीय याओ ग्रंट और ट्रिल जैसी आवाजों को दोगुनी तवज्जो देते थे.
ऐसा ही अनुभव उन्हें तंजानिया में हुआ. तंजानिया के पक्षियों ने स्थानीय हड्जा सीटी पर याओ ग्रंट के मुकाबले तीन गुना ज्यादा प्रतिक्रिया दी.
वह कहती हैं, "हम यह देखकर हैरान रह गए कि तंजानिया के हनीगाइड कितना अंतर कर रहे थे. यह कितना विचित्र था कि वो मनुष्यों की मनचाही आवाजों या हड्जा शिकारियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली बाहरी आवाजों की तुलना में अपने स्थानीय हड्जा सहयोगियों की खूबसूरत सीटी की धुनों को कितना ज्यादा पसंद करते थे.”
जब छत्ते से शहद निकाल लिया जाता है, तो हनीगाइड पक्षी छत्ते का मोम वाला हिस्सा खा लेते हैं. तस्वीर: Claire Spottiswoode/University of Cambridge
स्पॉटिसवुडे कहती हैं कि यह मानव भाषा की तरह ही है. उनके मुताबिक, "निष्कर्षों से पता चलता है कि मनुष्यों और अन्य प्रजातियों के बीच संवाद मानव भाषा की ही तरह किसी भी तरह की मनमानी ध्वनियों को भी अर्थ प्रदान कर सकता है.”
वह आगे कहती हैं, "भाषा और इन अंतरप्रजातीय संकेतों, दोनों के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि हर कोई इस बात से सहमत है कि ध्वनियों का क्या मतलब है. तो ऐसा लगता है कि ऐसे सामाजिक व्यवहार न केवल अन्य मनुष्यों के साथ, बल्कि अन्य प्रजातियों के साथ भी सहयोग करने की हमारी क्षमता में सुधार करते हैं. और मुझे लगता है कि शहद की तलाश में निकले अधिकांश शिकारी इन निष्कर्षों से काफी आश्चर्यचकित होंगे.”
मधुमक्खियों की गुनगुनाहट में छिपा अनोखा हथियार
मधुमक्खी का मतलब बस शहद नहीं है. ये नन्हे जीव शायद कुदरत की सबसे अहम और मेहनती किसान हैं. कुदरत की इस अद्भुत आर्किटेक्ट के पास एक बेजोड़ हथियार भी है, जो उन्हें हमलावरों से बचाता है और जीने में भी बड़ा काम आता है.
तस्वीर: Robin Loznak/Zumapress/picture alliance
गजब है कुदरत की लीला
एक कीड़ा होता है, हॉर्नेट. ये ततैया के परिवार का सदस्य है. ये हॉर्नेट मधुमक्खियों का शिकार करते हैं. इनका झुंड कुछ ही घंटों में मधुमक्खी के पूरे मुहल्ले को खत्म कर सकता है. लेकिन कुदरत भी कमाल है! जीवों के विकासक्रम में एशियाई मधुमक्खियों ने हॉर्नेट शिकारियों से निपटने की एक अनोखी तरकीब विकसित की. इस रणनीति में उनका हथियार बनती हैं दो चीजें: पहली, एकता. दूसरा हथियार, भनभनाहट.
तस्वीर: Robin Loznak/ZUMA Wire/picture alliance
मधुमक्खियों का सीक्रेट हथियार
अकेली मधुमक्खी, हॉर्नेट से नहीं निपट सकती. ना खुद को बचा सकती है. ऐसे में छत्ते की पूरी कॉलोनी "संगठन में शक्ति है" की राह चलती है. सारी मधुमक्खियां हॉर्नेट के शरीर से चिपककर गोलाकार सा बना लेती हैं.
तस्वीर: Tomasz Wojtasik/dpa/picture alliance
तापमान नियंत्रित करने की काबिलियत
गोलाकार रचना में साथ जुड़कर सारी मधुमक्खियां भनभनाना शुरू करती हैं. ये कंपन इतनी तेजी से होता है कि उनके शरीर का तापमान बढ़ने लगता है.
तस्वीर: Tayfun Coakun/AA/picture alliance
शिकार खुद यहां शिकार हो गया
चूंकि कंपन की ये प्रक्रिया समवेत होती है, तो मधुमक्खियों का बनाया वह गोला एक किस्म का अवन बन जाता है. इसके केंद्र में तापमान 45 से 46 डिग्री तक पहुंच जाता है और शिकार करने आया हॉर्नेट, खुद ही शिकार बन जाता है. हालांकि इस रणनीति में मधुमक्खियों के कुछ अपने सैनिक भी अपनी जान गंवाते हैं. लेकिन, उनका झुंड और छत्ता बच जाता है.
तस्वीर: Amir Cohen/REUTERS
बड़े काम की चीज है एकता
स्तनधारी जीवों में आमतौर पर शरीर का तापमान दुरुस्त रखने की क्षमता होती है. जैसे हम इंसान. धूप-गर्मी में हमारा शरीर पसीना बहाता है, जिससे तापमान नियंत्रित करने में मदद मिलती है. लेकिन कीड़ों में ये क्षमता नहीं होती. ऐसे में मधुमक्खियां अपने झुंड को ताकत बनाती हैं और एक तरह का "सुपरऑर्गेनिजम" बन जाती हैं.
तस्वीर: Kim Honh-Ji/REUTERS
शानदार आर्किटेक्ट
हम भी चाहते हैं ना कि घर का तापमान सुहाना रहे. बाहर गर्मी हो, तो घर ठंडा रहे. बाहर ठंड हो, तो घर में गुनगुनी गर्माहट हो. इसके लिए कई देशों में घर की दीवारों को इंसूलेटेड बनाया जाता है. मधुमक्खियां भी कमाल की आर्किटेक्ट हैं. वो अपना छत्ता बखूबी इंसुलेट कर लेती हैं.
तस्वीर: Zhang Zhiwei/Zoonar/picture alliance
सावधानी से चुनती हैं घर बनाने की जगह
बच्चों की अच्छी तरह परवरिश के लिए उन्हें छत्ते में 33 से 36 डिग्री सेल्सियस का आदर्श तापमान चाहिए होता है. ऐसे में मधुमक्खियां बहुत देख-परखकर, सावधानी से घर बनाने की जगह चुनती हैं. आपने देखा होगा, उनका छत्ता किसी-न-किसी चीज की छांव में होता है. जैसे, किसी चट्टान के छांव वाले हिस्से में. या मोटी टहनी की छाया. या पेड़ की टहनियों-पत्तों की ओट.
तस्वीर: Kim Hong-Ji/REUTERS
कुदरती सीमेंट
मधुमक्खियां पौधों के रस, मोम और थूक जैसे अपने स्त्राव को मिलाकर एक चिपचिपी गोंदनुमा चीज प्रोपोलिस बनाती हैं. इसे वो छत्ता बनाते हुए परत की तरह इस्तेमाल करती हैं. इसकी मदद से छत्ते के अनचाहे छेदों को भरती हैं.
तस्वीर: Beliane
प्रोपोलिस एक, फायदे अनेक
प्रोपोलिस में फ्लेवोनॉइड्स नाम का एक सुरक्षात्मक तत्व भी होता है, जिसमें एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं. यह फंगस, बैक्टीरिया और नमी जैसी चीजों को बढ़ने से रोकता है. ये सारी चीजें छत्ते के भीतर आदर्श तापमान बनाए रखने में मददगार हैं. और इनके अलावा गर्माहट की जरूरत होने पर मधुमक्खियां एक-दूसरे से चिपककर खुद को, अपने साथियों और बच्चों को जरूरी गर्माहट भी देती हैं.
तस्वीर: Nick Adams/The Herald/picture alliance
मधुमक्खियों के पास हीटर और एसी, दोनों है
छत्ते का ये प्राकृतिक इंसूलेशन, मधुमक्खियों का घरेलू हीटिंग सिस्टम है. जरूरत पड़ने पर वह खुद ही छत्ते का एयर कंडीशनर भी बना लेती हैं. जब बाहर लू के थपेड़े चलते हैं, तो मधुमक्खियां छत्ते को ठंडा रखने के लिए पानी जमा करती हैं. वो पानी की बूंदों को पूरे छत्ते में छितरा देती हैं और अपने पंख हिलाकर इसके छेदों से हवा फैलाती हैं. सोचिए, क्या अद्भुत जीव हैं ना मधुमक्खियां! कितनी काबिल, कितनी हुनरमंद!