1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

रूसी तेल की कीमत पर यूरोपीय देशों ने लगाई सीमा

५ दिसम्बर २०२२

रूसी तेल की कीमतों पर यूरोपीय संघ, जी7 और ऑस्ट्रेलिया ने सीमा (प्राइस कैप) लगा दी है जो सोमवार से लागू हो गया. यह कैसे काम करेगा और इसका क्या असर होगा? अमेरिका और कनाडा कई महीने पहले ही यह सीमा लगा चुके हैं.

Russland Ölfelder
तस्वीर: Dmitry Dadonkin/TASS/Sipa USA/IMAGO

यूरोपीय देशों की पहल पर लगी इस सीमा में रूसी तेल की कीमत 60 यूरोप प्रति बैरल तय की गयी है. इसका मतलब है कि रूस इस पर या इससे कम कीमत पर ही तेल की सप्लाई दे सकता है.  

क्या है प्राइस कैप और कैसे काम करेगा?

अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने जी7 देश के सहयोगियों के साथ मिल कर प्राइस कैप का प्रस्ताव रखा था जो दुनिया की अर्थव्यवस्था में रूसी तेल का बहाव जारी रखने के साथ ही रूस की कमाई को सीमित करने का एक तरीका है. इसका लक्ष्य है रूस की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाना. इसके साथ ही यह रूस के तेल की सप्लाई अचानक बंद करने की स्थिति में तेल की कीमतों को आसमान पर पहुंचने से रोकने का एक उपाय है. 

भारत चीन बने रूसी तेल के बड़े खरीदार?

इंश्योरेंस कंपनियां और तेल की ढुलाई से जुड़ी दूसरी कंपनियां तय सीमा पर या उसके के नीचे कीमत रहने पर ही तेल ढुलाई या इससे जुड़े सौदे कर सकेंगी. ज्यादातर इंश्योरेंस कंपनियों के मुख्यालय यूरोपीय संघ या ब्रिटेन में हैं इसलिए उनके लिए इस सीमा का पालन करना अनिवार्य बनाया जा सकता है. इसका सीधा सा मतलब है कि तेल की ढुलाई और इंश्योरेंस मुहैया कराने वाली कंपनियां रूसी तेल की इससे ऊंची कीमत के साथ काम नहीं कर सकेंगी.

रूस दुनिया में पेट्रोलियम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश हैतस्वीर: Yegor Aleyev/ITAR-TASS/IMAGO

दुनिया की अर्थव्यवस्था में तेल का बहाव कैसे जारी रहेगा?

ऑयल प्राइस कैप को यूरोपीय संघ और ब्रिटेन की ओर से लागू किये जाने पर बड़ी मात्रा में रूसी तेल बाजार से गायब हो सकता है इसके साथ ही बाजार में तेल की कीमतें भी बहुत बढ़ जाएंगी. पश्चिमी देशों को नुकसान होगा. ऐसे में प्रतिबंधों की नजर बचा कर रूस जो कुछ भी तेल बेच सकेगा उस पर उसे ऊंची कीमतें मिलेंगी.

बिना रूसी तेल के क्या यूरोप चल पायेगा

रूस दुनिया में तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है उसने पहले ही भारत, चीन और दूसरे एशियाई देशों को तेल बेचना शुरू कर दिया है और इसके लिए कीमतों में छूट भी दे रहा है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंध लगाने के साथ ही यह काम शुरू हो गया था.

अलग अलग कैप का क्या असर होगा?

ब्रसेल्स के ब्रुएगेल थिंक टैंक के ऊर्जा नीति विशेषज्ञ साइमन टागलियेपीट्रा का कहना है कि 60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा से रूस की अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर नहीं होगा, यह तो "पता भी नहीं चलेगा" क्योंकि रूस पहले ही इसके आस पास की कीमत पर तेल बेच रहा है."

रूसी कंपनी उराल्स अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट के मुकाबले काफी बड़ी छूट दे कर तेल बेच रही है. हाल के महीनों में पहली बार इस हफ्ते 60 डॉलर प्रति बैरल से कम कीमत पर भी तेल बेचा गया. चीन में कोविड-19 के मामले बढ़ने के बाद अंतरराष्ट्रीय मांग में काफी गिरावट की आशंका से तेल की कीमत कम रखी गई. टागलियापीट्रा का कहना है, "कैप संतुष्ट करने वाली नहीं है." हालांकि उनका यह भी कहना है कि यह रूस को अचानक तेल की कीमतों के बढ़ने से होने वाली कमाई को रोकेगा.

यूरोपीय देश रूस को तेल के कारोबार सो होने वाला मुनाफा घटाना चाहते हैं तस्वीर: Dmitry Dadonkin/TASS/Sipa USA/IMAGO

अगर प्राइस कैप 50 डॉलर प्रति बैरल हो जाए तो रूस को नुकसान ज्यादा होगा. इस कीमत पर तेल बेचने से जो नुकसान होगा उससे सरकारी बजट का संतुलन बिगड़ जाएगा. रूस के लिए जरूरी है कि उसे प्रति बैरल 60-70 यूरो की कीमत मिले. हालांकि वह 50 डॉलर प्रति बैरल की कीमत पर भी तेल कुछ समय के लिए बेच सकता है क्योंकि उसका उत्पादन खर्च 30-40 डॉलर प्रति बैरल ही है.

रूस और दूसरे देशों ने साथ नहीं दिया तो क्या होगा?

रूस का कहना है कि वह प्राइस कैप नहीं मानेगा और इसे मानने वाले देशों को तेल भेजना बंद कर देगा. अगर यह सीमा तेल की कीमत से ऊपर रहे तो रूस उसकी अनदेखी कर सकता है. हालांकि सीमा कम होने पर रूस वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें बढ़ाने की उम्मीद में तेल की सप्लाई रोक सकता है. प्रतिबंधों के दौर में वह जहां कहीं भी तेल बेच सकेगा उसे फायदा होगा.

भारत और चीन के खरीदार मुमकिन है कि इस प्राइस कैप का साथ नहीं देंगे. उधर रूस या चीन अपनी इंश्योरेंस फर्म खड़ी करने की कोशिश कर सकते हैं जो अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय कंपनियों की जगह ले लेंगी. रूस तेल को "डार्क प्लीट" टैंकरों के जरिये भी बेच सकता है जिनका हिसाब नहीं रखा जाता. वेनेजुएला और ईरान ऐसा करते हैं.

हालांकि इस स्थिति में भी ऑयल प्राइस कैप के बाद रूस के लिए तेल का कारोबार ज्यादा खर्चीला, समय लेने वाला और मुश्किल काम होगा. सुदूर देशों तक तेल पहुंचाने में ढुलाई का खर्च बढ़ने के साथ ही चार गुना ज्यादा टैंकरों की भी जरूरत होगी और साथ ही हर कोई रूस का इंश्योरेंस लेने के लिए तैयार नहीं होगा.

यूरोपीय संघ के इम्बार्गो का असर

रूस यूरोप को जो हर दिन 10 लाख बैरल तेल बेच रहा है उसके लिए खरीदार ढूंढने में थोड़ा वक्त लगेगा हालांकि वह चाहेगा कि इस तेल के ज्यादातर हिस्से को कहीं और बेच सके. यूरोप ने वैश्विक बाजार से अपने लिए नये सप्लायरों की खोज तेज कर दी है.

यूरोपीय संघ के इम्बार्गो का बड़ा असर शायद अभी नहीं दिखेगा क्योंकि यूरोप को नये सप्लायर मिल गये हैं और रूस को दूसरे देशों में बड़े खरीदार. हालांकि 5 फरवरी से जब यूरोप का अतिरिक्त प्रतिबंध लागू होगा तब हालात बदल सकते हैं. 5 फरवरी से लगने वाले प्रतिबंध में तेल से बनने वाले रिफायनरी प्रोडक्ट और डीजल ईंधन भी शामिल हो जाएंगे.

यूरोप में अब भी बहुत सी कारें डीजल पर चलती हैं. इसके अलावा खेती में इस्तेमाल होने वाली मशीनें और ट्रक मुख्य रूप से डीजल पर ही चलते हैं. ट्रकों का इस्तेमाल पूरे यूरोप में सामान की ढुलाई के लिए होता है. ऐसे में डीजल की ऊंची कीमत की चुभन हर तरफ महसूस होगी.

एनआर/वीके (एपी)

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें