डॉनल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जाने वाली फंडिंग को काट दिया है. उनका आरोप है कि डब्ल्यूएचओ धन अमेरिका से लेता है लेकिन काम चीन के लिए करता है. संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी में चीन की क्या भूमिका है?
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पिछले कुछ महीनों से विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार सुर्खियों में है. दुनिया भर की सरकारें कोरोना महामारी से निपटने के लिए डब्ल्यूएचओ से मदद ले रही हैं. संयुक्त राष्ट्र की यह एजेंसी वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सुझाव दे रही है, वैज्ञानिकों का डाटा जमा कर रही है और जहां विशेषज्ञों की जरूरत है, उन्हें मुहैया करा रही है. लेकिन इस महामारी से निपटने के तरीके को लेकर डब्ल्यूएचओ की कई जगह कड़ी निंदा भी हुई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने तो यहां तक कह दिया कि वॉशिंगटन अब डब्ल्यूएचओ को दी जाने वाली मदद राशि को रोक देगा. ट्रंप के इस फैसले ने दुनिया भर को हैरान कर दिया. उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने नॉवल कोरोना वायरस को वक्त रहते समझने में चूक कर दी. उन्होंने डब्ल्यूएचओ पर चीन का पक्ष लेने और महामारी को "बेहद बुरी तरह से संभालने" का आरोप भी लगाया.
चीन से डरता है डब्ल्यूएचओ ?
ट्रंप अकेले नहीं हैं जो इस तरह के आरोप लगा रहे हैं. कई राजनीतिक जानकार और वैज्ञानिक भी डब्ल्यूएचओ पर चीन का साथ देने का आरोप लगा रहे हैं. जनवरी के अंत में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एधानोम घेब्रेयसस ने बीजिंग में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की और संक्रमण को रोकने के लिए चीन के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने संक्रमण के फैलाव को लेकर "खुल कर जानकारी साझा करने" पर कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ भी की. ऐसा तब था जब वुहान में चीनी अधिकारी कोरोना के बारे में जानकारी देने वालों पर "अफवाहें फैलाने" के आरोप में कार्रवाई कर रहे थे. यहीं तक कि शुरुआत में तो डब्ल्यूएचओ ने विदेशों से चीन की यात्राएं जारी रखने की पैरवी की और देशों से अपनी सीमाएं भी खुली रखने को कहा.
जानकारों का मानना है कि डब्ल्यूएचओ को शायद डर था कि अगर वह चीन को किसी भी रूप में चुनौती देता है, तो चीन की प्रतिक्रया संकट को और बढ़ा सकती है. बर्लिन स्थिति मेर्केटर इंस्टीइट्यूट फॉर चाइना स्टडीज (मेरिक्स) के थोमास देस गैरेट्स गेडेस ने डॉयचे वेले से कहा, "ऐसा हो सकता था कि फिर चीन अंतरराष्ट्रीय समुदाय से जरूरी जानकारी साझा करना बंद कर देता या फिर डब्ल्यूएचओ के रिसर्चरों को देश में ही नहीं आने देता.. लेकिन इससे यह बात साफ नहीं होती कि डब्ल्यूएचओ ने चीन की इतनी तारीफ क्यों की. इस तरह से बढ़ चढ़ कर और कई बार तो गलत तरीके से तारीफ करना अनावश्यक था और गलत भी."
कोरोना से जंग में ये महिलाएं हैं असली हीरो
दुनिया भर के देश कोरोना से लड़ने की कोशिशों में लगे हैं. इस जंग में कई नेताओं को आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ रहा है. लेकिन महिला नेताओं की जम कर तारीफ हो रही है. एक नजर इस जंग की असली हीरो पर.
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अंगेला मैर्केल
कोरोना संक्रमण के चलते जर्मनी की कम मृत्यु दर दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी हुई है. इस संकट से निपटने के लिए चांसलर मैर्केल की रणनीति की चारों तरफ तारीफ हो रही है. मैर्केल ने शुरुआती दौर में ही चेतावनी दे दी थी कि देश की 60 फीसदी आबादी कोरोना से संक्रमित हो सकती है. औपचारिक रूप से उन्होंने "लॉकडाउन" शब्द का इस्तेमाल भी नहीं किया और लोगों से कहा कि वे समझती हैं कि आजादी कितनी जरूरी है.
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मेरिलिन एडो
कोरोना वायरस से दुनिया का पीछा तब तक पूरी तरह नहीं छूटेगा जब तक इसका टीका नहीं बन जाता. जर्मन सेंटर फॉर इन्फेक्शन रिसर्च की प्रोफेसर मेरिलिन एडो अपनी टीम के साथ मिल कर कोरोना वायरस से बचाने का टीका विकसित करने में लगी हैं. इससे पहले वे इबोला और मर्स के टीके भी विकसित कर चुकी हैं.
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जेसिंडा आर्डर्न
14 मार्च को न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने घोषणा की कि देश में प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को दो हफ्तों के लिए सेल्फ आइसोलेट करना होगा. उस वक्त देश में कोरोना के महज छह मामले सामने आए थे. आंकड़ा सौ के पार जाते ही उन्होंने देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी. बच्चों को उन्होंने संदेश दिया कि वे जानती हैं कि ईस्टर का खरगोश जरूरी है लेकिन इस साल उसे अपने घर में ही रहना होगा.
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जुंग इउन केओंग
दक्षिण कोरिया के सेंटर फॉर डिजीज एंड प्रिवेंशन की अध्यक्ष जुंग इउन केओंग को नेशनल हीरो घोषित किया गया है. स्थानीय मीडिया के अनुसार कोरोना संकट की शुरुआत से केओंग दिन रात काम कर रही हैं, ना सो रही हैं और ना ही दफ्तर से बाहर निकल रही हैं. उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि देश भर टेस्टिंग मुमकिन हो पाई और संक्रमण का फैलाव रुक सका.
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मेट फ्रेडेरिक्सन
डेनमार्क की प्रधानमंत्री ने मार्च की शुरुआत से ही कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए थे. 14 मार्च तक देश की सीमाओं को सील भी कर दिया गया था. डेनमार्क में अब तक कोरोना संक्रमण के 5,800 मामले ही सामने आए हैं.
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त्साई इंग वेन
चीन के बेहद करीब होते हुए भी ताइवान ने खुद को कोरोना से बचा लिया. वहां कोरोना संक्रमण के चार सौ से भी कम मामले सामने आए हैं, जबकि जानकारों का मानना था कि ताइवान सबसे बुरी तरह प्रभावित देशों में से एक हो सकता था. वेन की सरकार ने वक्त रहते चीन, हांगकांग और मकाउ से आने वाले लोगों पर ट्रैवल बैन लगा दिया था.
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कहां से आता है पैसा?
डब्यलूएचओ की शुरुआत 1948 में हुई. इसे दो तरह से धन मिलता है. पहला, एजेंसी का हिस्सा बनने के लिए हर सदस्य को एक रकम चुकानी पड़ती है. इसे "असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन" कहते हैं. यह रकम सदस्य देश की आबादी और उसकी विकास दर पर निर्भर करती है. दूसरा है "वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन" यानी चंदे की राशि. यह धन सरकारें भी देती हैं और चैरिटी संस्थान भी. राशि किसी ना किसी प्रोजेक्ट के लिए दी जाती है. बजट हर दो साल पर निर्धारित किया जाता है. 2020 और 2021 का बजट 4.8 अरब डॉलर है.
डब्ल्यूएचओ की जब शुरुआत हुई थी तब उसके बजट की करीब आधी रकम सदस्य देशों से असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन के रूप में आती थी. इस बीच यह सिर्फ 20 प्रतिशत ही रह गई है. यानी एजेंसी को ज्यादातर धन अब वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन के रूप में मिल रहा है. जानकारों का मानना है कि ऐसे में एजेंसी उन देशों और संस्थाओं पर निर्भर होने लगी है जो उसे ज्यादा पैसा दे रहे हैं. पिछले सालों में चीन का योगदान 52 फीसदी तक बढ़ गया है. अब वह 8.6 करोड़ डॉलर दे रहा है. वैसे तो बड़ी आबादी के कारण चीन का असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन भी ज्यादा है लेकिन उसने वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन भी बढ़ाया है. हालांकि अमेरिका के सामने चीन का योगदान कुछ भी नहीं है. 2018-19 में अमेरिका ने कुल 89.3 करोड़ डॉलर दिए. दुनिया भर से आए वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन का 14.6 फीसदी अमेरिका से ही आता है. दूसरे नंबर पर कुल 43.5 करोड़ डॉलर के साथ है ब्रिटेन. इसके बाद जर्मनी और जापान का नंबर आता है.
चीन भले ही इस सूची में बहुत पीछे हो लेकिन जानकार मानते हैं कि उसकी अहमियत बढ़ रही है. वहीं अमेरिका अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से दूर होता चला जा रहा है और वैश्विक स्वास्थ्य फंडिंग में भी कटौती की बात कर चुका है. गैरेट्स गेडेस के अनुसार, "डब्ल्यूएचओ में चीन का योगदान बढ़ने की संभावना यकीनन संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी के लिए आकर्षक रही होगी." 2030 तक पूरी दुनिया के लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने का डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य हो या फिर चीन की "हेल्थ सिल्क रोड" पहल, चीन सब जगह निवेश कर रहा है. गेडेस कहते हैं, "ये ऐसे प्रोजेक्ट हैं जो टेड्रोस और डब्ल्यूएचओ के लिए मायने रखते हैं." वे कहते हैं कि चीन जिस गति से आर्थिक विकास कर रहा है, डब्ल्यूएचओ के लिए उसे अपने पक्ष में रखना बहुत जरूरी है.
ताइवान का चक्कर
दुनिया के 194 देश विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य हैं. ताइवान इसका हिस्सा नहीं है. जानकार इसे भी चीन के प्रभाव का ही असर बताते हैं. 1971 में संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के बाद से ही चीन ताइवान को अंतरराष्ट्रीय संगठनों का सदस्य बनने से रोकता रहा है. चीन का दावा है कि ताइवान उसी का हिस्सा है और इसलिए उसे अलग से सदस्य बनाने की कोई जरूरत नहीं है.
ताइवान के सेंट्रल एपिडेमिक कमांड सेंटर का कहना है कि उसने 31 दिसंबर 2019 को ही डब्ल्यूएचओ को वायरस के इंसान से इंसान में संक्रमण के खतरे की चेतावनी दे दी थी. इस सेंटर ने डॉयचे वेले को बताया कि जानकारी मिलने पर डब्ल्यूएचओ ने केवल इतनी प्रतिक्रया दी कि उसे उचित विभाग को सौंप दिया गया है. डॉयचे वेले को दिए लिखित बयान में कमांड सेंटर ने लिखा है, "डब्ल्यूएचओ ने ताइवान द्वारा दी गई जानकारी को संजीदगी से नहीं लिया और हमारे ख्याल से यह कोरोना महामारी को लेकर दुनिया भर में देर से आई प्रतिक्रया के लिए जिम्मेदार है."
गेडेस का कहना है कि ताइवान चीन के लिए एक बेहद संवेदनशील मामला है, "डब्ल्यूएचओ और उसके महानिदेशक टेड्रोस भी यह भली भांति जानते होंगे कि ताइवान को लेकर चीन को क्रोधित करने का मतलब होगा बीजिंग के साथ साझेदारी का अंत. जिस तरह से डब्ल्यूएचओ ताइवान को नजरअंदाज कर रहा है और ऐसे पेश आ रहा है जैसे वह चीन का ही अंग हो, यह साफ तौर से उस डर का ही नतीजा लग रहा है."
रिपोर्टः श्रीनिवासन मजूमदार
कोरोना वायरस के 1 से 11 लाख इंसान तक पहुंचने का सफर
दिसंबर 2019 में कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि के बाद अब यह महामारी अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है. 60 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं और 11 लाख से ज्यादा संक्रमित हैं. वैज्ञानिक वैक्सीन की खोज में जुटे हैं.
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वुहान में न्यूमोनिया जैसा वायरस (31 दिसंबर 2019)
चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को करीब 1.1 करोड़ की आबादी वाली वुहान शहर के लोगों को सांस में दिक्कत का संक्रमण होने की जानकारी दी. मूल वायरस का पता नहीं था लेकिन दुनिया भर के रोग विशेषज्ञ इसकी पहचान करने में जुट गए. आखिरकार शहर के सीफूड मार्केट से इसके निकलने का पता चला जो तुरंत ही बंद कर दिया गया. शुरुआत में 40 लोगों के इससे संक्रमित होने की रिपोर्ट दी गई.
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चीन में पहली मौत (11 जनवरी)
11 जनवरी 2020 को चीन ने कोरोना वायरस के कारण पहले मरीज़ की मौत की घोषणा की. 61 साल का एक शख्स वुहान के बाजार में खरीदारी करने गया था. न्यूमोनिया जैसी समस्या के चलते उसकी मौत हुई. वैज्ञानिकों ने सार्स और आम सर्दी की तरह कोरोना वायरस के परिवार में एक नए वायरस की पहचान की. तब उसे 2019 nCoV नाम दिया गया. इसके लक्षणों में खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ शामिल थे..
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पड़ोसी देशों में पहुंचा वायरस (20 जनवरी)
बाद के दिनों में यह वायरस थाईलैंड और जापान तक पहुंच गया क्योंकि इन देशों के लोग वुहान के उसी बाजार में गए थे. चीन के उसी शहर में दूसरी मौत की पुष्टि हुई. 20 जनवरी तक चीन में 3 लोगों की मौत हो चुकी थी और 200 से ज्यादा लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके थे.
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करोड़ों लोग तालाबंदी में (23 जनवरी)
चीन ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए वुहान में 23 जनवरी को तालाबंदी कर दी. सार्वजनिक परिवहन बंद कर दिया गया और संक्रमित लोगों के इलाज के लिए रिकॉर्ड समय में एक नया अस्पताल बना दिया गया. तब तक संक्रमित लोगों की संख्या 830 पर पहुंच चुकी थी. 24 जनवरी तक चीन में मरने वालों की तादाद 26 पर पहुंच गई. अधिकारियों ने 13 और शहरों में तालाबंदी करने का फैसला किया. 3.6 करोड़ से ज्यादा लोग घरों में कैद हो गए.
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दुनिया के लिए हेल्थ इमर्जेंसी?
चीन से बाहर दक्षिण कोरिया, अमेरिका, नेपाल, थाईलैंड, हांगकांग, सिंगापुर, मलेशिया और ताइवान में नए नए मामले सामने आने लगे. मामले बढ़ रहे थे लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 23 जनवरी को कहा कि इसे दुनिया के लिए सार्वजनिक हेल्थ इमर्जेंसी कहना अभी जल्दबाजी होगी.
तस्वीर: Getty Images/X. Chu
कोरोना वायरस पहुंचा यूरोप (24 जनवरी)
24 जनवरी को फ्रांस के अधिकारियों ने देश की सीमा में कोरोना वायरस के तीन मामलों की पु्ष्टि की. इसके साथ ही कोरोना वायरस यूरोप पहुंच गया. इसके कुछ ही घंटे बाद ऑस्ट्रेलिया ने भी पुष्टि की कि चार लोग सांस पर असर डालने वाले वायरस से संक्रमित हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Mortagne
जर्मनी में पहले मामले की पुष्टि (27 जनवरी)
27 जनवरी को जर्मनी ने कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि का एलान किया. बवेरिया राज्य में 33 साल का एक शख्स बाहर से आए चीनी सहकर्मी के साथ ट्रेनिंग के दौरान इस वायरस की चपेट में आया. उसे म्युनिख के अस्पताल में क्वारंटीन कर दिया गया. इसके अगले ही दिन उसके तीन और सहकर्मियों में भी वायरस की पुष्टि हुई. तब तक चीन में मरने वालों की तादाद 132 हो गई थी और दुनिया भर में 6000 लोग संक्रमित हुए थे.
तस्वीर: Reuters/A. Uyanik
डब्ल्यूएचओ ने ग्लोबल हेल्थ इमर्जेंसी घोषित की (30 जनवरी)
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी को कोरोना वायरस के चलते सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की और "कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं" वाले देशों को बचाने के लिए गुहार लगाई. डब्ल्यूएचओ के महासचिव टेड्रोस अधानोम गेब्रेयेसुस ने तब भी कारोबार और यात्रा प्रतिबंधों का समर्थन नहीं किया. उनका कहना था कि इससे "अनावश्यक व्यवधान" होगा.
तस्वीर: picture-alliance/KEYSTONE/J.-C. Bott
चीन के बाहर पहली मौत (2 फरवरी)
कोरोना वायरस के कारण चीन से बाहर पहली मौत फिलीपींस में 2 फरवरी को ुई. 44 साल का एक शख्स चीन के वुहान से मनीला आया था. यहां आने के बाद वह बीमार हुआ जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया. बाद में वह न्युमोनिया से मर गया.
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क्रूज यात्रियों का संकट (3 फरवरी)
3 फरवरी को डायमंड प्रिंसेस क्रूज जहाज को जापान के योकोहामा तट पर क्वारंटीन कर दिया गया क्योंकि जहाज पर सवार यात्रियों में कोरोना के नए मामले सामने आए. 17 फरवरी तक जहाज पर 450 लोग इसकी चपेट में आ गए और चीन से बाहर वायरस संक्रमित लोगों की यह तब सबसे बड़ी जमात बन गयी उसके बाद क्रूज पर सवार 3700 से ज्यादा यात्रियों और चालक दल के सदस्यों को विमान से उनके देश भेजा गया.
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इटली में क्वारंटीन (8 मार्च)
इटली में कोरोना वायरस के मामले और लोगों की मौत की संख्या तेजी से बढ़ने लगी. 3 मार्च तक यहां 1000 से ज्यादा लोग संक्रमित थे और 77 लोगों की जान गई थी. इसके बाद कई देशों ने उत्तरी इटली जाने पर रोक लगा दी और वहां सैलानियों की संख्या एकदम से घट गई. 8 मार्च को पूरे लॉम्बार्डी क्षेत्र को क्वारंटीन कर दिया गया. 10 मार्च को इटली में 168 लोगों की जान गई जो एक दिन में किसी एक देश के लिए सबसे ज्यादा थी.
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आर्थिक चिंता (10 मार्च)
6 मार्च को अमेरिका और यूरोपीय शेयर बाजार औंधे मुंह गिर गए जिससे 2008 के बाद आर्थिक क्षेत्र के लिए सबसे बुरे सप्ताह का आगाज हुआ. पूरे दुनिया के कारोबार पर इसका असर हुआ और कई कंपनियों ने घाटा होने की बात कही. सबसे बुरा असर पर्यटन क्षेत्र और एयरलाइनों पर पड़ा. यूरोपीय संघ ने 7.5 अरब यूरो के राहत फंड का एलान किया ताकि यूरोजोन में मंदी को रोका जा सके.
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महामारी की घोषणा (11 मार्च)
दुनिया भर में कोरोना वायरस के मामले 1 लाख 27 हजार को पार कर गए तो डब्ल्यूएचओ ने 11 मार्च को इसे महामारी का दर्जा दे दिया. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने यूरोप के शेंगेन इलाके से अमेरिका आने वालों पर पाबंदी लगा दी. जर्मन चांसलर ने कहा कि 70 फीसदी से ज्यादा जर्मन लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं.
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यूरोप में रुका सार्वजनिक जीवन (14 मार्च)
14 मार्च को स्पेन ने इटली की राह पर चलते हुए पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा कर दी ताकि वायरस के फैलाव को रोका जा सके. 4.6 करोड़ लोगों को बिना किसी जरूरी काम के घर से बाहर निकलने से रोक दिया गया. फ्रांस में कैफे, रेस्तरां और गैर जरुरी दुकानें 15 मार्च तक के लिए बंद कर दी गईं. जर्मनी में कई सार्वजनिक कार्यक्रम रद्द हो गए और स्कूलों को बंद कर दिया गया.
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अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर पाबंदियां (15 मार्च)
15 मार्च तक कई देशों ने कई तरह की यात्रा पाबंदियों का एलान कर दिया. न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने सभी अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए देश में आने के बाद 14 दिन का क्वारंटीन जरूरी कर दिया. भारत ने भी कई देशों से आने वाले यात्रियों पर इस तरह की पाबंदियां लगाई. अमेरिका ने यूरोपीय देशों के लिए लगाए यात्रा प्रतिबंधों में ब्रिटेन और आयरलैंड को भी शामिल कर दिया.
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भारत में जनता कर्फ्यू और जर्मनी में आंशिक तालाबंदी (22 मार्च)
भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर पूरे देश में 22 मार्च को एक दिन के लिए जनता कर्फ्यू लगाया गया. तब तक जर्मनी ने भी देश में आंशिक रूप से तालाबंदी का एलान कर दिया. जर्मनी में एक घर के दो से ज्यादा लोगों को काम की जगह के अलावा कहीं और जमा होने पर रोक लगा दी गई. जर्मनी में बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए हैं मगर मरने वालों की तादाद काफी कम है.
तस्वीर: picture-alliance/EibnerT. Hahn
ब्रिटेन में भी तालाबंदी (23 मार्च)
23 मार्च को ब्रिटेन लोगों की निजी आजादी पर पाबंदी लगाने वाले देशों में शामिल हुआ जब लोगों को कुछ खास कामों के लिए ही घर से बाहर जाने की छूट देने की घोषणा की गई. प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन खुद कोविड-19 की चपेट में आ गए और साथ ही शाही तख्त के दावेदार प्रिंस चार्ल्स भी. इस बीच यह भी शिकायतें आईं कि लोग सामाजिक दूरी को गंभीरता से नहीं ले रहे.
तस्वीर: picture-alliance/R. Pinney
सबसे बड़ी तालाबंदी (24 मार्च)
कोरोना वायरस के कारण दुनिया की सबसे बड़ी तालाबंदी 24 मार्च को तब शुरू हुई जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में 21 दिनों के लिए तालाबंदी करने का एलान किया. यह तब तक दुनिया में लगाई गई सबसे बड़ी तालाबंदी थी क्योंकि 130 करोड़ लोग एक झटके में अपने घरों में बंद हो गए.
तस्वीर: Imago/A. Das
अमेरिका कोरोना में सबसे आगे (27 मार्च)
27 मार्च को अमेरिका कोरोना से संक्रमम के मामले में चीन और इटली से भी से आगे निकल गया और सबसे ज्यादा संक्रमित लोगों का देश बन गया. यह तब हुआ जब राष्ट्रपति ट्रंप एलान कर रहे थे कि वो बहुत जल्द देश को कोरोना से मुक्त करा लेंगे. इसके बाद खबर आई कि अमेरिका में 66 लाख लोगों ने बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन किया है जो एक रिकॉर्ड है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/J. Fischer
स्पेन में बढ़ता मौत का आंकड़ा (30 मार्च)
30 मार्च को कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या के मामले में स्पेन ने भी चीन को पीछे छोड़ दिया. यह हालत तब हुई जबकि बहुत पहले ही देश में कठोर तालाबंदी लागू कर दी गई थी. सभी गैर जरूरी कामों को रोक दिया गया. मौत के मामले में स्पेन के आगे सिर्फ इटली है.
तस्वीर: picture-alliance/Geisler-Fotopress
10 लाख से ज्यादा मरीज (2 अप्रैल)
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ने गुरुवार को एलान किया कि अब पूरी दुनिया में 10 लाख से ज्यादा कोरोना वायरस के मामले हो गए हैं. अमेरिका फिलहाल सबसे ज्यादा प्रभावित है जहां इटली, चीन और स्पेन के कुल मरीजों से ज्यादा मरीज हैं. यही नहीं एक दिन में सबसे ज्यादा लोगों के मरने का रिकॉर्ड भी अब अमेरिका के नाम हो गया है. गुरुवार से शुक्रवार के बीच यहां 1500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई.