लोकसभा चुनाव के नतीजों का क्या होगा शेयर बाजार पर असर
२८ मई २०२४
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने दस बड़े निवेशकों से बात की और जाना कि वे भारतीय चुनाव से किस तरह के नतीजों की उम्मीद कर रहे हैं.
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भारत का लोकसभा चुनाव 2024 अब अपने अंतिम चरण में है. नतीजों की तारीख यानी 4 जून में ज्यादा वक्त नहीं बचा है और निवेशक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार सत्ता में लौटने का इंतजार कर हैं. लेकिन इस बार विदेशी निवेशकों की उम्मीदें कुछ अलग हैं.
भारतीय शेयर बाजारों ने 2023 में दुनिया के कई बड़े बाजारों को पीछे छोड़ दिया था. माना जा रहा है कि बाजार असली भाव से कहीं ज्यादा बाहर जा चुका है. फिर भी, निवेशकों को उम्मीद है कि अगर मोदी सरकार सत्ता में लौटती है तो शेयर बाजारों में कुछ समय के लिए तेजी दिख सकती है. निवेशकों का कहना है कि मोदी सरकार के लौटने का मतलब होगा कि राजनीतिक स्थिरता और नीतियां जारी रहेंगी, जिससे बाजार को बढ़त मिल सकती है.
मिलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हमशक्लों से
लोग उनकी पहली झलक देख कर अवाक रह जाते हैं और फिर उनके साथ सेल्फियां खिंचवाते हैं. कोई क्यों ना चौंके भला? वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हमशक्ल जो हैं.
तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS
'हमारा मोदी'
राशीद अहमद दिल्ली में बिजली से चलने वाले रिक्शा चलाते हैं. लोग उन्हें प्यार से "हमारा मोदी" कहते हैं, क्योंकि उनकी शक्ल मोदी से काफी मिलती है. 60 साल के अहमद दो कमरों के एक मकान में अपनी पत्नी, बच्चों और पोते-पोतियों के साथ रहते हैं.
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'मोदी अंकल'
अहमद अपने मोहल्ले में एक सेलिब्रिटी हैं. लोग उन्हें अक्सर उनके काम के बीच में रोक कर उनके साथ तस्वीर खिंचवाने का अनुरोध करते हैं. आस-पड़ोस के बच्चे भी उन्हें "मोदी अंकल" ही बुलाते हैं. उनमें से कई बच्चों को वो अपने रिक्शे में स्कूल छोड़ने जाते हैं.
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एक इत्तेफाक
अहमद कहते हैं, "मैं तो शुरू से ऐसा ही दिखता हूं, लेकिन जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से इस बात की ज्यादा चर्चा होने लगी है." अहमद बीजेपी की रैलियों में भी शामिल हुए हैं. उन्हें देख कर लोग उत्साहित हो जाते हैं.
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रैली में जाते हैं
ऐसी रैलियों में हिस्सा लेकर अहमद करीब 1,000 रुपए कमा लेते हैं, जो उनके रिक्शा से एक दिन में होने वाली कमाई के आस पास ही है. वो कहते हैं, "हां लोग हमें (रैलियों के लिए) पैसे देते हैं और हमें लेने भी पड़ते हैं क्योंकि हमें उस दिन काम छोड़ना पड़ता है."
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सब साथ रहें
हाल ही में मुसलमानों पर मोदी के बयानों को लेकर जो विवाद हुआ था, उस पर अहमद का मानना है कि प्रधानमंत्री नहीं बल्कि पार्टी में निचले दर्जे के लोग "धर्मों को बांटते हैं." चुनावों के नतीजों के बारे में वो कहते हैं, "समय ही बताएगा. हम तो बस इतना चाहते हैं कि अच्छा काम हो...विकास हर तरफ होना चाहिए...सबको साथ रहना चाहिए."
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एक और हमशक्ल
68 साल के रियल एस्टेट व्यापारी जगदीश भाटिया भी मोदी के हमशक्ल हैं. वो शहर के एक समृद्ध इलाके में रहते हैं और निरंकारी पंथ के अनुयायी हैं.
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मोदी के प्रशंसक
जगदीश कहते हैं कि वो बीजेपी की रैलियों में शामिल होने के लिए पैसे नहीं लेते हैं, क्योंकि वो इसे "समाज सेवा" मानते हैं. वो मोदी के नजरिए को पसंद करते हैं.
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पार्टी का काम
जगदीश कहते हैं, "मुझे मोदी के काम करने का तरीका और जो चीजें उन्होंने देश के विकास के लिए की वो बेहद पसंद है. इसलिए मुझे अच्छा लगता है अगर मैं पार्टी के किसी काम आ सकूं."
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कपड़े भी मोदी जैसे
जगदीश मोदी के जैसे दिखने के लिए कपड़े भी उन्हीं के जैसे पहनते हैं. इसके विपरीत, अहमद खुद को मोदी का हमशक्ल होना महज एक इत्तेफाक बताते हैं.
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इस साल बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का बीएसई सूचकांक चार फीसदी ऊपर है. एक विश्लेषक के मुताबिक यह बढ़त साल के आखिर तक दोगुनी हो सकती है. हालांकि निवेशकों और सट्टा बाजार को आशंका है कि बीजेपी की सीटें कम हो सकती हैं.
बाजार की प्रतिक्रिया
पिछले साल विदेशी निवेशकों ने भारत में 20.74 अरब डॉलर का निवेश किया था. एशिया के बाजारों में यह सबसे बड़ा निवेश था. लेकिन चुनाव से पहले काफी धन बाहर निकाल लिया गया था.
रॉयटर्स से बातचीत में फंड मैनेजरों ने कहा कि अगर मोदी की जीत का अंतर कम होता है तो बाजार में कुछ समय के लिए अस्थिरता देखने को मिल सकती है. अगर विपक्ष की जीत होती है तो बाजार में बड़ी गिरावट आ सकती है क्योंकि नीतियों को लेकर उलझन की स्थिति होगी.
मुंबई स्थित आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्युचुअल फंड के वरिष्ठ फंड मैनेजर मितुल कलवाड़िया ने कहा, "बाजार निरंतरता चाहता है. इसलिए गठबंधन या किसी अन्य पार्टी की जीत की उम्मीद नहीं की जा रही है. अगर ऐसा होता है तो एक औचक प्रतिक्रिया दिखाई दे सकती है.”
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नीतियां जारी रहने की उम्मीद
निवेशकों के मुताबिक मोदी सरकार के तीसरी बार सत्ता में आने से पहले से बनी नीतियां जारी रहेंगी. इनमें वित्त प्रबंधन में सुधार और मुद्रा में स्थिरता शामिल हैं. मुंबई स्थित एक्सिस म्युचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी आशीष गुप्ता कहते हैं, "पिछले एक-दो साल में भारत में वित्तीय अनुशासन के मामले में अच्छी स्थिरता दिखाई दी है. मुद्रास्फीति भी नियंत्रित रही है. इससे कर्ज और शेयर बाजार दोनों में भारत में खतरे कम हुए हैं.”
निवेशकों को उम्मीद है कि मोदी सरकार सत्ता में आएगी और भारत को मैन्युफैक्चरिंग का केंद्र बनाने की नीति जारी रहेगी. पिछले कुछ सालों में कई विदेशी कंपनियों ने भारत में अपने उत्पादों का निर्माण शुरू किया है. इनमें एप्पल जैसी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां शामिल हैं. इसके अलावा टेस्ला के भी भारत में अपनी कारों का निर्माण करने की संभावना है.
छत्तीसगढ़: कितना दुर्गम है पहाड़ी जनजातियों के मतदान का रास्ता
भारत के छत्तीसगढ़ राज्य की सरगुजा लोकसभा सीट का एक ब्लॉक है उदयपुर. यहां के मरेया और सीतकालो गांव में 7 मई को मतदान है.
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पहाड़ी जनजातियों की जोशीली हिस्सेदारी
इस पोलिंग बूथ पर बड़ी संख्या में पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग मतदान के लिए आते हैं. यह कोरवा जनजाति का एक उपसमूह है. पहाड़ी कोरवा छत्तीसगढ़ की पांच विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक है.
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घंटों चल कर बूथ पर पहुंचना
पहाड़ी कोरवा एक प्रिमिटिव ट्राइबल ग्रुप है. कई पहाड़ी कोरवा ऊपर पहाड़ों पर बड़ी दुर्गम जगहों में रहते हैं. उनके गांव (खामखूंट, धवई पानी, चुआंटिकरा) सिर्फ पैदल जाया जा सकता है. वे कई घंटे का रास्ता तय कर के मतदान के लिए आते हैं. पहले चुनाव में इनकी भागीदारी कम थी काफी, जो कि अब बढ़ रही है.
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प्रशासन की व्यवस्था
मरेया में प्रशासन ने इनके लिए खास इंतजाम किए थे, मसलन पोलिंग बूथ के पास ही ठहरने का प्रबंध किया गया था. कई वोटर कल शाम या रात को ही यहां आकर रुक गए थे, ताकि सुबह वोट देकर जल्दी लौट सकें. सीतकालो के पोलिंग बूथ पर कई पहाड़ी कोरवा वोटर खाना बांधकर तड़के सुबह पहाड़ के ऊपर के अपने गांव से मतदान करने पहुंचे.
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ओआरएस घोल से तुरंत ऊर्जा
मतदान केंद्र पर दवा और ओआरएस की व्यवस्था की गई है. ऊपर से आने वालों में कई लोग, जिनमें छोटे बच्चे लेकर आने वाली महिलाएं और 80 बरस के बुजुर्ग भी हैं, इतना चलकर आने के कारण कई बार लोग बीमार भी हो जाते हैं. यही देख कर पोलिंग बूथ पर बुखार, दस्त, मलेरिया जांचने की किट, ब्लड प्रेशर मापने की व्यवस्था भी की गई है.
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कैसा है इन समुदायों का हाल
पहाड़ी कोरवा सुविधाओं और विकास से वंचित समुदाय है. ये लोग मुख्य रूप से जंगल पर निर्भर हैं. महुआ, चार-चिरौंजी, तेंदू पत्ता, साल के बीज चुनकर उन्हें बेचते हैं. कुछ लोग पास के गांवों और मनरेगा में मजदूरी भी करते हैं. यह समूह काफी अलग थलग रहना पसंद करता है.
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विकास से काफी दूर
पहाड़ पर उनके ऊपरी गांवों में बिजली नहीं पहुंची है. यहां ना सड़क हैं, ना स्कूल. नीचे मरेया गांव में एक पहाड़ी कोरवा आश्रम बनाया है प्रशासन ने, जहां उनके बच्चे पढ़ सकते हैं. हालांकि वहां आज भी बस पांचवीं क्लास तक की पढ़ाई होती है. यहां भी कम ही बच्चे जाते हैं, क्योंकि परिवार वाले उन्हें दूर रखकर पढ़ाने से डरते हैं.
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लंदन स्थित फेडरेटेड हर्मीज इक्विटी फंड में पोर्टफोलियो मैनेजर विवेक भुतोरिया कहते हैं कि स्पष्ट बहुमत को उद्योगों और निवेशकों के लिए अच्छा माना जाएगा और विदेशी निवेशक आकर्षित होंगे.
प्रचार के दौरान विपक्षी कांग्रेस ने भारत में आर्थिक असमानता दूर करने की बात कही है. निवेशक इस कदम से खुश नहीं होंगे. सिंगापुर स्थित ऑलस्प्रिंग ग्लोबल इन्वेस्टमेंट्स के पोर्टफोलियो मैनेजर गैरी टैन कहते हैं, "हम चाहते हैं कि बीजेपी सामाजिक भलाई की योजनाओं पर अति-निर्भरता से दूर रहे. ऐसी योजनाओं पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता खर्चे बढ़ा सकती है और भारत के स्थिरता के दावों को कमजोर कर सकती है.”