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ऑस्ट्रेलिया में जिसने कहर बरपाया, वो बारिश बम होता क्या है

विवेक कुमार, सिडनी से
३ मार्च २०२२

ऑस्ट्रेलिया के कुछ शहरों में दो दिन में ही महीने भर जितना पानी एक साथ बरस गया. नतीजा यह हुआ कि शहर डूब गए. इसे बारिश बम कहा गया. जानिए, क्या होता है बारिश बम.

ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन शहर में बाढ़
ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन शहर में बाढ़तस्वीर: Tertius Pickard/AP/picture alliance

ऑस्ट्रेलिया में पिछले एक हफ्ते से दो सबसे बड़े राज्य बाढ़ से जूझ रहे हैं. पहले क्वींसलैंड में तीन दिन तक बारिश ने कहर बरसाया राजधानी ब्रिसबेन को डुबो दिया. उसके बाद उसके दक्षिण में स्थित सबसे बड़े ऑस्ट्रेलियाई राज्य न्यू साउथ वेल्स में घनघोर बारिश हुई और पांच लाख से ज्यादा लोगों को अस्थायी विस्थापन के खतरे पर ला खड़ा किया.

बाढ़ के कारण हजारों लोगों को घर छोड़कर जाना पड़ातस्वीर: Jason O'Brien/AAP/AP/picture allaince

इन दोनों राज्यों में दो-दो दिनों में ही इतनी बारिश हुई, जितनी एक महीने में होती है. इस कारण नदियां उफनने लगीं और पानी शहर में घुस गया. पानी का भराव ऐसा खतरनाक था कि दोमंजिला घर भी सुरक्षित नहीं रहे. न्यू साउथ वेल्स के लिजमोर शहर में 14 मीटर तक पानी चढ़ गया था, जो पिछले सारे रिकॉर्ड से ज्यादा है.

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ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने स्कॉट मॉरिसन ने इस पूरे घटनाक्रम को वेदर बम या रेन बम पुकारते हुए कहा कि क्वींसलैंड पर ‘बारिश बम' गिरा है. इस शब्द-योजन की दुनियाभर में चर्चा हुई. लेकिन, बारिश बम स्कॉट मॉरिसन का गढ़ा हुआ शब्द-योजन नहीं है. इसका इस्तेमाल वैज्ञानिक भी अनौपचारिक रूप से करते रहे हैं. यह एक मौसमी घटना है, जिसके बारे में वैज्ञानिकों ने विस्तार से बताया समझाया है.

क्या होता है बारिश बम?

ब्रिटिश मौसम विभाग के मुताबिक मौसम बम या बारिश बम उस मौसमी घटना का एक अनौपचारिक नाम है, जिसमें कम दबाव वाला क्षेत्र बनता है. इस क्षेत्र का दबाव 24 घंटे के भीतर 24 मिलीबार से भी कम हो जाता है, जिसकी वजह से विस्फोटक साइक्लोजेनेसिस बनता है.

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दबाव इतना कम हो जाने के कारण यह क्षेत्र आसपास की हवा को अपनी ओर तेजी से खींचता है और इसकी लंबाई बढ़ती जाती है. इससे हवाओं की चक्करघिन्नी बंध जाती है और उसकी रफ्तार बहुत अधिक तेज हो सकती है. इस चक्करघिन्नी के केंद्र में हवा की रफ्तार कम होती है लेकिन किनारों पर बहुत तेज होती है.

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यह कुछ वैसा ही है जैसे आइस स्केटिंग के दौरान स्केटर्स बहुत तेजी से घूमते हैं. वे अपनी रफ्तार बढ़ाने के लिए बाहों को अपने शरीर से ऊपर की ओर उठा लेते हैं. जब ऐसा हवाओं के साथ होता है तो कुछ ही घंटों के भीतर उनकी रफ्तार तेजी से बढ़ती है और विनाशक तक हो जाती है.

ऑस्ट्रेलिया में क्या हुआ?

पिछले हफ्ते कोरल सी के ऊपर कम दबाव का क्षेत्र बना और उसने आसपास की हवा को तेजी से अपने भीतर खींचना शुरू किया. अंदर खिंचती हवा जब ऊपर की ओर उठने लगी तो साथ में समुद्र से नमी भी ले चली.

वैसे तो कोरल सागर में हुई यह घटना कोई बड़ी नहीं थी लेकिन ऑस्ट्रेलिया की भोगौलिक स्थिति ऐसी है कि उसके किनारों के पास का समुद्र गर्म है. इस कारण हवा ने अपने साथ इतनी अधिक मात्रा में पानी खींच लिया कि विशाल बारिश बम तैयार हो गया.

वैसे तो इस तरह का बारिश बम बिना फटे ही गुजर समुद्र की ओर बढ़ जाता लेकिन जब यह महाकाय बारिश बम ऑस्ट्रेलिया के जमीनी इलाकों पर पहुंचा तभी न्यूजीलैंड में उच्च दबाव का क्षेत्र बना दिया. इस उच्च दबाव ने बारिश बम का रास्ता बंद कर दिया और यह ब्रिसबेन और उसके आसपास के इलाको के ठीक ऊपर फट गया.

ग्लोबल वॉर्मिंग का असर

सिर्फ ऑस्ट्रेलिया की घटना को तो ग्लोबल वॉर्मिंग या जलवायु परिवर्तन का नतीजा नहीं कहा जा सकता लेकिन पर्यावरणविद और वैज्ञानिक इस बात को लेकर सहमत हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग ऐसी आपदाओं को ज्यादा बढ़ा रहा है. हवा जितनी गर्म होती जा रही है, उसके अंदर पानी सोखकर रखने की क्षमता उतनी ही ज्यादा बढ़ती जा रही है. वैज्ञानिक पहले ही कह चुके हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ऐसी आपदाओं की शक्ति और बारंबारता बढ़नी तय है.

सड़कें ही नदी बन गईंतस्वीर: Bradley Kanaris/Getty Images

द कनवर्सेशन पत्रिका में छपे एक लेख में मौसम विज्ञानी ऐंड्र्यू किंग और उनके साथी लिखते हैं, "दक्षिणपूर्व क्वींसलैंड और उत्तरपूर्वी न्यू साउथ वेल्स में गर्मियों में होने वाली बारिश 20वीं सदी के मध्य की तुलना में कम हो गई है. लेकिन इस दौरान बारिश की विषमता बढ़ी है. साथ ही ला नीना जैसी मौसमी घटना ने भी बाढ़ लाने में योगदान दिया है. इस बात के सबूत मौजूद हैं कि जलवायु परिवर्तन ने अल नीनो और ला नीना जैसी मौसमी घटनाओं के शक्ति, गहनता और बारंबारता को प्रभावित किया है."

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ये वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि भले ही जलवायु परिवर्तन को सीधे-सीधे ऑस्ट्रेलिया की बाढ़ के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, ऐसी आपदाओं के लिए तैयार रहना समझदारी होगी. इसके लिए ज्यादा सुरक्षित घर बनाने के लिए नई तकनीकों और जगहों का इस्तेमाल काम आ सकता है और नुकसान कम कर सकता है.

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