चीन लंबे समय से खुद को फलस्तीनियों का पक्का समर्थक दिखाता रहा है. लेकिन इस्राएल के साथ भी राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संबंधों के रूप में उसकी दोस्ती कायम हैं.
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बीजिंग स्थित सरकार समर्थक चाइना इन्स्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (सीआईआईएस) में मध्यपूर्व विशेषज्ञ ली गुउफू कहते हैं, "आप पश्चिम एशिया संकट पर चीन के राष्ट्रीय हितों के बारे में मुझे पूछते हैं? तो मेरा यही कहना है कि क्षेत्र में किसी किस्म की अशांति, कोई तनाव न हो.”
उन्होंने डीडब्ल्यू की चीनी सेवा को बताया कि विकास के पथ पर चलते रहने के लिए चीन हर हाल में शांति और स्थिरता वाली दुनिया चाहता है. "मध्य पूर्व में अशांति से न सिर्फ वहां के लोगों की जिंदगी दुश्वार होती है बल्कि पूरी दुनिया की स्थिरता पर गलत असर पड़ता है और इससे चीन का उभार भी बाधित होता है.”
चीनी गणराज्य के पास इस महीने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता है. उसने हाल के दिनों में अन्य देशों के साथ मिलकर इस बारे में एक प्रस्ताव पास कराने की कई बार कोशिश की है. लेकिन अमेरिका के विरोध के चलते चीन की ये कोशिश रंग नहीं ला पाई. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इस बीच दो-राष्ट्र समाधान के दायरे में बातचीत की जरूरत दोहराई है.
पश्चिम एशिया में चीन के आर्थिक हित
चीनी अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा में मध्य पूर्व अहम भूमिका निभाता है. देश में तेल और गैस की करीब आधा जरूरतें वहीं से पूरी होती है. चीन और यूरोप के बीच अरबो यूरों की माल ढुलाई करने वाले कंटेनर जहाज, खाड़ी की स्वेज नहर से ही गुजरते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक ली गुउफू का कहना है कि "इस्राएली-फलस्तीनी संघर्ष ही इस क्षेत्र की केंद्रीय समस्या है. जब तक इस संघर्ष का न्यायपूर्ण और टिकाऊ हल नहीं निकलता, अशांति बनी रहेगी. चीन और इलाके के कई देशों के बीच आर्थिक सहयोग पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ेगा.”
इस्राएल इस बीच चीन की वैश्विक आर्थिक रणनीति का एक प्रमुख साझीदार बन चुका है. 1992 में इस्राएल के साथ औपचारिक तौर पर कूटनीतिक संबंध बनाने के बाद चीन ने उसके साथ आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और सैन्य संबंध भी मजबूत बना लिए हैं. इसमें शुरुआती मॉडल के इस्राएली ड्रोनों की खरीद भी शामिल हैं. दोनों देश रिसर्च और टेक्नोलजी में भी नजदीकी सहयोग करते हैं.
इसके अलावा, चीन की बेल्ट और रोड पहल में इस्राएल भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. चीनी निवेशक बंदरगाह विस्तार प्रोजेक्टो में उतर रहे हैं. लाल सागर पर स्थित इलात और तेल अबीब के दक्षिण में स्थित आशडोड के बीच एक रेलवे लाइन की परियोजना में भी चीन ने निवेश किया है. हालांकि ये प्रोजेक्ट फिलहाल रुका हुआ है.
चीन के वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक, चीन-इस्राएल व्यापार 2020 में करीब 19 प्रतिशत बढ़कर साढ़े 17 अरब डॉलर का हो गया था. वहीं फलस्तीनी क्षेत्रों के साथ उसका व्यापार दौरान महज दस करोड़ डॉलर का रहा.
अरब-इस्राएल युद्ध के वो छह दिन
1967 में केवल छह दिन के लिए चली अरब-इस्राएल के बीच की जंग में इस्राएल ने जीत हासिल की. इस जीत ने दुनिया में इस्राएल को एक ताकतवर देश के तौर पर स्थापित कर दिया. आइए जानते हैं इस जंग से जुड़ी कुछ अहम बातें.
अरब-इस्राएल युद्ध 5 जून 1967 को शुरू हुआ. सवेरे सवेरे इस्राएली विमानों ने काहिरा के नजदीक और स्वेज के रेगिस्तान में स्थित मिस्र के हवाई सैन्य अड्डों पर बम बरसाये. चंद घंटों के भीतर मिस्र के लगभग सभी विमान धराशायी हो चुके थे. वायुक्षेत्र पर नियंत्रण कर इस्राएल ने लगभग पहले दिन ही इस लड़ाई को जीत लिया था.
तस्वीर: Imago/Keystone
कैसे छिड़ा युद्ध
स्थानीय समय के अनुसार तेल अवीव से सवेरे 7.24 बजे खबर आयी कि मिस्र के विमानों और टैंकों ने इस्राएल पर हमला कर दिया है. इस्राएल के दक्षिणी हिस्से में भारी लड़ाई की रिपोर्टें मिलने लगीं. लेकिन आज बहुत से इतिहासकार मानते हैं कि लड़ाई की शुरुआत इस्राएली वायुसेना की वजह से हुई, जिसके विमान मिस्र के वायुक्षेत्र में घुस गये.
तस्वीर: Government Press Office/REUTERS
युद्ध की घोषणा
मिस्र में 8.12 बजे सरकारी रेडियो से घोषणा हुई, “इस्राएली सेना ने आज सवेरे हम पर हमला कर दिया है. उन्होंने काहिरा पर हमला किया और फिर हमारे विमान दुश्मन के विमानों के पीछे गये.” काहिरा में कई धमाके हुए और शहर सायरनों की आवाजों से गूंज उठा. काहिरा का एयरपोर्ट बंद कर दिया गया और देश में इमरजेंसी लग गयी.
तस्वीर: AFP/Getty Images
अरब देश कूदे
सीरियाई रेडियो से भी यह खबर चली और 10 बजे सीरिया ने कहा कि उसके विमानों ने इस्राएली ठिकानों पर बम गिराये हैं. जॉर्डन ने भी मार्शल लॉ लगा दिया और इस्राएल के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने से पहले अपनी सेना को मिस्र की कमांड में देने का फैसला किया. इराक, कुवैत, सूडान, अल्जीरिया, यमन और फिर सऊदी अरब भी मिस्र के साथ खड़े दिखे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Guillaud
सड़क पर लड़ाई
येरुशलेम में इस्राएली और जॉर्डेनियन इलाकों में सड़कों पर लड़ाइयां छिड़ गयीं और ये युद्ध जल्दी ही जॉर्डन और सीरिया से लगने वाली इस्राएली सीमाओं तक पहुंच गया. इस्राएल-जॉर्डन के मोर्चे से भारी लड़ाई की खबर मिली. सीरियाई विमानों ने तटीय शहर हैफा को निशाना बनाया जबकि इस्राएलियों ने कई हमलों के जरिये दमिश्क के एयरपोर्ट को निशाना बनाया.
तस्वीर: David Rubinger/KEYSTONE/AP/picture alliance
दुनिया फिक्रमंद
मिस्र और इस्राएल, दोनों को इस लड़ाई में अपनी अपनी जीत का भरोसा था. अरब देशों में गजब का उत्साह था. लेकिन विश्व नेता परेशान थे. पोप पॉल छठे ने कहा कि येरुशलेम को मुक्त शहर घोषित किया जाए. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक हुई. अमेरिकी राष्ट्रपति लिडंन बी जॉनसन ने सभी पक्षों से लड़ाई तुरंत रोकने को कहा.
तस्वीर: picture alliance / dpa
घमासान
इस्राएली सैनिकों ने गजा के सरहदी शहर खान यूनिस और वहां मौजूद सभी मिस्री और फलस्तीनी बलों पर कब्जा कर लिया. एक एएफपी रिपोर्ट में खबर दी कि इस तरह इस्राएल ने अपनी पश्चिमी सरहद को सुरक्षित कर लिया. उसकी सेनाएं दक्षिणी हिस्से में मिस्र की सेना के साथ लोहा ले रही थी.
तस्वीर: picture-alliance / KPA/TopFoto
मारे गिराए विमान
आधी रात को इस्राएल ने कहा कि उसने मिस्र की वायुसेना को तबाह कर दिया है. लड़ाई के पहले ही दिन 400 लड़ाकू विमान मारे गिराये गये. इनमें मिस्र के 300 विमान जबकि सीरिया के 50 विमान शामिल थे. इस तरह लड़ाई के पहले ही दिन इस्राएल ने अपनी पकड़ मजबूत बना ली.
रात को इस्राएली संसद नेसेट की बैठक हुई और इस्राएली प्रधानमंत्री लेविस एशकोल ने बताया कि सारी लड़ाई मिस्र में और सिनाई प्रायद्वीप में चल रही है. उन्होंने बताया कि मिस्र, जॉर्डन और सीरिया की सेनाओं को गंभीर नुकसान पहुंचाया गया है.
खत्म हुई लड़ाई
11 जून को युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर हुए और लड़ाई खत्म हुई. लेकिन इस जीत से इस्राएल ने दुनिया को हैरान कर दिया. इससे जहां इस्राएली लोगों का मनोबल बढ़ा, वहीं अंतरराष्ट्रीय जगत में उनकी प्रतिष्ठान में भी इजाफा हुआ. छह दिन में इस्राएल की ओर से गए सैनिकों की संख्या जहां एक हजार से कम थी वहीं अरब देशों के लगभग 20 हजार सैनिक मारे गए.
तस्वीर: Picture-alliance/AP/Keystone/Israel Army
इस्राएल का दबदबा
लड़ाई के दौरान इस्राएल ने मिस्र से गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलेम और सीरिया से गोलन हाइट की पहाड़ियों को छीन लिया था. अब सिनाई प्रायद्वीप मिस्र का हिस्सा है जबकि वेस्ट बैंक और गजा पट्टी फलस्तीनी इलाके हैं, जहां फलस्तीनी राष्ट्र बनाने की मांग बराबर उठ रही है. (रिपोर्ट: एएफपी/एके)
तस्वीर: Reuters/Moshe Pridan/Courtesy of Government Press Office
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फलस्तनीयों का मौखिक समर्थन?
ताइवान की नेशनल ची नान यूनिवर्सिटी में मध्य पूर्व मामलों के जानकार बाओ सिउ-पिंग कहते है कि आधिकारिक रूप से चीन हमेशा फलस्तीनियों के साथ खड़ा रहा है, लेकिन उसका समर्थन सिर्फ मौखिक ही है.उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "चीनी मीडिया और विश्वविद्यालयों में इस्राएली सरकार के सक्रिय अभियान की बदौलत अब कम से कम चीनी आबादी का एक हिस्सा इस्राएल के पक्ष में आ गया है.”
चीनी विदेश मंत्रालय की हाल की एक प्रेस ब्रीफिंग में, अल जजीरा के एक पत्रकार ने पूछा कि चीन ने गजा में इस्राएल की सैन्य कार्रवाई की खुलकर निंदा क्यों नहीं की. इस पर मंत्रालय के प्रवक्ता का जवाब था, "बहुत कम लोग ही ऐसा सोचते हैं कि चीन, इस्राएल की साफ साफ आलोचना नहीं करता है.” उनके मुताबिक चीन, नागरिकों के खिलाफ हिंसा की भर्त्सना करता है. "इस्राएल को खासतौर पर खुद पर काबू करना चाहिए और हिंसा, डराने धमकाने और उकसाने से बाज आना चाहिए.”
राजनीतिक विश्लेषक बाओ को नहीं लगता कि मध्य पूर्व के इस टकराव को सुलझाने में चीन कोई ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाएगा. वह कहते हैं, "उस इलाके में चीन के हित आर्थिक संबंधों पर केंद्रित हैं. बड़ी बात ये है कि तेल सप्लाई और जहाजों की आवाजाही बाधित नहीं होनी चाहिए. जहां तक अन्य मुद्दों की बात है, तो आधिकारिक रूप से चीन दखल न देने के अपने सिद्धांत पर ही चलेगा.”
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सकारात्मक छवि बनाने की कोशिश
चीन इस बात पर जोर देता है कि पश्चिम एशिया में उसकी स्थिति, अमेरिका से उलट, मूल्यों पर आधारित है. उसे लगता है कि फलस्तीनियों और इस्राएल के बीच टकराव को टालने में मुस्तैदी दिखाने के बजाय अमेरिका आग में घी डालने का काम करता है.
विदेश मंत्रालय ने अमेरिका पर ये आरोप भी जड़ा है कि उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हिंसा की निंदा का बयान जारी नहीं होने दिया. इस बारे में चीनी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट में आधिकारिक अंग्रेजी अनुवाद में उपलब्ध विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजियान के बयान के मुताबिक, "अभूतपूर्व रूप से अमेरिका सुरक्षा परिषद में अलग थलग पड़ चुका है और वह मनुष्यता के विवेक और नैतिकता की उलट तरफ खड़ा है.”
बयान में कहा गया कि, "चीन अंतरराष्ट्रीय स्पष्टता और न्याय का पक्षधर है जबकि अमेरिका को सिर्फ अपने हितों की परवाह रहती है. अमेरिका का रवैया प्रासंगिक पक्षों के प्रति अपनी नजदीकी से तय होता है.”
राजनीतिक विश्लेषक ली गुउफू का मानना है कि मौजूदा संकट पर अमेरिका का रवैया, अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व को दोबारा हासिल करने के उसके लक्ष्य को नुकसान पहुंचा सकता है. उनके मुताबिक इसी वजह से अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच भी दरार आने लगी है.
ली का कहना है कि ये दरार चीन के लिए फायदेमंद हो सकती है. उनके मुताबिक, "जब तक चीन फलस्तनीयों के बुनियादी अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खड़ा रहेगा, उसकी छवि चमकेगी जबकि अमेरिका की छवि को नुकसान पहुंचेगा.”
रॉकेटों की बारिश में फंसे इस्राएल और फलस्तीन के लोग
इस्राएल और फलस्तीन के बीच जारी बमबारी में अब तक कम से कम 43 लोगों की जान जा चुकी है. इसे 2014 के गजा युद्ध के बाद अभी तक की सबसे भयंकर लड़ाई बताया जा रहा है.
तस्वीर: Jack Guez/AFP/Getty Images
खान यूनिस, गजा पट्टी
12 मई की सुबह गजा पट्टी के खान यूनिस इलाके में इस्राएली हवाई हमलों के बाद लगी आग. इस्राएल के हमलों में गजा पट्टी में रहने वाले फलस्तीन के हमास सैन्य समूह के शीर्ष सदस्यों के घरों को निशाना बनाया गया है.
तस्वीर: Youssef Massoud/AFP/Getty Images
अशकेलों, इस्राएल
ड्रोन से ली गई इस तस्वीर में इस्राएल के अशकेलों शहर के पास एक ऊर्जा पाइपलाइन के पास भीषण आग देखी जा सकती है. अधिकारियों ने बताया कि यह आग पाइपलाइन पर गजा से हुए एक रॉकेट हमले का नतीजा थी.
तस्वीर: Ilan Rosenberg/REUTERS
यहूद, इस्राएल
12 मई की ही सुबह इस्राएल के यहूद शहर में एक इस्राएली सुरक्षा अफसर रॉकेट हमले में नष्ट हुए एक घर के मलबे का निरीक्षण कर रहा है. हमास ने दावा किया है कि गजा में इस्राएल के हमले का बदला लेने के लिए उसने इस्राएल पर 200 से भी ज्यादा रॉकेट दागे.
तस्वीर: Gil Cohen-Magen/AFP/Getty Images
तेल अवीव, इस्राएल
इस्राएल के तेल अवीव शहर में 12 मई को सुबह तीन बजे लोग रॉकेट हमलों से बचने के लिए सायरन बजने के बाद एक इमारत के बेसमेंट में छिपे हुए हैं. इस्राएली सेना और हमास के बीच रात भर गोलीबारी हुई.
तस्वीर: Gideon Marcowicz/AFP/Getty Images
गजा शहर
हमास के नियंत्रण वाले गजा शहर में हुए इस्राएली हमलों के बाद फिलिस्तीनी परिवार संयुक्त राष्ट्र के कार्यालयों की तरफ शरण लेने जा रहे हैं.
तस्वीर: Mahmud Hams/AFP/Getty Images
संयुक्त राष्ट्र की शरण
गजा शहर में इस्राएली हमलों के बाद संयुक्त राष्ट्र के कार्यालयों में शरण लिए हुए फलस्तीनी परिवार.
तस्वीर: Mahmud Hams/AFP/Getty Images
बर्बादी का मंजर
गजा शहर में इस्राएली हमले में ध्वस्त हो गई एक इमारत के मलबे के पास खड़ा एक फलस्तीनी व्यक्ति मलबे को देख रहा है.
तस्वीर: Suhaib Salem/REUTERS
हेब्रोन, फलस्तीन
वेस्ट बैंक के हेब्रोन शहर में फलस्तीनी प्रदर्शनकारी और इस्राएली सुरक्षाकर्मियों के बीच झड़प. सुरक्षाकर्मियों द्वारा आंसू गैस छोड़े जाने के बीच प्रदर्शनकारी पत्थर फेंक रहे हैं.
तस्वीर: Hazem Bader/AFP/Getty Images
गजा शहर
11 मई की इस तस्वीर में गजा शहर से इस्राएल के तेल अवीव शहर की तरफ छोड़े गए रॉकेट देखे जा सकते हैं. इसके पहले एक इस्राएली हवाई हमले में गजा शहर में एक 12-मंजिली इमारत ध्वस्त हो गई थी.
तस्वीर: AnAs Baba/AFP/Getty Images
गजा पट्टी
दक्षिणी गजा पट्टी में इस्राएली हवाई हमलों के बीच उठता धुंआ और लपटें.
तस्वीर: Ibraheem Abu Mustafa/REUTERS
गजा शहर
11 मई को गजा शहर में इस्राएली हमलों का शिकार हुई एक इमारत से आम लोगों को निकाले जाने के बीच एक फलस्तीनी महिला अपने बच्चों के साथ.
तस्वीर: Mahmud Hams/AFP/Getty Images
अशकेलों, इस्राएल
11 मई की तस्वीर में रॉकेट हमलों के बीच इस्राएल के अशकेलों शहर में लोग छिप रहे हैं. इस्राएल के 'आयरन डोम' हवाई रक्षा सिस्टम ने गजा पट्टी से छोड़े गए एक रॉकेट को बीच में ही नाकाम कर दिया.
तस्वीर: Jack Guez/AFP/Getty Images
मिसाइल विरोधी सिस्टम
11 मई की इस तस्वीर में इस्राएल का मिसाइल-विरोधी सिस्टम गजा पट्टी से छोड़े गए रॉकेट को रास्ते में रोकने के लिए अपने रॉकेट छोड़ रहा है.
तस्वीर: Nir Elias/REUTERS
अशकेलों, इस्राएल
गजा पट्टी से छोड़े गए रॉकेटों को जैसे ही इस्राएल के "आयरन डोम' मिसाइल-विरोधी सिस्टम ने रास्ते में रोका, तो आसमान में रोशनी की एक लकीर दिखाई दी.
तस्वीर: Amir Cohen/REUTERS
होलोन, इस्राएल
11 मई की इस तस्वीर में तेल अवीव के करीब इस्राएल के होलोन शहर में दमकलकर्मी एक जलती हुई गाड़ी पर लगी आग बुझा रहे हैं. आग हमास द्वारा छोड़े गए रॉकेटों से लगी थी.