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चीन इस्राएल के साथ है या फलस्तीनियों के?

चुई मू
२१ मई २०२१

चीन लंबे समय से खुद को फलस्तीनियों का पक्का समर्थक दिखाता रहा है. लेकिन इस्राएल के साथ भी राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संबंधों के रूप में उसकी दोस्ती कायम हैं.

तस्वीर: Emmanuel Dunand/AFP/Getty Images

बीजिंग स्थित सरकार समर्थक चाइना इन्स्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (सीआईआईएस) में मध्यपूर्व विशेषज्ञ ली गुउफू कहते हैं, "आप पश्चिम एशिया संकट पर चीन के राष्ट्रीय हितों के बारे में मुझे पूछते हैं? तो मेरा यही कहना है कि क्षेत्र में किसी किस्म की अशांति, कोई तनाव न हो.”

उन्होंने डीडब्ल्यू की चीनी सेवा को बताया कि विकास के पथ पर चलते रहने के लिए चीन हर हाल में शांति और स्थिरता वाली दुनिया चाहता है. "मध्य पूर्व में अशांति से न सिर्फ वहां के लोगों की जिंदगी दुश्वार होती है बल्कि पूरी दुनिया की स्थिरता पर गलत असर पड़ता है और इससे चीन का उभार भी बाधित होता है.”

चीनी गणराज्य के पास इस महीने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता है. उसने हाल के दिनों में अन्य देशों के साथ मिलकर इस बारे में एक प्रस्ताव पास कराने की कई बार कोशिश की है. लेकिन अमेरिका के विरोध के चलते चीन की ये कोशिश रंग नहीं ला पाई. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इस बीच दो-राष्ट्र समाधान के दायरे में बातचीत की जरूरत दोहराई है.

पश्चिम एशिया में चीन के आर्थिक हित

चीनी अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा में मध्य पूर्व अहम भूमिका निभाता है. देश में तेल और गैस की करीब आधा जरूरतें वहीं से पूरी होती है. चीन और यूरोप के बीच अरबो यूरों की माल ढुलाई करने वाले कंटेनर जहाज, खाड़ी की स्वेज नहर से ही गुजरते हैं.

राजनीतिक विश्लेषक ली गुउफू का कहना है कि "इस्राएली-फलस्तीनी संघर्ष ही इस क्षेत्र की केंद्रीय समस्या है. जब तक इस संघर्ष का न्यायपूर्ण और टिकाऊ हल नहीं निकलता, अशांति बनी रहेगी. चीन और इलाके के कई देशों के बीच आर्थिक सहयोग पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ेगा.”

इस्राएल इस बीच चीन की वैश्विक आर्थिक रणनीति का एक प्रमुख साझीदार बन चुका है. 1992 में इस्राएल के साथ औपचारिक तौर पर कूटनीतिक संबंध बनाने के बाद चीन ने उसके साथ आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और सैन्य संबंध भी मजबूत बना लिए हैं. इसमें शुरुआती मॉडल के इस्राएली ड्रोनों की खरीद भी शामिल हैं. दोनों देश रिसर्च और टेक्नोलजी में भी नजदीकी सहयोग करते हैं.

इसके अलावा, चीन की बेल्ट और रोड पहल में इस्राएल भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. चीनी निवेशक बंदरगाह विस्तार प्रोजेक्टो में उतर रहे हैं. लाल सागर पर स्थित इलात और तेल अबीब के दक्षिण में स्थित आशडोड के बीच एक रेलवे लाइन की परियोजना में भी चीन ने निवेश किया है. हालांकि ये प्रोजेक्ट फिलहाल रुका हुआ है.

चीन के वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक, चीन-इस्राएल व्यापार 2020 में करीब 19 प्रतिशत बढ़कर साढ़े 17 अरब डॉलर का हो गया था. वहीं फलस्तीनी क्षेत्रों के साथ उसका व्यापार दौरान महज दस करोड़ डॉलर का रहा.

फलस्तनीयों का मौखिक समर्थन?

ताइवान की नेशनल ची नान यूनिवर्सिटी में मध्य पूर्व मामलों के जानकार बाओ सिउ-पिंग कहते है कि आधिकारिक रूप से चीन हमेशा फलस्तीनियों के साथ खड़ा रहा है, लेकिन उसका समर्थन सिर्फ मौखिक ही है.उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "चीनी मीडिया और विश्वविद्यालयों में इस्राएली सरकार के सक्रिय अभियान की बदौलत अब कम से कम चीनी आबादी का एक हिस्सा इस्राएल के पक्ष में आ गया है.”

चीनी विदेश मंत्रालय की हाल की एक प्रेस ब्रीफिंग में, अल जजीरा के एक पत्रकार ने पूछा कि चीन ने गजा में इस्राएल की सैन्य कार्रवाई की खुलकर निंदा क्यों नहीं की. इस पर मंत्रालय के प्रवक्ता का जवाब था, "बहुत कम लोग ही ऐसा सोचते हैं कि चीन, इस्राएल की साफ साफ आलोचना नहीं करता है.” उनके मुताबिक चीन, नागरिकों के खिलाफ हिंसा की भर्त्सना करता है. "इस्राएल को खासतौर पर खुद पर काबू करना चाहिए और हिंसा, डराने धमकाने और उकसाने से बाज आना चाहिए.”

राजनीतिक विश्लेषक बाओ को नहीं लगता कि मध्य पूर्व के इस टकराव को सुलझाने में चीन कोई ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाएगा. वह कहते हैं, "उस इलाके में चीन के हित आर्थिक संबंधों पर केंद्रित हैं. बड़ी बात ये है कि तेल सप्लाई और जहाजों की आवाजाही बाधित नहीं होनी चाहिए. जहां तक अन्य मुद्दों की बात है, तो आधिकारिक रूप से चीन दखल न देने के अपने सिद्धांत पर ही चलेगा.”

सकारात्मक छवि बनाने की कोशिश

चीन इस बात पर जोर देता है कि पश्चिम एशिया में उसकी स्थिति, अमेरिका से उलट, मूल्यों पर आधारित है. उसे लगता है कि फलस्तीनियों और इस्राएल के बीच टकराव को टालने में मुस्तैदी दिखाने के बजाय अमेरिका आग में घी डालने का काम करता है.  

विदेश मंत्रालय ने अमेरिका पर ये आरोप भी जड़ा है कि उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हिंसा की निंदा का बयान जारी नहीं होने दिया. इस बारे में चीनी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट में आधिकारिक अंग्रेजी अनुवाद में उपलब्ध विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजियान के बयान के मुताबिक, "अभूतपूर्व रूप से अमेरिका सुरक्षा परिषद में अलग थलग पड़ चुका है और वह मनुष्यता के विवेक और नैतिकता की उलट तरफ खड़ा है.”

बयान में कहा गया कि, "चीन अंतरराष्ट्रीय स्पष्टता और न्याय का पक्षधर है जबकि अमेरिका को सिर्फ अपने हितों की परवाह रहती है. अमेरिका का रवैया प्रासंगिक पक्षों के प्रति अपनी नजदीकी से तय होता है.”

राजनीतिक विश्लेषक ली गुउफू का मानना है कि मौजूदा संकट पर अमेरिका का रवैया, अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व को दोबारा हासिल करने के उसके लक्ष्य को नुकसान पहुंचा सकता है. उनके मुताबिक इसी वजह से अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच भी दरार आने लगी है.  

ली का कहना है कि ये दरार चीन के लिए फायदेमंद हो सकती है. उनके मुताबिक, "जब तक चीन फलस्तनीयों के बुनियादी अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खड़ा रहेगा, उसकी छवि चमकेगी जबकि अमेरिका की छवि को नुकसान पहुंचेगा.”

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