क्या है क्लोरोक्विन जिसमें कोरोना का इलाज खोजा जा रहा है?
२७ मार्च २०२०
फ्रांस और चीन में शुरूआती अध्ययनों में कोविड-19 के खिलाफ इन दवाओं से काफी उम्मीद बंधी है, जिसकी वजह से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसी हफ्ते इन्हें भगवान की तरफ से एक तोहफा बताया.
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क्या एक दशक पुरानी सस्ती दवाओं की जोड़ी नई कोरोना वायरस महामारी का इलाज हो सकती है? दुनिया भर के देशों के शोधकर्ता हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) और क्लोरोक्विन (सीक्यू) तक पहुंच बढ़ा रहे हैं. ये दोनों सम्बंधित कंपाउंड हैं और क्विनीन के सिंथेटिक रूप हैं. क्विनीन सिनकोना पेड़ों से आने वाला एक पदार्थ है जिसका सैकड़ों सालों से मलेरिया के इलाज के लिए इस्तेमाल होता आया है.
एचसीक्यू दोनों में से कम जहरीला है और इसका इस्तेमाल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवा के रूप में गठिया और ल्यूपस के इलाज के लिए भी किया जाता है.
फ्रांस और चीन में शुरूआती अध्ययनों में कोविड-19 के खिलाफ इन दवाओं से काफी उम्मीद बंधी है, जिसकी वजह से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसी हफ्ते इन्हें भगवान की तरफ से एक तोहफा बताया. हालांकि विशेषज्ञ तब तक सावधानी बरतने को कह रहे हैं जब तक ट्रायल में इनकी प्रभावकारिता की पुष्टि नहीं हो जाती.
चीन ने सीक्यू का इस्तेमाल फरवरी में एक ट्रायल के दौरान 134 मरीजों पर किया था और अधिकारियों का कहना है कि वो बीमारी की तीव्रता कम करने में प्रभावकारी सिद्ध हुई थी. लेकिन इन नतीजों को अभी छापा नहीं गया है. चीन में सांस के विशेषज्ञ जौंग नानशान ने पिछले सप्ताह एक प्रेस वार्ता में कहा था कि इस ट्रायल के डाटा को व्यापक रूप से सार्वजनिक किया जाएगा. नानशान महामारी की रोकथाम के तरीकों पर काम करने के लिए गठित एक सरकारी टास्क फोर्स का नेतृत्व कर रहे हैं.
ना कोरोना, ना हंटा, ये हैं दुनिया के सबसे खतरनाक वायरस
इस वक्त पूरी दुनिया कोरोना के खौफ में है. लेकिन मृत्यु दर के हिसाब से देखा जाए तो और भी कई वायरस हैं जो कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक हैं. बच के रहिए इनसे.
मारबुर्ग वायरस
इसे दुनिया का सबसे खतरनाक वायरस कहा जाता है. वायरस का नाम जर्मनी के मारबुर्ग शहर पर पड़ा जहां 1967 में इसके सबसे ज्यादा मामले देखे गए थे. 90 फीसदी मामलों में मारबुर्ग के शिकार मरीजों की मौत हो जाती है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/CDC
इबोला वायरस
2013 से 2016 के बीच पश्चिमी अफ्रीका में इबोला संक्रमण के फैलने से ग्यारह हजार से ज्यादा लोगों की जान गई. इबोला की कई किस्में होती हैं. सबसे घातक किस्म के संक्रमण से 90 फीसदी मामलों में मरीजों की मौत हो जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हंटा वायरस
कोरोना के बाद इन दिनों चीन में हंटा वायरस के कारण एक व्यक्ति की जान जाने की खबर ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं. यह कोई नया वायरस नहीं है. इस वायरस के लक्षणों में फेफड़ों के रोग, बुखार और गुर्दा खराब होना शामिल हैं.
तस्वीर: REUTERS
रेबीज
कुत्तों, लोमड़ियों या चमगादड़ों के काटने से रेबीज का वायरस फैलता है. हालांकि पालतू कुत्तों को हमेशा रेबीज का टीका लगाया जाता है लेकिन भारत में यह आज भी समस्या बना हुआ है. एक बार वायरस शरीर में पहुंच जाए तो मौत पक्की है.
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/L. Thomas
एचआईवी
अस्सी के दशक में एचआईवी की पहचान के बाद से अब तक तीन करोड़ से ज्यादा लोग इस वायरस के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं. एचआईवी के कारण एड्स होता है जिसका आज भी पूरा इलाज संभव नहीं है.
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चेचक
इंसानों ने हजारों सालों तक इस वायरस से जंग लड़ी. मई 1980 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषणा की कि अब दुनिया पूरी तरह से चेचक मुक्त हो चुकी है. उससे पहले तक चेचक के शिकार हर तीन में से एक व्यक्ति की जान जाती रही.
तस्वीर: cc-by/Otis Historical Archives of National Museum of Health & Medicine
इन्फ्लुएंजा
दुनिया भर में सालाना हजारों लोग इन्फ्लुएंजा का शिकार होते हैं. इसे फ्लू भी कहते हैं. 1918 में जब इसकी महामारी फैली तो दुनिया की 40% आबादी संक्रमित हुई और पांच करोड़ लोगों की जान गई. इसे स्पेनिश फ्लू का नाम दिया गया.
तस्वीर: picture-alliance/Everett Collection
डेंगू
मच्छर के काटने से डेंगू फैलता है. अन्य वायरस के मुकाबले इसका मृत्यु दर काफी कम है. लेकिन इसमें इबोला जैसे लक्षण हो सकते हैं. 2019 में अमेरिका ने डेंगू के टीके को अनुमति दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/EPA/G. Amador
रोटा
यह वायरस नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होता है. 2008 में रोटा वायरस के कारण दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के लगभग पांच लाख बच्चों की जान गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कोरोना वायरस
इस वायरस की कई किस्में हैं. 2012 में सऊदी अरब में मर्स फैला जो कि कोरोना वायरस की ही किस्म है. यह पहले ऊंटों में फैला, फिर इंसानों में. इससे पहले 2002 में सार्स फैला था जिसका पूरा नाम सार्स-कोव यानी सार्स कोरोना वायरस था. यह वायरस 26 देशों तक पहुंचा. मौजूदा कोरोना वायरस का नाम है सार्स-कोव-2 है और यह दुनिया के हर देश तक पहुंच चुका है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP/NIAID-RML
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फ्रांस में शोधकर्ताओं की एक टीम ने पिछले सप्ताह बताया कि उन्होंने कोविड-19 के 36 मरीजों का अध्ययन किया और पाया कि एक समूह को देने के बाद उस समूह में वायरल लोड भारी मात्रा में गिर गया. इस टीम का नेतृत्व मार्से स्थित आईएचयू-मेडितेरानी इन्फेक्शन के दिदिएर राऊल कर रहे हैं. टीम ने पाया कि परिणाम विशेष रूप से साफ तब थे जब इसका इस्तेमाल एजिथ्रोमाइसिन के साथ किया गया. एजिथ्रोमाइसिन एक आम एंटीबायोटिक है जिसका इस्तेमाल दूसरे दर्जे के बैक्टीरियल संक्रमण का अंत करने के लिए किया जाता है.
यह भी साबित हो चुका है कि एचसीक्यू और सीक्यू एसएआरएस-सीओवी-2 वायरस के खिलाफ लैब में कारगर साबित हुए थे और पिछले सप्ताह सेल डिस्कवरी में छपे एक लेख में चीन की एक टीम ने एक संभावित कार्य विधि भी बताई.
रिवरसाइड में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में सेल बायोलॉजी के प्रोफेसर करीन ल रोक ने समझाया कि एचसीक्यू और सीक्यू दोनों मिलकर वायर की सेल में घुसने की क्षमता पर असर डालने की कोशिश करते हैं और उन्हें बढ़ने से भी रोकते हैं. लेकिन उन्होंने यह भी कहा, "मैं अभी भी बड़े क्लीनिकल ट्रायल के परिणामों के छपने का इन्तजार कर रही हूं जिनमें एचसीक्यू की प्रभावकारिता साबित की गई हो."
अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के संक्रामक बीमारियों के विभाग के मुखिया एंथोनी फॉसी का कहना है, "उम्मीद का मतलब सबूत नहीं होता है और जो छोटे अध्ययन अभी तक किये गए हैं उनसे सिर्फ "ऐनिकडोटल" सबूत निकला है."
इसके अलावा चीन में 30 मरीजों पर हुए एक छोटे अध्ययन ने दिखाया कि एचसीक्यू सामान्य देख-रेख से कुछ भी बेहतर नहीं था.वैज्ञानिकों का कहना है कि पक्के तौर पर जानने का एकमात्र तरीका है रैंडमाइज्ड क्लीनिकल ट्रायल करना.