जलवायु पर गलत जानकारी फैलाने से किसे फायदा मिलेगा?
मार्टिन कुएब्लर
२६ जनवरी २०२४
जलवायु विज्ञान के विरोधियों और जीवाश्म ईंधन के समर्थकों के पास जलवायु परिवर्तन को लेकर संदेह पैदा करने के कई तरीके हैं. और इन सबकी वजह से तत्काल कार्रवाई बाधित हो सकती है.
विज्ञापन
दुष्प्रचार यानी गलत सूचना तब होती है जब लोग जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन या जलवायु परिवर्तन के बारे में गलत जानकारी साझा करते हैं या फिर कुछ चुनिंदा आंकड़े पेश करते हैं जो पूरी तस्वीर नहीं दिखाते. और ये सूचनाएं इस तरह से लोगों को प्रभावित कर सकती हैं कि अन्य लोग इस मुद्दे के बारे में कैसे सोचते हैं. इसके लिए जानबूझकर कुछ करने की जरूरत नहीं है बल्कि कोई भी एक साधारण गलती, या किसी जटिल विषय के संदर्भ में किसी गलतफहमी की वजह से ऐसे दुष्प्रचार आसानी से फैल सकते हैं.
इसका एक उदाहरण ग्रीनवॉशिंग है. यह एक ऐसा तरीका है जिससे व्यावसायिक लोग अपनी पर्यावरणीय साख को, वास्तव में जितना वे हैं उससे अधिक पर्यावरण के अनुकूल बनाते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ फैशन कंपनियां नवीकरणीय, प्राकृतिक रेशों और पुनर्चक्रण योग्य पैकेजिंग के उपयोग को बढ़ावा देते हैं, जिससे उनका ध्यान तेज, डिस्पोजेबल फैशन के तमाम उन चीजों से हट जाता है जो कुछ ही हफ्तों में तैयार हो जाते हैं.
डेढ़ डिग्री गर्मी न संभली, तो आएगी तबाही!
2023 अब तक का सबसे गर्म साल रहा. वैज्ञानिक आंकड़े बताते हैं कि इन 365 दिनों में ग्लोबल वॉर्मिंग 1.48 डिग्री सेल्सियस के स्केल तक पहुंच गई. लेकिन क्या हालात इतने पर ही सिमट जाएंगे? और ऐसी चरम गर्मी का हम पर क्या असर होगा?
तस्वीर: FABRICE COFFRINI/AFP
कितना गर्म था 2023
साबित हो चुका है कि 2023 हमारी जानकारी में अब तक का सबसे गर्म साल था. वैज्ञानिकों ने बताया कि बीते साल दुनिया का औसत तापमान, गर्मी के मौजूदा कीर्तिमानों से करीब 0.25 डिग्री ज्यादा रहा. ये बात खुद ही बेहद डरावनी है, लेकिन वैज्ञानिकों की एक और बड़ी चिंता है. तस्वीर में: लहरों के साथ बहकर आई एक जेलीफिश. जुलाई 2023 में भूमध्यसागर में रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया.
तस्वीर: JOSE JORDAN/AFP
जलवायु परिवर्तन की रफ्तार बढ़ने का डर
कई वैज्ञानिकों ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि उन्हें जलवायु परिवर्तन की रफ्तार और बढ़ने का डर है. हम अभी ही डेढ़ डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के मुहाने पर हैं. पेरिस जलवायु समझौते में शामिल देशों को उम्मीद थी कि अगर हम इतनी वृद्धि तक सीमित रहें, तो बड़ी कामयाबी होगी. तस्वीर: फरवरी 2023 में गर्म लहर से चिली का बुरा हाल था. बेतहाशा गर्मी के बीच सैकड़ों जगहों पर जंगल में आग लग गई.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
जलवायु परिवर्तन और अल नीनो का असर?
वैज्ञानिकों का कहना है कि बीते साल जलवायु का बर्ताव बहुत अजीब था. वो पसोपेश में हैं कि क्या इसकी वजह इंसानी गतिविधियों के कारण हो रहा क्लाइमेट चेंज और अल नीनो का मिला-जुला असर है. या फिर इसके पीछे कोई ज्यादा सुव्यवस्थित प्रक्रिया है, जो या तो शुरू हो चुकी है या होने वाली है. मसलन, यह थिअरी कि ग्लोबल वॉर्मिंग हमारी समझ से भी ज्यादा तेजी से हो रही है. तस्वीर: इटली में मिलान के पास नदी का सूखा किनारा
तस्वीर: Antonio Calanni/AP Photo/picture alliance
क्या है अल नीनो?
इसका संकेत हमें इस साल बसंत या गर्मी की शुरुआत तक मिल जाएगा, चूंकि इसी दौरान अल नीनो का असर कमजोर होने की उम्मीद है. अल नीनो, जलवायु का एक चक्र है. इस दौरान प्रशांत महासागर का पानी असामान्य रूप से गर्म हो जाता है. यह दो से सात साल की अवधि में लौटता है. इसका असर समुद्र के तापमान, लहरों की रफ्तार और ताकत, तटीय इलाकों में मछलियों की मौजूदगी और मौसम पर पड़ता है. तस्वीर: ब्राजील की पिरान्हा झील
तस्वीर: BRUNO KELLY/REUTERS
बस अल नीनो नहीं है जिम्मेदार
तो अगर 2023 की तरह इस साल भी समुद्र का तापमान ज्यादा रहा और इस बार भी रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ी, तो यह अच्छा संकेत नहीं होगा. हालांकि 2023 के इतना भीषण गर्म होने की वजह बस अल नीनो नहीं है. जीवाश्म ईंधनों से निकली ग्रीनहाउस गैसें सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. तस्वीर: रोम के चिड़ियाघर में चिलचिलाती गर्मी से राहत पाने के लिए ठंडा खरबूज खाते मीरकैट्स
तस्वीर: Yara Nardi/REUTERS
मौसम के स्वभाव में फर्क दिखा
लेकिन गर्मी की इस तस्वीर में एक पेचीदगी है. आमतौर पर औसत तापमान का अंतर सर्दी और बसंत में ज्यादा प्रत्यक्ष दिखता है. वहीं 2023 में सबसे ज्यादा गर्मी जून के आसपास शुरू हुई और कई महीनों तक रिकॉर्ड स्तर पर रही. तस्वीर: गर्मी से झुलसाए पौधे
तस्वीर: Aventurier Patrick/ABACA/picture alliance
औद्योगिकीकरण से पहले के मुकाबले क्या स्थिति
अमेरिका के नेशनल ओशेनिक एंड एटमॉस्फैरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने बताया कि 2023 में पृथ्वी का औसत तापमान 15.8 डिग्री सेल्सियस रहा. यह 2016 में बने रिकॉर्ड से 0.15 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. औद्योगिकीकरण से पहले के मुकाबले देखें, तो यह करीब 1.35 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि है. तस्वीर: विएना में हीट वेव के बीच पानी की बौछार में खेलते दो बच्चे
तस्वीर: GEORG HOCHMUTH/APA/AFP/Getty Images
पृथ्वी के गर्म होने की रफ्तार बढ़ी है!
एनओएए में वैश्विक निरीक्षण के प्रमुख रस वोसे ने एपी से बातचीत में कहा कि वह पृथ्वी के गर्म होने की रफ्तार में इजाफा देख रहे हैं. पिछले साल की स्थितियों पर वोसे कहते हैं कि यह ऐसा था मानो हम अचानक ही सामान्य ग्लोबल वॉर्मिंग की सीढ़ी से थोड़े ज्यादा गर्म हिस्से में कूद गए हों. तस्वीर: ऑस्ट्रेलिया में गर्म लहर के बीच नदी की सतह पर बहती मरी मछलियां.
तस्वीर: Australian Broadcasting Corporation via AP/picture alliance
कई दहलीजें पार हुईं
2023 में गर्मी की कई दहलीजें पार हुईं. वैज्ञानिकों के पूर्वानुमान से ज्यादा गर्मी बढ़ी. 17 नवंबर को पहली बार पृथ्वी का तापमान अस्थायी तौर पर दुनिया के औसत तापमान के मुकाबले दो डिग्री सेल्सियस की वॉर्मिंग लिमिट के पार गया. जून से दिसंबर के बीच हर महीना रिकॉर्ड स्तर पर गर्म रहा. तस्वीर: लद्दाख में सिकुड़ते ग्लेशियर.
तस्वीर: Sā Ladakh
इतनी तेजी से बन रहे हैं नए रिकॉर्ड
नासा और एनओएए, दोनों के मुताबिक 2014 से 2023 के दरमियान 10 साल सबसे गर्म रहे हैं. पिछले आठ साल में तीसरी बार वैश्विक गर्मी का नया रिकॉर्ड सेट हुआ. वैज्ञानिक कहते हैं कि कीर्तिमानों का इतनी जल्दी-जल्दी टूटना ज्यादा बड़ी चिंता है. जलवायु में लगातार हो रहा बदलाव और इसकी तीव्रता सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात है. तस्वीर: फ्रांस में सूखे की गंभीर स्थिति थी. फोटो में नदी का सूखा बहाव दिख रहा है.
कई जलवायु वैज्ञानिकों को अब ग्लोबल वॉर्मिंग के डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य में ज्यादा उम्मीद नहीं दिखती. वो चेताते हैं कि अब ये लक्ष्य सच्चाई के करीब नहीं लगता. हालांकि वो यह भी कहते हैं कि तकनीकी तौर पर इसे हासिल करना भले मुमकिन हो, लेकिन राजनैतिक तौर पर यह नामुमकिन है.
तस्वीर: DAVE HUNT/AAP/IMAGO
11 तस्वीरें1 | 11
दूसरी तरफ, दुष्प्रचार तब होता है जब जलवायु विज्ञान के विरोधी और अन्य समूह या आधिकारिक संगठन पर्यावरण को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से जलवायु विज्ञान और सरकारी नीतियों के खिलाफ अपने खुद के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए जानबूझकर गलत जानकारी प्रचारित करते हैं या अफवाह फैलाते हैं.
गलत सूचनाओं का असर
शेल, एक्सॉन मोबिल, बीपी जैसी प्रमुख जीवाश्म ईंधन कंपनियों पर जलवायु विज्ञान को बदनाम करने या लॉबिंग के साथ अपने जीवाश्म ईंधन पर लगातार हो रहे निवेश को छिपाने का आरोप लगाया गया है. ये कंपनियां 1970 के दशक से ही अपने समर्थन में सुखद एहसास वाले विज्ञापन प्रकाशित करती रही हैं. ऐसे ही आरोप ग्लोबल क्लाइमेट कोएलिशन नामक संगठन पर भी लगे थे. यह जीवाश्म ईंधन उद्योग से जुड़ी कंपनियों का एक अग्रणी समूह है जिसे साल 2002 में भंग कर दिया गया था.
उदाहरण के लिए, अमेरिका में द एंपावरमेंट अलायंस या यूरोप में रिस्पॉन्सिबल एनर्जी सिटीजन कोएलिशन जैसे समूह जीवाश्म ईंधन से प्राप्त प्राकृतिक गैस का समर्थन करने और हरित नीतियों को बदनाम करने के लिए एस्ट्रोटर्फिंग नाम की एक रणनीति का उपयोग करते हैं. इसके तहत अपने समर्थन और हरित नीतियों के विरोध में कुछ आंदोलन प्रायोजित कराए जाते हैं जो कि जन आंदोलन जैसे प्रतीत होते हैं. इन आंदोलनों के लिए धन कहां से आता है, इसकी भी जानकारी स्पष्ट नहीं होती है.
गलत सूचना और झूठ कुछ मीडिया संस्थानों द्वारा भी प्रकाशित किए जाते हैं या फिर कुछ लोकप्रिय राजनेता भी इनके प्रचार में उतर जाते हैं. सितंबर 2023 में जब ब्राजील में चक्रवात के कारण बाढ़ आई थी और 40 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी तो सरकारी विरोधियों और एक प्रमुख पत्रकार ने इसके लिए बांध की विफलताओं को जिम्मेदार ठहराया था ताकि वैश्विक तापन के अत्यधिक प्रभावों को कम करने के प्रयासों से लोगों का ध्यान हटाया जा सके.
आर्कटिक-अंटार्कटिक: दुनिया के दो छोरों में कितना अंतर
आर्कटिक और अंटार्कटिक, दुनिया के दो छोर हैं. पृथ्वी के दो सिरे. दोनों जगहों पर जहां तक देखो बर्फ ही बर्फ. सतही तौर पर दोनों एक से दिखते हैं, लेकिन इनमें काफी फर्क है. आर्कटिक और अंटार्कटिक में क्या अंतर है, देखिए.
तस्वीर: picture alliance/Global Warming Images
भूगोल की एक काल्पनिक लकीर
पृथ्वी के बीच एक काल्पनिक रेखा मानी जाती है इक्वेटर, यानी विषुवत रेखा. जीरो डिग्री अक्षांश की यह लकीर पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में बांटती है. अंग्रेजी में, नॉदर्न और सदर्न हेमिस्फीयर. यह उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की आधी राह में है. आर्कटिक जहां उत्तरी गोलार्ध में है, वहीं अंटार्कटिक दक्षिणी गोलार्ध में है. तस्वीर में: अंटार्कटिक का माउंट एरेबस
तस्वीर: Danita Delimont/PantherMedia/Imago
एक समंदर है, दूसरा महादेश
बचपन में भूगोल के पाठ में आपने महादेशों और महासागरों के नाम याद किए होंगे. सात महादेशों में से एक है अंटार्कटिक और पांच महासागरों में से एक है आर्कटिक. अंटार्कटिक, सागर से घिरी जमीन है. वहीं आर्कटिक जमीन से घिरा सागर. यह दोनों इलाकों के बीच का सबसे बड़ा फर्क है.
तस्वीर: Jiri Vondrous/Zoonar/picture alliance
बर्फ में भी अंतर
आर्कटिक महासागर के ऊपर बर्फ की जो पतली परत है, वो लाखों साल पुरानी है. वैज्ञानिक इसे 'पेरीनियल आइस' कहते हैं. आर्कटिक की गहराई करीब 4,000 मीटर (चार किलोमीटर) है. उसकी अंदरूनी दुनिया को हम अब भी बहुत नहीं जानते. दूसरी तरफ अंटार्कटिक बर्फ की बहुत मोटी परत से ढका है. तस्वीर: अंटार्कटिक में गोता लगाती एक व्हेल
तस्वीर: Ann Inger Johansson/ZUMAPRESS/picture alliance
पेंग्विन और पोलर बियर
पेंग्विन और ध्रुवीय भालू, इन दोनों को आप साथ नहीं देखेंगे. पेंग्विन केवल दक्षिणी गोलार्ध में पाए जाते हैं. सबसे ज्यादा पेंग्विन अंटार्कटिक में रहते हैं. इसके अलावा गलापगोस आइलैंड्स, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड में भी इनकी कुदरती बसाहट है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
पोलर बियर का घर
पोलर बियर पृथ्वी के सुदूर उत्तरी हिस्से आर्कटिक में रहते हैं. देशों में बांटें तो इनकी बसाहट ग्रीनलैंड, नॉर्वे, रूस, अलास्का और कनाडा में है. पेंग्विन और पोलर बियर में एक समानता ये है कि क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण दोनों के घर और खुराक पर बड़ा जोखिम मंडरा रहा है.
तस्वीर: R. de Haas/AGAMI/blickwinkel/picture alliance
इंसानी रिहाइश
हजारों साल से आर्कटिक में इंसान रहते आए हैं. जैसे कि मूलनिवासी इनौइत्स और सामी. वहीं दक्षिणी ध्रुव से हमारी पहचान को बहुत ज्यादा वक्त नहीं बीता. 19वीं और 20वीं सदी में जिस तरह दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों तक पहुंचने की होड़ लगी थी, वैसी ही महत्वाकांक्षा साउथ पोल के लिए भी थी. काफी कोशिशों के बाद दिसंबर 1911 में नॉर्वे के खोजी रोल्ड एमंडसन को दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने में कामयाबी मिली.
तस्वीर: LISI NIESNER/REUTERS
हरियाली
अंटार्कटिक का ज्यादातर हिस्सा स्थायी रूप से बर्फ से ढका रहता है. ऐसे में पौधों के उगने के लिए बहुत कम ही जगह है. यहां ज्यादातर लाइकेन्ज और मॉस के रूप में ही वनस्पति है. आर्कटिक अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा हरा-भरा है. यहां करीब 900 प्रजातियों की काई और 2,000 से भी ज्यादा प्रकार के वैस्क्यूलर प्लांट पाए जाते हैं. इनमें ज्यादातर फूल के पौधे हैं.
तस्वीर: picture alliance/Global Warming Images
मौसम का फर्क
आर्कटिक के लिए जून का महीना 'मिड समर' है, यानी आधी गर्मी बीत गई और आधी बची है. मार्च से सितंबर तक सूरज लगातार क्षितिज से ऊपर होता है और 21 जून के आसपास यह सबसे ऊंचे पॉइंट पर पहुंचता है. वहीं अंटार्कटिक में इसका उल्टा है. वहां 21 दिसंबर के आसपास मिड समर होता है, यानी सूरज क्षितिज में सबसे ऊपर पहुंचता है.
तस्वीर: Brian Battaile/U.S. Geological Survey/AP/picture alliance
8 तस्वीरें1 | 8
तस्वीरों और वीडियोज में हेर-फेर करके सोशल मीडिया ने ऐसी गलत सूचनाओं का प्रसार और भी आसान बना दिया है, खासकर जब इन सब के पीछे कोई साजिश हो रही हो. जैसे हाल ही में स्थाई शहरी नियोजन के खिलाफ सोशल मीडिया पर 15-minute cities को ट्रेंड कराया गया था.
क्लाइमेट एक्शन अगेंस्ट डिसइनफॉर्मेशन, एक वैश्विक गठबंधन है जो कि जलवायु संबंधी गलत सूचनाओं और दुष्प्रचार के खिलाफ काम करता है. इस संगठन के मुताबिक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर (अब X) को जब से इलॉन मस्क ने खरीदा है, तब से उस पर #ClimateScam जैसे हैशटैग के साथ जलवायु विज्ञान विरोधी ट्वीट्स काफी बढ़ गए हैं.
गलत सूचना ने हाल के वर्षों में नीति निर्धारण में भी घुसपैठ की है, खासकर डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर रहने के दौरान. उन्होंने अपने कार्यकाल से पहले और कार्यकाल के दौरान बार-बार नवीकरणीय ऊर्जा की आलोचना की और जलवायु विज्ञान को खारिज कर दिया. यही नहीं, वे अक्सर ग्लोबल वॉर्मिंग को एक धोखा कहते रहे हैं. ट्रंप अमेरिका को 2015 के पेरिस समझौते से बाहर निकालना चाहते हैं, जिससे अमेरिकी और शायद वैश्विक जलवायु कार्रवाई में कई साल की देरी हो सकती है.
विज्ञापन
जलवायु के बारे में दुष्प्रचार से क्या होता है?
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वैश्विक तापमान जैसे-जैसे एक के बाद एक रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच रहे हैं, वैश्विक गर्मी से निपटने के लिए समय उसी रफ्तार से कम होता जा रहा है. ज्यादातर वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि हमें अब कार्रवाई करने की आवश्यकता है, लेकिन जलवायु संबंधी गलत सूचना देने वाले यानी दुष्प्रचार करने वाले लोग इसी दौरान जलवायु विज्ञान पर ही सवाल उठा रहे हैं. और लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं कि वो सवाल उठाएं कि मानवता ने जलवायु परिवर्तन को बढ़ाया है और समाधानों पर संदेह जताया है, जिससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में जनता का समर्थन कम हो रहा है.
कश्मीर में केसर की खेती बचाने की कोशिशें
04:23
साल 2022 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल ने पहली बार माना कि ‘जलवायु परिवर्तन पर घृणास्पद गलत सूचनाओं और विज्ञान को जानबूझकर कमजोर करने की कोशिशों ने वैज्ञानिक सहमति, अनिश्चितता, उपेक्षित जोखिम और तात्कालिकता और असहमति की गलत धारणाओं में योगदान दिया है.'
क्लाइमेट एक्शन अगेंस्ट डिसइनफॉर्मेशन जैसे जलवायु समर्थनक समूह, यूरोपीय संघ सहित तमाम देशों की सरकारें, संयुक्त राष्ट्र, विश्व मौसम विज्ञान संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे विश्वव्यापी संगठन, गलत सूचनाओं को रोकने और उसका मुकाबला करने के लिए काम कर रहे हैं.
कई मीडिया संगठनों ने भी जलवायु रिपोर्टिंग और पर्यावरण संबंधी मिथकों और धोखे को दूर करने के लिए काम कर रहे हैं और इसके लिए अपने संसाधन समर्पित किए हैं.