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क्या होती है आसमान में होने वाली 'जीपीएस जैमिंग'

३ सितम्बर २०२५

विमान रास्ता खोजने के लिए जीपीएस सिग्नल की मदद लेते हैं. इन सिग्नलों से छेड़छाड़ करके विमान को भटकाया भी जा सकता है. यूरोपीय संघ की अध्यक्ष ने हाल ही में ऐसी ही शिकायत की है.

कनाडा में खड़ा एक विमान
पश्चिमी देशों ने रूस पर विमानों के जीपीएस सिग्नल से छेड़छाड़ का आरोप लगाया हैतस्वीर: Bayne Stanley/ZUMA Wire/picture alliance

यूरोपीय संघ (ईयू) की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन का विमान जैसे ही बुल्गारिया के प्लोफदिव हवाई अड्डे के पास पहुंचा, उसे मिल रहे सिग्नल गायब हो गए. ईयू की ओर से जारी बयान में इस घटना के लिए जीपीएस जैमिंग की बात कही गई.

इस घटना के कुछ ही घंटों बाद जर्मन बुंडसवेयर (आर्मी) के 'चीफ ऑफ डिफेंस' कार्स्टन ब्रॉयर ने बताया कि बीते कुछ महीनों में उनके विमानों ने भी इसी तरह की समस्या का सामना किया है.

विशेषज्ञ कहते हैं कि इस हाइब्रिड युग में जीपीएस सिग्नल का इस्तेमाल हथियार की तरह किया जा सकता है. लेकिन जीपीएस जैमिंग जैसी चीजें क्या होती हैं, आइए समझते हैं.

जीपीएस जैमिंग क्या है?

रेडियो, टीवी अपना सिग्नल अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट की मदद से हासिल करते हैं. इनका इस्तेमाल हवा, पानी और जमीन पर लोकेशन का पता लगाने के लिए किया जाता है. हवाई जहाज भी जीपीएस सिग्नल की मदद से लोकेशन का पता लगाते हुए उड़ते हैं.  लेकिन सिग्नलों से छेड़छाड़ कर उड़ानों को बाधित किया जा सकता है. इसे जीपीएस जैमिंग कहा जाता है.

जीपीएस जैमिंग में जानबूझकर या अनजाने में सैटेलाइट सिग्नलों को ज्यादा शक्तिशाली सिग्नलों की मदद से बाधित किया जाता है. जीपीएस सिग्नलों को नुकसान पहुंचाने के लिए जैमर का इस्तेमाल किया जाता है. यह मोबाइल सिग्नलों को बंद किए जाने वाले जैमर की ही तरह है. जैमर, सैटेलाइट के सिग्नलों को कमजोर करने के लिए ज्यादा शक्तिशाली सिग्नल भेजता है. इसके कारण सिग्नल रिसीव करना मुश्किल हो जाता है.

जैमर ज्यादा शक्तिशाली सिग्नल भेजकर सैटेलाइट सिग्नल को कमजोर कर देते हैंतस्वीर: DW

जमीन से आसमान पर हमला

धरती से हजारों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में मौजूद जीपीएस सैटेलाइट के सिग्नल जब रिसीव किए जाते हैं, तो इनकी फ्रीक्वेंसी कमजोर होती है. ऐसे में इनपर जैमर की मदद से हमला किया जा सकता है.

जैमर एक डिवाइस है, जो जीपीएस की फ्रीक्वेंसी पर ही शोर जैसा सिग्नल उत्पन्न करता है. जब यह सिग्नल रिसीवर तक पहुंचता है, तो वह असली सिग्नल और जैमर के झूठे सिग्नल के बीच अंतर नहीं कर पाता और काम करना बंद कर देता है.

दुनियाभर में जीपीएस जैमिंग की घटनाएं बढ़ रही हैं. भारत में पिछले दो सालों में ऐसी ही 450 से ज्यादा घटनाएं दर्ज की गई हैं. नागरिक उड्डयन राज्य मंत्रालय ने लोकसभा में इसकी जानकारी दी है.

ईयू की प्रवक्ता ने फॉन डेय लाएन के साथ हुई घटना के लिए रूस पर शक होने की बात कही. उन्होंने कहा कि ईयू को बुल्गेरियाई अधिकारियों से जानकारी मिली है कि उन्हें इस घटना के पीछे रूस का हाथ होने का संदेह है.

हवाई जहाज को भटका देगा

मीडिया रिपोर्टों में बताया गया कि जैमिंग की वजह से फॉन डेय लाएन के विमान को हवा में एक घंटा ज्यादा बिताना पड़ा. विमान के पायलट ने कागज के नक्शे की मदद से लोकेशन का पता लगाकर विमान को उतारा.

जब कोई विमान जीपीएस जैमिंग की चपेट में आता है, तो पायलट को मैनुअल नेविगेशन का इस्तेमाल करना पड़ता है. इसका मतलब है कि उसे पुराने तरीकों जैसे कागज के नक्शों, इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (आइएनएस) और जमीन-आधारित सिग्नलों का इस्तेमाल करना पड़ता है.

ऐसी स्थिति किसी भी विमान के लिए खतरनाक साबित हो सकती है. मौसम खराब होने पर ऐसे उपाय नाकाम रह सकते हैं. यह विमानों के बीच टक्कर जैसी घटनाओं का खतरा बढ़ा सकती है. जैमिंग का इस्तेमाल पानी के जहाजों को रास्ता भटकाने के लिए भी किया जाता है.

रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यूरोप में कई बार जीपीएस जैमिंग की घटनाएं देखी गई हैं. ईयू ने इन घटनाओं को लिए रूस को जिम्मेदार ठहराया है. ईयू प्रवक्ता ने इस घटना को रूस की धमकी देने के काम का ही एक हिस्सा माना और कहा कि यूरोपीय संघ रक्षा खर्च में निवेश जारी रखेगा.

यूरोपीय रक्षा एजेंसी (ईडीए) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2025 में ईयू का रक्षा खर्च बढ़कर 381 अरब यूरो हो जाएगा. यह पिछले साल के आंकड़े (343 अरब यूरो) के बाद एक नया रिकॉर्ड होगा.

फ्लाइटराडार24 ने दावा किया है कि उर्सुला के विमान के जीपीएस सिग्नल से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई हैतस्वीर: Nicolas Economou/NurPhoto/picture alliance

फ्लाइटराडार24 का दावा, नहीं हुई कोई जैमिंग

दुनियाभर में विमानों के ट्रैफिक पर नजर रखने वाली वेबसाइट 'फ्लाइटराडार24' ने ईयू के आरोपों को नकार दिया है. वेबसाइट ने एक सोशल पोस्ट में बताया कि फॉन डेय लाएन के विमान में उड़ान भरने से लेकर लैंड करने तक, बेहतर फ्रीक्वेंसी के सिग्नल मिले और विमान को निर्धारित जगह पहुंचने में बस सात मिनट की ही देरी हुई.

फिलहाल जैमिंग के आरोपों पर रूस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है. पोलैंड, लिथुआनिया और लातविया के बाल्टिक इलाकों से गुजरते समय बहुत से विमानों ने सिग्नल से जुड़ी समस्याओं की शिकायत की है. ऐसी भी आशंकाएं जताई जाती हैं कि पोलैंड और लिथुआनिया की सीमा पर मौजूद रूसी शहर कालिनिनग्राद में रूस ने जो जैमर लगाए हैं, उनकी वजह से ही इन विमानों को इन समस्याओं का सामना करना पड़ा.

जीपीएस जैमिंग की घटना को पश्चिम ने सुरक्षा के मुद्दे से जोड़ते हुए सभी के लिए खतरा बताया है. नाटो के महासचिव मार्क रूटे ने कहा कि पूरा महाद्वीप सीधे रूसियों के निशाने पर है. उन्होंने फॉन डेय लाएन के साथ हुई घटना को गंभीरता से लिए जाने की बात कही. रूटे ने आश्वसान भी दिया कि ऐसी घटनाएं रोकने और दोबारा न होने के लिए वह दिन-रात काम कर रहे हैं.

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