रेलवेज टेरीटोरियल आर्मी का गठन 1949 में हुआ था और इसने 1965 और 1971 के युद्धों में हिस्सा भी लिया था. अब इसके छह में से पांच यूनिटों को भंग किया जा रहा है.
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रेल मंत्रालय ने घोषणा की है कि रेलवे इंजीनियर्स रेजिमेंट्स की छह इकाइयों में से पांच को भंग कर दिया जाएगा. इस सेवा को रेलवेज टेरीटोरियल सेना के भी नाम से भी जाना जाता है. मंत्रालय का कहना है कि समीक्षा के बाद पाया गया है कि इन इकाइयों की अब आवश्यकता नहीं है.
सिर्फ एक यूनिट को बरकरार रखने के आदेश जारी किए गए हैं. संभव है कि आने वाले दिनों में भी इसे भी भंग कर भारतीय रेल की अपनी सेना को पूरी तरह से ही भंग कर दिया जाए.
क्या है रेल सेना
रेलवे इंजीनियर्स रेजिमेंट्स टेरीटोरियल आर्मी का एक अंग है जो भारतीय सेना की एक वॉलंटियर रिजर्व फोर्स है. टेरीटोरियल आर्मी में पूर्णकालिक सैनिक नहीं होते है बल्कि इसमें ऐसे लोग वॉलंटरी आधार पर शामिल होते हैं जो पहले से ही किसी ना किसी पेशे से जुड़े होते हैं.
अमूमन ऐसे लोग टेरीटोरियल आर्मी में शामिल हो कर हर साल दो से तीन महीने अपनी सेवाएं देते हैं ताकि युद्ध या किसी राष्ट्रीय आपदा के समय वो भारतीय सेना की मदद कर सकें. टेरीटोरियल आर्मी के दो तरह के यूनिट होते हैं - विभागीय और गैर विभागीय. रेलवे इंजीनियर्स रेजिमेंट्स टेरीटोरियल आर्मी के छह विभागीय यूनिटों की एक सेवा है.
रेलवे के लिए बनी इस विशेष फोर्स का गठन 1949 में हुआ था. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि विशेष रूप से युद्ध के समय रेल सेवाएं निर्बाध और और सुचारू रूप से चलती रहें. इस समय कोटा, चंडीगढ़, हैदराबाद, जमालपुर, झांसी और अद्रा में इस फोर्स के छह रेजिमेंट हैं.
क्यों किया जा रहा है इसे भंग
हर रेजिमेंट में 23 अफसर, 46 जेसीओ और 1,081 दूसरे पदों के कर्मी होते हैं. सभी रेजीमेंटों के कर्मियों के वेतन और हर तरह के खर्च को रेल मंत्रालय ही उठाता है. 2019-20 में इन रेजीमेंटों के वेतन, सामान, हथियार और गोला बारूद, प्रशिक्षण आदि जैसे मद मिला कर कुल 14.28 करोड़ रुपए खर्च हुए थे.
रेल मंत्रालय ने 2019-20 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में लिखा था कि रेलवे इंजीनियर्स रेजिमेंट्स की यह प्रणाली सुचारु रूप से चल रही है. लेकिन अब मंत्रालय ने कहा है कि ताजा समीक्षा में पाया गया है कि इन रेजिमेंटों की अब आवश्यकता नहीं है और अब इन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए.
फिलहाल सिर्फ जमालपुर वाले रेजिमेंट को छोड़ कर बाकी पांच को भंग कर दिया जाएगा. जमालपुर रेजिमेंट की उपयोगिता की भविष्य में फिर से समीक्षा की जाएगी.
क्या है संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना, जिसके सबसे ज्यादा सैनिक दक्षिण एशिया से हैं
शांति मिशनों में जान गंवाने वाले कर्मियों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 29 मई को संयुक्त राष्ट्र शांति सेना का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. 2022 की थीम है- "लोग. शांति. प्रगति. साझेदारियों की ताकत."
तस्वीर: Glody Murhabazi/AFP/Getty Images
क्या है संयुक्त राष्ट्र शांति सेना
शांति सेना संयुक्त राष्ट्र का एक संगठन है जिसे हिंसाग्रस्त देशों में शांति बहाल करने के लिए तैनात किया जाता है. इसमें सैन्य, पुलिस और आम नागरिक शामिल होते हैं. यह उन इलाकों में तैनात किए जाते हैं जहां कोई अन्य देश या संस्था जा नहीं पाती या फिर जा नहीं सकती. 29 मई 1948 को इस्राएल-अरब शांति के लिए पहला मिशन शुरू करने के बाद से अब तक 72 मिशनों में शांति सैनिकों की तैनाती हो चुकी है.
तस्वीर: AFP
कहां तैनात हैं शांति सैनिक
2022 में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के तीन महाद्वीपों में 12 मिशन चल रहे हैं. यह इलाके हैं- पश्चिमी सहारा, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, माली, डी.आर. कांगो, गोलान (इस्राएल), साइप्रस, लेबनान, सूडान-दक्षिण सुडान सीमा, कोसोवो, दक्षिण सूडान, जम्मू-कश्मीर (भारत और पाकिस्तान) और मध्य-पूर्व एशिया. इस्राएल-अरब शांति के लिए 1948 में चलाया गया मध्य-पूर्व एशिया मिशन शांति सेना का पहला मिशन था, जो आज भी जारी है.
तस्वीर: Mahmoud Zayyat/AFP
किन देशों से आते हैं शांति सैनिक
शांति सेना में इस वक्त संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के करीब 87,000 कर्मी (सैनिक, पुलिस, नागरिक) सेवाएं दे रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा हिस्सा दक्षिण एशियाई देशों का है. बांग्लादेश (6,709) नेपाल (5,706) और भारत (5,581) पहले तीन स्थानों पर हैं. पांचवें स्थान पर मौजूद पाकिस्तान(4,123) समेत भूटान(27) और श्रीलंका(565) के कर्मी भी शांति सेना का हिस्सा हैं. आज तक दुनियाभर के 10 लाख लोग शांति सैनिक रहे हैं.
तस्वीर: Dharvi Vaid/DW
शांति सेना का खर्च
शांति सेना का खर्च संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों की साझा जिम्मेदारी होती है. हालांकि शांति सेना से जुड़े मामले, देखरेख और शांति मिशनों को बढ़ाने के फैसले सुरक्षा परिषद लेती है. 2021-2022 में शांति सेना का बजट 6.38 अरब डॉलर था. दुनिया के कुल रक्षा बजट (1981 अरब डॉलर) से तुलना करें तो यह मात्र आधा प्रतिशत है. इसमें सबसे ज्यादा योगदान देने वाले पहले तीन देश हैं- अमेरिका, चीन और जापान.
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शांति मिशनों में अब तक गई जानें
1948 से आज तक 72 शांति मिशनों में 4197 शांति सैनिकों की जान जा चुकी है. इन शांति मिशनों में भारत के भी 175 कर्मियों की मौत हुई है. यह अप्रत्याशित हो सकता है लेकिन शांति मिशनों में ज्यादा मौतें बीमारियों की वजह से हुई हैं. इसके बाद दुर्घटनाओं और हमलों की वजह से हुई मौतों की बारी आती है. 2021 भी शांति सेना के लिए बुरा था. इस साल 135 शांति सैनिकों की जान गई.
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संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने दी श्रद्धांजलि
शांति सेना के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए यूएन महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि "शांति को कभी हल्के में नहीं लिया जा सकता. हम 87,000 कर्मियों के शुक्रगुजार हैं जो संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले काम कर रहे हैं. बढ़ती हिंसा ने उनका काम और मुश्किल कर दिया है. उन्होंने दोहराया, "इस साल हम साझदारियों की ताकत पर ध्यान दे रहे हैं ताकि बातचीत से समस्याएं सुलझाई जा सकें और अहिंसा की संस्कृति फले-फूले."