फिलीपींस में कोई व्यक्ति एक बार ही राष्ट्रपति बन सकता है, लेकिन वर्तमान राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे की कार्यशैली कथित तौर पर लोकतंत्र के लिए चिंता का सबब बनती जा रही है.
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फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे ने कहा कि अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद वे उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव लड़ेंगे. डुटेर्टे का कार्यकाल अगले साल मई महीने में खत्म होने वाला है. डुटेर्टे की घोषणा पर कई लोगों ने चिंता व्यक्त की है. इनका मानना है कि इस तरह से डुटेर्टे राष्ट्रपति बनने की सीमा को दरकिनार कर लंबे समय तक सत्ता में बने रह सकते हैं. साथ ही, वे किसी तरह के आपराधिक आरोपों से भी बचे रहेंगे. डुटेर्टे ने इस सप्ताह मीडिया से बात करते हुए कहा, "मुझे इस समय उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार समझिए.”
1987 के संविधान के तहत फिलीपींस में कोई व्यक्ति एक बार ही राष्ट्रपति बन सकता है. उसका कार्यकाल छह वर्षों का होगा. फिलीपींस के कानून के तहत, उपराष्ट्रपति का चुनाव राष्ट्रपति से अलग होता है. अगर राष्ट्रपति की मौत हो जाती है या किसी वजह से वे काम नहीं कर पाते हैं, तो ऐसी स्थिति में उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति की भूमिका निभाने के लिए कहा जा सकता है.
संभावित आईसीसी जांच
डुटेर्टे की उम्र 76 साल है. राष्ट्रपति बनने से पहले वे मेयर रह चुके हैं. उन्होंने अपराध के प्रति अपने सख्त रवैये को लेकर राजनीति में नाम कमाया. उन्हें विवादास्पद बयानबाजी और विवादास्पद ड्रग युद्ध के लिए भी जाना जाता है. कहा जाता है कि इस ड्रग युद्ध की वजह से दक्षिण पूर्व एशियाई देश में हजारों लोगों की जान गई. मानवाधिकार संगठनों और सिविल सोसायटी एक्टिविस्टों ने इसे लेकर सरकार की काफी निंदा की है.
पिछले महीने, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) के अभियोजकों ने क्रूर ड्रग-विरोधी अभियान और संभवतः दसियों हजार लोगों की कथित गैरकानूनी हत्या की पूरी जांच शुरू करने की मंशा जाहिर की थी. आईसीसी के पूर्व अभियोजक ने पिछले महीने कहा था कि शुरुआती जांच से पता चला है कि ड्रग-विरोधी अभियान के दौरान अमानवीय व्यवहार किया गया. अभियोजक ने औपचारिक जांच शुरू करने के लिए प्राधिकरण की मांग की है. इस मामले पर निर्णय लेने के लिए न्यायाधीशों के पास 120 दिन हैं.
तस्वीरों मेंः फिलीपींस की यौनकर्मियों के बच्चों की बदतर जिंदगी
फिलीपींस की यौनकर्मियों के बच्चों की बदतर जिंदगी
ये बच्चे अन्य बच्चों से अलग हैं, क्यूंकि इनका जीवन इसी गरीबी में माता पिता के बिना कटना है. लोग फिलीपींस घूमने आते हैं और यौनकर्मियों की कोख में इन बच्चों को छोड़ जाते हैं.
तस्वीर: DW/R. I. Duerr
यौनकर्म पर निर्भरता
फिलीपींस के ओलोनागापो शहर के इस इलाके में ये लड़कियां गरीबी से जूझते जिंदगी गुजारती हैं. ये लड़कियां बारों में काम करती हैं. हर साल सेक्स टूरिज्म के कारण हजारों बच्चों का जन्म होता है.
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बगैर पिता की नस्ल
डेनियल का पिता एक अमेरिकी था. डेनियल की मां बार में काम करती है और कोशिश करती है कि सभी बच्चों को बराबरी का एहसास हो.
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मजबूर हालात
रयान (मध्य में) को बास्केटबॉल खेलना पसंद है. उसका पिता जापानी था. रयान के चार भाई बहन हैं, उनके पिता अलग हैं.
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करियर के अवसर
सबरीना गोरी है, इलाके में माना जाता है कि उसके लिए बेहतर अवसर मौजूद हैं. वह मॉडल या अभिनेत्री बन सकती है. उसके पिता जर्मन हैं लेकिन उनका सबरीना के परिवार से कोई संबंध नहीं है.
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पढ़ाई लिखाई
लैला की दिलचस्पी स्कूल जाने में है, वह दिन भर पीठ पर बस्ता बांध कर घूमती रहती है. लैला की मां बताती हैं कि उसके पिता अमेरिकी हैं.
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पहचान की तलाश
अफ्रीकी या अफ्रीकी अमेरिकी पिता के बच्चे इस समाज में 'निगर' कह कर पुकारे जाते हैं.
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नया परिवार
एंजेला सैमुएल के पिता स्विस थे. लेकिन उसके जन्म के पहले ही उसके पिता उन्हें छोड़ कर चले गए. एंजेला ने अब एक फिलीपीनी परिवार का लड़के से शादी की है. शादी के बाद उसने बार में काम करना छोड़ दिया.
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डुटेर्टे को अमानवीय अपराधों के आरोपों का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि वह आईसीसी की संभावित जांच में कभी भी सहयोग नहीं करेंगे. वहीं, देश और देश से बाहर एक्टिविस्टों की तरफ से लगातार की जा रही आलोचना के बावजूद, फिलीपींस में डुटेर्टे की लोकप्रियता उच्च स्तर पर बनी हुई है.
कमजोर लोकतांत्रिक नींव
डुटेर्टे का लोकतांत्रिक संस्थाओं को कुचलने का एक लंबा ट्रैक रिकॉर्ड है. इनमें सबसे बड़े ब्रॉडकास्ट मीडिया नेटवर्क को बंद कराने से लेकर आतंकवाद विरोधी कानून पारित करना शामिल है. आलोचकों का कहना है कि इस कानून की मदद से असंतोष को दबाया गया और हजारों लोगों की गैर-न्यायिक तरीके से हत्या कर दी गई.
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि डुटेर्टे प्रशासन ने देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोरी को उजागर कर दिया है. राजनीतिक विशेषज्ञ रिचर्ड हेडेरियन ने डॉयचे वेले से कहा, "फिलीपींस की लोकतांत्रिक व्यवस्था पहले ही टूट चुकी थी. इससे डुटेर्टे को तानाशाही करने में मदद मिली. डुटेर्टे ने मौजूदा संरचनात्मक कमजोरियों को और अधिक कमजोर कर दिया.”
फिलीपींस में बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था है. आलोचक इसे "प्रशंसक क्लब” के तौर पर बताते हैं जो अपने निजी लाभ के लिए अकसर पार्टियां बदलते हैं. राजनेता और मतदाता विचारधारा की जगह राजनीतिक व्यक्तित्व को ज्यादा तवज्जो देते हैं.
जानिएः इन देशों में मुश्किल है तलाक
इन देशों में मुश्किल है तलाक
शादी का बंधन दो लोगों को आपस में जोड़ने का प्रतीक माना जाता है लेकिन अगर कोई व्यक्ति इससे निकलना चाहे तो वह उसकी पसंद होना चाहिए. लेकिन दुनिया में अब भी ऐसे कुछ देश हैं जहां शादी तोड़ना आसान नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Aljibe
फिलीपींस
यह एशियाई देश दुनिया का इकलौता ऐसा मुल्क हैं जहां तलाक पर प्रतिबंध है. लेकिन लंबी कोशिशों के बाद तलाक से जुड़ा एक विधेयक देश की संसद में पेश किया गया है जिसके पारित होने पर संशय बरकरार है. मौजूदा कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति किसी विदेशी से विदेशी धरती पर तलाक लेता है तो वह दोबारा शादी कर सकता है. लेकिन अगर कोई देसी जोड़ा देश के बाहर तलाक लेता है, तब भी उसे शादीशुदा ही माना जाएगा.
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माल्टा
यूरोपीय देश माल्टा भी तलाक को कानूनी रूप से लागू करने में काफी पीछे रहा है. देश के संविधान में तलाक को गैरकानूनी करार दिया गया था. लेकिन साल 2011 में इसमें बदलाव किया गया और तलाक के कानून को पहली बार लागू किया गया. नए कानून के तहत पति-पत्नी दोनों या इनमें से कोई एक अब तलाक के लिए अर्जी दे सकता है.
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चिली
चिली में तलाक लिया तो जा सकता है लेकिन उसके लिए जरूरी है कि पति-पत्नी 1 से 3 साल तक अलग रह रहे हों. साथ ही तलाक लेने का उनके पास कोई कारण हो. मसलन उन्हें सामने वाले के आचरण में दुर्व्यवहार, धोखा जैसे बातों को साबित करना पड़ता है.
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मिस्र
मिस्र में बिना-गलती (नो-फॉल्ट) तलाक साल 2000 में लागू किया गया था. लेकिन अब भी देश की महिलाओं के लिए अदालतों तक पहुंचना आसान नहीं है. मौजूदा कानून के मुताबिक मुस्लिम पुरूष अपनी पत्नियों को बिना किसी कानूनी मशविरे के तलाक दे सकते हैं. लेकिन मुस्लिम महिलाएं अपने पति की सहमति से अदालत में जाकर ही तलाक ले सकती हैं.
तस्वीर: AP
जापान
जापान में अधिकतर तलाक सीधे-सीधे होते हैं. यहां शादीशुदा जो़ड़ों को बिना अदालत जाए एक पेज के फॉर्म पर दस्तखत कर तलाक तो मिल जाता है लेकिन जापान के कानून में बच्चे की कस्टडी से जुड़ा कोई प्रावधान नहीं है. यहां तक कि औरत को अगली शादी के लिए तलाक के छह महीने बाद तक का इंतजार करना पड़ता है लेकिन पुरुषों पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है.
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हेडेरियन ने कहा कि 2016 में डुटेर्टे के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद संसद के कई सदस्यों बिना किसी संस्थागत जांच और प्रक्रिया के अपना दल बदल लिया था और सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल हो गए थे. इसने लोकतंत्र की रक्षा के लिए लागू किए गए सुरक्षा उपायों को भी कुचल दिया. हेडेरियन कहते हैं, "फिलीपींस के लोगों को शायद यह उम्मीद से भरा और सुंदर लोकतंत्र लगता होगा, लेकिन सत्तावादी नेता संस्थाओं पर कब्जा करने को तैयार थे.”
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युवा और परिपक्व लोकतंत्र
सदियों के औपनिवेशिक शासन ने फिलीपींस को एक युवा लोकतंत्र बना दिया है. यह देश तीन सौ सालों से स्पेनिश शासन के अधीन था. 1946 में इस देश को आजादी मिली. हालांकि, जब 1972 में राष्ट्रपति फर्डिनांड मार्कोस ने मार्शल लॉ की घोषणा की तो लोकतंत्र कमजोर हुआ. 1986 में देश में हुई क्रांति के बाद मार्कोस को सत्ता से हटा दिया गया. इस तख्तापलट के बाद, मार्कोस के मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंदी बेनिग्रो एक्विनो की पत्नी कोराजोन एक्विनो देश की राष्ट्रपति बनी थीं. बेनिग्रो राष्ट्रपति मार्कोस के प्रमुख आलोचकों में से एक थे और 1983 में उनकी हत्या कर दी गई थी.
हालांकि, 1986 की क्रांति के बाद बनी सरकार भी न तो बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था की खामियों को दूर कर सकी और न ही सरकार में राजनीतिक परिवारों के प्रभुत्व को बेअसर कर सकी. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2022 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे अब देश की लोकतांत्रिक दिशा तय करेंगे.
देखिएः दूर-दूर तक कूड़ा ही कूड़ा
दूर दूर तक कूड़ा ही कूड़ा
फिलिपींस का नाम आते ही मन में खूबसूरत बीच और नीले आसमान का चित्र उभरता है. लेकिन इस खूबसूरत द्वीप की एक सच्चाई यह भी है..
तस्वीर: Jilson Tiu/Greenpeace
रेत की जगह कूड़ा
यह दृश्य है मनीला की खाड़ी पर कृत्रिम रूप से बनाए गए फ्रीडम आयलैंड का. इसे खास पर्यटकों को ध्यान में रख कर बनाया गया था. लेकिन जहां सुनहरी रेत की चादर होनी चाहिए, वहां आज प्लास्टिक की बोतलें और कूड़ा बिखरा है.
तस्वीर: Daniel Müller/Greenpeace
अब बहुत हुआ
तट की हालत देखते हुए ग्रीनपीस ने मामले को अपने हाथ में लेने का फैसला किया. इसमें अंतरराष्ट्रीय आंदोलन "ब्रेक फ्री फ्रॉम प्लास्टिक" भी उनका साथ दे रहा है.
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कड़ी मेहनत
बीच की साफ सफाई में लगे लोग स्वयंसेवी हैं. ग्रीनपीस के अनुसार उन्हें इस काम में कुल 10,000 घंटे का समय लगेगा. कूड़े में प्लास्टिक की बोतलों के अलावा थैले, चप्पल और रैपर जैसी चीजें शामिल है.
तस्वीर: Jilson Tiu/Greenpeace
कहां कहां से आया?
वॉलंटियर केवल कूड़ा उठाने में ही नहीं लगे हैं, बल्कि उसकी छंटाई भी कर रहे हैं. वे जानना चाहते हैं कि द्वीप पर किस किस तरह का कूड़ा है और वह कहां कहां से आया है.
तस्वीर: Daniel Müller/Greenpeace
और यह है नतीजा
ग्रीनपीस ने पाया कि बीच पर सबसे अधिक मात्रा में नेस्ले, यूनिलीवर और इंडोनेशियाई कंपनी तोराबीका मायोरा के बनाए उत्पादों का कूड़ा मौजूद है. अकेले नेस्ले के ही 9,000 से अधिक पैकेट यहां मिले हैं.
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इस्तेमाल करो और फेंको
शैंपू की बोतले हों या फिर नूडल्स के कप, बाजार ने ग्राहकों को कुछ इस तरह से नियंत्रित कर लिया है कि वे इस्तेमाल करो और फेंको के सिद्धांत पर ही चलते हैं.
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कैसा होगा भविष्य?
अगर इसी तरह आगे भी होता रहा, तो एक एक कर दुनिया भर में इसी तरह प्लास्टिक का कूड़ा फैल जाएगा जिसे समेटना असंभव होगा. ऐसे में कंपनियों को अब प्लास्टिक को रिसाइकल करने के बारे में सोचना होगा.
तस्वीर: Jilson Tiu/Greenpeace
सबसे गंदा
एक सर्वे के मुताबिक फिलीपींस समुद्र को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाले दुनिया के तीन देशों में से एक है. बाकी दो हैं चीन और इंडोनेशिया.
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सोच बदलो
ग्रीनपीस ने कुछ इलाकों को साफ तो कर दिया है लेकिन उन्हें डर है कि कुछ वक्त में एक बार फिर उतना ही कूड़ा जमा हो जाएगा. क्या किसी तरह लोगों की सोच को बदला नहीं जा सकता?
तस्वीर: Daniel Müller/Greenpeace
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राष्ट्रपति डुटेर्टे की बेटी सारा डुटेर्टे और दिवंगत तानाशाह के बेटे फर्डिनांड मार्कोस जूनियर राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार के तौर पर उभर रहे हैं. मार्कोस जूनियर ने 2016 के चुनाव में उपराष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव लड़ा था और बहुत ही कम अंतर से हार गए थे.
हेडेरियन ने म्यांमार के हालिया सैन्य तख्तापलट का हवाला देते हुए कहा, "फिलीपींस कोई एकमात्र उदाहरण नहीं है. यह सत्तावादी उदासीनता और प्रतिक्रियावादी लोकप्रियता के विभिन्न रूपों को अपनाने की व्यापक प्रवृति का हिस्सा है. दक्षिण एशिया में यह अकसर देखा जाता है.”
विपक्ष को मजबूत करने की कोशिश
राजनीतिक रणनीतिकार एलन जर्मन ने डीडब्लू को बताया कि फिलीपींस उस रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकता जो दण्ड से मुक्ति की संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को समाप्त कर रहा है. जर्मन कहते हैं, "इस प्रवृति का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत और जुझारू विपक्ष की जरूरत होगी. हालांकि, अभी तक हमारे पास ऐसा विपक्ष नहीं है और राष्ट्रपति चुनाव का समय नजदीक आ रहा है.”
उपराष्ट्रपति लियोनोर रोब्रेडो विपक्षी लिबरल पार्टी के प्रमुख सदस्य हैं, लेकिन वह राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. इस साल जून महीने में पूर्व राष्ट्रपति बेनिग्रो एक्विनो III की मौत हो गई. ऐसे में बेनिग्रो के प्रति जनता की सहानुभूति को लिबरल पार्टी के पक्ष में मोड़ा जा सकता है. जर्मन कहते हैं, "बेनिग्रो की मौत ने सत्ता पक्ष के वोट में सेंध लगा दी है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? हालांकि, एक बात तो तय है कि देश की जनता दण्ड की संस्कृति से छुटकारा पाना चाहती है.”
राजनीतिक दुष्प्रचार
सोशल मीडिया भी राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में अहम भूमिका निभाता है, लेकिन इसके गलत इस्तेमाल से असंतोष को दबा दिया जाता है. सोशल मीडिया पर नकली खाते बनाकर, ट्रोल और बॉट्स का इस्तेमाल करके जनता की राय बदलने का काम किया जाता है.
हार्वर्ड केनेडी स्कूल के एक शोधार्थी जोनाथन ओंग ने फिलीपींस में दुष्प्रचार करने वाले नेटवर्क का अध्ययन किया है. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "सोशल मीडिया में हेराफेरी की रणनीतियां दिखाती हैं कि राजनीतिक गलियारों में किस तरह से कॉरपोरेट मार्केटिंग का इस्तेमाल किया जाता है. राजनीतिक विज्ञापन पूरी तरह अनियंत्रित होता है.”
सोशल मीडिया और इसके अल्गोरिदम व्यक्तिगत स्तर पर गलत सूचना दे सकते हैं. साथ ही, साजिश के सिद्धांतों और किसी को टारगेट करके उत्पीड़न करने को बढ़ावा दे सकते हैं. ओंग कहते हैं, "इससे न केवल पत्रकारों में बल्कि आम नागरिकों को भी अपनी बात कहने में डर लगता है.”
तस्वीरों में 100 साल की कम्यूनिस्ट पार्टी की कहानी
100 साल की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कहानी
चीन पर शासन करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी सौ साल की हो गई है. 28 जून 2021 को पार्टी की सौवीं वर्षगांठ मनाई गई. देखिए, समारोह की तस्वीरें और जानिए सीसीपी के बारे में कुछ दिलचस्प बातें.
तस्वीर: Thomas Peter/REUTERS
आधुनिक चीन की संस्थापक
चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) आधुनिक चीन की संस्थापक है. 1949 में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में पार्टी ने राष्ट्रवादियों को हराकर पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की थी.
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सीसीपी की स्थापना
सीसीपी की स्थापना 1921 में रूसी क्रांति से प्रभावित होकर की गई थी. 1949 में पार्टी के सदस्यों की संख्या 45 लाख थी.
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सदस्यों की संख्या
पिछले साल के आखिर में सीसीपी के सदस्यों की संख्या नौ करोड़ 19 लाख से कुछ ज्यादा थी. 2019 के मुकाबले इसमें 1.46 प्रतिशत की बढ़त हुई थी. चीन की कुल आबादी का लगभग साढ़े छह फीसदी लोग ही पार्टी के सदस्य हैं. आंकड़े स्टैटिस्टा वेबसाइट ने प्रकाशित किए थे.
तस्वीर: Thomas Peter/REUTERS
सदस्यता
पार्टी की सदस्यता हासिल करना आसान नहीं है. इसकी एक सख्त चयन प्रक्रिया है और हर आठ आवेदकों में से एक को ही सफलता मिलती है. यह प्रक्रिया लगभग डेढ़ साल चलती है.
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कैसे हैं इसके सदस्य
सीसीपी के सदस्यों में साढ़े चार करोड़ से ज्यादा के पास जूनियर कॉलेज डिग्री है. करीब एक करोड़ 87 लाख सदस्य सेवानिवृत्त हो चुके नागरिक हैं. 2019 के आंकड़े देखें तो सदस्यों में 28 प्रतिशत किसान, मजदूर और मछुआरे थे.
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महिलाओं की संख्या
पिछले कुछ सालों में सीसीपी में महिलाओं की संख्या बढ़ी है. 2010 में पार्टी की 22.5 फीसदी सदस्य महिलाएं थीं जो 2019 में बढ़कर 28 फीसदी हो गईं. 2019 में सदस्यता लेने वालों में 42 फीसदी संख्या महिलाओं की थी.
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पार्टी पर दाग
पिछले साल के आंकड़ों के मुताबिक पार्टी में 18 प्रतिशत सदस्यों का सरकार पर भरोसा नहीं था. 2020 में छह लाख 19 हजार सीसीपी सदस्यों पर भ्रष्टाचार के मुकदमे दर्ज थे. 2010 में एक रिपोर्ट आई थी जिसके मुताबिक उस साल 32 हजार लोगों ने पार्टी छोड़ दी थी.
तस्वीर: Thomas Peter/REUTERS
सम्मेलन
हर पांच साल में सीसीपी का एक सम्मेलन होता है जिसमें नेतृत्व का चुनाव होता है. इसी दौरान सदस्य सेंट्रल कमेटी चुनते हैं, जिसमें लगभग 370 सदस्य होते हैं. इसके अलावा, मंत्री और अन्य वरिष्ठ पदों पर भी लोगों का चुनाव होता है.
तस्वीर: Thomas Peter/REUTERS
सात के हाथ में ताकत
सेंट्रल कमेटी के सदस्य पोलित ब्यूरो का चुनाव करते हैं, जिसमें 25 सदस्य होते हैं. ये 25 लोग मिलकर एक स्थायी समिति का चुनाव करते हैं. फिलहाल इस समिति में सात लोग हैं, जिन्हें सत्ता का केंद्र माना जाता है. इसमें पांच से नौ लोग तक रहे हैं.
तस्वीर: Thomas Peter/REUTERS
महासचिव
सबसे ऊपर महासचिव होता है जो राष्ट्रपति बनता है. 2012 में हू जिन ताओ से यह पद शी जिन पिंग ने लिया था. बाद में संविधान में बदलाव कर राष्ट्रपति पद की समयसीमा ही खत्म कर दी गई और अब शी जिन पिंग जब तक चाहें, इस पद पर रह सकते हैं.