2001 में अफगानिस्तान में अमेरिका के प्रवेश के बाद भारत ने अफगानिस्तान की विकास परियोजनाओं में भारी निवेश किया. लेकिन तालिबान की दोबारा सत्ता में वापसी के बाद यह स्पष्ट नहीं है कि इन परियोजनाओं का भविष्य क्या होगा.
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2001 में अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में तालिबान शासन के खात्मे के बाद भारत ने अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचे और मानवीय सहायता पर अरबों डॉलर खर्च किए. भारतीय व्यापार पर नजर रखने वाले एक विशेषज्ञ के मुताबिक, राजमार्गों के निर्माण से लेकर भोजन के परिवहन और स्कूलों के निर्माण तक भारत ने समय और धन का निवेश करते हुए अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में मदद की.
नाम न बताने की शर्त पर एक विशेषज्ञ ने कहा कि अफगानिस्तान में भारतीय परियोजनाओं के लिए नियमित रख-रखाव की जरूरत होगी और ये केवल "अनुकूल वातावरण" में ही जारी रह सकते हैं.
अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए नए नियम
तालिबान ने अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए नए नियमों का ऐलान कर दिया है. तो कैसी होगी अब महिलाओं की जिंदगी.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP
महिलाओं के लिए नए नियम
अफगानिस्तान के नए उच्च शिक्षा मंत्री अब्दुल बाकी हक्कानी ने कहा है कि महिलाएं पढ़ाई कर पाएंगी लेकिन उन्हें कुछ विशेष नियमों का पालन करना होगा.
तस्वीर: Bilal Guler/AA/picture alliance
पढ़ाई की इजाजत
महिलाओं को यूनिवर्सिटी में पढ़ने की इजाजत होगी. हक्कानी ने कहा है कि जैसा देश आज है, उसी के आधार पर नए अफगानिस्तान का निर्माण किया जाएगा ना कि 20 साल पहले के तालिबानी शासन के आधार पर.
तस्वीर: Hoshang Hashimi/AFP/Getty Images
लड़कों से अलग
महिला छात्रों को लड़कों से अलग पढ़ाया जाएगा. उन्हें इस्लामिक कानून के आधार पर कपड़े पहनने होंगे यानी सिर से पांव तक खुद को ढककर रखना होगा.
तस्वीर: Social media handout via REUTERS
पुरुष शिक्षक नहीं
हक्कानी ने कहा कि छात्राओं को पढ़ाने की जिम्मेदारी जहां तक संभव होगा शिक्षिकाओं को ही दी जाएगी. उन्होंने कहा कि शुक्र है देश में काफी महिला शिक्षक हैं.
तस्वीर: WAKIL KOHSAR/AFP/Getty Images
अलग-अलग बैठना होगा
जहां महिलाएं उपलब्ध नहीं होंगी, वहां पुरुष शिक्षक भी पढ़ा सकेंगे लेकिन विश्वविद्यालयों में छात्र-छात्राओं को अलग-अलग बैठना होगा और पर्दे में रहना होगा.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP/picture alliance
कक्षाओं में पर्दे
पुरुष और महिला छात्राओं के बीच में पर्दे लगाए जाएंगे या फिर स्ट्रीमिंग के जरिए भी पढ़ाई कराई जा सकती है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP
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अफगानिस्तान में भारत का उल्लेखनीय निवेश
हडसन इंस्टीट्यूट की इनिशिएटिव ऑन द फ्यूचर ऑफ इंडिया एंड साउथ एशिया की निदेशक अपर्णा पांडे कहती हैं कि अफगानिस्तान में भारत का निवेश "सिर्फ तालिबान के कब्जे से खत्म नहीं हो जाएगा." अफगानिस्तान में चल रही भारत की कुछ सबसे महत्वपूर्ण परियोजनाओं में से एक उस राजमार्ग का निर्माण भी शामिल है जो भारत को अफगानिस्तान से जोड़ने में मदद करता है. करीब 150 मिलियन डॉलर की लागत से अफगानिस्तान में बना जरांज-डेलाराम राजमार्ग साल 2009 में बनकर तैयार हुआ था. यह भारत को ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ व्यापार में मदद करता है. भारत के लिए यह सड़क संपर्क महत्वपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान भारत को अपने क्षेत्र में अफगानिस्तान में माल परिवहन की अनुमति नहीं देता है.
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भारत ने काबुल में अफगान संसद भवन और एक बांध के निर्माण में भी सहायता की है जिससे बिजली उत्पादन और खेतों की सिंचाई में लाभ हो रहा है. अफगानिस्तान में स्कूलों और अस्पतालों के निर्माण के अलावा भारत ने अपने सैन्य स्कूलों में अफगान अधिकारियों को प्रशिक्षित भी किया है और अन्य तकनीकी सहायता की भी पेशकश की है. 2017 में नई दिल्ली और काबुल के बीच माल ढुलाई के लिए एक सीधा हवाई गलियारा खोला गया, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा मिला. इन परियोजनाओं के अलावा भारत ने 2005 से लेकर अब तक शिक्षा, स्वास्थ्य, जल प्रबंधन और खेल सुविधाओं सहित विभिन्न लघु और मध्यम स्तर की परियोजनाओं को विकसित करने के लिए करीब 120 मिलियन डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है.
भारत ने 2015 में काबुल में एक मेडिकल डायग्नोस्टिक सेंटर स्थापित करने में मदद की. जुलाई 2020 तक भारत ने स्कूलों और सड़कों के निर्माण के लिए करीब 2.5 मिलियन डॉलर की लागत वाले पांच अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. साल 2020 के जिनेवा सम्मेलन में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि भारत अफगानिस्तान के काबुल जिले में शतूत बांध का निर्माण करेगा. इस बांध से बीस लाख से भी ज्यादा अफगानी नागरिकों को पीने का पानी उपलब्ध कराया जाना था. इसके अलावा जयशंकर ने अफगानिस्तान में 80 मिलियन डॉलर की 100 से अधिक परियोजनाओं को भी शुरू करने की घोषणा की थी. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत में अध्ययन करने के लिए अफगान छात्रों को छात्रवृत्ति की भी पेशकश की थी.
नये अफगानिस्तान की झलक
तालिबान के राज में कैसा है अफगानिस्तान, इसकी एक झलक इन चंद तस्वीरों में मिल सकती है. देखिए...
तस्वीर: Bernat Armangue/dpa/picture alliance
नया अफगानिस्तान
नया अफगानिस्तान कैसा होगा अभी स्पष्ट नहीं है. फिलहाल जो तस्वीरें आ रही हैं वे ढकी छिपी हैं. पर्दे से क्या निकलेगा, उसकी बस झलक मिल रही है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
मर्दों की दुनिया
अफगानिस्तान से जो तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं उनमें दिख रहा है जन-जीवन सामान्य हो रहा है. हेरात के इस रेस्तरां में ग्राहकों को भोजन का आनंद लेते देखा जा सकता है. लेकिन एक चीज पहले से अलग है. ग्राहकों में कोई महिला नहीं है.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY/REUTERS
पर्दे की दीवार
कॉलेजों से ऐसी तस्वीरें लगातार आ रही हैं जिनमें लड़के और लड़कियों के बीच एक पर्दे की दीवार खींच दी गई है. यह अब आधिकारिक नीति है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI AFP via Getty Images
आजादी का सवाल
हेरात में ये महिलाएं मस्जिद जा रही हैं. लेकिन बाकी कहीं जाने के लिए उनके पास आजादी कम ही है. जैसे कि देश के संस्कृति आयोग के उपाध्यक्ष अहमदुल्लाह वासिक ने कहा है कि महिलाओं के लिए खेलों की दुनिया में अब जगह नहीं है.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY/REUTERS
संघर्ष भी जारी
कुछ लोगों ने संघर्ष जारी रखा है. कई शहरों में महिलाएं विरोध प्रदर्शन करती दिख रही हैं.
तस्वीर: REUTERS
दूसरा रुख
कुछ महिलाएं कहती हैं कि वे तालिबान के राज में खुश हैं. पिछले दिनों ऐसी महिलाओं ने भी एक मार्च निकाला. इस मार्च तो तालिबानी बंदूकाधारियों की सुरक्षा मिली थी.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
जगह जगह जांच
तालिबान के बंदूकधारी जगह जगह नाके लगाए खड़े दिखते हैं. पश्चिमी कपड़े और जीवनशैली धीरे-धीरे गायब होती जा रही है.
तस्वीर: Haroon Sabawoon/AA/picture alliance
काम की तलाश
काबुल में ये मजदूर काम का इंतजार कर रहे हैं. देश के आर्थिक हालात बद से बदतर हो रहे हैं. बेरोजगारी बढ़ रही है. 98 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जा सकते हैं, जो फिलहाल 72 फीसदी पर है.
तस्वीर: Bernat Armangue/dpa/picture alliance
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भारत ने अफगानिस्तान में निवेश क्यों किया?
साल 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान पर इस्लामिक कट्टरपंथी समूह के शासन काल के दौरान भारत ने तालिबान विरोधी प्रतिरोध का समर्थन किया था. साल 2001 में तालिबान की पहली सरकार के पतन के बाद भारत को अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर मिला. साल 2010 और 2013 के बीच अफगानिस्तान में भारत के राजदूत रहे गौतम मुखोपाध्याय ने डीडब्ल्यू को बताया कि अफगानिस्तान में भारत के निवेश करने का मुख्य उद्देश्य जनता का विश्वास और राजनीतिक सद्भावना हासिल करना था. उनके मुताबिक, "यह निवेश अफगान लोगों के लिए उपहारस्वरूप थे. हालांकि भारत किसी भी तरह से वित्तीय सहायता का राजनीतिक लाभ के रूप में उपयोग नहीं करना चाहता था." लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के उद्देश्यों में अफगानिस्तान का राजनीतिक और लोकतांत्रिक परिवर्तन भी शामिल था.
शिव नाडर विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों और शासन के अध्ययन के विशेषज्ञ अतुल मिश्र कहते हैं कि भारत ने खुद को एक राज्य निर्माता के रूप में पेश किया ताकि "यह सुनिश्चित किया जा सके कि एक सुरक्षित लोकतांत्रिक और समावेशी शासन, खासतौर पर इस्लामी देश में राजनीतिक परिवर्तन के महत्व को स्पष्ट करेगा." भारत और अफगानिस्तान ने साल 2011 में एक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत भारत ने अफगान सेना की भी सहायता की. अतुल मिश्र के मुताबिक, "भारत यह भी सुनिश्चित करना चाहता था कि भारत विरोधी इस्लामी आतंकवादी अफगानिस्तान से भारतीय धरती पर हमले शुरू न करें." भारत ने इस इलाके में भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त इस्लामी आतंकवादियों को समर्थन देने का पाकिस्तान पर कई बार आरोप लगाया है.
तालिबान के महिमामंडन पर बिफरीं अफगान महिला नेता
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क्या भारत तालिबान के साथ काम कर सकता है?
भारत हमेशा से तालिबान का आलोचक रहा है और उसे वह अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान का करीबी भी मानता है. लेकिन तालिबान ने संकेत दिया है कि वह इस बार सभी क्षेत्रीय देशों के साथ अच्छे संबंध बनाना चाहेगा. मुखोपाध्याय कहते हैं कि तालिबान के साथ काम करना भारत के लिए मुश्किल साबित हो सकता है. उनके मुताबिक, "उदाहरण के लिए तालिबान के माध्यम से अफगानी लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करना एक जटिल मामला है." अपर्णा पांडेय कहती हैं कि यह महत्वपूर्ण है कि भारत अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देना जारी रखे लेकिन तालिबान के माध्यम से नहीं.
भारत को अभी भी तालिबान पर शक है. अपर्णा पांडेय कहती हैं कि साल 1999 में इंडियन एयरलाइंस के एक विमान के अपहरणकर्ताओं को तालिबान का समर्थन अभी भी अधिकांश भारतीयों को याद है, "देश से अमेरिका की वापसी और 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के तेजी से कब्जा करने के बाद भारत ने अफगानिस्तान पर अपना प्रभाव खो दिया है." विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अब यह देखने के लिए इंतजार करना चाहिए कि तालिबान का नया शासन क्षेत्रीय पड़ोसियों के साथ कैसा व्यवहार करता है. निश्चित तौर पर, तब तक अफगानिस्तान में भारतीय निवेश अधर में रहेगा.
तालिबान राज में कुछ ऐसी है आम जिंदगी
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार की स्थापना के बाद लोगों को कट्टरपंथी मिलिशिया के तहत जीवन में वापस लौटना पड़ा है. लोगों के लिए बहुत कुछ बदल गया है, खासकर महिलाओं के लिए.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
बुर्के में जिंदगी
अभी तक महिलाओं के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य नहीं है, लेकिन कई महिलाएं कार्रवाई के डर से ऐसा करती हैं. इस तस्वीर में दो महिलाएं अपने बच्चों के साथ बाजार में पुराने कपड़े खरीद रही हैं. देश छोड़कर भागे हजारों लोग अपने पुराने कपड़े पीछे छोड़ गए हैं, जो अब ऐसे बाजारों में बिक रहे हैं.
तस्वीर: Felipe Dana/AP Photo/picture alliance
गलियों और बाजारों में तालिबानी लड़ाके
पुराने शहर के बाजारों में चहल-पहल है, लेकिन सड़कों पर तालिबान लड़ाकों का भी दबदबा है. वे गलियों में सब कुछ नियंत्रित करते हैं और उनके विचारों या नियमों के खिलाफ कुछ होने पर तुरंत दखल देते हैं.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
दाढ़ी बनाने पर रोक
तालिबान ने नाइयों को दाढ़ी काटने और शेव करने से मना किया है. यह आदेश अभी हाल ही में हेलमंद प्रांत में लागू किया गया है. यह अभी साफ नहीं है कि इसे देश भर में लागू किया जाएगा या नहीं. 1996 से 2001 तक पिछले तालिबान शासन के दौरान पुरुषों की दाढ़ी काटने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था.
तस्वीर: APTN
महिलाओं के चेहरे मिटाए जा रहे
ब्यूटी पार्लर के बाहर तस्वीरें हों या विज्ञापन तालिबान महिलाओं की ऐसी तस्वीरों को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता है. ऐसी तस्वीरें हटा दी गईं या फिर उन्हें छुपा दिया गया.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
लड़कियों को अपनी शिक्षा का डर
तालिबान ने लड़कियों को प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने की इजाजत दी है, लेकिन लड़कियों ने अभी तक माध्यमिक विद्यालयों में जाना शुरू नहीं किया है. यूनिवर्सिटी में लड़के और लड़कियों को अलग-अलग बैठने को कहा गया है.
तस्वीर: Felipe Dana/AP Photo/picture alliance
क्रिकेट का खेल
क्रिकेट खेलने के लिए काबुल के चमन-ए-होजरी पार्क में युवकों का एक समूह इकट्ठा हुआ है. जबकि महिलाओं को अब कोई खेल खेलने की इजाजत नहीं है. क्रिकेट अफगानिस्तान में सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
बढ़ती बेरोजगारी
अफगानिस्तान गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. विदेशी सहायता रुकने से वित्त संकट खड़ा हो गया है. इस तस्वीर में ये दिहाड़ी मजदूर बेकार बैठे हैं.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
नमाज भी जरूरी
जुमे की नमाज के लिए लोग इकट्ठा हुए हैं. मुसलमानों के लिए शुक्रवार का दिन अहम होता है और जुमे की नमाज का भी खास महत्व होता है. इस तस्वीर में एक लड़की भी दिख रही है जो जूते पॉलिश कर रोजी-रोटी कमाती है.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
आम नागरिक परेशान, तालिबान खुश
अफगान नागरिक एक अजीब संघर्ष में जिंदगी बिता रहे हैं, लेकिन तालिबान अक्सर इसका आनंद लेते दिखते हैं. इस तस्वीर में तालिबान के लड़ाके स्पीडबोट की सवारी का मजा ले रहे हैं.