आईपीसीसी क्या है और पूरी दुनिया के लिए इतनी अहम क्यों है?
अजीत निरंजन | स्टुअर्ट ब्राउन
३० जुलाई २०२१
इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज से जुड़े वैज्ञानिक अगस्त में जलवायु को लेकर किए गए अपने मूल्यांकन की प्रारंभिक रिपोर्ट जारी करने वाले हैं. आइए जानें कि आईपीसीसी है क्या और क्यों इस पर पूरे विश्व की नजरें लगी हैं.
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आईपीसीसी जलवायु संकट के मुद्दे पर काम कर रही है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो पूरी धरती के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है. आईपीसीसी की रिपोर्ट सरकार, कारोबारी नेताओं और यहां तक कि युवा प्रदर्शनकारियों को भी प्रभावित करती है. फिर भी, ऐसे कई लोग होंगे जिन्होंने आज तक इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के बारे में शायद नहीं सुना होगा.
आईपीसीसी - संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई है जो जलवायु विज्ञान और जलवायु परिवर्तन का मूल्यांकन करती है. इससे जुड़े वैज्ञानिक तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के मौजूदा प्रभाव और इसकी वजह से भविष्य में आने वाले खतरों की समीक्षा करते हैं. साथ ही, इससे होने वाले नुकसान को कम करने और दुनिया के तापमान को स्थिर रखने के विकल्पों के बारे में बताते हैं.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 1988 में आईपीसीसी को स्थापित किया था. यह संगठन जलवायु के बारे में मूल्यांकन करके कुछ सालों के अंतराल पर रिपोर्ट जारी करता है. इसे आसान भाषा में जारी किया जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पढ़ सकें.
आईपीसीसी दुनिया भर से सैकड़ों वैज्ञानिकों को चुनती है, ताकि वे साथी वैज्ञानिकों, सरकार, और उद्योग जगत से जुड़ी रिपोर्टों की समीक्षा करने के बाद मूल्यांकन रिपोर्ट जारी कर सकें. इस दौरान जलवायु परिवर्तन की स्थिति को जानने और उसके प्रभावों को बेहतर तरीके से समझने के लिए हजारों रिपोर्टों और शोध से जुड़े लेखों का अध्ययन किया जाता है.
हाल के वर्षों में संगठन की ओर से विशेष रिपोर्टों की एक सीरीज प्रकाशित की गई थी. इसमें 1.5 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग वाले ग्रह पर रहने और जलवायु परिवर्तन की वजह से जमीन, महासागरों, और बर्फीली जगहों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जानकारी दी गई थी.
भविष्यवाणी नहीं, अनुमान
आईपीसीसी के जलवायु वैज्ञानिक इस बात पर जोर देते हैं कि वे सरकारों को यह नहीं बताते कि करना क्या है, बल्कि वे संभावित नीतिगत विकल्पों का आकलन करते हैं. वे कहते हैं कि उनका निष्कर्ष भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि वार्मिंग की वजह से होने वाली अलग-अलग घटनाओं के आधार लगाया गया अनुमान है.
बाढ़ से सूखे तकः प्रलय के मंजर
पिछले करीब दो महीनों में मौसम ने ऐसा कहर बरपाया है कि प्रलय से दृश्य नजर आए हैं. एक नजर उस मंजर पर जिसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार माना जा रहा है...
तस्वीर: Payton Bruni/AFP/Getty Images
यूरोप में अचानक बाढ़
दो महीने की बरसात के बराबर पानी जब दो दिन में बरस गया तो यूरोप की नदियों की हदें टूट गईं और जर्मनी व बेल्जिय में 209 लोगों की बलि चढ़ गई. सदियों पुराने गांव एक ही रात में बह गए.
तस्वीर: Reuters
1,000 साल का रिकॉर्ड टूटा
चीन के हेन्नान प्रांत में ऐसी बारिश हजार साल में पहली बार हुई है. दर्जनों लोग मारे गए. सबवे में पानी भर गया और जिंदगी जहां थी वहीं थम गई.
तस्वीर: AFP/Getty Images
महाराष्ट्र में कहर
भारत के महाराष्ट्र में भारी बारिश ने दर्जनों गांव डुबो दिए. डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों की जान चली गई. गांव के गांव देश के बाकी हिस्सों से कट गए.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance
कनाडा और अमेरिका में गर्मी
कनाडा और अमेरिका के कुछ राज्यों में हफ्ते भर तक ऐसी गर्मी रही कि लोगों की हालत खराब हो गई. अमेरिका के वॉशिंगटन और कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में हीट डोम बनने से हवा एक ही जगह फंस गई और तापमान 49.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया.
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जंगल की आग
अमेरिका के ऑरेगन में लगी जंगल की आग ने दो हफ्ते में ही लॉस एंजेलेस शहर के बराबर इलाका भस्म कर दिया. यह आग इतनी बड़ी है कि इसने अपना अलग वातावरण बना लिया है और इसका धुआं न्यू यॉर्क तक पहुंच रहा है.
तस्वीर: Bootleg Fire Incident Command/AP Photo/picture alliance
अमेजन खात्मे की ओर
ब्राजील का मध्यवर्ती इलाका सौ साल में सबसे बुरा सूखा झेल रहा है. इस कारण जंगलों की आग खतरा बढ़ गया है जो अमेजन के जंगलों को भी स्वाहा कर सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/V. Mendonca
भुखमरी की नौबत
मैडागास्कर में सालों से जारी सूखे और अकाल ने 11 लाख से ज्यादा लोगों को भुखमरी के कगार पर पहुंचा दिया है. हालत ऐसी है कि लोग जंगली पेड़ों के पत्ते खाकर जी रहे हैं.
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घर से बेघर
2020 में प्राकृतिक आपदाओं के कारण बेघर होने वाले लोगों की संख्या दस साल में सबसे ज्यादा रही है. 5.5 करोड़ लोगों को घर छोड़ अपने ही देश में विस्थापित होना पड़ा. करीब ढ़ाई करोड़ लोग दूसरे देशों में चले गए.
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मूल्यांकन रिपोर्ट जारी करने से पहले, आईपीसीसी सरकार और नीति निर्माताओं के लिए खास जानकारी प्रकाशित करते हैं. यह जानकारी विशेषज्ञों द्वारा तैयार की जाती है और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश इनकी पूरी तरह समीक्षा करते हैं. साथ ही, सर्वसम्मति से मंजूरी देते हैं. इस रिपोर्ट से नीति निर्माताओं को भविष्य की योजना बनाने में मदद मिलती है.
जलवायु परिवर्तन की स्थिति पर आईपीसीसी की तरफ से कुछ सालों के अंतराल पर प्रकाशित की जाने वाली मूल्यांकन रिपोर्ट इन समीक्षाओं के बिना प्रकाशित नहीं की जा सकती. पिछली रिपोर्ट 2014 में प्रकाशित की गई थी जो इस संगठन की पांचवी रिपोर्ट थी. इस रिपोर्ट के आधार पर ही जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते में यह तय किया गया कि इस सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर बनाए रखना है.
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अगली मूल्यांकन रिपोर्ट
जुलाई 2021 के अंत में, लगभग 200 देशों ने जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के पहले भाग की समीक्षा शुरू की है. अगस्त में प्रकाशित होने के बाद, संभवत: नवंबर में ग्लासगो में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में इससे जुड़े फैसलों की घोषणा की जाएगी. मूल्यांकन से जुड़ी पूरी रिपोर्ट 2022 में जारी होगी.
कई वैज्ञानिक और विशेषज्ञ आईपीसीसी की आलोचना भी करते हैं. उदाहरण के लिए, आईपीसीसी पर यह आरोप लगाया गया कि संगठन जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करने वाली ऐसी कंपनियों पर कार्रवाई करने में असफल रहा, जो उत्सर्जन में कमी करने के प्रयासों में बाधक बनें.
हालांकि, वैज्ञानिक समुदाय और मीडिया में, आईपीसीसी की रिपोर्टों को जलवायु परिवर्तन से जुड़े विस्तृत और विश्वसनीय आकलन के तौर पर देखा जाता है. 2007 में, आईपीसीसी को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
ये तापमान देखकर छूट जाएंगे पसीने
कनाडा का लैपलैंड हो या भारत, दुनिया के कई हिस्सों में इस साल गर्मी का रिकॉर्ड टूट गया है. दक्षिणी गोलार्ध में जहां सर्दियां होती हैं, वहां भी तापमान नई ऊंचाई छू रहा है. देखिए, कहां कहां टूट गया रिकॉर्ड.
तस्वीर: kavram/Zoonar/picture alliance
लिटन, कनाडा
कनाडा के शहर लिटन में 2 जुलाई को गर्मी सारी हदें तोड़ गईं जब तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस हो गया. कुछ ही दिन बाद यह शहर जंगल की आग में जल रहा था.
तस्वीर: JENNIFER GAUTHIER/REUTERS
लैपलैंड, फिनलैंड
1914 के बाद फिनलैंड की यह अब तक की सबसे तेज गर्मी है. उत्तरी फिनलैंड में 33.6 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया. स्कैंडेनेविया के कई हिस्सों में तापमान औसत से 10-15 डिग्री तक ज्यादा दर्ज हुआ है. वैज्ञानिकों ने उत्तरी यूरोप में गर्मी को उत्तरी अमेरिका के ऊपर बने डोम से संबंधित बताया है.
तस्वीर: Otto Ponto/Lehtikuva/AFP/Getty Images
नई दिल्ली, भारत
भारत की राजधानी में जुलाई की शुरुआत में ही 43 डिग्री सेल्सियस तापमान पहुंच गया था, जो नौ साल में सबसे अधिक है. मॉनसून दो हफ्ते की देरी से चल रहा है. गर्मी से भारत में पिछले 11 साल में 6,500 जानें गई हैं.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
निजन्याया पेशा, रूस
साइबेरिया भी इस बार कड़ी गर्मी झेली है. मई में तापमान 30 डिग्री के ऊपर था जो यूरोप के कई हिस्सों से ज्यादा था. सूखे और तेज गर्मी ने उत्तरी रूस के जंगलों को आग में झोंक दिया है और भारी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड वातावरण में जा रही है.
तस्वीर: Thomas Opel
न्यूजीलैंड
जब बाकी दुनिया में गर्मी होती है, दक्षिणी गोलार्ध के देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में सर्दी का मौसम होता है. लेकिन न्यूजीलैंड में इस बार सर्दी पहले से कहीं ज्यादा गर्म है. पिछले महीने तापमान 22 डिग्री पहुंच गया, जिस कारण 110 साल में सबसे गर्म जून रहा. सर्दी में इतनी गर्मी का असर खेती पर भी हो रहा है.
तस्वीर: kavram/Zoonar/picture alliance
मेक्सिको
इस साल जून में मेक्सिको में 51.4 डिग्री तापमान दर्ज हुआ है जो इतिहास में अब तक सबसे ज्यादा है. देश पिछले 30 सालों के सबसे बुरे सूखे से गुजर रहा है. बाजा कैलिफोर्निया में हालात इतने बुरे हैं कि कॉलराडो नदी वहां सूख चुकी है.
तस्वीर: Fernando Llano/AP/picture alliance
गडामेस, लीबिया
अरब प्रायद्वीप और उत्तरी अफ्रीका में भी यह साल औसत से ज्यादा गर्म रहा है. सहारा रेगिस्तान में पिछले महीने तापमान 50 डिग्री सेल्यिसस दर्ज किया गया. इस बीच पश्चिमी लीबिया में जून सामान्य से 10 डिग्री ज्यादा गर्म रहा. गडामेस में रिकॉर्ड 46 डिग्री तापमान दर्ज हुआ और राजधानी त्रिपोली में 43 डिग्री.