ईरान और तालिबान में पानी का झगड़ा क्यों?
२ जून २०२३इस टकराव से दोनों देशों के बीच तनाव गहरा गया है. दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर पहले गोलीबारी शुरू करने का आरोप लगाया.
ये झड़पें ऐसे समय हुईं, जबकि हेलमंद नदी के पानी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद बना हुआ है. इस नदी का पानी दोनों देशों के लिए एक जीवंत स्रोत है, जो खेती, आजीविका और ईकोसिस्टम की बहाली में काम आता है. अफगानिस्तान और ईरान सदियों से इस नदी के पानी के बंटवारे को लेकर टकराते रहे हैं.
हेलमंद अफगानिस्तान की सबसे लंबी नदी है. पश्चिमी हिंदुकुश पर्वत शृंखला में काबुल के पास उसका उद्गम होता है और रेगिस्तानी इलाकों से होते हुए वह दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती है. 1,150 किलोमीटर लंबी हेलमंद नदी, हामन झील में गिरती है जो अफगानिस्तान-ईरान सीमा पर फैली हुई है.
हामन झील ईरान में ताजे पानी की सबसे विशाल झील है. एक जमाने में यह दुनिया के सबसे बड़े वेटलैंडों में से एक थी. हेलमंद के पानी से भरी यह झील 4,000 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है. लेकिन अब ये सिकुड़ रही है. विशेषज्ञ इसके लिए सूखे के अलावा बांधों और पानी पर नियंत्रण को जिम्मेदार मानते हैं. ये झील इलाकाई पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी अहमियत वाली है.
ईरान और अफगानिस्तान एक-दूसरे पर क्या आरोप लगाते हैं?
दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर 1973 में हेलमंद नदी समझौता हुआ था. लेकिन संधि की न तो पुष्टि की गई और न ही पूरी तरह से अमल में आ पाई, जिसकी वजह से असहमतियां और तनाव पैदा हुए.
ईरान का आरोप है कि अफगानिस्तान उसके पानी के अधिकारों का वर्षों से हनन करता आ रहा है. उसकी दलील है कि 1973 के समझौते में पानी की जो मात्रा बांटने पर सहमति बनी थी, उससे बहुत कम पानी ईरान को मिलता है. अफगानिस्तान में ईरानी राजदूत हसन कजेमी कूमी ने सरकारी समाचार एजेंसी तस्नीम को पिछले हफ्ते दिए एक इंटरव्यू में कहा, "पिछले साल ईरान को अपने हिस्से का सिर्फ चार फीसदी पानी मिला था."
अफगानिस्तान ने ईरान के आरोपों को खारिज करते हुए बताया है कि नदी का जलस्तर जलवायु से जुड़े कारणों की वजह से कम हुआ है, जैसे कि कम बारिश. हालात की जिम्मेदार यही वजहे हैं.
ईरान के लिए चिंता का प्रमुख स्रोत है, अफगानिस्तान में हेलमंद नदी के किनारों पर बांधों, जलाशयों और सिंचाई प्रणालियों का निर्माण. ईरान को डर है कि इन परियोजनाओं की वजह से उसके पास कम पानी बहकर आता है. लेकिन अफगानिस्तान की दलील है कि देश के भीतर पानी की किल्लत से निपटना और सिंचाई क्षमता को बढ़ाना उसका हक है.
तेहरान-तालिबान समझौतों की स्थिति क्या है?
ईरान और अफगानिस्तान के बीच जमीन पर 950 किलोमीटर लंबी सीमा है. दोनों देशों के बीच कोई खास क्षेत्रीय विवाद नहीं रहे हैं.
अगस्त 2021 में जब अमेरिकी और नाटो सेनाएं अफगानिस्तान छोड़ने के आखिरी चरण में थीं, तभी राजधानी काबुल पर तालिबानियों ने कब्जा कर लिया था. इससे पहले ईरान ने अफगानिस्तान के साथ अच्छे संबंध बनाए हुए थे.
इलाके में अमेरिका की उपस्थिति के विरोध में दोनों पक्ष एकजुट थे. हालांकि ईरान ने तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने से खुद को रोका हुआ है, लेकिन व्यावहारिकता का तकाजा निभाते हुए वो मौजूदा अफगानी शासकों के साथ रिश्ते बनाए हुए है.
हामन झील के संरक्षण जैसे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ईरान का अफगानिस्तान के साथ एक करीबी रिश्ता बनाए रखना बहुत जरूरी है. लेकिन तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद से सीमा पर टकराव की घटनाएं बढ़ गई हैं.
अफगानिस्तान से पर्यावरण विशेषज्ञ नजीब आगा फहीम कहते हैं, "सत्ता पर काबिज होने से छह महीने पहले तालिबानियों का एक प्रतिनिधिमंडल ईरान गया था. पानी के अधिकारों पर समझौतों का मुद्दा भी इस मुलाकात में शामिल था. लेकिन अब लगता है कि तालिबान उन समझौतों का सम्मान नहीं करना चाहता."
अफगानिस्तान में राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार में फहीम, प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए तैनात विभाग के मंत्री थे. अगस्त 2021 में सरकार गिर गई थी. फहीम ने जल विवाद को सुलझाने के लिए टिकाऊ समाधान की जरूरत पर जोर दिया. वह कहते हैं, "विवाद को सुलझाने के लिए दोनों देशों के अधिकारियों और विशेषज्ञों को पारस्परिक तौर पर करीब आकर काम करना होगा और सूचनाएं साझा करनी होंगी. दोनों पक्ष एक-दूसरे को बताएं कि कितना पानी उपलब्ध है और ईरान के हिस्से में कितना जा रहा है."
'दोनों पक्ष छोटी अवधि के समाधान खोज रहे हैं'
अमेरिका में मौजूद एक ईरानी पर्यावरण विशेषज्ञ निक कोवसार ने बताया कि दोनों देश जल संसाधनों के कुप्रबंधन और इलाके की पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे. वह कहते हैं, "दोनों पक्ष छोटी अवधि वाले समाधानों की ओर देख रहे हैं और अपनी अंदरूनी समस्याओं को हल करना चाहते हैं. तालिबान कृषि को प्रोत्साहन देना चाहता है और ईरान सरकार ऐसा व्यवहार कर रही है कि पिछले साल देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों के बाद मानो उसे अचानक सिस्तान-बलूचिस्तान के बदहाल सूबे की सुध हो आई है."
उनका इशारा ईरान में 21 साल की महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद देश भर में भड़के आक्रोश और राजनीतिक अस्थिरता की ओर था. विरोध को क्रूरता से कुचलने के बावजूद सिस्तान-बलूचिस्तान सूबे में प्रदर्शन जारी हैं और लोग सरकार के खिलाफ सड़कों पर जमा हो रहे हैं.
हामन झील का पानी सूखाग्रस्त सूबे के लिए बहुत अहम है. ये देश के सबसे गरीब इलाकों में से है. ईरानी संसद के मुताबिक, पानी की किल्लत की वजह से पिछले दो दशकों के दौरान 25 से 30 फीसदी आबादी इलाके को छोड़कर दूसरे इलाकों के उपनगरों और शहरों में जा बसी है.
ताजा सूरतेहाल क्या हैं?
पानी की किल्लत और दूसरी आर्थिक और सामाजिक समस्याओं की वजह से पूर्वी ईरानी क्षेत्र में जनता का गुस्सा लगातार बढ़ने लगा है. ईरानी और तालिबानी फौजों के बीच ताजा झड़प से तनाव गहरा गया है.
28 मई को ईरानी सेना के कमांडर और ईरानी पुलिस के डिप्टी चीफ ने सिस्तान-बलूचिस्तान सूबे का दौरा करने के बाद कहा कि हालात काबू में हैं. सीमा पर गोलीबारी को लेकर ईरान और अफगानिस्तान, जांच आयोग बैठाने पर भी सहमत हो गए हैं.
ईरान में बहुत से लोग, तीन सैनिकों की जान चले जाने से भी गुस्से में हैं. ब्रिगेडियर जनरल अमीर अली हाजिजादेह, ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड एयर एंड स्पेस फोर्सेस के कमांडर हैं. 29 मई को तेहरान में ईरान की साइंस और टेक्नोलजी यूनिवर्सिटी में हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "कुछ लोगों का इरादा है कि तालिबान से लड़ाई छिड़ जाए. युद्ध भड़काने का ये काम हमारे दुश्मनों का है. वे सीमा पर इन झड़पों के नाम पर लड़ाई छेड़ देना चाहते हैं. लेकिन ऐसा हरगिज नहीं होगा."