एनआईए और ईडी ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़े कई ठिकानों पर छापे मारे हैं और संगठन से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार भी किया है. यह पहली बार नहीं है जब केंद्र सरकार ने पीएफआई के खिलाफ कदम उठाए हैं. जानिए क्या है पीएफआई.
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मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि एनआईए और ईडी ने कथित रूप से आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच के संबंध में कम से कम 10 राज्यों में कई स्थानों पर छापे मारे. दोनों संस्थाओं ने अभी तक इन छापों के बारे में आधिकारिक रूप से जानकारी नहीं दी है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़े कम से कम 100 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है.
जिन राज्यों में यह कार्रवाई की गई उनमें केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और असम शामिल हैं. 18 सितंबर को एनआईए ने पीएफआई के ही कुछ कार्यकर्ताओं के खिलाफ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में करीब 40 स्थानों पर छापे मारे थे. एजेंसी का कहना था कि जिन्हें गिरफ्तार किया गया उनके खिलाफ आतंकवादियों गतिविधियों का प्रशिक्षण देने के लिए शिविर लगाने के आरोप थे.
क्या है पीएफआई
पीएफआई एक इस्लामी संगठन है जिसे सरकार एक उग्रवादी संगठन बताती है. इसका गठन 2006-07 के बीच केरल के नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु के मनिता नीति पसरई नाम के तीन इस्लामी संगठनों का विलय कर किया गया था.
संगठन की अधिकांश गतिविधियों के अल्पसंख्यकों, दलितों और हाशिए पर पहुंच चुके समुदायों के अधिकारों की रक्षा पर केंद्रित होती हैं. यह सबसे ज्यादा केरल में सक्रिय रहा है, लेकिन वहां कई बार संगठन पर हत्या, दंगे, हिंसा और आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध रखने के आरोप लगते आए हैं.
2012 में ऐसे ही एक मामले पर सुनवाई के दौरान राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हाई कोर्ट को बताया था कि पीएफआई "प्रतिबंधित गंगथन सिमी का दूसरा रूप है". सरकार ने पीएफआई के कार्यकर्ताओं पर हत्या के 27 मामलों में शामिल होने का आरोप लगाया था, जिनमें से अधिकांश सीपीएम और आरएसएस के कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले थे. हालांकि अभी तक केंद्र सरकार ने पीएफआई को प्रतिबंधित संगठन घोषित नहीं किया है.
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राजनीति में सक्रिय
2020 में केंद्रीय एजेंसियों ने पीएफआई पर नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों को वित्त पोषित करने का भी आरोप लगाया था. संगठन का नाम अक्टूबर 2020 में उत्तर प्रदेश में पत्रकार सिद्दीक कप्पन की गिरफ्तारी के मामले में भी सामने आया था.
कप्पन केरल के एक मीडिया संगठन के लिए उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए सामूहिक बलात्कार मामले पर रिपोर्ट करने के लिए दिल्ली से हाथरस जा रहे थे. उन्हें रास्ते में ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस और ईडी का आरोप है कि कप्पन के पीएफआई से संबंध हैं. वो लगभग दो साल से बिना जमानत के जेल में बंद हैं.
2009 में पीएफआई के कुछ सदस्यों ने ही सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) नाम से एक राजनीतिक पार्टी शुरू की जो धीरे धीरे चुनाव लड़ने लगी. एसडीपीआई अब केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में स्थानीय चुनावों, विधान सभा चुनावों और लोक सभा चुनावों में भी लड़ती है. केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में स्थानीय चुनावों में पार्टी ने कई सीटें जीती भी हैं.
शहर-शहर शाहीन बाग
दिल्ली का गुमनाम इलाका शाहीन बाग महिलाओं के विरोध प्रदर्शन और जज्बे के लिए सुर्खियों में है. कभी सार्वजनिक या राजनीतिक मंच पर ना जाने वाली महिलाएं पिछले एक महीने से इलाके में सीएए और एनआरसी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.
तस्वीर: DW/M. Javed
शाहीन बाग की महिलाएं
पिछले एक महीने से शाहीन बाग की महिलाएं नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. महिलाएं मानती हैं कि नागरिकता कानून से मुसलमानों के साथ भेदभाव होगा और यह संविधान की प्रस्तावना के खिलाफ है.
तस्वीर: DW/M. Javed
पहली बार विरोध प्रदर्शनों में शामिल
शाहीन बाग की कई महिलाओं का कहना है कि वे जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों पर हुई कथित पुलिस ज्यादतियों और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध जता रही हैं. प्रदर्शन में अधिकतर महिलाएं ऐसी हैं जो कभी इस तरह के प्रदर्शनों में शामिल नहीं हुई हैं. इसमें कॉलेज जाने वाली छात्राओं से लेकर गृहिणियां तक शामिल हैं.
तस्वीर: DW/M. Javed
बच्चे और बूढ़ी औरतें भी बनीं हिस्सा
शाहीन बाग की औरतों की चर्चा देश और विदेश में हो रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि पहली बार इतनी बड़ी संख्या में भारत की मुसलमान महिलाएं अधिकारों की मांग करते हुए विरोध पर बैठी हुई हैं. प्रदर्शन में महिलाएं अपने बच्चों को भी लाती हैं और कई बार घर का काम निपटाने के बाद धरने पर बैठ जाती हैं.
तस्वीर: DW/M. Javed
संविधान के लिए सड़क पर
महिलाओं का कहना है कि वे संविधान को बचाने के लिए सड़क पर उतरी हैं और जब तक यह कानून वापस नहीं हो जाता उनका विरोध प्रदर्शन इसी तरह से जारी रहेगा. महिलाओं का कहना है कि वे हिंदुस्तान से बहुत प्यार करती हैं और धर्म के आधार पर देश में नागरिकता देने का विरोध करती हैं.
तस्वीर: DW/M. Javed
आम महिलाओं का आंदोलन
शाहीन बाग की महिलाओं का आंदोलन पिछले एक महीने से ज्यादा समय से शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है. विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं और घर के पुरुष उन महिलाओं का समर्थन कर रहे हैं. शाहीन बाग की महिलाओं को समर्थन देने के लिए कला, फिल्म, साहित्य, राजनीति और सामाजिक कार्यकर्ता भी आकर संबोधित कर चुके हैं.
तस्वीर: DW/M. Javed
पंजाब से आए किसान
शाहीन बाग में लगातार लोगों को अन्य जगह से समर्थन मिल रहा है. पंजाब से सैकड़ों की संख्या में लोग शाहीन बाग पहुंचे, इसमें भारतीय किसान यूनियन के सदस्य भी थे. इन लोगों ने धरने पर बैठी महिलाओं के लिए लंगर भी बनाया.
तस्वीर: DW/S. Kumar
दूसरे धर्म के लोगों का समर्थन
शाहीन बाग की महिलाएं दिन और रात, सर्दी और बारिश के बीच 24 घंटे प्रदर्शन कर रही हैं. ऐसे में उन्हें अन्य धर्मों के लोगों का भी समर्थन मिल रहा है. पिछले दिनों सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर वहां सर्व धर्म पाठ किया. इसके पहले कई धर्म गुरुओं ने मंच पर आकर संविधान की प्रस्तावना भी पढ़ी और एकता, समानता और शांति का संदेश दिया.
तस्वीर: DW/M. Javed
शाहीन बाग से सीख
पूर्वी दिल्ली के खुरेजी इलाके में भी शाहीन बाग की तर्ज पर महिलाएं विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. पहले यहां महिलाएं कम संख्या में प्रदर्शन कर रही थी लेकिन बाद में इसने बड़ा रूप ले लिया. प्रदर्शन में बुजुर्ग महिलाएं भी शामिल हैं और उनका कहना है कि वे इस कानून के खिलाफ सड़क पर आई हैं.
तस्वीर: DW/S. Kumar
कॉलेज की छात्रों का विरोध
दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज की छात्राओं ने नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध किया और संविधान की प्रस्तावना पढ़ी. दूसरी ओर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने 'वंदेमातरम्' के नारे लगाए. रामजस कॉलेज की छात्राओं ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ यह प्रदर्शन किया.
तस्वीर: DW/S. Kumar
शहर-शहर शाहीन बाग
शाहीन बाग की तर्ज पर ही कोलकाता के पार्क सर्कस में महिलाएं विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. यहां की महिलाओं ने दिल्ली के शाहीन बाग की महिलाओं से प्रेरणा लेते हुए विरोध करने के बारे में सोचा और उनका विरोध भी दिन और रात जारी है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
आंचल बना परचम
दिल्ली और कोलकाता के बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की महिलाएं मंसूर अली पार्क पर धरने पर बैठ गई हैं. यह महिलाएं नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रही हैं. हर बीतते दिन के साथ महिलाओं की संख्या भी बढ़ रही हैं. हालांकि पुलिस ने महिलाओं को धारा 144 का हवाला देते हुए वहां से हटने को कहा है लेकिन वह अब तक नहीं हटी हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
बुलंद होती आवाज
बिहार के गया में भी महिलाओं ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ आवाज बुलंद की. महिलाओं के इस तरह से आगे आने से पुरुष भी उन्हें समर्थन दे रहे हैं.
तस्वीर: DW/Rafat Islam
अधिकार के लिए संघर्ष
झारखंड के जमशेदपुर में भी हजारों की संख्या में महिलाओं ने मार्च निकालकर सीएए का विरोध किया और केंद्र सरकार से कानून वापस लेने की मांग की.