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बार-बार क्यों भड़कती है पूर्वोत्तर में हिंसा

प्रभाकर मणि तिवारी
२७ जुलाई २०२१

देश का पूर्वोत्तर इलाका आजादी के लंबे समय बाद भी अलग-थलग नजर आता है. यह इलाका अक्सर किसी बड़ी घटना या उग्रवाद की वजह से ही सुर्खियों में आता है. ताजा मामला भी इसका अपवाद नहीं है.

तस्वीर: PRABHAKAR

लंबे अरसे से असम और मिजोरम के बीच जारी सीमा विवाद रविवार को इतना भड़क गया कि न सिर्फ दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री आमने-सामने आ गए, दोनों राज्यों की पुलिस भी भिड़ गई और इसमें असम पुलिस के छह जवानों की मौत हो गई. इसके अलावा हिंसक झड़पों में पचास से ज्यादा लोग घायल हो गए. यूं तो असम का इलाके के कई राज्यों के साथ दशकों से सीमा विवाद रहा है. लेकिन इतने बड़े पैमाने पर हिंसा और मौतों का यह पहला मामला है.

दरअसल देश की आजादी के बाद असम ही इलाके का इकलौता राज्य था. उसके बाद धीरे-धीरे प्रशासनिक सहूलियत को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर अलग राज्यों का गठन किया जाता रहा. लेकिन उस समय दोनों पक्षों से विचार-विमर्श किए बिना सीमा का जिस तरह निर्धारण किया गया था, वही विवाद की मूल वजह है.

यही वजह है कि कभी मिजोरम के साथ विवाद भड़कता है, तो कभी मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के साथ. अब तक सत्ता में रहने वाली राजनीतिक पार्टियों ने भी इस गंभीर समस्या की ओर से चुप्पी साधे रखी है.

दरअसल, आजादी के बाद से ही असम, नागालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा जैसे राज्यों में उग्रवाद की समस्या ने जिस गंभीरता से सिर उठाया, उससे बाकी तमाम मुद्दे हाशिए पर चले गए. केंद्र और राज्यों का पूरा ध्यान उग्रवाद पर ही लगा रहा. हालांकि उग्रवाद पर अंकुश लगाने में कितनी कामयाबी मिली, इस पर सवाल हो सकते हैं.

इसकी वजह यह है कि तमाम दावों के बावजूद इलाके में उग्रवाद का खात्मा नहीं किया जा सका है. केंद्र की उपेक्षा और इन राज्यों में सत्ता संभालने वाली राजनीतिक पार्टियां सीमा विवाद जैसे गंभीर मुद्दों को सुलझाने की बजाय अपने हितों को साधने में ही जुटी रहीं.

इनर लाइन परमिट भी वजह

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पूर्वोत्तर में उग्रवाद अब तक तमाम राजनीतिक दलों के लिए एक ऐसा कवच रहा है जिसके पीछे सीमा विवाद और आम लोगों से जुड़ी ऐसी तमाम समस्याएं छिपती रही हैं. सरकारों के ऐसे रवैए का नतीजा खासकर सीमावर्ती इलाकों में रहने वालों को भुगतना पड़ता है. विवादित इलाके में सरकार न तो कोई विकास योजना लागू करती है और न ही वहां रहने वालों को सरकारी योजनाओं का खास लाभ मिल पाता है.

असम-मिजोरम सीमा विवाद हो या असम-मेघालय सीमा विवाद, इन दोनों राज्यों और असम के बीच अक्सर झड़प होती रही है. खासकर बीते दो-तीन वर्षों के दौरान इनकी फ्रीक्वेंसी काफी बढ़ गई है. दरअसल, जब असम से काट कर मिजोरम या मेघालय का गठन किया गया, तो इलाके में आबादी बहुत कम थी और सीमावर्ती इलाका जंगल से घिरा था.

तस्वीर: PRABHAKAR

आबादी के बढ़ते दबाव की वजह से अब लोगों की जरूरतों के हिसाब से जब जगह कम पड़ने लगी तो जमीन का मुद्दा उठने लगा. लेकिन शुरुआती दौर में ही इसे सुलझाने की बजाय राज्य सरकार और केंद्र सरकार इस ओर से आंखें मूंदे रही. मिजोरम पुलिस के हाथों असम पुलिस के छह जवानों की मौत इसी उदासीनता का नतीजा है. असम-मिजोरम सीमा विवाद को सुलझाने के लिए वर्ष 1995 से कई दौर की बातचीत हो चुकी है. लेकिन उसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक इनर लाइन परमिट (आईएलपी) प्रणाली भी असम के साथ कम से कम चार राज्यों के सीमा विवाद की प्रमुख वजह है. इलाके के चार राज्यों - अरुणाचल, नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर में इनर लाइन परमिट प्रणाली लागू है.

इसके बिना बाहर का कोई व्यक्ति इन राज्यों में नहीं पहुंच सकता. इसके अलावा वह परमिट में लिखी अवधि तक ही वहां रुक सकता है. लेकिन उन राज्यों के लोग बिना किसी रोक के असम में आवाजाही कर सकते हैं.

साठ के दशक से चल रहा है विवाद

वर्ष 1962 के बाद असम से काट कर कई नए राज्यों के गठन का सिलसिला शुरू हुआ था. लेकिन तब सीमाओं का सही तरीके से निर्धारण नहीं किया गया था. नागालैंड के साथ असम की करीब 512 किलोमीटर लंबी सीमा है और दोनों राज्यों के बीच वर्ष 1965 के बाद से सीमा विवाद को लेकर हिंसक झड़पें होती रही हैं. वर्ष 1979 और वर्ष 1985 में हुई दो बड़ी हिंसक घटनाओं में कम-से-कम 100 लोगों की मौत हुई थी. इस विवाद की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट में चल रही है.

इसी तरह असम और अरुणाचल प्रदेश बीच सीमा पर सबसे पहले वर्ष 1992 में हिंसक झड़प हुई थी. उसी समय से दोनों पक्ष एक-दूसरे पर अवैध अतिक्रमण और हिंसा भड़काने के आरोप लगाते रहते हैं. असम और मेघालय सीमा पर भी अक्सर हिंसक झड़पों की खबरें आती रहती हैं.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि आजादी के बाद प्रशासनिक सहूलियत के लिए असम से काट कर बनाए गए अलग राज्यों की सीमाएं जनजातीय इलाकों और उनकी पहचान के साथ मेल नहीं खाती हैं. इस वजह से सीमावर्ती इलाकों में लगातार तनाव बना रहता है और अक्सर हिंसक झड़पें होती रहती हैं.

असम में सिलचर की कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष मोहन देव की पुत्री सुष्मिता देब कहती हैं, "यह हिंसा पहले से चल रही थी. चिंता की बात है कि बीजेपी ने इलाके के तमाम दलों के बीच बेहतर तालमेल के लिए नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) का गठन किया था. लेकिन वह भी इस समस्या का समाधान नहीं कर पा रहा है. सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है."

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