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कानून और न्यायभारत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा बैलेट पेपर से चुनाव नहीं

१७ अप्रैल २०२४

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में ईवीएम से पड़े वोटों के वीवीपैट पर्ची की 100 फीसदी गिनती या फिर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की पुरानी व्यवस्था लागू करने को अव्यवहारिक होने का संकेत दिया.

सुप्रीम कोर्ट में बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की गई थी
सुप्रीम कोर्ट में बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की गई थीतस्वीर: Dinodia/IMAGO

सुप्रीम कोर्ट में वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपैट से निकलने वाली सभी पर्चियों का मिलान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से पड़े वोटों के साथ कराने की मांग वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई हुई.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और सामाजिक कार्यकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल ने कोर्ट में याचिका दायर ईवीएम के वोटों और वीवीपैट पर्चियों की 100 फीसदी की मिलान की मांग की है.

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बैलेट पेपर से चुनाव कराने की याचिका खारिज कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाकर्ताओं से सवाल किया, जिन्होंने ईवीएम के माध्यम से मतदान की विश्वसनीयता पर संदेह उठाया है.

"बैलेट पेपर से चुनाव कराना चुनौती"

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की बेंच ने एडीआर की याचिका पर सुनवाई के दौरान 1960 के दशक में बैलेट पेपर से चुनाव के दौर को याद किया और कहा कि देश में फिलहाल मतदाताओं की संख्या 96 करोड़ से अधिक है. ऐसे में बैलेट पेपर या वीवीपैट की 100 फीसदी गिनती की व्यवस्था से चुनाव कराना बहुत चुनौती वाला काम होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हम सभी जानते हैं कि जब बैलेट पेपर थे तो क्या होता था. आप जानते होंगे, लेकिन हम भूले नहीं हैं."

एडीआर की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट से कहा कि मौजूदा समय में एक विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ पांच ईवीएम के संबंध में वीवीपैट पर्चियों का मिलान किया जाता है, जो बहुत कम हैं.

बहस के दौरान जर्मनी का जिक्र

बहस के दौरन प्रशांत भूषण ने कहा कि जर्मनी जैसे यूरोपीय देश बैलेट पेपर पर लौट आए हैं. जस्टिस दत्ता ने कहा कि जर्मनी की छह करोड़ आबादी की तुलना में भारत में 98 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं.

जस्टिस दत्ता ने आगे कहा, "यह (भारत में चुनाव) एक बहुत बड़ा काम है. मेरा गृह राज्य, पश्चिम बंगाल, जर्मनी से भी अधिक आबादी वाला है. हमें किसी पर भरोसा करने की जरूरत है. इस तरह व्यवस्था गिराने की कोशिश न करें."

याचिकाकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल की ओर से पेश वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि उन्हें आबादी की चिंता नहीं है, बल्कि ईवीएम में "त्रुटियों की बहुत अधिक संभावना" है.

जस्टिस खन्ना ने कहा कि अगर उम्मीदवार कुल डाले गए वोटों और गिने गए वोटों के बीच विसंगति पाते हैं तो वे अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और सामाजिक कार्यकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल ने कोर्ट में याचिका दायर ईवीएम के वोटों और वीवीपैट पर्चियों की 100 फीसदी की मिलान की मांग की हैतस्वीर: Avishek Das/Zuma/IMAGO

क्या है वीवीपैट

जब कोई मतदाता अपना वोट डालने के लिए मतदान केंद्र पर जाता है तो वहां रखी ईवीएम के साथ एक और मशीन होती है इसके साथ एक ट्रांसपेरेंट बॉक्स रखा होता है. इसे वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल कहा जाता है. जब वोटर अपना वोट डाल देता है तो वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है और वह बॉक्स में गिर जाती है. उस पर्ची पर वोटर ने जिस पार्टी को वोट दिया है उसका सिंबल दर्ज होता है.

वीवीपैट की पर्ची से वोटर यह जान पाता है कि उसका वोट सही जगह गया है या नहीं और वह जिस उम्मीदवार का समर्थन करता है, उसे ही गया है या नहीं.

विवाद होने पर पर्ची को निकाला भी जाता है और उसे वेरिफाई किया जाता है.

वीवीपैट की सभी पर्चियों का मिलान ईवीएम से कराने वाली याचिका पर अगली सुनवाई अब 18 अप्रैल को होगी. यानी लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले.

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