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लद्दाख में हिंसक विरोध प्रदर्शन क्यों हुए?

२५ सितम्बर २०२५

पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के विस्तार की मांग को लेकर बुधवार को लद्दाख में हिंसा भड़क गई, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 50 के करीब लोग घायल हो गए. केंद्र ने हिंसा के लिए सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया है.

लेह में आगजनी (24 सितंबर की तस्वीर)
लेह में 24 सितंबर को कई मांगों को लेकर हिंसा भड़क गई थी (24 सितंबर की तस्वीर)तस्वीर: Tsewang Rigzin/AFP/Getty Images

लेह में बुधवार, 24 सितंबर को आंदोलनकारियों और पुलिस की झड़प में चार लोगों की मौत के बाद गुरुवार को शहर शांत था. अधिकारियों ने कहा कि बुधवार शाम से हिंसा की कोई रिपोर्ट नहीं है. प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए चार या उससे अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगा दिया है. बुधवार की पुलिस फायरिंग का विरोध करने और लेह के साथ एकजुटता दिखाने के लिए, कारगिल ने गुरुवार को हड़ताल का एलान किया. जबकि प्रशासन ने पहले से ही कारगिल में लोगों के जमा होने को प्रतिबंधित कर दिया है. स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है.

अधिकारियों ने मीडिया से कहा कि बुधवार की हिंसा के बाद स्थिति नियंत्रण में है, जिसमें चार मौतों के अलावा, 50 से अधिक लोग घायल हो गए थे. पुलिस ने उग्र प्रदर्शनकारियों पर उस वक्त फायरिंग कर दी जब उनमें से कुछ ने स्थानीय बीजेपी कार्यालय को आग लगा दी. केंद्र सरकार का कहना है कि पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई. रिपोर्टों में इसे साल 1989 के बाद लद्दाख का सबसे हिंसक दिन बताया गया.

लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा लंबे समय से मांग में है (24 सितंबर की तस्वीर)तस्वीर: Tsewang Rigzin/AFP/Getty Images

कैसे उठी चिंगारी

23 सितंबर की शाम भूख हड़ताल पर बैठे दो आंदोलनकारी 72 साल के त्सेरिंग आंगचुक और 60 वर्षीय ताशी डोल्मा की अचानक तबीयत बिगड़ गई. उन्हें गंभीर हालत अस्पताल में भर्ती कराया गया. ऐसा कहा जा रहा है कि दोनों के अस्पताल में भर्ती होने ने लेह के युवाओं को भड़काने का काम किया. इसके अगले दिन यानी 24 सितंबर की सुबह तक बंद का एलान हुआ और लेह के शहीद मैदान में भीड़ जमा हो गई. इसके बाद आंदोलनकारियों ने हिंसक रूप ले लिया.

पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "दो आंदोलनकारियों की स्थिति बिगड़ गई थी और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. हो सकता है कि यही हिंसक प्रदर्शन की तात्कालिक वजह बना." यह आंदोलनकारी पिछले 35 दिनों से अनशन पर थे.

क्या हैं मांगें

आंदोलन के केंद्र में चार मांगें हैं: लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची का विस्तार, लेह और कारगिल के लिए अलग लोकसभा सीटें और रोजगार में आरक्षण. प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि छठी अनुसूची के तहत मिलने वाली सुरक्षा के बिना, लद्दाख के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र, भूमि अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान को गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है.

भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत जातीय और जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदों और क्षेत्रीय परिषदों को अपने-अपने क्षेत्रों के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया है. फिलहाल, भारत के चार राज्य मेघालय, असम, मिजोरम और त्रिपुरा के दस जिले इस अनुसूची का हिस्सा हैं. वांगचुक की मांग है कि लद्दाख को भी इस अनुसूची के तहत विशेषाधिकार दिए जाएं.

इन मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन सालों से हो रहे हैं और वांगचुक ने कई बार भूख हड़ताल भी की है. यह मुद्दा 2019 से चला आ रहा है, जब 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया था और पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था. इसके बाद जम्मू-कश्मीर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बना जबकि लेह और कारगिल को मिलाकर लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था.

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा तो है लेकिन लद्दाख में कोई विधानसभा नहीं है. ना ही लद्दाख में कोई स्थानीय परिषद है. लद्दाख की राजनीतिक और कानूनी स्थिति तब से विवादास्पद बनी हुई है, जो केंद्र शासित प्रदेश के लोगों को प्रत्यक्ष केंद्रीय प्रशासन के तहत लाती है. पिछले छह साल से लद्दाख के लोग राज्य का दर्जा और लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं.

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विरोध प्रदर्शनों में वांगचुक की भूमिका क्या है?

हाल के वर्षों में, वांगचुक ने लद्दाख के प्रशासन में स्वायत्तता से संबंधित मुद्दों को जोर शोर से उठाया है. वांगचुक ने कहा है कि छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा 2019 में बीजेपी द्वारा किया गया एक चुनावी वादा था और भारत सरकार को अपना वादा निभाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि लद्दाख के लोगों ने सत्ता के विकेंद्रीकरण की मांग की है क्योंकि वे मानते हैं कि "नौकरशाही के निचले स्तर पर बैठे लोग औद्योगिक शक्तियों और कॉरपोरेट घारानों से प्रभावित" हो सकते हैं, जो लद्दाख में "खनन करने की योजना" बना रहे हैं.

इससे पहले, पिछले साल मार्च में गृह मंत्रालय के साथ बातचीत के दो दिन बाद, लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस वार्ता से बाहर हो गई, जिसके बाद वांगचुक और अन्य लोगों ने लेह में नमक और पानी के साथ आमरण अनशन किया. यह अनशन 21 दिनों तक चला.

पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुकतस्वीर: Ab Rauoof Ganie/DW

इसके बाद इन्हीं मांगों को लेकर वांगचुक और 150 अन्य लोगों ने सितंबर 2024 में लेह से दिल्ली तक एक पैदल यात्रा निकाली थी. हालांकि पुलिस ने उन्हें दिल्ली में दाखिल होने से पहले ही रोक लिया.

ताजा मामले में भी वांगचुक पिछले 15 दिनों से अनशन पर थे और उन्होंने 24 सितंबर की हिंसा के बाद अपना अनशन खत्म कर दिया. एक्स पर पोस्ट किए गए एक बयान में वांगचुक ने लोगो ने शांति की अपील की. उन्होंने कहा, "युवा पीढ़ी पांच साल से बेरोजगार हैं, एक के बाद एक बहाने करके उन्हें नौकरियों से बाहर रखा जा रहा है और लद्दाख को संरक्षण नहीं दे रहे हैं."

केंद्र सरकार ने क्या कहा

केंद्र ने बुधवार को आरोप लगाया कि लद्दाख में भीड़ को सोनम के "उत्तेजक बयानों" द्वारा भड़काया गया, और कुछ "राजनीतिक रूप से प्रेरित" व्यक्ति सरकार और लद्दाखी समूहों के प्रतिनिधियों के बीच चल रही बातचीत में हुई प्रगति से खुश नहीं थे.

गृह मंत्रालय ने बयान में कहा है कि सोनम वांगचुक ने कई नेताओं द्वारा अपील करने के बाद भी अपना अनशन नहीं रोका और अरब स्प्रिंग-शैली के प्रदर्शनों और नेपाल में जेन-जी के प्रदर्शनों का उल्लेख करते हुए लोगों को गुमराह किया.

बयान में आगे कहा गया, "24 सितंबर को सुबह करीब साढ़े 11 बजे, उनके भड़काऊ भाषणों से उत्तेजित हुई भीड़ अनशन स्थल से निकल गई और एक राजनीतिक पार्टी के दफ्तर और सीईसी लेह के सरकारी कार्यालय पर हमला कर दिया. उन्होंने इन कार्यालयों में आग लगा दी, सुरक्षाकर्मियों पर हमला किया और पुलिस वाहन को जला दिया."

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बयान के मुताबिक, "बेकाबू भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर हमला किया जिसमें 30 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी घायल हो गए. भीड़ ने सार्वजनिक संपत्तियों पर हमला करना और पुलिसकर्मियों पर हमला करना जारी रखा. आत्मरक्षा में पुलिस को गोलीबारी करनी पड़ी, जिसमें दुर्भाग्य से कुछ लोगों की मौत होने की खबर है."

बयान में कहा गया है, "यह सबको मालूम है कि भारत सरकार सक्रिय रूप से शीर्ष लेह एपेक्स बॉकी और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के साथ सक्रिय बातचीत करती रही है. उच्च शक्ति वाली समिति के औपचारिक चैनल के साथ-साथ उप-समिति और नेताओं के साथ कई अनौपचारिक बैठकों के माध्यम से बैठकों की श्रृंखला उनके साथ आयोजित की गई थी और इसके उल्लेखनीय नतीजे सामने आए हैं."

लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने हिंसा की निंदा की है और इसे "दिल से दहलाने वाला" करार दिया. उन्होंने कहा कि लद्दाख की शांति को भंग करने की साजिश रचने वालों को नहीं छोड़ा जाएगा.

आमिर अंसारी डीडब्ल्यू के दिल्ली स्टूडियो में कार्यरत विदेशी संवाददाता.
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