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विज्ञानयूक्रेन

अगर यूक्रेन पर परमाणु बम गिरा दिया गया तो क्या होगा?

क्लेयर रोठ
१८ नवम्बर २०२२

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए परमाणु बम का असर पूरी दुनिया आज भी देख रही है.

तस्वीर: AP

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध का फिलहाल कोई अंत नजर नहीं आ रहा है. जमीनी और हवाई हमलों के बीच अब परमाणु हमले की धमकी की चर्चा हो रही है. ऐसे में लोगों के मन में मुख्य रूप से दो आशंकाएं उभर रही हैं. पहली यह कि अगर यूक्रेन के परमाणु संयंत्रों में किसी तरह का हादसा होता है, तो क्या होगा? और दूसरी यह कि अगर यूक्रेन पर परमाणु बम से हमला कर दिया जाता है, तब क्या होगा?

डर्टी बम जान लेने से ज्यादा डर फैलाता है

इस सीरीज के पहले लेख में हमने 2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र और 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल बिजली संयंत्र के हादसे पर चर्चा की. इन दोनों हादसों ने आस-पास के लोगों के स्वास्थ्य को किस तरह से प्रभावित किया, इसका विश्लेषण किया. हमने उन हादसों की तुलना जापोरिझिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र से की और बताया कि अगर यहां ऐसा हादसा होता है, तो क्या असर होगा. इसकी वजह यह है कि जापोरिझिया यूक्रेन में चल रहे युद्ध के केंद्र में है.

आज इस सीरीज के दूसरे लेख में हम आपको बताएंगे कि 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु हमले से लोगों पर क्या असर पड़ा. उनके स्वास्थ्य किस तरह से प्रभावित हुए. साथ ही, विशेषज्ञों की मदद से यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि अगर आज के समय में युद्ध में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होता है, तो उसका क्या असर होगा.

टैक्टिकल परमाणु हथियार क्या होता है

हथियार के मुताबिक तय होता है असर

परमाणु हमले के असर की भविष्यवाणी करना कठिन है, क्योंकि यह इस बात पर ज्यादा निर्भर करता है कि किसी हथियार का इस्तेमाल कैसे और कहां किया जाता है.

अमेरिका स्थित यूनियन ऑफ कंसर्नड साइंटिस्ट्स (यूसीएस) में ग्लोबल सिक्योरिटी प्रोग्राम के वरिष्ठ वैज्ञानिक डिलन स्पाउल्डिंग ने कहा कि हवा में विस्फोट करने और जमीन पर विस्फोट करने वाले हथियारों की मारक क्षमता अलग-अलग होती है.

स्पाउल्डिंग ने कहा, "जमीन पर विस्फोट करने वाले हथियार के मामले में आपको हमले के लंबे समय तक पड़ने वाले असर को लेकर ज्यादा चिंता करनी होगी, क्योंकि आप रेडियोधर्मी रूप से पृथ्वी को सक्रिय कर रहे होते हैं. जबकि, हवा में विस्फोट होने वाले हथियार का लंबे समय तक इस तरह का ज्यादा असर नहीं होता है.”

स्पाउल्डिंग ने कहा कि अलग-अलग रणनीतिक कारणों से अलग-अलग हथियारों में विस्फोट किया जा सकता है. हवा में विस्फोट करने पर एक साथ कई लोगों की मौत हो सकती है. हालांकि, इससे आसपास की आबादी और पर्यावरण में, विकिरण का दीर्घकालिक प्रभाव कम होता है.

जबकि, पृथ्वी की सतह के पास हथियार को विस्फोट करने से एक साथ कई लोगों की मौत हो सकती है. साथ ही, आसपास के पर्यावरण और खाद्य आपूर्ति पर लंबे समय तक विकिरण का असर रहेगा.

द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में नागासाकी और हिरोशिमा पर अमेरिकी बमबारी और यूक्रेन में 1986 के चेर्नोबिल हादसे के मामले से इस बात की गंभीरता को अच्छी तरह समझा जा सकता है. हमले के बाद के महीनों में, नागासाकी में करीब 60 से 80 हजार और हिरोशिमा में 70 हजार से लेकर 1,35,000 लोग मारे गए.

हिरोशीमा में गिरा था परमाणु बमतस्वीर: Photo12/AnnRonanPictureLibrary/imago images

इन बम विस्फोटों ने, 1986 में चेर्नोबिल हादसे की तुलना में पर्यावरण में लगभग 40 गुना कम विकिरण छोड़ा. हालांकि, विस्फोट के तुरंत बाद के महीनों में हजारों लोगों की मौत हो गई.

फिलहाल, लोग नागासाकी और हिरोशिमा में सुरक्षित रूप से रह सकते हैं. उन्हें विकिरण का डर नहीं है, लेकिन चेर्नोबिल क्षेत्र अब भी रेडियोधर्मी और निर्जन इलाका बना हुआ है. वहां लोग नहीं रह सकते हैं.

जापानी शहरों पर परमाणु हमले की वजह से वहां ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) के मामले तेजी से बढ़े, खासकर बच्चों में. वहीं, अन्य तरह के कैंसर के मामले भी बढ़े, लेकिन इससे प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या अपेक्षाकृत कम थी.

विकिरण का प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है. कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि प्रभावित इलाके में विस्फोट के समय मौजूद बच्चों के सिर के आकार छोटे हो जाते हैं, शारीरिक विकास धीमा हो जाता है, और वे मानसिक रूप से भी कमजोर होते हैं. हालांकि, कई अन्य शोध में बताया गया है कि बमबारी के बाद गर्भधारण करने वाली महिलाओं के बच्चों के मामलों में ऐसा नहीं था.

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ज्यादा घातक हैं मौजूदा परमाणु हथियार

हथियार विशेषज्ञ सामरिक (टेक्टिकल) और रणनीतिक परमाणु हथियारों के बीच अंतर करते हैं. वे कहते हैं कि सामरिक हथियार कुछ ही दूरी तक मार कर सकते हैं और लड़ाई जीतने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. वहीं, रणनीतिक हथियार लंबी दूरी तक मार कर सकते हैं और युद्ध जीता सकते हैं.

हिरोशिमा और नागासाकी में इस्तेमाल किए गए बमों को उस समय का रणनीतिक हथियार माना गया था. इन हथियारों की बदौलत युद्ध जीता गया. हालांकि, स्पाउल्डिंग ने कहा कि हाल के दशकों में परमाणु हथियारों की क्षमता इस हद तक बढ़ गई है कि द्वितीय विश्वयुद्ध को खत्म करने के लिए जिस रणनीतिक हथियार का इस्तेमाल किया गया था उसकी तुलना में आज के सामरिक हथियार ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं.

परमाणु युद्ध के खिलाफ अभियानतस्वीर: Takuya Yoshino/AP/picture alliance

उन्होंने आगे कहा, "आज के दौर में मौजूद कई हथियार हिरोशिमा और नागासाकी में इस्तेमाल किए गए हथियार की तुलना में काफी ज्यादा घातक हैं. असर के मामले में वे 80 गुना तक ज्यादा शक्तिशाली हैं.”

इसलिए, नागासाकी और हिरोशिमा के साथ तुलना करके, यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अगर आज की तारीख में परमाणु हमला होता है, तो उसका कितना भयावह असर होगा. हालांकि, इस असर के अनुमान को समझने का प्रयास किया गया है.

खाद्य आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने से मारे जाएंगे लाखों लोग

न्यू जर्सी स्थित स्टीवंस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विज्ञान और परमाणु हथियारों के इतिहासकार एलेक्स वेलरस्टीन ने असर की तुलना के लिए न्यूकेमैप नामक एक वेबसाइट बनाई है. यहां जमीन पर और आकाश में किए जाने वाले विस्फोट के असर की तुलना की गई है.

इसके बाद, नेचर फूड पत्रिका में अगस्त महीने में छपे एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि अगर अमेरिका और रूस के बीच एक सप्ताह के लिए रणनीतिक परमाणु हथियारों का युद्ध छिड़ जाता है, तो पर्यावरण, जनसंख्या और वैश्विक खाद्य आपूर्ति पर क्या असर होगा.

अध्ययन के लेखकों के अनुमान के मुताबिक, 36 करोड़ लोग तुरंत मारे जाएंगे. युद्ध के दो साल बाद, पांच अरब लोग भूख से मर जाएंगे. विस्फोट की वजह से काफी ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होगा और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला पूरी तरह बाधित हो जाएगी.

शोधकर्ताओं ने परमाणु युद्ध के अन्य मॉडल के जरिए भी अलग-अलग तरह के असर का अनुमान लगाया है. उदाहरण के लिए, अगर भारत और पाकिस्तान के बीच 2025 में एक सप्ताह तक परमाणु युद्ध होता है, तो कैसा मंजर होगा. इन दोनों एशियाई देशों के पास अमेरिका और रूस की तुलना में कम परमाणु हथियार हैं, लेकिन इसके बावजूद यह अनुमान लगाया गया कि 16.4 करोड़ लोग तुरंत मारे जाएंगे और युद्ध के दो साल बाद 2.5 अरब लोग भूख से मर जाएंगे.

अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर एलन रोबॉक नेचर पत्रिका में छपे अध्ययन के लेखकों में से एक हैं. पहले के शोध में, रोबॉक ने अनुमान लगाया कि हिरोशिमा और नागासाकी में विस्फोट की वजह से 0.5 टेराग्राम धुंए का उत्सर्जन हुआ था. अगर अमेरिका और रूस के बीच युद्ध होता है, तो करीब 150 टेराग्राम धुंए का उत्सर्जन होगा. भारत और पाकिस्तान के मामले में 16 से 47 टेराग्राम धुंए का उत्सर्जन होगा.

रोबॉक ने कहा कि अध्ययन में रणनीतिक हथियारों के प्रभाव के आधार पर अनुमान लगाया गया है. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "परमाणु हथियार के किसी भी तरह के इस्तेमाल से रूस और नाटो का युद्ध पूरी तरह से परमाणु युद्ध में तब्दील हो जाएगा और यह परमाणु सर्दी पैदा करेगा. एक बार परमाणु युद्ध शुरू होने के बाद इसके रूकने की संभावना नहीं होती है. आतंक, भय, और गलत जानकारी की वजह से सैन्य कमांडर अपने पास मौजूद परमाणु हथियार का इस्तेमाल कर सकते हैं.”

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