अगर यूक्रेन पर परमाणु बम गिरा दिया गया तो क्या होगा?
क्लेयर रोठ
१८ नवम्बर २०२२
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए परमाणु बम का असर पूरी दुनिया आज भी देख रही है.
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रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध का फिलहाल कोई अंत नजर नहीं आ रहा है. जमीनी और हवाई हमलों के बीच अब परमाणु हमले की धमकी की चर्चा हो रही है. ऐसे में लोगों के मन में मुख्य रूप से दो आशंकाएं उभर रही हैं. पहली यह कि अगर यूक्रेन के परमाणु संयंत्रों में किसी तरह का हादसा होता है, तो क्या होगा? और दूसरी यह कि अगर यूक्रेन पर परमाणु बम से हमला कर दिया जाता है, तब क्या होगा?
इस सीरीज के पहले लेख में हमने 2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र और 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल बिजली संयंत्र के हादसे पर चर्चा की. इन दोनों हादसों ने आस-पास के लोगों के स्वास्थ्य को किस तरह से प्रभावित किया, इसका विश्लेषण किया. हमने उन हादसों की तुलना जापोरिझिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र से की और बताया कि अगर यहां ऐसा हादसा होता है, तो क्या असर होगा. इसकी वजह यह है कि जापोरिझिया यूक्रेन में चल रहे युद्ध के केंद्र में है.
आज इस सीरीज के दूसरे लेख में हम आपको बताएंगे कि 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु हमले से लोगों पर क्या असर पड़ा. उनके स्वास्थ्य किस तरह से प्रभावित हुए. साथ ही, विशेषज्ञों की मदद से यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि अगर आज के समय में युद्ध में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होता है, तो उसका क्या असर होगा.
परमाणु हमले के असर की भविष्यवाणी करना कठिन है, क्योंकि यह इस बात पर ज्यादा निर्भर करता है कि किसी हथियार का इस्तेमाल कैसे और कहां किया जाता है.
अमेरिका स्थित यूनियन ऑफ कंसर्नड साइंटिस्ट्स (यूसीएस) में ग्लोबल सिक्योरिटी प्रोग्राम के वरिष्ठ वैज्ञानिक डिलन स्पाउल्डिंग ने कहा कि हवा में विस्फोट करने और जमीन पर विस्फोट करने वाले हथियारों की मारक क्षमता अलग-अलग होती है.
हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिरने की कहानी
हिरोशिमा और नागासाकी पर 75 साल पहले गिरा परमाणु बम यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिकों के छह साल लंबे खुफिया मिशन का नतीजा था. इन छह सालों की कहानी तस्वीरों में देखिए...
तस्वीर: Hiroshima Peace Memorial Museum
परमाणु बम का विचार
अल्बर्ट आइंस्टाइन ने 1939 में पत्र लिख कर अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी रूजवेल्ट को नाभिकीय संलयन की विनाशकारी ताकत के बारे में बताया. जर्मन रसायनविज्ञानी ऑटो हान ने इसकी खोज की थी. पत्र में कहा गया था कि इस प्रक्रिया का नतीजा "एक नए तरह का अत्यंत शक्तिशाली बम" होगा. रूजवेल्ट ने इसके बाद यूरेनियम पर सलाहकार बोर्ड का गठन किया.
तस्वीर: picture alliance/CPA Media Co. Ltd
पर्ल हार्बर पर हमला
7 दिसंबर 1941 को जापान के सैकड़ों युद्धक विमानों ने पर्ल हार्बर में मौजूद अमेरिकी बेस का ज्यादातर हिस्सा तबाह कर दिया. इस हमले में हजारों सैनिकों की मौत हुई. इसके अगले ही दिन अमेरिका ने दूसरे विश्वयुद्ध में उतरने का एलान कर दिया.
तस्वीर: AP
2 अरब डॉलर का बजट
साल 1942 में अगस्त के महीने में अमेरिका ने आधिकारिक रूप से परमाणु बम बनाने के लिए एक बेहद खुफिया कार्यक्रम का फैसला किया. इस प्रोजेक्ट का नाम बाद में मैनहटन प्रोजेक्ट रखा गया. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने 2 अरब डॉलर का बजट दिया.
तस्वीर: picture-alliance/Everett Collection
न्यू मेक्सिको की खुफिया लैब
न्यू मेक्सिको के लॉस अलामोस की एक खुफिया लैब में बम बनाने का काम शुरू हुआ. इसके लिए रॉबर्ट ओपेनहाइमर को साइंटिफिक डायरेक्टर बनाया गया. इस प्रोजेक्ट के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के शीर्ष भौतिकविज्ञानियों की टीम बनी. इसके साथ ही हजारों ऐसे लोग भी काम पर लगे जो नाजी शासन से भाग कर आए थे.
1945 में 9 और 10 मार्च को अमेरिका के लड़ाकू विमानों ने जापान में टोक्यो और दूसरे शहरों पर भारी बमबारी की. इस बमबारी ने केवल राजधानी में ही करीब एक लाख लोगों की जीवनलीला खत्म कर दी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
ओकिनावा की लड़ाई
26 मार्च को ओकिनावा की लड़ाई शुरू हुई. अगले तीन महीने में इस लड़ाई में एक लाख से ज्यादा जापानी सैनिकों और इतनी ही संख्या में आम लोगों की बलि चढ़ गई. 12 हजार अमेरिकी सैनिक भी मारे गए. अमेरिकी अधिकारियों ने इस लड़ाई के आधार पर ही परमाणु बम के इस्तेमाल को न्यायोचित ठहराया. उनकी दलील थी कि जापान की मुख्य भूमि पर हमले में इससे भी ज्यादा लोगों की जान जाती.
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अमेरिका में सत्ता परिवर्तन
12 अप्रैल को रूजवेल्ट की मौत हुई और हैरी ट्रूमैन अमेरिका के राष्ट्रपति बने. तब उन्हें अब तक बेहद खुफिया रहे मैनहटन प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी मिली. यह तस्वीर 1945 की है.
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नाजी जर्मनी का समर्पण
8 मई को जर्मनी ने समर्पण कर दिया और इसके साथ ही दूसरे विश्वयुद्ध में यूरोप की लड़ाई खत्म हो गई. हालांकि इसके बाद भी एशिया और प्रशांत के क्षेत्र में युद्ध अभी जोरों पर चल रहा था. मई और जुलाई के बीच परमाणु बम के हिस्से टिनियान लाए गए. यह मारियाना चेन में वो द्वीप था जहां से बी-29 बॉम्बर विमान जापान पहुंच सकता था.
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"ट्रिनिटी टेस्ट"
16 जुलाई को न्यू मेक्सिको के अलामोगोर्दो के पास सुबह 5.30 बजे ट्रिनिटी टेस्ट किया गया. इस टेस्ट में परमाणु बम की ताकत समझ में आई और परमाणु युग की शुरुआत हो गई.
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ट्रूमैन की मंजूरी
"ट्रिनिटी टेस्ट" के सफल होने के बाद 25 जुलाई को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने जापान पर परमाणु बम गिराने के मिशन को मंजूरी दे दी. इसमें उपलब्ध होते ही अतिरिक्त बमों को गिराने की मंजूरी भी शामिल थी.
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जापान को चेतावनी
26 जुलाई को पोट्सडाम घोषणा के बाद ब्रिटेन, चीन और अमेरिका ने जापान को चेतावनी दी कि वो या तो समर्पण करे या फिर "तुरंत और पूर्ण विनाश का" सामना करे. जापान ने इस चेतावनी की अनदेखी करने का फैसला किया हालांकि इसके लिए "मोकुसात्सु" शब्द का प्रयोग किया गया जिसका मतलब है "नो कमेंट."
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
विनाश का पल
6 अगस्त को सुबह 8.15 बजे अमेरिकी बी29 बॉम्बर "इनोला गे" ने 9000 पाउंड का परमाणु बम हिरोशिमा पर गिराया. दिसंबर के महीने तक इसकी वजह से 1लाख 40 हजार लोगों की मौत हो गई. ट्रूमैन ने जापानी नेताओं को कहा अगर वो समर्पण नहीं करेंगे तो वो हवा से बर्बादी की ऐसी बारिश देखेंगे जैसी पृथ्वी पर कभी नहीं देखी गई.
तस्वीर: Hiroshima Peace Memorial Museum
नागासाकी का विध्वंस
9 अगस्त को अमेरिका ने दूसरा परमाणु बम जापान के नागासाकी पर गिराया. समय था सुबह 11.02 बजे का. परमाणु बम के इस हमले में 74000 लोगों की जान चली गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
जापान का समर्पण
15 अगस्त को जापान के सम्राट हिरोहितो ने घोषणा की कि उनका देश युद्ध हार गया है. हालांकि इसके बाद भी वो देश के सम्राट बने रहे और युद्ध के बाद देश के पुनर्निर्माण में अहम भूमिका निभाई.
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रूस का हमला
हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरने के चार साल बाद 29 अगस्त 1949 को रूस ने अपने परमाणु बम का कजाखस्तान में परीक्षण किया और परमाणु बम रखने वाला दूसरा देश बन गया. विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में उसने जापान पर हमला किया और उसके कई इलाकों पर कब्जा कर लिया. कुरील द्वीप उनमें से एक था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
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स्पाउल्डिंग ने कहा, "जमीन पर विस्फोट करने वाले हथियार के मामले में आपको हमले के लंबे समय तक पड़ने वाले असर को लेकर ज्यादा चिंता करनी होगी, क्योंकि आप रेडियोधर्मी रूप से पृथ्वी को सक्रिय कर रहे होते हैं. जबकि, हवा में विस्फोट होने वाले हथियार का लंबे समय तक इस तरह का ज्यादा असर नहीं होता है.”
स्पाउल्डिंग ने कहा कि अलग-अलग रणनीतिक कारणों से अलग-अलग हथियारों में विस्फोट किया जा सकता है. हवा में विस्फोट करने पर एक साथ कई लोगों की मौत हो सकती है. हालांकि, इससे आसपास की आबादी और पर्यावरण में, विकिरण का दीर्घकालिक प्रभाव कम होता है.
जबकि, पृथ्वी की सतह के पास हथियार को विस्फोट करने से एक साथ कई लोगों की मौत हो सकती है. साथ ही, आसपास के पर्यावरण और खाद्य आपूर्ति पर लंबे समय तक विकिरण का असर रहेगा.
द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में नागासाकी और हिरोशिमा पर अमेरिकी बमबारी और यूक्रेन में 1986 के चेर्नोबिल हादसे के मामले से इस बात की गंभीरता को अच्छी तरह समझा जा सकता है. हमले के बाद के महीनों में, नागासाकी में करीब 60 से 80 हजार और हिरोशिमा में 70 हजार से लेकर 1,35,000 लोग मारे गए.
इन बम विस्फोटों ने, 1986 में चेर्नोबिल हादसे की तुलना में पर्यावरण में लगभग 40 गुना कम विकिरण छोड़ा. हालांकि, विस्फोट के तुरंत बाद के महीनों में हजारों लोगों की मौत हो गई.
फिलहाल, लोग नागासाकी और हिरोशिमा में सुरक्षित रूप से रह सकते हैं. उन्हें विकिरण का डर नहीं है, लेकिन चेर्नोबिल क्षेत्र अब भी रेडियोधर्मी और निर्जन इलाका बना हुआ है. वहां लोग नहीं रह सकते हैं.
जापानी शहरों पर परमाणु हमले की वजह से वहां ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) के मामले तेजी से बढ़े, खासकर बच्चों में. वहीं, अन्य तरह के कैंसर के मामले भी बढ़े, लेकिन इससे प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या अपेक्षाकृत कम थी.
विकिरण का प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है. कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि प्रभावित इलाके में विस्फोट के समय मौजूद बच्चों के सिर के आकार छोटे हो जाते हैं, शारीरिक विकास धीमा हो जाता है, और वे मानसिक रूप से भी कमजोर होते हैं. हालांकि, कई अन्य शोध में बताया गया है कि बमबारी के बाद गर्भधारण करने वाली महिलाओं के बच्चों के मामलों में ऐसा नहीं था.
हथियार विशेषज्ञ सामरिक (टेक्टिकल) और रणनीतिक परमाणु हथियारों के बीच अंतर करते हैं. वे कहते हैं कि सामरिक हथियार कुछ ही दूरी तक मार कर सकते हैं और लड़ाई जीतने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. वहीं, रणनीतिक हथियार लंबी दूरी तक मार कर सकते हैं और युद्ध जीता सकते हैं.
हिरोशिमा और नागासाकी में इस्तेमाल किए गए बमों को उस समय का रणनीतिक हथियार माना गया था. इन हथियारों की बदौलत युद्ध जीता गया. हालांकि, स्पाउल्डिंग ने कहा कि हाल के दशकों में परमाणु हथियारों की क्षमता इस हद तक बढ़ गई है कि द्वितीय विश्वयुद्ध को खत्म करने के लिए जिस रणनीतिक हथियार का इस्तेमाल किया गया था उसकी तुलना में आज के सामरिक हथियार ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं.
उन्होंने आगे कहा, "आज के दौर में मौजूद कई हथियार हिरोशिमा और नागासाकी में इस्तेमाल किए गए हथियार की तुलना में काफी ज्यादा घातक हैं. असर के मामले में वे 80 गुना तक ज्यादा शक्तिशाली हैं.”
इसलिए, नागासाकी और हिरोशिमा के साथ तुलना करके, यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अगर आज की तारीख में परमाणु हमला होता है, तो उसका कितना भयावह असर होगा. हालांकि, इस असर के अनुमान को समझने का प्रयास किया गया है.
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खाद्यआपूर्तिश्रृंखलाबाधितहोनेसेमारेजाएंगेलाखोंलोग
न्यू जर्सी स्थित स्टीवंस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विज्ञान और परमाणु हथियारों के इतिहासकार एलेक्स वेलरस्टीन ने असर की तुलना के लिए न्यूकेमैप नामक एक वेबसाइट बनाई है. यहां जमीन पर और आकाश में किए जाने वाले विस्फोट के असर की तुलना की गई है.
इसके बाद, नेचर फूड पत्रिका में अगस्त महीने में छपे एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि अगर अमेरिका और रूस के बीच एक सप्ताह के लिए रणनीतिक परमाणु हथियारों का युद्ध छिड़ जाता है, तो पर्यावरण, जनसंख्या और वैश्विक खाद्य आपूर्ति पर क्या असर होगा.
अध्ययन के लेखकों के अनुमान के मुताबिक, 36 करोड़ लोग तुरंत मारे जाएंगे. युद्ध के दो साल बाद, पांच अरब लोग भूख से मर जाएंगे. विस्फोट की वजह से काफी ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होगा और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला पूरी तरह बाधित हो जाएगी.
शोधकर्ताओं ने परमाणु युद्ध के अन्य मॉडल के जरिए भी अलग-अलग तरह के असर का अनुमान लगाया है. उदाहरण के लिए, अगर भारत और पाकिस्तान के बीच 2025 में एक सप्ताह तक परमाणु युद्ध होता है, तो कैसा मंजर होगा. इन दोनों एशियाई देशों के पास अमेरिका और रूस की तुलना में कम परमाणु हथियार हैं, लेकिन इसके बावजूद यह अनुमान लगाया गया कि 16.4 करोड़ लोग तुरंत मारे जाएंगे और युद्ध के दो साल बाद 2.5 अरब लोग भूख से मर जाएंगे.
बढ़ रही है दुनिया में परमाणु हथियारों की संख्या
दुनिया में 1990 के बाद से परमाणु हथियारों में लगातार हो रही कमी अब रुक रही है. परमाणु अस्त्रों वाले देश अपने हथियारों के भंडार का आधुनिकीकरण कर रहे हैं जिससे हथियारों की संख्या में बढ़ोतरी के संकेत मिल रहे हैं.
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शीत युद्ध के बाद
शोधकर्ताओं ने कहा है कि शीत युद्ध के अंत के बाद से 1990 के बाद के दशकों में परमाणु हथियारों की संख्या में लगातार कमी आ रही थी, लेकिन अब यह स्थिति बदल रही है. यह कहना है स्वीडन के संस्थान सिपरी में एसोसिएट सीनियर फेलो हांस क्रिस्टेनसेन का.
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हथियारों का खतरा काम
क्रिस्टेनसेन के अनुसार यह स्थिति शीत युद्ध के समय कहीं ज्यादा गंभीर थी. 1986 में दुनिया में 70,000 से भी ज्यादा परमाणु हथियारों के होने का अनुमान था.
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आज कितने हैं हथियार
इस समय परमाणु हथियारों वाले नौ देश हैं - अमेरिका, रूस, यूके, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया. सिपरी के मुताबिक 2021 में इनके पास कुल मिलाकर 13,080 हथियार हैं. संस्थान के मुताबिक पिछले साल इन देशों के पास कुल 13,400 हथियार थे.
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असल में गिरावट नहीं
सिपरी का कहना है कि यह असल में संख्या में गिरावट नहीं है, क्योंकि इन हथियारों में पुराने वॉरहेड भी हैं जिन्हें नष्ट कर दिया जाना है. अगर इन्हें गिनती से बाहर कर दिया जाए, तो परमाणु हथियारों की कुल संख्या एक साल में 9,380 से बढ़ कर 9,620 हो गई है.
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तैनात हथियार भी बढ़े
सिपरी के मुताबिक अलग अलग सेनाओं के पास तैनात परमाणु हथियारों की संख्या भी एक साल में 3,720 से बढ़ कर 3,825 हो गई. इनमें से करीब 2,000 हथियार "इस्तेमाल किए जाने की उच्च अवस्था" में रखे गए हैं, यानी ऐसी अवस्था में कि जरूरत पड़ने पर उन्हें कुछ ही मिनटों में चलाया जा सके.
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आधुनिकीकरण
हांस क्रिस्टेनसेन का कहना है कि इस समय पूरी दुनिया में काफी महत्वपूर्ण पैमाने पर परमाणु कार्यक्रमों का आधुनिकीकरण हो रहा है और परमाणु हथियारों वाले देश अपनी सैन्य रणनीतियों में परमाणु हथियारों का महत्व बढ़ा रहे हैं.
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रूस और अमेरिका की भूमिका
रूस और अमेरिका के पास दुनिया के कुल परमाणु हथियारों का 90 प्रतिशत से भी ज्यादा भंडार है. क्रिस्टेनसेन का कहना है दोनों ही देश परमाणु हथियारों को ज्यादा महत्व दे रहे हैं. उनका मानना है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इसी रणनीति को आगे बढ़ा रहे थे और नए राष्ट्रपति जो बाइडेन भी काफी स्पष्ट रूप से संदेश दे रहे हैं कि वो भी इसे जारी रखेंगे.
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तैयार हथियार
अमेरिका और रूस दोनों पुराने वॉरहेड को लगातार हटा रहे हैं लेकिन दोनों के पास पिछले साल के मुकाबले करीब 50 और हथियार हैं जो 2021 की शुरुआत में "क्रियाशील तैनाती" की अवस्था में थे. - एएफपी
तस्वीर: picture alliance / dpa
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अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर एलन रोबॉक नेचर पत्रिका में छपे अध्ययन के लेखकों में से एक हैं. पहले के शोध में, रोबॉक ने अनुमान लगाया कि हिरोशिमा और नागासाकी में विस्फोट की वजह से 0.5 टेराग्राम धुंए का उत्सर्जन हुआ था. अगर अमेरिका और रूस के बीच युद्ध होता है, तो करीब 150 टेराग्राम धुंए का उत्सर्जन होगा. भारत और पाकिस्तान के मामले में 16 से 47 टेराग्राम धुंए का उत्सर्जन होगा.
रोबॉक ने कहा कि अध्ययन में रणनीतिक हथियारों के प्रभाव के आधार पर अनुमान लगाया गया है. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "परमाणु हथियार के किसी भी तरह के इस्तेमाल से रूस और नाटो का युद्ध पूरी तरह से परमाणु युद्ध में तब्दील हो जाएगा और यह परमाणु सर्दी पैदा करेगा. एक बार परमाणु युद्ध शुरू होने के बाद इसके रूकने की संभावना नहीं होती है. आतंक, भय, और गलत जानकारी की वजह से सैन्य कमांडर अपने पास मौजूद परमाणु हथियार का इस्तेमाल कर सकते हैं.”
कितने परमाणु हथियार हैं दुनिया में और किसके पास
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमले के तीन दिन बाद ही परमाणु हथियारों को भी हाई अलर्ट पर रखने का हुक्म दिया. रूस के पास कुल कितने परमाणु हथियार हैं. रूस के अलावा दुनिया में और कितने परमाणु हथियार है?
तस्वीर: AP Photo/picture-alliance
कितने परमाणु हथियार
स्टॉकहोम अंतरराष्ट्रीय शांति शोध संस्थान यानी सीपरी हर साल दुनिया भर में हथियारों के बारे में रिपोर्ट तैयार करती है. सीपरी के मुताबिक 2021 की शुरुआत में दुनिया भर में कुल 13,080 परमाणु हथियार मौजूद थे. इनमें से 3,825 परमाणु हथियार सेनाओं के पास हैं और 2,000 हथियार हाई अलर्ट की स्थिति में रखे गए हैं, यानी कभी भी इनका उपयोग किया जा सकता है. तस्वीर में दिख रहा बम वह है जो हिरोशिमा पर गिराया गया था.
तस्वीर: AFP
किन देशों के पास है परमाणु हथियार
सीपरी के मुताबिक दुनिया के कुल 9 देशों के पास परमाणु हथियार हैं. इन देशों में अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इस्राएल और उत्तर कोरिया के नाम शामिल हैं. दुनिया में परमाणु हथियारों की कुल संख्या में कमी आ रही है हालांकि ऐसा मुख्य रूप से अमेरिका और रूस के परमाणु हथियारों में कटौती की वजह से हुआ है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उत्तर कोरिया
डेमोक्रैटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया यानी उत्तर कोरिया ने 2006 में पहली बार नाभिकीय परीक्षण किया था. वर्तमान में उसके पास 40-50 परमाणु हथियार होने का अनुमान है.
तस्वीर: KCNA/KNS/AP/picture alliance
इस्राएल
इस्राएल ने पहली बार नाभिकीय परीक्षण कब किया इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. फिलहाल इस्राएल के पार 90 परमाणु हथियार होने की बात कही जाती है. इस्राएल ने भी परमाणु हथियारों की कहीं तैनाती नहीं की है. तस्वीर में शिमोन पेरेज नेगेव न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर नजर आ रहा है. इस्राएल ने बहुत समय तक इसे छिपाए रखा था.
तस्वीर: Planet Labs Inc./AP/picture alliance
भारत
भारत के परमाणु हथियारों के जखीरे में कुल 156 हथियार हैं जिन्हें रिजर्व रखा गया है. अब तक जो जानकारी है उसके मुताबिक भारत ने परमाणु हथियारों की तैनाती नहीं की है. भारत ने पहली बार नाभिकीय परीक्षण 1974 में किया था.
तस्वीर: Indian Defence Research and Development Organisation/epa/dpa/picture alliance
पाकिस्तान
भारत के पड़ोसी पाकिस्तान के पास कुल 165 परमाणु हथियार मौजूद हैं. पाकिस्तान ने भी अपने परमाणु हथियारों की तैनाती नहीं की है और उन्हें रिजर्व रखा है. पाकिस्तान ने 1998 में पहली बार नाभिकीय परीक्षण किया था.
तस्वीर: AP
ब्रिटेन
ब्रिटेन के पास मौजूद परमाणु हथियारों के जखीरे में कुल 225 हथियार है. इनमें से 120 परमाणु हथियारों को ब्रिटेन ने तैनात कर रखा है जबकि 105 हथियार उसने रिजर्व में रखे हैं. ब्रिटेन ने पहला बार नाभिकीय परीक्षण 1952 में किया था. तस्वीर में नजर आ रही ब्रिटेन की पनडुब्बी परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम है.
तस्वीर: James Glossop/AFP/Getty Images
फ्रांस
फ्रांस ने 1960 में पहली बार नाभिकीय परीक्षण किया था और फिलहाल उसके पास 290 परमाणु हथियार मौजूद हैं. फ्रांस ने 280 परमाणु हथियारों की तैनाती कर रखी है और 10 हथियार रिजर्व में रखे हैं. यह तस्वीर 1971 की है तब फ्रांस ने मुरुरोआ एटॉल में परमाणउ परीक्षण किया था.
तस्वीर: AP
चीन
चीन ने 1964 में पहली बार नाभिकीय परीक्षण किया था. उसके पास कुल 350 परमाणु हथियार मौजूद हैं. उसने कितने परमाणु हथियार तैनात किए हैं और कितने रिजर्व में रखे हैं इसके बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है.
तस्वीर: Zhang Haofu/Xinhua/picture alliance
अमेरिका
परमाणु हथियारों की संख्या के लिहाज से अमेरिका फिलहाल दूसरे नंबर पर है. अमेरिका ने 1,800 हथियार तैनात कर रखे हैं जबकि 2,000 हथियार रिजर्व में रखे गए हैं. इनके अलावा अमेरिका के पास 1,760 और परमाणु हथियार भी हैं. अमेरिका ने 1945 में पहली बार नाभिकीय परीक्षण किया था.
तस्वीर: Jim Lo Scalzo/EPA/dpa/picture alliance
रूस
वर्तमान में रूस के पास सबसे ज्यादा 6,255 परमाणु हथियार हैं. इनमें से 1,625 हथियारों को रूस ने तैनात कर रखा है. 2,870 परमाणु हथियार रूस ने रिजर्व में रखे हैं जबकि दूसरे परमाणु हथियारों की संख्या 1,760 है. रूस के हथियारों की संख्या 2020 के मुकाबले थोड़ी बढ़ी है. रूस ने 1949 में परमाणु हथियार बनाने की क्षमता हासिल की थी.