2024 एक लीप ईयर है यानी फरवरी में अतिरिक्त दिन. पर हर चौथा साल लीप ईयर नहीं होता. इसका गणित बहुत जटिल है.
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लीप ईयर यानी वह साल जब फरवरी में 28 के बजाय 29 दिन होते हैं. जैसा कि साल 2024 में. आम समझ है कि लीप ईयर हर चौथे साल होता है. लेकिन गणित इतना भी सरल नहीं है. असल में लीप ईयर का गणित सिर्फ हर चौथे साल में एक दिन जोड़ने से खत्म नहीं हो जाता. अक्सर यह लीप मिनट और लीप सेकेंड तक भी जाता है.
कैलिफॉर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के मुताबिक लीप ईयर इसलिए शुरू किया गया था ताकि हर साल होने वाली खगोलीय घटनाओं जैसे कि ग्रहण आदि का महीनों के साथ सामंजस्य रहे. ऐसा इसलिए है क्योंकि पृथ्वी अपनी कक्षा का चक्कर लगाने में पूरे 365 दिन नहीं लगाती. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक इस पूरे चक्कर में 365 दिन और लगभग छह घंटे लगते हैं.
हर चौथा साल लीप ईयर
इस हिसाब से तो छह घंटे हर साल जुड़कर चौथे साल में 24 घंटे यानी एक दिन हो जाता है, जिसे 29 फरवरी के रूप में जोड़ दिया जाता है. लेकिन ऐसा भी नहीं है. लीप ईयर हर चार साल में आता है, यह पूरा सच नहीं है. नेशनल एयर एंड स्पेस म्यूजियम के विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर हर चौथ साल में एक दिन जोड़ा जाए तो भी 44 मिनट का हेर-फेर रह जाता है, जिसे जोड़ा जाना जरूरी है. जैसे कि 2016 एक लीप ईयर था लेकिन एक सेकेंड लंबा था.
इसलिए जब कैलेंडर बनाया गया तो बनाने वालों ने मिनटों और सेकेंडों का हिसाब लगाया और तय किया कि हर चौथा साल तो लीप ईयर होगा लेकिन जो साल 100 से विभाजित नहीं होगा, वह तभी लीप ईयर हो सकता है, जबकि वह 400 से भी विभाजित हो. यही वजह है कि पिछले 500 साल में साल 1700, 1800 और 1900 लीप ईयर नहीं थे. जबकि साल 2000 एक लीप ईयर था. इसी तरह अगले 500 साल में 2100, 2200, 2300 और 2500 लीप ईयर नहीं होंगे, लेकिन साल सन 2400 एक लीप ईयर होगा.
कैसे मनाते हैं मलेशिया के तमिल हिंदू अपना त्योहार "थाईपुसम"
मलेशिया के तमिल हिंदू हर साल तमिल कैलेंडर के थाई महीने में "थाईपुसम" त्योहार मनाते हैं. देखिए क्या क्या होता है इस त्योहार में.
तस्वीर: Mohd Daud/Zuma/IMAGO
तमिल हिंदुओं का त्योहार
"थाईपुसम" के दिन मलेशिया में हजारों तमिल हिंदू देश के मंदिरों में इकट्ठा होते हैं. इस त्योहार को उस दिन को याद करने के लिए मनाया जाता है जिस दिन मान्यता के अनुसार देवी पार्वती के बेटे मुरुगन ने अपनी मां से एक अलौकिक अस्त्र प्राप्त कर शूर्पद्म नाम के असुर का वध किया था.
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यातना सहते हैं श्रद्धालु
त्योहार को मनाने के लिए श्रद्धालु राजधानी कुआलालुंपुर के बाहर स्थित बाटू गुफा मंदिर की 272 सीढ़ियां भारी आर्द्रता वाले मौसम में नंगे पांव चढ़ते हैं. कुछ श्रद्धालु सर पर भारी कांवड़ उठाए रहते हैं जिसे उनके शरीर में छड़ों को भोंक कर लगाया जाता है.
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भगवान को धन्यवाद
ये कांवड़ भारी होते हैं. कुछ तो 100 किलो तक वजन के होते हैं. कुछ लोगों के गालों और जीभ तक में सुइयां भोंकी जाती हैं. माना जाता है कि लोग ऐसा भगवान मुरुगन को धन्यवाद देने के लिए और तप का भाव दिखाने के लिए करते हैं.
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अवचेतन अवस्था
नगाड़ों की धुन पर आगे बढ़ते इन श्रद्धालुओं को देखकर ऐसा लगता है जैसे मानो ये एक अवचेतन अवस्था में हों. जो यह सब नहीं करवाते वो पीले कपड़े पहन दूध और नारियल ले कर दूर दूर से पैदल मंदिर जाते हैं. नारियलों को चढ़ावे के लिए मंदिर में फोड़ा जाता है.
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सात्विक आचरण
त्योहार को मनाने वाले हफ्तों पहले से सात्विक आचरण अपना लेते हैं. इसमें रोज पूजा करना, शाकाहारी भोजन खाना और यौन क्रिया से दूर रहना जैसे कदम शामिल हैं.
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सिंगापुर में भी मनाया जाता है
थाईपुसम तमिल कैलेंडर के "थाई" महीने में "पुसम" नक्षत्र के तहत पहली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इसे भारत और सिंगापुर के तमिल भी मनाते हैं. लेकिन मलेशिया में इसकी विशेष धूम होती है. मलेशिया की करीब 3.4 करोड़ आबादी में लगभग सात प्रतिशत लोग भारतीय मूल के हैं. (सीके/वीके/एफपी)
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बर्मिंगम की अलाबामा यूनिवर्सिटी में भौतिक विज्ञानी यूनुस खान कहते हैं, "अगर लीप ईयर ना होता तो हर कुछ सौ साल बाद मौसमों का वक्त बदल जाता. गर्मियां नवंबर में होतीं. क्रिसमस गर्मियों में होती.”
कहां से आया लीप ईयर?
लीप ईयर का विचार किसे आया इसका कोई सरल जवाब नहीं है. आसान शब्दों में इतना ही कहा जा सकता है यह धीरे धीरे विकसित हुआ विचार है. प्राचीन सभ्यताओं के लोग अपने जीवन को नियमित करने के लिए सितारों की गणनाओं पर निर्भर थे. कैलेंडर का विकास कांस्य युग में हुआ माना जाता है. ये कैलेंडर चांद और सूरज की गति पर आधारित थे. आज भी अधिकतर कैलेंडर उसी पर चलते हैं.
जब रोम में जूलियस सीजर का शासन था, तब कैलेंडरों का बहुत घालमेल हो गया था. रोम साम्राज्य का विस्तार इतना अधिक था कि अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग कैलेंडर इस्तेमाल हो रहे थे. ऐसे में एक व्यवस्था बनाने के लिए 46 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर ने जूलियन कैलेंडर की शुरुआत की. यह पूरी तरह सूर्य की गति पर आधारित था और इसमें एक साल में 365.25 दिन बन रहे थे. तब हर चौथे साल एक दिन जोड़ने की व्यवस्था शुरू हुई.
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फिर आया ग्रेगोरियन कैलेंडर
लेकिन उस कैलेंडर में भी समस्या थी. चैपल हिल स्थित नॉर्थ कैरोलाइना यूनिवर्सिटी में खगोलविद निक ईकस कहते हैं कि सूर्य की गति एकदम 365.25 दिन नहीं है. यह 365.242 दिन है. इसलिए बहुत सारे लीप ईयर बन रहे थे.
जूलियन कैलेंडर में एक साल 0.0078 दिन यानी 11 मिनट और 14 सेकेंड्स लंबा था. इसलिए गड़बड़ियां हो रही थीं क्योंकि यह समय धीरे धीरे जमा होता जाता था.
चीन में ऐसे मनता है नया साल
पूरी दुनिया 31 दिसंबर को नए साल का जश्न मनाती है लेकिन चीन में कहानी थोड़ी अलग है. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन का पारंपरिक कैलेंडर पश्चिमी कैलेंडर से अलग है. 2020 में यहां 25 जनवरी को नया साल शुरू हो रहा है.
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शेर वाला नृत्य
नए साल के दिन लोग शेर का मुखौटा पहन कर नाचते हैं. इस रिवाज के पीछे एक कहानी है. माना जाता है कि नियान नाम का एक दैत्य हर साल नए साल के मौके पर एक गांव पर हमला करता था. इससे बचने के लिए गांव के लोगों ने एक शेर सी दिखने वाली बड़ी सी कठपुतली बनाई. इस नृत्य में एक व्यक्ति शेर के सर को संभालता है और बाकी सब उसके धड़ और पूंछ को. माना जाता है कि यह नृत्य अच्छी किस्मत ले कर आता है.
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आतिशबाजी
दुनिया भर में 31 दिसंबर को आतिशबाजी की जाती है. ना केवल ये पटाखे चीन से आते हैं, बल्कि पटाखों की परंपरा भी वहीं से आई है. इसका असली मकसद था नियान नाम के दैत्य को डराना. आज चीन के 444 शहरों में आतिशबाजी पर रोक है क्योंकि पिछले सालों में नए साल पर पटाखे जलाने के कारण बहुत लोग घायल हुए हैं. बावजूद इसके लोग आतिशबाजी करने से खुद को रोक नहीं पाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/
चावल वाली मिठाई
त्यौहार के दिनों में मिठाई तो हर जगह खाई जाती है. लेकिन इस चीनी मिठाई की अलग अहमियत भी है. चावल से बनी इस मिठाई को नियान गो कहते हैं. चीन में माना जाता है कि नए साल पर इसे खाने से काम में तरक्की मिलती है, आमदनी बढ़ती है और आर्थिक रूप से परिवार को फायदा होता है. कुल मिला कर यह मिठाई खाने वाले को एक अच्छा भविष्य देती है.
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लाल लिफाफे
नए साल के जश्न की बेहतरीन चीज होती है लाल लिफाफा. भारत की तरह चीन में भी लिफाफे में शगुन देने का रिवाज है. फर्क इतना है कि वहां ये लिफाफे सिर्फ अविवाहित लोगों को ही मिलते हैं. परिवार के विवाहित सदस्य अविवाहित सदस्यों को लिफाफे देते हैं. रिश्ता जितना करीब का होगा, शगुन की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी. 100 से 1000 रुपये के बीच कुछ भी राशि हो सकती है.
दिवाली या होली के मौके पर जब आप किसी के घर उपहार ले कर जाते हैं, तो क्या कभी फल ले जाने के बारे में भी सोचते हैं? चीन में संतरे को सुनहरा फल कहा जाता है. इसे धन और सोने से जोड़ कर देखा जाता है. इसलिए इसे नए साल के तोहफे के रूप में भी दिया जाता है. विषम संख्या को अशुभ माना जाता है, इसलिए इसे हमेशा जोड़ों में ही दिया जाता है. इसके अलावा इनका इस्तेमाल घर को सजाने के लिए भी किया जाता है.
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सलाद उछालने का रिवाज
इस सलाद को चीनी भाषा में यूशेंग कहते हैं. इसका एक मतलब होता है कच्ची मछली और दूसरा बरकत. इसके लिए सालमन मछली का इस्तेमाल किया जाता है. एक बर्तन में सलाद रख कर परिवार के सब लोग चॉपस्टिक से उसे उछालने की कोशिश करते हैं. माना जाता है कि सलाद जितना ऊपर उछलेगा घर में बरकत भी उतनी ही ज्यादा होगी. चीन के अलावा सिंगापुर, मलेशिया और इंडोनेशिया में भी ऐसा किया जाता है.
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मांसाहारी आहार
क्योंकि चीन में सब्जियों के मुकाबले मांस महंगा होता है, इसलिए इसे समृद्धि से जोड़ कर देखा जाता है. आप कितना मांस खरीद सकते हैं यह आपकी समृद्धि को दिखाता है. नए साल के मौके पर लोग खूब मांसाहारी पकवान पकाते हैं और ज्यादातर सूअर के मांस का इस्तेमाल किया जाता है. 2018 के आंकड़े दिखाते हैं कि चीन में औसतन हर व्यक्ति ने साल भर में 30 किलो मांस की खपत की.
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दुनिया भर में जश्न
सिर्फ चीन में ही नहीं, अन्य देशों में भी चीनी नए साल की धूम देखने को मिलती है, खास कर सिंगापुर में, जहां आबादी का 75 फीसदी हिस्सा चीनी है. चीन के बाहर दुनिया भर में साढ़े चार करोड़ से ज्यादा चीनी लोग रहते हैं और इन्होंने नए साल को चारों ओर लोकप्रिय बना दिया है.
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फिर भी सैकड़ों साल तक इस कैलेंडर का इस्तेमाल होता रहा. 16वीं सदी में पोप ग्रेगरी तेरहवें ने आखिरकार इसमें बदलाव किया और ग्रेगोरियन कैलेंडर बनाया. हालांकि यह भी गड़बड़ियों से रहित नहीं है और लीप ईयर की जरूरत अब भी पड़ती है.
पोप ग्रेगरी को इस बदलाव की जरूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि हर साल ईस्टर का दिन खिसक जाता था. चर्च चाहता था कि ईस्टर हमेशा बसंत में आए. इसलिए ग्रेगरी ने जूलियन कैलेंडर में से अतिरिक्त दिन निकाल दिए और लीप ईयर की गणना में भी बदलाव किया. तभी यह गणना की गई कि कब-कब चौथा साल लीप ईयर नहीं होगा.