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यरुशलम जैसे पवित्र स्थल को लेकर इतनी शत्रुता क्यों है?

तानिया क्रेमर (येरूशलम)
१४ अप्रैल २०२३

मुस्लिमों के लिए हरम अल-शरीफ और यहूदियों के टेंपल माउंट के रूप में जाने जाने वाले स्थल पर इस्राएल और फलस्तीन के लोगों के बीच अक्सर संघर्ष होते रहते हैं. डीडब्ल्यू ने जानने की कोशिश की कि इन संघर्षों की वजह क्या है.

इस्राएली पुलिस
अल-अक्सा मस्जिद परिसर में इस्राएली पुलिसतस्वीर: Ammar Awad/REUTERS

पिछले हफ्ते, ऐसे वीडियो वायरल हुए थे जिनमें इस्राएली पुलिस के अफसर यरुशलम के पुराने शहर स्थित अल-अक्सा मस्जिद में प्रवेश करते हैं और वहां नमाज अदा कर रहे लोगों को डंडों और राइफल की बटों से बार-बार पीटते हैं. कई दिन बीत जाने के बाद भी इस शहर में रहने वाले फलस्तीनी लोग सदमे में थे और नाराज थे.

यरुशलम में रहने वाले फलस्तीनी नागरिक हनान अक्सर अल-अक्सा मस्जिद में नमाज पढ़ने जाती हैं. वो कहती हैं, "मैं दुखी हूं, मैं गुस्से में हूं, लॉजिक कहां है, सम्मान कहां है, जब वे लोगों को पीट रहे हैं, महिलाओं को पीट रहे हैं. यह पवित्र महीना है और कुल मिलाकर यह प्रार्थना करने की जगह है और हमारे लिए सब कुछ है.”

यरुशलम के मुस्लिम इलाके में रहने वाले दूसरे लोगों की भावनाएं भी बिल्कुल ऐसी ही थीं. अल-अक्सा मस्जिद परिसर में पिछले हफ्ते दो बार छापेमारी की गई थी. यह वह जगह है जिसे मुस्लिम लोग हरम अल-शरीफ भी कहते हैं और यहीं वह जगह भी है जिसे यहूदी लोग टेंपल माउंट कहते हैं.

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इस पवित्र स्थल के प्रवेश द्वार पर स्थित एक स्पाइस शॉप के मालिक हाशेम ताहा कहते हैं, "इन तस्वीरों को देखकर हर व्यक्ति परेशान और आहत हुआ होगा. नमाज पढ़ते लोगों को वहां से हटाना, बुरी तरह से पीटना...कोई भी व्यक्ति इन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकता है.”

क्या है अहमियत

वहीं इस्राएली पुलिस ने एक बयान जारी कर कहा है कि वे लोग ‘एक हिंसक दंगे को रोकने के लिए परिसर में घुसने के लिए मजबूर हुए थे.' इसरायल की पुलिस ने करीब 350 लोगों को गिरफ्तार भी किया है. लेकिन मस्जिद में मौजूद फलस्तीनी प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि पुलिस बल का इस्तेमाल ज्यादती थी और अनावश्यक थी.

टेंपल माउंट/ हराम अल-शरीफ मुस्लिमों और यहूदियों के पवित्र स्थल के साथ-साथ ईसाइयों के लिए भी एक पवित्र स्थल माना जाता है. यहूदियों का मानना है कि यह वह पवित्र स्थल है जहां किसी समय में बाइबिल में उल्लिखित दो मंदिर हुआ करते थे और यहूदी धर्म में इसे सबसे पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है.

वहीं उस पहाड़ी चोटी को अल-अक्सा मस्जिद परिसर कहा जाता है जहां से यह प्राचीन शहर पूरा दिखाई पड़ता है और यह मस्जिद इस्लाम धर्म में मक्का और मदीना के बाद तीसरी सबसे पवित्र जगह मानी जाती है.

इस्लाम की मान्यता के अनुसार पैगंबर मुहम्मद एक रात मक्का से यरुशलम आए और फिर यहीं से वो जन्नत के लिए प्रस्थान कर गए. रमजान के दौरान यहां श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भारी भीड़ होती है.

पिछले हफ्ते तक, कुछ दिन पहले हुई एक घटना के अलावा रमजान शांतिपूर्वक बीत रहा था. लेकिन यहूदी पर्व पासओवर के ठीक एक दिन पहले हिंसक छापेमारी ने हिंसा और बढ़ा दी जिससे स्थिति काफी गंभीर हो गई.

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अल-अक्सा मस्जिद पर की गई कार्रवाई की प्रतिक्रिया में गजा के फलस्तीनी चरमपंथी समूहों ने गजापट्टी के आस-पास के इसरायली शहरों पर रॉकेट से हमले किए. यही नहीं, दक्षिणी लेबनान और सीरिया की तरफ से भी उत्तरी इसरायल की ओर रॉकेट दागे गए.

शुक्रवार सुबह फलस्तीनी बंदूकधारियों के हमले में कब्जे वाले पश्चिमी किनारे में तीन ब्रिटिश-इसरायली महिलाओं की मौत हो गई. शुक्रवार को ही एक अन्य घटना में इटली के एक पर्यटक की कथित तौर पर एक कार से टक्कर लगने के कारण मौत हो गई.

सोमवार को, इसरायली सेना ने एक 15-वर्षीय फलस्तीनी लड़के की उस समय गोली मारकर हत्या कर दी, जब वे लोग जेरिको के पास एक फलस्तीनी शरणार्थी शिविर पर छापेमारी कर रहे थे.

पवित्र स्थल से जुड़ी अटूट आस्था

हाल के वर्षों में, अल-अक्सा परिसर की घटनाओं ने इसरायली और फलस्तीनी लोगों के बीच कई बार संघर्षों को भड़काया है. साल 2000 में लिकुड पार्टी के दिवंगत नेता एरियल शेरोन के नेतृत्व में इसरायल के सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल टेंपल माउंट के दौरे पर गया था.

शेरोन के इस दौरे को द्वितीय फलस्तीनी इंतिफादा यानी विद्रोह को भड़काने की वजह माना जाने लगा. इसके कई साल बाद, 2017 में हजारों श्रद्धालुओं ने अल-अक्सा मस्जिद के प्रवेश द्वार पर एअरपोर्ट की तरह मेटल डिटेक्टर्स लगाए जाने के विरोध में परिसर के बाहर प्रदर्शन किया.

ये मेटल डिटेक्टर्स मस्जिद परिसर के पास दो इस्राएली पुलिस अधिकारियों की हत्या के बाद लगाए गए थे. हालांकि बाद में इस्राएली अधिकारियों ने तीन बंदूकधारियों को मार गिराया था.

विरोध प्रदर्शन दूसरे देशों में भी होने लगे और ये तब तक जारी रहे जब तक कि इसरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने इन मेटल डिटेक्टर्स को वहां से हटाने का आदेश नहीं जारी कर दिया.

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पवित्र स्थल तक पहुंचने के लिए इस्राएल की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर भी कई बार विवाद हुआ है. इस्राएली अधिकारी* अक्सर अल-अक्सा मस्जिद में नमाजियों की उम्र को लेकर प्रतिबंध लगाते रहते हैं तो कई बार फलस्तीनियों के गजा और पश्चिमी किनारे से यरुशलम की यात्रा पर प्रतिबंध लगाते हैं.

साल 2021 में अल-अक्सा मस्जिद में छापेमारी और टकराव के कारण हिंसा भड़क गई थी जो गजा में इसरायल और इस्लामी चरमपंथी समूह हमास के बीच 11 दिनों तक जारी रही.

पवित्र स्थल पर ‘सिकुड़ती जगह'

टू-स्टेट सलूशन की बात करने वाले एक गैर सरकारी संगठन टेरेस्ट्रियल जेरुसलम के संस्थापक डेनियल सीडमान कहते हैं, "फलस्तीनी जगह सिकुड़ती जा रही है. पांच साल पहले अल-अक्सा और एस्प्लेनेड यरुशलम में सबसे कम कब्जे वाली जगहें थीं. लेकिन आज यह यरुशलम में सबसे ज्यादा कब्जे वाली जगह बन गई हैं.”

वो कहते हैं, "इसके लिए कोई एक स्पष्ट कारण नहीं है. यरुशलम में सामान्य रूप से हम लोग जो देख रहे हैं, उसे मैं वास्तव में आस्था का शस्त्रीकरण कहता हूं जहां विमर्श को संचालित और नियंत्रित करने वाले आंदोलन ज्यादा अतिवादी, ज्यादा निरंकुश और ज्यादा बहिष्करण वाले हैं.”

इस्राएल की अति-दक्षिणपंथी सरकार के संदर्भ में वो आगे कहते हैं, "निश्चित तौर पर यह बात यरुशलम के अतिराष्ट्रवादी टेंपल माउंट आंदोलन के संदर्भ में है जो 1967 में छोटे पैमाने पर शुरू हुआ और आज सत्ता में है.”

दूसरी ओर, फलस्तीनी तरफ से हमास जैसे इस्लामी चरमपंथी समूह हैं जिन्होंने खुद को अल-अक्सा का ‘रक्षक' घोषित कर रखा है. इसरायल का आरोप है कि फलस्तीनी लोग हिंसा भड़काने के लिए पवित्र स्थल से संबंधित किसी भी मुद्दे का इस्तेमाल करते हैं.

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यह पवित्र स्थल 1967 से ही इसरायल के कब्जे में है जब उसने जॉर्डन के साथ चले छह दिन तक के युद्ध के बाद पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया था. बाद में इसरायल ने पूर्वी हिस्से को अपने देश में मिला लिया और इस पूरे शहर को अपने देश की राजधानी घोषित कर दिया.

लेकिन ज्यादातर देशों ने यरुशलम को इसरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता नहीं दी है. वहीं फलस्तीनी लोग पूर्वी यरुशलम को भविष्य में अपने देश की राजधानी के तौर पर देखते हैं और शांति वार्ताओं में इस पर चर्चा होना अभी बाकी है.

1967 से लेकर अब तक राजनीतिक रूप से इस संवेदनशील इलाके का प्रशासन एक सेट ऑफ अरेंजमेंट्स के जरिए चलाया जाता है जिसे यथास्थिति कहा जाता है और इसके तहत पुराने शहर के सभी धार्मिक स्थलों को रेग्युलेट किया जाता है.

इस व्यवस्था के तहत इसरायल इन इलाकों की सुरक्षा और पुलिसिंग के लिए जिम्मेदार है जबकि पड़ोसी देश जॉर्डन ने इस जगह के संरक्षक के तौर पर अपनी ऐतिहासिक भूमिका बनाए रखी है. वक्फ नामक एक मुस्लिम धार्मिक ट्रस्ट अल-अक्सा की दिन-प्रतिदिन की व्यवस्था देखता है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति की कोशिश

यहां टकराव के बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने बुधवार को एक बयान में पुष्टि की कि इसरायल ‘पूजा की स्वतंत्रता, सभी धर्मों के प्रवेश की आजादी और टेंपल माउंट पर यथास्थिति के लिए प्रतिबद्ध है और इसे बदलने की किसी भी तरह की हिंसक चरमपंथी गतिविधि को इजाजत नहीं दी जाएगी.'

इस्राएल और फलस्तीन के बीच जारी इस तनाव को खत्म करने के लिए अमेरिका के साथ जॉर्डन और मिस्र भी बातचीत में शामिल थे और दोनों देशों ने हाल ही में हुई घटनाओं की निंदा की है. तुर्की और सऊदी अरब ने भी घटनाओं की निंदा की है.

मंगलवार को जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय, जिनके इसरायल के प्रधानमंत्री से रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं, ने जोर देकर कहा कि ‘यरुशलम के मुस्लिम और यहूदी पवित्र स्थलों के ऐतिहासिक और कानून यथास्थिति का उल्लंघन करने वाले सभी एकतरफा कार्रवाइयों को तत्काल रोकने की जरूरत है.'

इस बार रमजान ऐसे समय में पड़ा है जब यहूदी पर्व फसह और ईसाई पर्व ईस्टर की छुट्टियां भी हैं. जैसा कि उन्होंने पहले फसह की शुरुआत में किया था कि यहूदी माउंट मूवमेंट पर लौटते हैं और अन्य लोगों के बीच, यहूदी चरमपंथी समूहों ने टेंपल माउंट पर बकरियों की बलि देने के एक अनुष्ठान को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया.

लेकिन पिछले सालों की तरह बकरियों को ले जा रहे लोगों को पुलिस ने रोक दिया और जानवरों को जब्त कर लिया गया. हालांकि, पुलिस द्वारा अत्यधिक संरक्षित यहूदी पर्यटकों ने बिना किसी और घटना के छुट्टी के दौरान शांतिपूरवक इस स्थल का दौरा किया.

यहूदियों को आमतौर पर उस स्थान पर जाने की अनुमति है जहां माना जाता है कि कभी मंदिर हुआ करते थे, लेकिन उन्हें वहां प्रार्थना करने की अनुमति नहीं है. इजराइल में प्रमुख रब्बियों का कहना है कि यहूदियों को वर्जित पवित्र भूमि को छूने से रोकने के लिए इस क्षेत्र में नहीं चढ़ना चाहिए.

हालांकि हाल के वर्षों में धुर-दक्षिणपंथी यहूदी टेंपल माउंट एक्टिविस्ट्स ने क्षेत्र में और अधिक यात्राओं को प्रोत्साहित किया है, साथ ही कुछ लोगों ने गुप्त रूप से प्रार्थना भी की है. फलस्तीनियों और उनके समर्थकों ने इसे एक भड़काऊ और यथास्थिति को बिगाड़ने वाली कार्रवाई बताया है.

इस्राएल की नई सरकार में पुलिस व्यवस्था देश के नेशनल सिक्योरिटी मिनिस्टर इतमार बेन-ग्वीर के अधीन है जो कि धुर-दक्षिणपंथी हैं. कुछ दिनों पहले, उन्होंने टेंपल माउंट में प्रार्थना पर प्रतिबंध लगाने को उन्होंने ‘भेदभाव' करार देते हुए यथास्थिति को बदलने की वकालत की थी.

डेनियल सीडमान कहते हैं, "दस साल पहले टेंपल माउंट पर मुस्लिम, यहूदी ये सभी लोग इस्लामिक वक्फ के मेहमान के रूप में आते थे. आज, ये सभी लोग यह कहते हुए आ रहे हैं कि हम आपके मेहमान नहीं बल्कि हम यहां के जमींदार हैं. इससे ‘सर्वश्रेष्ठ साझा स्थान' का विचार नष्ट होता जा रहा है.”

मंगलवार को इस्राएल सरकार ने अपने सुरक्षा एजेंसियों की सिफारिश पर कार्रवाई करते हुए रमजान के आखिरी दस दिनों में गैर-मुस्लिमों की यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया है, जैसा कि पिछले वर्षों में भी किया जाता रहा है.

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