अमेरिका में गौतम अदाणी और उनके छह सहयोगियों पर घूसखोरी और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. हालांकि यह लंबी कानूनी कार्रवाई है. अदाणी के सामने कई रास्ते हैं.
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एशिया के सबसे अमीर लोगों में से एक और भारतीय कारोबारी गौतम अदाणी एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं. 21 नवंबर को उन पर अमेरिका में घूसखोरी और धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज होने के बाद उनकी कंपनियों के शेयर 20 फीसदी तक गिर गए. अमेरिकी अभियोजकों ने अदाणी पर भारत में एक बड़े सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट के लिए निवेशकों को धोखा देने और रिश्वत के जरिए काम कराने के आरोप लगाए हैं.
न्यूयॉर्क में दाखिल आरोप पत्र में अदाणी पर सिक्योरिटीज फ्रॉड और वायर फ्रॉड की साजिश के आरोप लगाए गए हैं. उनके साथ उनकी कंपनी के सात अन्य अधिकारियों पर भी आरोप हैं. अभियोजकों का दावा है कि अदाणी ने भारत में लगभग 2,200 करोड़ रुपये की रिश्वत दी.
व्यवसायों पर असर और बयान
इस खबर का असर अदाणी पर कई तरफ से हुआ है. एक तरफ तो उनकी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई है, दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका निवेश भी प्रभावित हुआ है. केन्या के राष्ट्रपति ने अदाणी के एयरपोर्ट और ऊर्जा प्रोजेक्ट्स के लिए हुए सौदे रद्द कर दिए. इस सौदे पर काफी समय से विवाद चल रहा था.
इस बीच, अदाणी ग्रुप ने अमेरिकी डॉलर में बॉन्ड जारी करने की योजना भी टाल दी. अदाणी रिन्यूएबल्स ने इस फैसले की जानकारी बंबई स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को दी. कंपनी ने बयान में कहा, "अदाणी ग्रीन के निदेशकों पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं और इन्हें खारिज किया जाता है."
मुकदमों के बारे में अमेरिकी डिप्टी असिस्टेंट अटॉर्नी जनरल लीसा मिलर ने कहा कि यह मामला निवेशकों को बचाने के लिए दर्ज किया गया है. उन्होंने कहा, "हम ऐसे भ्रष्ट और धोखाधड़ी करने वाले लोगों पर सख्त कार्रवाई जारी रखेंगे, चाहे वे दुनिया में कहीं भी हों."
आगे की कार्रवाई
अदाणी पर आगे की कार्रवाई काफी लंबी और जटिल हो सकती है. अदाणी और अन्य आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी के वॉरंट जारी हुए हैं लेकिन अगर वह भारत में हैं, तो अमेरिकी अभियोजकों को भारत सरकार से उन्हें प्रत्यर्पित करने के लिए कहना होगा.
2022 में 5.6 लाख लोगों ने छोड़ा भारत, अपनाया अमीर देशों को
भारत आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्य देशों की तरफ आप्रवासन का सबसे बड़ा स्रोत बन कर उभरा है. जानिए कितने भारतीय लोगों ने अपना देश छोड़ कर किन किन देशों को अपनाया.
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लाखों लोग छोड़ रहे भारत
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने अपनी ताजा अंतरराष्ट्रीय आप्रवासन आउटलुक रिपोर्ट जारी की है जिसमें अमीर देशों की तरफ आप्रवासन के वैश्विक ट्रेंड के बारे में विस्तार से बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में भारत इस आप्रवासन का सबसे बड़ा मूल स्रोत बना.
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एक साल में 30 प्रतिशत की उछाल
2022 में 5.6 लाख भारतीय नागरिकों ने अमीर देशों की तरफ आप्रवासन किया. यह 2021 के मुकाबले 30 प्रतिशत ज्यादा संख्या है. यह अमीर देशों की तरफ होने वाले कुल आप्रवासन का करीब आठ प्रतिशत है.
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ब्रिटेन का आकर्षण बढ़ा
इनमें से 1,25,000 भारतीय नागरिकों ने अमेरिका, 1,18,000 ने कनाडा और 1,12,000 ने ब्रिटेन को चुना. 2021 के मुकाबले ब्रिटेन चले जाने वालों की संख्या में दोगुना उछाल आया, अमेरिका जाने वालों की संख्या 35 प्रतिशत बढ़ी जबकि कनाडा जाने वालों को संख्या आठ प्रतिशत गिर गई.
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नागरिकता लेने में भी आगे
2022 में 1.9 लाख से भी ज्यादा भारतीय नागरिकों ने किसी न किसी ओईसीडी देश की नागरिकता भी ले ली. यह 2021 के मुकाबले 40 प्रतिशत उछाल है. यानी ओईसीडी देशों की नागरिकता लेने में भारतीय सबसे आगे रहे.
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दूसरे नंबर पर चीन
भारत के बाद आप्रवासन की दौड़ में दूसरा नंबर चीन का है. 2022 में चीन से 3.26 लाख लोग किसी न ओईसीडी देश चले गए. रूस से आप्रवासन में आश्चर्यजनक उछाल आया. 2.68 लाख रूसी नागरिकों ने अपना देश छोड़ कर अमीर देशों को अपनाया, जिसकी वजह से इस सूची में रूस 18वें स्थान से उठ कर तीसरे नंबर पर आ गया.
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रूसियों ने तुर्की, इस्राएल और जर्मनी को चुना
रूसी आप्रवासियों ने सबसे ज्यादा तुर्की, इस्राएल और जर्मनी को चुना. चौथे नंबर पर रोमानिया के नागरिक हैं, जिन्होंने सबसे ज्यादा जर्मनी, स्पेन और इटली को चुना.
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भारत और अमेरिका के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत यह प्रक्रिया भारत की अदालत के माध्यम से की जाएगी. अदालत को यह तय करना होगा कि अमेरिका में जो आरोप लगे हैं, वे भारत में भी अपराध माने जाते हैं या नहीं.
अदाणी इस प्रक्रिया का कानूनी विरोध कर सकते हैं. चूंकि मामला भारतीय सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने से जुड़ा है, इसलिए यह राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो सकता है.
21 नवंबर को अदाणी ग्रुप ने एक बयान में आरोपों को "बेबुनियाद" बताया और कहा कि कंपनी सभी कानूनों का पालन करने वाली संस्था है. अदाणी, वकीलों के जरिए अमेरिकी अदालत में आरोपों का विरोध कर सकते हैं लेकिन जब तक अदाणी खुद अमेरिकी अदालत में पेश नहीं होते, उनके वकील केवल प्रक्रिया से जुड़े तर्क दे सकते हैं, जैसे कि अभियोजकों को आरोप लगाने का अधिकार नहीं है.
एक बार अदालत में पेश होने के बाद, उनके वकील आरोपों की वैधता और साक्ष्यों को चुनौती दे सकते हैं. अभियोजन पक्ष ने आरोपों के समर्थन में सबूत पेश किए हैं, जिनमें भारतीय अधिकारियों के साथ बैठकों और फोन रिकॉर्ड्स का उल्लेख है.
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क्या अदाणी समझौता कर सकते हैं?
अदाणी अभियोजकों के साथ समझौता कर सकते हैं. इसमें कुछ अपराधों को स्वीकार कर सजा कम कराने की कोशिश की जा सकती है. हालांकि समझौता करना अभियोजकों की मजबूरी नहीं है.
मुकदमा शुरू होने में अभी लंबा समय लग सकता है, भले ही अदाणी को प्रत्यर्पित किया जाए या वह आत्मसमर्पण करें. उनके वकील सबूतों और अन्य कानूनी मुद्दों पर बहस करने का अधिकार रखते हैं. उनके साथियों की मांग हो सकती है कि उनके मुकदमे अलग से चलाए जाएं.
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अमेरिकी कानून के तहत, अदाणी को 70 दिनों के भीतर तेज सुनवाई का अधिकार है, लेकिन संभावना है कि उनके वकील उन्हें अधिक तैयारी के लिए इस अधिकार को त्यागने की सलाह देंगे.
अगर अदाणी दोषी पाए गए, तो उन्हें लंबी जेल हो सकती है. विदेशी रिश्वतखोरी के लिए अधिकतम पांच साल की सजा है, जबकि सिक्योरिटीज फ्रॉड, वायर फ्रॉड और साजिश जैसे आरोपों के लिए 20 साल तक की सजा हो सकती है.
क्यों विवादों में रहते हैं अदाणी
गौतम अदाणी गुजरात के अहमदाबाद में एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं. उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर मुंबई में हीरा व्यापारी के तौर पर काम शुरू किया. 1980 के दशक में उन्होंने प्लास्टिक का आयात शुरू किया और फिर अदाणी एंटरप्राइजेज की स्थापना की.
1990 के दशक में जब भारत की अर्थव्यवस्था खुली तो अदाणी ने इन्फ्रास्ट्रक्चर और कोयले के कारोबार पर दांव लगाया. 1998 में उन्होंने गुजरात के मुंद्रा में पहला बड़ा प्रोजेक्ट, एक बंदरगाह, खोला. आज यह भारत की सबसे बड़ी निजी बंदरगाह है. इसके बाद अदाणी भारत के सबसे बड़े कोयला खनन और बंदरगाह ऑपरेटर बन गए.
इतिहास की सबसे बड़ी धोखाधड़ी के आरोप का सामना कर रहे गौतम अदाणी
गौतम अदाणी कभी एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे लेकिन एक रिपोर्ट ने उनके व्यापार को इतना नुकसान पहुंचा दिया कि अदाणी समूह की पूंजी 8000 अरब से ज्यादा गिर गई. जानिए गौतम अदाणी और उनके साम्राज्य के बारे में.
तस्वीर: Amit Dave/REUTERS
अपार संपत्ति
अदाणी समूह के अध्यक्ष गौतम अदाणी को कभी एशिया के सबसे अमीर और दुनिया के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति के रूप में जाना जाता था. अहमदाबाद के एक मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले और शिक्षा भी पूरी ना कर पाने वाले एक व्यक्ति के लिए इसे एक अचंभित करने वाली उपलब्धि माना जाता था.
तस्वीर: Amit Dave/REUTERS
सादा शुरुआत
कहा जाता है कि गौतम अदाणी ने कॉलेज शिक्षा छोड़ कर मुंबई में हीरों का कारोबार शुरू किया. बाद में अहमदाबाद लौट कर उन्होंने अपने भाई के साथ मिल कर प्लास्टिक आयात करने का व्यापार किया. फिर 1980 के दशक में उन्होंने अदाणी एंटरप्राइजेज की स्थापना की.
तस्वीर: Jack Guez/AFP
आर्थिक सुधारों का लाभ
1990 के दशक में जब भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण और वैश्वीकरण का दौर आया तब अदाणी ने अपने व्यापार का विस्तार किया और बंदरगाहों, निर्माण और कोयला खनन में निवेश करना शुरू किया. उनकी पहली बड़ी परियोजना मुंद्रा बंदरगाह आज भारत का सबसे बड़ा व्यावसायिक बंदरगाह है और वो देश के सबसे बड़े निजी बंदरगाह ऑपरेटर हैं.
तस्वीर: Indranil Aditya/NurPhoto/picture alliance
तेजी से विस्तार
इसके बाद एक दशक के अंदर ही वो भारत में कोयला खदानों के सबसे बड़े डेवलपर और ऑपरेटर बन गए. आज अदाणी समूह बड़े शहरों में एयरपोर्ट चलाता है, सड़कें, बिजली, सैन्य उपकरण, कृषि उपकरण और उत्पाद आदि बनाता है और मीडिया संस्थान भी चलाता है. अदाणी समूह का लक्ष्य है 2030 तक अक्षय ऊर्जा में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बनना.
तस्वीर: Munsif Vengattil/REUTERS
ऋण पर खड़ा साम्राज्य
शेयर बाजार में अदाणी एंटरप्राइजेज के शेयरों के दाम सिर्फ पांच सालों में 1,000 प्रतिशत बढ़ गए. लेकिन समीक्षकों का कहना है कि अदाणी समूह का इतनी तेजी से हुआ विस्तार ऋण के दम पर हुआ है. समूह के ऊपर करीब 2,400 अरब रुपयों का ऋण है, जिसमें से करीब 730 अरब रुपयों का ऋण भारतीय बैंकों से लिया गया है.
तस्वीर: Sam Panthaky/AFP/Getty Images
मोदी से संबंध
समीक्षकों का यह भी कहना है कि नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब गौतम अदाणी ने उनसे हाथ मिलाया और जब मोदी प्रधानमंत्री बने तब उनके करीब संबंधों का फायदा अडानी को राष्ट्रीय स्तर पर मिला. पहली बार प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी चुनाव अभियान में अक्सर अदाणी के चार्टर्ड विमान में यात्रा करते हुए नजर आते थे.
तस्वीर: Siddharaj Solanki/Hindustan Times/IMAGO
सरकारी समर्थन के आरोप
आलोचकों का कहना है कि मोदी से दोस्ती होने की वजह से अदाणी अपने प्रतिद्वंदियों से आगे निकल पाए, व्यापार का विस्तार किया और बिना पर्याप्त निगरानी के ज्यादा से ज्यादा ऋण भी उठाया. गौतम अदाणी ने इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया है.
अमेरिकी कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने जनवरी 2023 में एक रिपोर्ट जारी कर अदाणी समूह पर इतिहास की सबसे बड़ी कॉर्पोरेट धोखाधड़ी का आरोप लगाया. हिंडनबर्ग का आरोप है कि गौतम अदाणी ने लेखा धोखाधड़ी की है और ऑफशोर कर पनाह वाले देशों के रास्ते पैसे लगा कर अपनी कंपनियों के शेयरों के दामों को कृत्रिम रूप से बढ़ाया.
एक रिपोर्ट का असर
अदाणी समूह ने इन आरोपों का भी खंडन किया है लेकिन हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद समूह को बड़ा धक्का लगा है. बाजार में समूह की पूंजी में 8000 अरब से ज्यादा की गिरावट आई है और गौतम अदाणी ने भी सबसे अमीर लोगों की सूची में अपना स्थान खो दिया है.
तस्वीर: Hindustan Times/imago images
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पिछले कुछ सालों में उनकी संपत्ति 2000 प्रतिशत तक बढ़ी है. उनकी कंपनियों के शेयर तेजी से ऊपर गए है. अदाणी का सरकारों से नजदीकी संबंध रहा है. पहले वह कांग्रेस पार्टी के करीब माने जाते थे. अब उनके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी रिश्ते कहे जाते हैं.
उनके समर्थकों का कहना है कि उन्होंने सरकारी प्राथमिकताओं के मुताबिक निवेश किया. वहीं, आलोचक कहते हैं कि उनका काम सरकार की मदद से बढ़ा है. विपक्षी पार्टियां आरोप लगाती हैं कि मोदी सरकार ने नियमों में बदलाव कर अदाणी को फायदा पहुंचाया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अदाणी की गिरफ्तारी की मांग की और प्रधानमंत्री पर उन्हें बचाने का आरोप लगाया.
पिछले साल अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने अदाणी ग्रुप पर "कॉर्पोरेट इतिहास की सबसे बड़ी धोखाधड़ी" का आरोप लगाया था. इसके बाद उनकी कंपनियों के शेयरों का बाजार मूल्य 68 अरब डॉलर तक घट गया था. अदाणी ग्रुप ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सभी नियामक खुलासे समय पर किए गए हैं.