अमेरिका में हर दस साल पर जनगणना होती है. लोगों को रंग के आधार पर गिना जाता है. श्वेत और अश्वेत. लेकिन इस बार सऊदी अरब से आए लोगों को लेकर बड़ी उलझन पैदा हो गई है.
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अधिकारी समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें श्वेतों में रखा जाए, अश्वेतों में या फिर अन्य कहा जाए. 45 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है कि अन्य श्रेणियां बनाने पर बात हो रही है. इनमें मध्य पूर्व, अफ्रीका और एशिया से आकर अमेरिका में बसे लोगों को अलग जगह मिल सकती है.
सेंसस ब्यूरो की विश्लेषक रेचल मार्क्स कहती हैं कि यह रिसर्च नस्ल और मूल देश के आधार पर अमेरिका में रहने वाले लोगों के बारे में बेहतर जानकारी उपलब्ध करा सकेगी. नई श्रेणी क्या हो, इस बारे में बात अंतिम दौर में है. 'मिडल ईस्ट- नॉर्थ अफ्रीकन' अगली कैटिगरी हो सकती है. लेकिन इस कैटिगरी में जो लोग शामिल होंगे, उन्हें थोड़ी आपत्ति है. इस कैटिगरी में शामिल होने वाले ज्यादातर लोग मुसलमान होंगे और उन्हें लगता है कि इस तरह अगर उनकी अलग से पहचान हो जाएगी तो उन्हें मुश्किल हो सकती है. यूएस काउंसिल ऑफ मुस्लिम ऑर्गनाइजेशंस के महासचिव औसामा जमाल कहते हैं, "हमें लगता है कि डॉनल्ड ट्रंप के युग में इस तरह का ठप्पा खतरनाक हो सकता है. अगर कोई है जो मुसलमानों पर प्रतिबंध लगाना चाहता है या उन पर अलग से निगरानी रखना चाहता है, तो उसे क्या इस तरह का औजार देना सही होगा?"
यह भी देखिए, अमेरिका में 130 साल की हो गई है सुंदरी
130 साल की हुई सुंदरी
स्टैचु ऑफ लिबर्टी 130 साल का हो गया है. 28 अक्टूबर को फ्रांस के इस तोहफे को अमेरिका में स्थापित किया गया था.
तस्वीर: Getty Images/D. Angerer
जैसे भारत का ताज
जैसे भारत का ताज महल दुनिया भर में मशहूर है, जैसे ऐफिल टावर पैरिस की पहचान है, जैसे मिस्र का नाम लेते ही पिरामिड याद आते हैं, उसी तरह अमेरिका की पहचान स्टैचु ऑफ लिबर्टी है.
तस्वीर: Getty Images/D. Angerer
आजादी का प्रतीक
यह शायद दुनिया का सबसे मशहूर बुत है. यह सिर्फ सुंदर नहीं है, एक ऐसी भावना का प्रतीक भी है जिसे दुनिया का हर इंसान जीना चाहता है. यानी आजादी.
तस्वीर: Fotolia/ThomasSaupe
किसने बनाया
इस बुत को बनाया था मशहूर फ्रांसीसी मूर्तिकार फ्रेडरिक ऑगस्टे बारटोल्डी ने. देखिए, उनकी यह दुर्लभ तस्वीर है.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
हाथ में मशाल
1876 में फिलाडेल्फिया के फेयर में यह मशाल खूब भीड़ खींच रही थी. स्टैचु ऑफ लिबर्टी को फ्रांस से अमेरिका 300 टुकड़ों में भेजा गया था.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
एक और टुकड़ा
300 जहाज यात्राओं के बाद यह न्यूयॉर्क में जमा हुआ. और जोड़े जाने से पहले इन टुकड़ों की प्रदर्शनी लगाई गई थी.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
पहले पांव
1885 में स्टैचु के पांव न्यूयॉर्क पहुंचे और तब जाकर इन टुकड़ों को जोड़ने का काम शुरू हुआ था.
तस्वीर: Imago/WHA United Archives
4 जुलाई 1776
स्टैचु ऑफ लिबर्टी के हाथ में किताब है जिस पर एक तारीख लिखी है. यह तारीख अमेरिका की आजादी की तारीख है.
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मरम्मत
स्टैचु की लगातार मरम्मत होती रहती है. 2011 में ही इसके अंदर की चीजें बदली गई हैं. और ऊपर चढ़ने वाली सीढ़ी चौड़ी की गई है.
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बीच के वे 8 साल
11 सितंबर 2001 के हमले के बाद स्टैचु को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया. 2009 में आखिर इसे दोबारा खोला गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. A. Clary
पैरिस में चार बुत
फ्रांस को भी स्टैचु ऑफ लिबर्टी से प्यार था. अमेरिका को तोहफा देने के बाद उन्होंने चार बुत और बनाए. अब पैरिस में ये चार बुत खड़े हैं.
तस्वीर: Imago/UIG/E. Nathan
फिल्म स्टार है सुंदरी
स्टैचु ऑफ लिबर्टी हॉलीवुड की दर्जनों फिल्मों में नजर आ चुका है. डे ऑफ्टर टुमॉरो में इसकी छवि गजब दिखी थी, जब तूफान के बाद बस यही बचा दिखाया गया.
तस्वीर: Imago/Unimedia Images
विरासत
1984 में इस स्टैचु को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज इमारत का दर्जा दिया गया. 130 साल बाद भी यह बुत उसी ऊर्जा से भरपूर है, जो आजादी की ऊर्जा होती है.
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इस बहस का नतीजा यह हुआ है कि ईरानी, लेबनानी, सऊदी और अन्य विदेशी मूल के लोगों के सामने अपनी नस्ली श्रेणी चुनने का सवाल आ खड़ा हुआ है. जमाल पूछते हैं, "क्या हम श्वेत हैं? काले तो हम बिल्कुल नहीं हैं, भले ही हममें से कुछ अफ्रीकी हों. क्या यह त्वचा के रंग का सवाल है? सवाल हमारे मूल देश का है या कुछ और? हर कोई इसी उलझन में है."
कुछ देशों में नस्ली आधार पर जनगणना को ठीक नहीं माना जाता है लेकिन अमेरिका में रंग और मूल देश के आधार पर भी गिनती की जाती है. इससे अधिकारियों को काम की काफी जानकारी मिल जाती है. जैसे उन्हें पता चलता है कि काले लोगों में बेरोजगारी की क्या दर है या फिर विदेश से आए कितने लोग पढ़े लिखे हैं. धर्म की भी जानकारी शामिल हो जाती है. जनगणना में सीधे सीधे पूछा जाता है, आप किस नस्ल के हैं. लेकिन 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमले के बाद इस तरह की आशंकाएं जाहिर की गई हैं कि यह जानकारी मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल हो सकती है. 2004 में इस बारे में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था जब 2000 के जनगणना के आंकड़ों से यह बात सार्वजनिक हो गई कि अमेरिका में कौन कौन सऊदी अरब के मूल से है. चूंकि 11 सितंबर के कई हमलावर सऊदी मूल के थे तो लोग डर गए थे. स्टैन्फर्ड के कला संकाय में पढ़ाने वाले मैथ्यू स्निप कहते हैं, "अरब मूल के मुसलमान समुदाय में इस बात पर काफी नाराजगी देखी गई थी. उन्हें लग रहा था कि आंतरिक सुरक्षा विभाग इस जानकारी का इ्स्तेमाल उन पर निगरानी के लिए कर सकता है."
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