यमन के हूथी विद्रोहियों द्वारा ईरान का समर्थन किए जाने की बात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चा में हैं. लेकिन उनका आंदोलन अपनी जमीन पर है और वे अपने देश की शाही व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं.
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हूथी आंदोलन का नाम इससे जुड़े परिवारों के कारण से आया है. यह परिवार सऊदी अरब की सीमा पर स्थित यमन के उत्तरी प्रांत सादा के पास रहता था. अब यह आंदोलन एक युद्ध में बदल गया है. अमेरिका के समर्थन वाला सऊदीनीत गठबंधन हाल के दिनों में इसका सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है. 2004 में यमन के पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह को चुनौती देने के बाद से इसका प्रभाव बढ़ा. इसके बाद 2014 तक तत्कालीन राजधानी साना और देश के उत्तरी क्षेत्र में हूथी विद्रोहियों ने अपनी पकड़ मजबूत की है. यमन में गृह युद्ध के समय सऊदी अरब और उसके सहयोगियों की सीमा पर लगे क्षेत्र में काफी गतिशीलता रही. ऐसे में ईरान के समर्थन से पूरी कहानी बयान नहीं होती है.
ईरान का कथित समर्थन
सऊदी अरब के पश्चिमी सहयोगी हूथी विद्रोहियों को हथियार और आर्थिक सहयोग करने का आरोप ईरान पर लगाते हैं. तेहरान के बयान भी हूथी के समर्थन में रहे हैं. लेकिन हूथी समर्थक इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते रहे हैं. विशेषज्ञ इशारा करते हैं कि हूथी जिन मिसाइलों और ड्रोनों का इस्तेमाल कर कर रहे हैं, वह ईरानी डिजाइन और तकनीक की हैं. हालांकि कई अन्य सूत्र दावा करते हैं कि मिसाइल और छोटे हथियार ओमान के रास्ते आए हैं. लेकिन जिस आधार पर ये दावे किए जा रहे हैं, वह काफी पेंचिदा है.
यमन को लेकर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने पाया कि ईरान ने उनके अभियान के लिए पैसे जुटाने के लिए हूथियों को तेल दिया. लेकिन इसका कोई सीधा आर्थिक या सैन्य संबंध नहीं मिलता है. इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के एक वरिष्ठ विश्लेषक पीटर सैलिसबरी ने बताया, "यदि ईरान हूथी को सीधे तौर पर समर्थन कर रहा है तो यह एक बदनामी भरा कदम है."
सैन्य क्षमता
सेना के ही कुछ लोगों से हूथियों की सैन्य ताकत बनी है. इसे अंसर अल्लाह के रूप में जाना जाता है. पूर्व यमनी सेना के कुछ 60 प्रतिशत सैनिक हूथी समूह के साथ जुड़े हैं. 2019 के सितंबर महीने में पीटर सैलिसबरी और रेनाड मंसूर ने एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें उन्होंने अनुमान लगाया था कि हूथी विद्रोहियों के पास एक लाख 80 हजार से लेकर दो लाख लोगों वाली सेना है. सेना के ये जवान टैंक चलाने, एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल चलाने, लंबी दूरी की बैलेस्टिक मिसाइल चलाने से लेकर तकनीकी वाहन तक को चलाने में सक्षम हैं.
समूह का दावा है कि 2014 में राज्य पर कब्जा करने के बाद उनके शस्त्रागार में से कई उन्नत हथियारों को जब्त कर लिया गया था. हूथी विद्रोहियों के पास सऊदी की तरह आर्थिक और उन्नत मिलिट्री संसाधन नहीं हैं. इसके बावजूद उन्होंने प्रमुख आबादी वाले जगहों सहित यमन के लगभग एक तिहाई क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है. यहां तक की सऊदी से लगे सीमा क्षेत्र का भी उल्लंघन किया है.
वे यहां तक कैसे पहुंचे
1980 के दशक में हूथी का उदय हुआ. यमन के उत्तरी क्षेत्र में शिया इस्लाम की एक शाखा जायडिज्म के बागियों के साथ एक बड़ा आदिवासी संगठन बना. यह पूरी तरह सलाफी विचारधारा के विस्तार के विरोध में था. उन्होंने देखा कि अब्दुल्ला सालेह की आर्थिक नीतियों की वजह से उत्तरी क्षेत्र में असमानता बढ़ी है. वे इस आर्थिक असमानता से नाराज थे.
ऐसी थीं पैगंबर मोहम्मद की बीवी
पैगंबर मोहम्मद की पहली बीवी खदीजा बिंत ख्वालिद की इस्लाम धर्म में महिलाओं के अधिकार तय करवाने में अहम भूमिका मानी जाती है. कई मायनों में उन्हें मुस्लिम समुदाय की पहली फेमिनिस्ट भी माना जाता है.
पिता से सीखे व्यापार के गुर
खदीजा के पिता मक्का के रहने वाले एक सफल व्यापारी थे. कुराइश कबीले के पुरुष प्रधान समाज में खदीजा को हुनर, ईमानदारी और भलाई के सबक अपने पिता से मिले. उनके पिता फर्नीचर से लेकर बर्तनों और रेशम तक का व्यापार करते थे. उनका कारोबार उस समय के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों मक्का से लेकर सीरिया और यमन तक फैला था.
आजादख्याल और साहसी
खदीजा की शादी पैगंबर मोहम्मद से पहले भी दो बार हो चुकी थी. उनके कई बच्चे भी थे. दूसरी बार विधवा होने के बाद वे अपना जीवनसाथी चुनने में बहुत सावधानी बरतना चाहती थीं और तब तक अकेले ही बच्चों की परवरिश करती रहीं. इस बीच वे एक बेहद सफल व्यवसायी बन चुकी थीं, जिसका नाम दूर दूर तक फैला.
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ना उम्र की सीमा हो
पैगंबर मोहम्मद से शादी के वक्त खदीजा की उम्र 40 थी तो वहीं मोहम्मद की मात्र 25 थी. पैगंबर मोहम्मद को उन्होंने खुद शादी के लिए संदेश भिजवाया था और फिर शादी के बाद 25 सालों तक दोनों केवल एक दूसरे के ही साथ रहे. खदीजा की मौत के बाद पैगंबर मोहम्मद ने 10 और शादियां कीं. आखिरी बीवी आयशा को तब जलन होती थी जब वे सालों बाद तक अपनी मरहूम बीवी खदीजा को याद किया करते.
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आदर्श पत्नी, प्रेम की मूरत
अपनी शादी के 25 सालों में पैगंबर मोहम्मद और खदीजा ने एक दूसरे से गहरा प्यार किया. तब ज्यादातर शादियां जरूरत से की जाती थीं लेकिन माना जाता है कि हजरत खदीजा को पैगंबर से प्यार हो गया था और तभी उन्होंने शादी का मन बनाया. जीवन भर पैगंबर पर भरोसा रखने वाली खदीजा ने मुश्किल से मुश्किल वक्त में उनका पूरा साथ दिया. कहते हैं कि उनके साथ के दौरान ही पैगंबर पर अल्लाह ने पहली बार खुलासा किया.
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पहले मुसलमान
हजरत खदीजा को इस्लाम में विश्वास करने वालों की मां का दर्जा मिला हुआ है. वह पहली इंसान थीं जिन्होंने मोहम्मद को ईश्वर के आखिरी पैगंबर के रूप में स्वीकारा और जिन पर सबसे पहले कुरान नाजिल हुई. माना जाता है कि उन्हें खुद अल्लाह और उसके फरिश्ते गाब्रियाल ने आशीर्वाद दिया. अपनी सारी दौलत की वसीयत कर उन्होंने इस्लाम की स्थापना में पैगंबर मोहम्मद की मदद की.
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गरीबों की मददगार
अपने व्यापार से हुई कमाई को हजरत खदीजा गरीब, अनाथ, विधवा और बीमारों में बांटा करतीं. उन्होंने अनगिनत गरीब लड़कियों की शादी का खर्च भी उठाया और इस तरह एक बेहद नेक और सबकी मदद करने वाली महिला के रूप में इस्लाम ही नहीं पूरे विश्व के इतिहास में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा.
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2000 के दशक में एक नागरिक सेना बनने के बाद उन्होंने 2004 से 2010 तक सालेह की सेना से छह बार युद्ध किया. वर्ष 2011 में अरब के हस्तक्षेप के बाद यह युद्ध शांत हुआ. देश में शांति की पहल के लिए दो साल तक वार्ता हुई लेकिन यह असफल रही. इसके बाद हूथियों ने नए सऊदी समर्थित यमनी नेता अबेद रब्बो मंसूर हादी को सत्ता से बेदखल कर दिया और राजधानी सना को अपने कब्जे में ले लिया. हूथियों की बढ़ती ताकत से सऊदी अरब और यूएई घबरा गए. उन्होंने अमेरिका तथा ब्रिटेन की सहायता से हूथियों के खिलाफ हवाई और जमीनी हमले करने शरू कर दिए.
जायडिज्म और हूथी की विचारधारा क्या है?
सभी जैदी हूथी नहीं हैं. शिया मुसलमानों का एक संप्रदाय है जैदी फाइवर, जो इमामत के उत्तराधिकार के विवाद में बना. इनकी धार्मिक मान्यताएं असल में ईरान, इराक और लेबनान के शिया संप्रदाय की तुलना में सुन्नी मान्यताओं के ज्यााद करीब हैं. इसे मानने वालों ने यमन के उत्तरी क्षेत्र में 893 ईसवी में एक जैदी प्रांत की स्थापना की और यह 1962 तक रहा.
हूथियों की राजनीतिक विचारधारा शाही शासन के खिलाफ है. ये इस्राएल, अमेरिका और सऊदी अरब को दुश्मन मानते हैं. हालांकि कुछ हूथियों ने सऊदी सीमा के उत्तर में क्षेत्रों के दावे किए हैं लेकिन वे जिस तरह से काम कर रहे हैं, ऐसे में यह साफ संकेत है कि उनका लक्ष्य यमन के अन्य क्षेत्रों पर भी अपना नियंत्रण स्थापित करना है.
अरब दुनिया में शुमार यमन की गिनती दुनिया के गरीब देशों में होती है. साल 2011 के बाद से देश में राजनीतिक खींचतान जारी है. हालात बिगड़े और साल 2015 से यहां गृहयुद्ध शुरू हो गया है. एक नजर इस युद्ध की वजहों पर.
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कब हुई शुरुआत
देश के आंतरिक मसलों से शुरू हुआ यह युद्ध आज कई मुल्कों के बीच की लड़ाई बन गया है. साल 2011 में अरब वसंत की लहर जब यमन पहुंची तो साल 1978 से यमन की सत्ता पर काबिज अली अबदुल्लाह सालेह को हटाने की आवाज उठने लगी. उस वक्त हुए सत्ता परिवर्तन में राष्ट्रपति की कुर्सी अबेदरब्बो मंसूर हादी को मिल गई और तब से वही देश के राष्ट्रपति हैं.
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नई सरकार की नाकामी
नए राष्ट्रपति हादी को सत्ता मिलने से पूर्व राष्ट्रपति सालेह का वफादार खेमा नाराज हो गया. हादी सरकार के सामने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, खाद्य संकट जैसी बुनियादी समस्याएं भी थीं. साथ ही अल कायदा जैसे आंतकी गुटों से निपटना भी उसके लिए एक चुनौती था. कुल मिलाकर स्थिरता की उम्मीद से जिस नई सरकार का गठन किया गया था वह असल काम करने में नाकाम रही.
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कहां से लगी चिंगारी
नई सरकार की इस प्रशासनिक नाकामी का फायदा उठाते हुए हूथी विद्रोहियों ने देश के उत्तरी प्रांत सदा और उसके आसपास के इलाके पर कब्जा कर लिया. हूथी विद्रोही यमन के अल्पसंख्यक शिया जैदी मुसलमानों की नुमाइंदगी करते हैं. साल 2000 के दौरान इन हूथी विद्रोहियों ने उस वक्त राष्ट्रपति रहे सालेह की फौज के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी लेकिन ये संघर्ष उत्तरी यमन के सूबे सदा तक ही सीमित रहे.
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दुश्मन-दुश्मन हुए साथ
अब तक हूथी विद्रोही, सालेह को अपना दुश्मन मानते थे. लेकिन हादी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए सालेह खेमे ने हूथी विद्रोहियों से हाथ मिला लिया. दुश्मनों की इस दोस्ती का असर हुआ और साल 2014 में हूथी विद्रोही और सालेह की फौज ने मिलकर यमन की राजधानी सना पर नियंत्रण स्थापित कर लिया. इसके बाद यमन के दूसरे सबसे बड़े शहर अदन को लक्ष्य बनाया गया.
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शिया-सुन्नी युद्ध
शिया मुसलमानों की नुमाइंदगी करने वाले हूथी विद्रोहियों के बढ़ते प्रभाव के चलते साल 2015 में सऊदी अरब, यमन के इस गृहयुद्ध में हादी सरकार को समर्थन देने लगा. सऊदी अरब, ईरान पर हूथियों का साथ देने का आरोप लगाता है. ईरान और सऊदी अरब के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. सऊदी अरब कहता है कि ईरान, अरब जगत पर अपना असर बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहा है.
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सऊदी अरब के साथ
सऊदी अरब का साथ सुन्नी बहुल कतर, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र, जोर्डन जैसे देश सीधे-सीधे दे रहे हैं. इसके अलावा सेनेगल, मोरक्को, सूडान भी इसके साथ हैं. अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों से सऊदी अरब को हथियार और अन्य सहायता भी मिलती है. वहीं दूसरी तरफ ईरान हूथी विद्रोहियों का साथ देने से इनकार करता है.
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पूर्व राष्ट्रपति की हत्या
हूथी विद्रोहियों का साथ देने वाले यमन के पूर्व राष्ट्रपति सालेह ने साल 2017 में हूथियों का तीन साल पुराना साथ छोड़ने की घोषणा की थी. साथ ही कहा था कि वह सऊदी अरब और विद्रोहियों के बीच वार्ता के पक्ष में हैं. सालेह के इस प्रस्ताव को सऊदी अरब ने भी सकारात्मक ढंग से लिया था. लेकिन हूथी विद्रोहियों ने सालेह पर धोखे का आरोप लगाते हुए उनकी हत्या कर दी थी.
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अलगाववादियों की भूमिका
इन सब के बीच यहां अलगाववादियों की भी भूमिका बहुत अहम है. साल 1990 में दक्षिणी और उत्तरी यमन को मिलाकर यमन राष्ट्र का गठन किया गया था. लेकिन अब भी दक्षिण यमन के क्षेत्र में अलगाववादी भावना शांत नहीं हुईं हैं. अलगाववादी पहले हूथी विद्रोहियों के खिलाफ सरकार का समर्थन करते थे. लेकिन अब ये गुट सरकार पर भ्रष्टाचार और भेदभाव का आरोप लगाते हैं जिसके बाद तनाव बढ़ा है.
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आतंकी संगठनों की सक्रियता
आतंकी गुट अल कायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े चरमपंथी संगठन भी दोनों पक्षों पर हमला करते रहते हैं. साल 2015 से शुरू हुए इस गृहयुद्ध में अब तक आठ हजार से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 42 हजार से भी अधिक लोग घायल हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यमन में दो करोड़ से भी अधिक लोगों को तत्काल मदद की जरूरत है. देश के इस आंतरिक संकट ने मानवीय त्रासदी का रूप ले लिया है.
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आज के हालात
देश की मौजूदा सरकार फिलहाल अदन को अपना ठिकाना बनाए हुए है. लेकिन अदन की सरकारी इमारतों पर अलगाववादियों का कब्जा है. वहीं राजधानी सना में हूथी विद्रोहियों का कब्जा है. जमीनी स्तर पर यमन में हालात बहुत खराब है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों मुताबिक देश में महामारी शुरू होने के बाद से हैजे के चलते अब तक दो हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं.