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कौन हैं यमन के हूथी विद्रोही और वे क्या चाहते हैं

२ अक्टूबर २०१९

यमन के हूथी विद्रोहियों द्वारा ईरान का समर्थन किए जाने की बात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चा में हैं. लेकिन उनका आंदोलन अपनी जमीन पर है और वे अपने देश की शाही व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं.

Jemen Sanaa Huthi-Rebellen
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Al-Ansi

हूथी आंदोलन का नाम इससे जुड़े परिवारों के कारण से आया है. यह परिवार सऊदी अरब की सीमा पर स्थित यमन के उत्तरी प्रांत सादा के पास रहता था. अब यह आंदोलन एक युद्ध में बदल गया है. अमेरिका के समर्थन वाला सऊदीनीत गठबंधन हाल के दिनों में इसका सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है. 2004 में यमन के पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह को चुनौती देने के बाद से इसका प्रभाव बढ़ा. इसके बाद 2014 तक तत्कालीन राजधानी साना और देश के उत्तरी क्षेत्र में हूथी विद्रोहियों ने अपनी पकड़ मजबूत की है. यमन में गृह युद्ध के समय सऊदी अरब और उसके सहयोगियों की सीमा पर लगे क्षेत्र में काफी गतिशीलता रही. ऐसे में ईरान के समर्थन से पूरी कहानी बयान नहीं होती है.

ईरान का कथित समर्थन

सऊदी अरब के पश्चिमी सहयोगी हूथी विद्रोहियों को हथियार और आर्थिक सहयोग करने का आरोप ईरान पर लगाते हैं. तेहरान के बयान भी हूथी के समर्थन में रहे हैं. लेकिन हूथी समर्थक इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते रहे हैं. विशेषज्ञ इशारा करते हैं कि हूथी जिन मिसाइलों और ड्रोनों का इस्तेमाल कर कर रहे हैं, वह ईरानी डिजाइन और तकनीक की हैं. हालांकि कई अन्य सूत्र दावा करते हैं कि मिसाइल और छोटे हथियार ओमान के रास्ते आए हैं. लेकिन जिस आधार पर ये दावे किए जा रहे हैं, वह काफी पेंचिदा है.

यमन को लेकर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने पाया कि ईरान ने उनके अभियान के लिए पैसे जुटाने के लिए हूथियों को तेल दिया. लेकिन इसका कोई सीधा आर्थिक या सैन्य संबंध नहीं मिलता है. इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के एक वरिष्ठ विश्लेषक पीटर सैलिसबरी ने बताया, "यदि ईरान हूथी को सीधे तौर पर समर्थन कर रहा है तो यह एक बदनामी भरा कदम है."

तस्वीर: Reuters/TV/Al Masirah/Houthi Military Media Center

सैन्य क्षमता

सेना के ही कुछ लोगों से हूथियों की सैन्य ताकत बनी है. इसे अंसर अल्लाह के रूप में जाना जाता है. पूर्व यमनी सेना के कुछ 60 प्रतिशत सैनिक हूथी समूह के साथ जुड़े हैं. 2019 के सितंबर महीने में पीटर सैलिसबरी और रेनाड मंसूर ने एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें उन्होंने अनुमान लगाया था कि हूथी विद्रोहियों के पास एक लाख 80 हजार से लेकर दो लाख लोगों वाली सेना है. सेना के ये जवान टैंक चलाने, एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल चलाने, लंबी दूरी की बैलेस्टिक मिसाइल चलाने से लेकर तकनीकी वाहन तक को चलाने में सक्षम हैं.

समूह का दावा है कि 2014 में राज्य पर कब्जा करने के बाद उनके शस्त्रागार में से कई उन्नत हथियारों को जब्त कर लिया गया था. हूथी विद्रोहियों के पास सऊदी की तरह आर्थिक और उन्नत मिलिट्री संसाधन नहीं हैं. इसके बावजूद उन्होंने प्रमुख आबादी वाले जगहों सहित यमन के लगभग एक तिहाई क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है. यहां तक की सऊदी से लगे सीमा क्षेत्र का भी उल्लंघन किया है.

वे यहां तक कैसे पहुंचे

1980 के दशक में हूथी का उदय हुआ. यमन के उत्तरी क्षेत्र में शिया इस्लाम की एक शाखा जायडिज्म के बागियों के साथ एक बड़ा आदिवासी संगठन बना. यह पूरी तरह सलाफी विचारधारा के विस्तार के विरोध में था. उन्होंने देखा कि अब्दुल्ला सालेह की आर्थिक नीतियों की वजह से उत्तरी क्षेत्र में असमानता बढ़ी है. वे इस आर्थिक असमानता से नाराज थे.

2000 के दशक में एक नागरिक सेना बनने के बाद उन्होंने 2004 से 2010 तक सालेह की सेना से छह बार युद्ध किया. वर्ष 2011 में अरब के हस्तक्षेप के बाद यह युद्ध शांत हुआ. देश में शांति की पहल के लिए दो साल तक वार्ता हुई लेकिन यह असफल रही. इसके बाद हूथियों ने नए सऊदी समर्थित यमनी नेता अबेद रब्बो मंसूर हादी को सत्ता से बेदखल कर दिया और राजधानी सना को अपने कब्जे में ले लिया. हूथियों की बढ़ती ताकत से सऊदी अरब और यूएई घबरा गए. उन्होंने अमेरिका तथा ब्रिटेन की सहायता से हूथियों के खिलाफ हवाई और जमीनी हमले करने शरू कर दिए.

जायडिज्म और हूथी की विचारधारा क्या है?

सभी जैदी हूथी नहीं हैं. शिया मुसलमानों का एक संप्रदाय है जैदी फाइवर, जो इमामत के उत्तराधिकार के विवाद में बना. इनकी धार्मिक मान्यताएं असल में ईरान, इराक और लेबनान के शिया संप्रदाय की तुलना में सुन्नी मान्यताओं के ज्यााद करीब हैं. इसे मानने वालों ने यमन के उत्तरी क्षेत्र में 893 ईसवी में एक जैदी प्रांत की स्थापना की और यह 1962 तक रहा.

हूथियों की राजनीतिक विचारधारा शाही शासन के खिलाफ है. ये इस्राएल, अमेरिका और सऊदी अरब को दुश्मन मानते हैं. हालांकि कुछ हूथियों ने सऊदी सीमा के उत्तर में क्षेत्रों के दावे किए हैं लेकिन वे जिस तरह से काम कर रहे हैं, ऐसे में यह साफ संकेत है कि उनका लक्ष्य यमन के अन्य क्षेत्रों पर भी अपना नियंत्रण स्थापित करना है.

टॉम ऐलिन्सन/आरआर

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