डब्ल्यूएचओ: तीसरी खुराक की जगह गरीब देशों को दें वैक्सीन
२० अगस्त २०२१
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है कि वे अमीर और गरीब के बीच की खाई को न बढ़ाएं. डब्ल्यूएचओ ने अमीर देशों के अपने नागरिकों को वैक्सीन की तीसरी खुराक देने की योजना की आलोचना की है.
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कुछ विकसित और अमीर देशों ने अपने नागरिकों को कोरोना वैक्सीन की तीसरी खुराक देने का फैसला किया है. इस्राएल में वैक्सीन की तीसरी खुराक पहले से ही दी जा रही है. कुछ ऐसा ही फैसला अमेरिका ने भी किया है. यूरोपीय देशों में भी कुछ ऐसा ही करने का विचार किया जा रहा है.
इस संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य आपातकाल प्रमुख माइकल रायन ने इस विचार का मजाक उड़ाते हुए कहा, "हम उन लोगों को अतिरिक्त लाइफ जैकेट देने की योजना बना रहे हैं जिनके पास पहले से लाइफ जैकेट हैं, जबकि हम अन्य लोगों को डूबने के लिए छोड़ रहे हैं."
वैक्सीन की तीसरी खुराक
यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के निदेशक रोशेल वलेंस्की ने कहा कि अमेरिकी नागरिकों को तीसरी खुराक दी जाएगी और उनका मुख्य लक्ष्य अमेरिकियों को वैसे भी सुरक्षित रखना था.
कोरोना वैक्सीन की तीसरी खुराक के बारे में अमेरिकी और इस्राएली वैज्ञानिकों का कहना है कि समय के साथ इंसानी शरीर में वैक्सीन की प्रभावशीलता कम होने लगती है और इसकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए तीसरी खुराक या बूस्टर डोज की जरूरत होती है. इनमें से कई देश नए कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट को खतरनाक स्ट्रेन मानते हैं.
डेल्टा वेरिएंट के बढ़ते मामले के बाद इस्राएली सरकार ने 50 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों को टीके की तीसरी खुराक देना शुरू कर दिया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन अभी तक कोरोना वैक्सीन की तीसरी खुराक देने पर सहमत नहीं हुआ है. बूस्टर डोज की जरूरत के बारे में संगठन कम आश्वस्त है. उसका कहना है कि विज्ञान ने अभी तक बढ़ी हुई प्रभावशीलता का स्पष्ट प्रमाण नहीं दिया है.
कोविड के खिलाफ कुछ कामयाबियां
कोविड के खिलाफ वैज्ञानिकों का संघर्ष जारी है. दुनिया भर के वैज्ञानिक अलग-अलग दिशाओं में शोध कर रहे हैं ताकि वायरस को बेहतर समझा जा सके और उससे लड़ा जा सके. जानिए, हाल की कुछ सफलताओं के बारे में.
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स्मेल से कोविड टेस्ट
कोरोनावायरस से संक्रमित होने पर अक्सर मरीज की सूंघने की शक्ति चली जाती है. अब वैज्ञानिक इसे कोविड का पता लगाने की युक्ति बनाने पर काम कर रहे हैं. एक स्क्रैच-ऐंड-स्निफ कार्ड के जरिए कोविड का टेस्ट किया गया और शोध में सकारात्मक नतीजे मिले. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह नाक से स्वॉब लेकर टेस्ट करने से बेहतर तरीका हो सकता है.
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मां के दूध में वैक्सीन नहीं
कोविड वैक्सीन के अंश मां के दूध में नहीं पाए गए हैं. टीका लगवा चुकीं सात महिलाओं से लिए गए दूध के 13 नमूनों की जांच के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह वैक्सीन किसी भी रूप में दूध के जरिए बच्चे तक नहीं पहुंचती.
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नाक से दी जाने वाली वैक्सीन
कोविड-19 की एक ऐसी वैक्सीन का परीक्षण हो रहा है, जिसे नाक से दिया जा सकता है. इसे बूंदों या स्प्रे के जरिए दिया जा सकता है. बंदरों पर इस वैक्सीन के सकारात्मक नतीजे मिले हैं.
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लक्षणों से पहले कोविड का पता चलेगा
वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन का पता लगाया है जो कोविड के साथ ही मनुष्य के शरीर में सक्रिय हो जाता है. कोविड के लक्षण सामने आने से पहले ही यह जीन सक्रिय हो जाता है. यानी इसके जरिए गंभीर लक्षणों के उबरने से पहले भी कोविड का पता लगाया जा सकता है. छह महीने चले अध्ययन के बाद IF127 नामक इस जीन का पता चला है.
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कैंसर मरीजों पर वैक्सीन का असर
एक शोध में पता चला है कि कैंसर का इलाज करवा रहे मरीजों पर वैक्सीन का अच्छा असर हो रहा है. हालांकि एंटिबॉडी के बनने में वक्त ज्यादा लग रहा था लेकिन दूसरी खुराक मिलने के बाद ज्यादातर कैंसर मरीजों में एंटिबॉडी वैसे ही बनने लगीं, जैसे सामान्य लोगों में.
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कोविड के बाद की मुश्किलें
वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि जिन लोगों को कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनमें से लगभग आधे ऐसे थे जिन्हें ठीक होने के बाद भी किसी न किसी तरह की सेहत संबंधी दिक्कत का सामना करना पड़ा. इनमें स्वस्थ और युवा लोग भी शामिल थे. 24 प्रतिशत को किडनी संबंधी समस्याएं हुईं जबकि 12 प्रतिशत को हृदय संबंधी.
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वैक्सीन में भी भेदभाव
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने भी पहली खुराक देने के बजाय पहले से सुरक्षित लोगों को तीसरा टीका देने के लिए दुनिया के ऐसे देशों की आलोचना की है. गेब्रयेसुस का कहना है कि इस प्रक्रिया से अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी होगी.
गेब्रयेसुस ने वैक्सीन निर्माता कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन की भी आलोचना की है. गेब्रयेसुस ने अमेरिकी वैक्सीन निर्माता कंपनी के बारे में उन रिपोर्टों का जिक्र किया जिनमें कहा जा रहा है कि कंपनी ने दक्षिण अफ्रीका में बने लाखों टीके को समृद्ध यूरोपीय संघ के देशों में बूस्टर के रूप में इस्तेमाल करने के लिए भेज दिया है.
महानिदेशक ने दवा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन को प्राथमिकता के आधार पर अफ्रीकी देशों को अपने टीके उपलब्ध कराने के लिए कहा है. उनका कहना है कि अमीर देशों के पास पहले से ही अन्य टीकों की आसान पहुंच है.
एए/सीके (एएफपी, एपी)
कोविड काल में रूप बदलती बार्बी
1959 में दुनिया में आने के बाद से उसने दर्जनों रूप बदले हैं. आजकल वह कोविड से जूझती दुनिया के रूप अपना रही है. मिलिए, कोविड में बार्बी से...
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कोविड में बार्बी, एक वैज्ञानिक
दुनियाभर में मशहूर गुड़िया बार्बी के बनानेवालों ने इसे एक नए रूप में पेश किया है. कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे वैज्ञानिकों के सम्मान में बार्बी को एक ब्रिटिश वैज्ञानिक का रूप दिया गया है. यह वैज्ञानिक हैं सारा गिल्बर्ट जिन्होंने वैक्सीन बनाने में अहम भूमिका निभाई.
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पहली बार्बी
9 मार्च 1959 को पहली बार्बी गुड़िया बाजार में आई थी. मैटल कंपनी की यह गुड़िया सुनहरे बालों और पतली कमर वाली थी, जिसे यूरोपीय लड़कियों जैसा बनाया गया था.
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प्यारी यादें
बार्बी ने दशकों से अनगिनत बच्चों के बचपन को यादों से भरा है. जाने कितने ही बच्चों के कमरों का यह अहम हिस्सा रही है. बार्बी के साथ उसका बॉयफ्रेंड केन भी एक अहम किरदार रहा है.
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कोई मुकाबला नहीं
बार्बी और केन 1980 के दशक में बड़ी हुईं तमाम लड़कियों की जिंदगी का अहम हिस्सा रहे. कई कंपनियों ने बार्बी का मुकाबला करने की कोशिश की, जैसे जर्मनी में बनी पेट्रा जो काफी कोशिशों के बाद भी बार्बी की जगह नहीं ले पाई.
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बदलते रूप
1980 के दशक में ही बार्बी का मेकओवर भी हुआ. उसे बनाने वाली कंपनी मैटल ने करियर लाइन के रूप में बार्बी के कई अलग-अलग अवतार उतारे जैसे कि एस्ट्रोनॉट, डॉक्टर, टीचर, आर्किटेक्ट आदि.
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विविधता
साल 2000 के बाद बार्बी में बड़ा बदलाव आया. अब उसका रूप एक मॉडल जैसा ना होकर एक मध्यवर्गीय कामकाजी महिला जैसा हो गया. उसके कपड़े भी चकमदार नहीं बल्कि व्यवहारिक हो गए. 2016 में मैटल ने बार्बी को चार अलग-अलग आकारों में भी पेश किया जिनमें दुबले पतले से लेकर सामान्य तक शामिल थे.
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बदलता वक्त
2017 में बार्बी ने पहली बार हिजाब पहना. वह रियो ओलंपिक में शामिल हुईं अमेरिका की तलवारबाज इब्तिहाज मुहम्मद के रूप पर बनाई गई थी.
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दुनियाभर में चाहने वाले
केन्या में बार्बी कोई शहरी आधुनिक लिबास वाली लड़की नहीं बल्कि अफ्रीका के पारंपरिक लिबास पहने एक लड़की थी.
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विफल भी रही बार्बी
बार्बी के कई रूप विफल भी रहे. जैसे फ्रीडा काल्हो वाला रूप जिस कारण मैटल को अदालत भी जाना पड़ा, जब उस पर कॉपीराइट के उल्लंघन का आरोप लगा. मैटल को उसे वापस लेना पड़ा.
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2019 के बाद
बार्बी के विशेषांक भी लोकप्रिय रहे हैं. जैसे 2019 में बार्बी को व्हील चेयर पर या एक नकली टांग लगाए बनाया गया.