डब्ल्यूएचओ द्वारा मलेरिया से मुक्त घोषित होने वाला चीन दुनिया का 40वां देश बन गया है. विशेषज्ञों की एक टीम ने स्थिति का आकलन करने के लिए चीन का दौरा किया और अब इसकी पुष्टि की है.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बुधवार को चीन को मलेरिया से मुक्त घोषित कर दिया. चीन में पिछले सत्तर सालों से इस बीमारी को पूरी तरह से खत्म करने के प्रयास किए जा रहे थे.
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने कहा, "हम चीनी लोगों को मलेरिया से निजात पाने पर बधाई देते हैं. उनकी सफलता कड़ी मेहनत का परिणाम है जो दशकों के निरंतर लक्ष्य-उन्मुख प्रयासों के बाद मिली है. इस घोषणा के साथ चीन उन देशों की सूची में शामिल हो गया है जो दुनिया को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मलेरिया मुक्त भविष्य एक साध्य लक्ष्य है."
70 साल की कोशिश
1940 के दशक में चीन में लगभग हर साल तीन करोड़ मलेरिया के मामले रिपोर्ट होते थे. तब सरकार द्वारा इसे नियंत्रित करने और मिटाने के प्रयास किए गए. इस तरह के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप इसके मामले स्थायी रूप से घटने लगे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि चीन ने दशकों पहले उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में मलेरिया-रोधी दवाओं का वितरण शुरू किया था. साथ ही मच्छरों के प्रजनन क्षेत्रों को व्यवस्थित रूप से कम किया गया और बड़े पैमाने पर मच्छरदानी लोगों को देने की व्यवस्था की गई.
मलेरिया के लिए एक नया इलाज खोजने के लिए 1967 में एक वैज्ञानिक कार्यक्रम बनाया गया, जिससे आर्टिमिसिनिन की खोज हुई. आज आर्टिमिसिनिन मलेरिया के इलाज का मुख्य आधार है.
चीन 1980 के दशक में मलेरिया से बचाव के लिए कीटनाशक वाली मच्छरदानी का बड़े पैमाने पर परीक्षण शुरू करने वाले पहले देशों में से एक है. इन कोशिशों की मदद से 1990 के दशक में मलेरिया के मामले तीन करोड़ से घटकर लगभग 11 लाख हो गए और मौतों में भी लगभग 95 प्रतिशत की गिरावट आई.
2003 के बाद से चीन ने इस दिशा में अपनी कोशिश और तेज कर दी. जिसके बाद पीड़ितों की सालाना संख्या 5,000 तक पहुंच गई.
अगर किसी देश में लगातार तीन सालों तक मच्छर जनित बीमारियों का प्रकोप नहीं हुआ है, तो ऐसे देश विश्व स्वास्थ्य संगठन में मलेरिया से मुक्ति के प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर सकते हैं. उन्हें यह भी सबूत पेश करने होंगे कि भविष्य में महामारी की स्थिति में उन्हें नियंत्रित करने की क्षमता है.
चीन में पिछले चार सालों में मलेरिया का एक भी मामला सामने नहीं आया है और उसने पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन में प्रतिरक्षा का प्रमाण पत्र देने के लिए आवेदन किया था. विशेषज्ञों ने इस साल मई में मलेरिया मुक्त स्थिति और भविष्य में प्रकोप को रोकने की तैयारियों को सत्यापित करने के लिए देश की यात्रा की थी. विशेषज्ञों द्वारा इन सभी बातों की पुष्टि करने के बाद ही चीन को बीमारी से मुक्ति का प्रमाण पत्र दिया गया.
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विश्व में मलेरिया की स्थिति
मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो मच्छरों के काटने से होती है. मादा ऐनाफेलीज मच्छरों के डंक से ये पैरासाइट इंसानी शरीर में पहुंचते हैं. पांच ऐसे पैरासाइट हैं जो इंसानों में मलेरिया पैदा करते हैं. इनमें से दो– पी फैल्सिपैरम और पी वाइवैक्स सबसे खतरनाक हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक 2019 में विश्व में मलेरिया के 22.9 करोड़ मामले दर्ज हुए. इनमें से 94 फीसदी मामले अफ्रीका से थे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अब तक करीब 40 देश इस बीमारी से मुक्त हो चुके हैं. पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में 30 वर्षों में यह उपलब्धि हासिल करने वाला चीन पहला देश है. हाल ही में दर्जा हासिल करने वाले अन्य देश अल सल्वाडोर, अल्जीरिया, अर्जेंटीना, पराग्वे और उज्बेकिस्तान थे.
एए/सीके (डीपीए, एएफपी, एपी)
मलेरिया: मौत के लिए एक ही डंक काफी
एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
तस्वीर: AP
मच्छर से मलेरिया
अफ्रीका का सबसे खतरनाक जीव सिर्फ 6 मिलीमीटर लंबा है. इसे मादा एनोफेलीज मच्छर के नाम से जाना जाता है. यह संक्रामक रोग मलेरिया के लिए जिम्मेदार है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
मलेरिया पीड़ित को अगर मच्छर काट ले तो वह मलेरिया के विषाणु को औरों तक फैला देता है. शोधकर्ताओं ने इस मच्छर में विषाणु को प्रोटीन से चिह्नित किया है जो हरे रंग में चमकता है. लार ग्रंथि में जाने से पहले मच्छर की आंत में पैरासाइट प्रजनन करता है.
मलेरिया पैरासाइट का जैविक नाम प्लाज्मोडियम है. बीमारी की शोध के लिए वैज्ञानिकों ने एनोफेलीज मच्छरों को संक्रमित किया और उसके बाद पैरासाइट को लार ग्रंथि से अलग किया. इसमें पैरासाइट का संक्रामक रूप जमा है. इस तस्वीर में दाहिनी तरफ मच्छर है और बीच में है हटाई गई लार ग्रंथि.
तस्वीर: Cenix BioScience GmbH
विषाणु चक्र
मलेरिया पैरासाइट घुमावदार होते हैं, वो एक दायरे में घुमते हैं. यहां शोधकर्ताओं ने उन्हें तरल पदार्थ के साथ शीशे के टुकड़े पर रखा. पैरासाइट को यहां पीले रंग से चिह्नित किया गया है. और जिस पथ पर घूमते हैं उसे नीले रंग से पहचाना जा सकता है. वो तेजी से चलते हैं. एक पूरा चक्कर लगाने के लिए सिर्फ 30 सेकेंड लेते हैं. बाधा पहुंचने पर वे अपने घुमावदार पथ से हट जाते हैं. सीधी रेखा पर भी चल सकते हैं.
इंसान के शरीर में दाखिल होने के बाद विषाणु मनुष्य के लीवर में कुछ दिनों के लिए ठहर जाता है. इस दौरान मरीज को पता नहीं चलता. प्लाज्मोडियम मरीज की लाल रक्त कणिकाओं को तेजी से प्रभावित करता है, और लीवर में इस परजीवी की संख्या तेजी से बढ़ती चली जाती है. लीवर में यह मेरोजोइटस का रूप लेता है, जिसके बाद रक्त कोशिकाओं पर हमला शुरू हो जाता है और इंसान बीमार महसूस करने लगता है.
तस्वीर: AP
शरीर में बढ़ता पैरासाइट
रक्त कोशिका में दाखिल होने के बाद पैरासाइट एक से तीन दिन के भीतर बढ़ने लगता है. इसके बाद वे लाल रक्त कणिका या लीवर कोशिका में प्रवेश कर जाता है. यहां परजीवी का विखंडन होता है. परजीवियों की संख्या बढ़ने पर कोशिका फट जाती है. नतीजतन इंसान को ठंड के साथ बुखार आने लगता है. माइक्रोस्कोप में इसे आसानी के साथ देखा जा सकता है. बैंगनी रंग का यह रोगाणु अलग नजर आ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Klett GmbH
मच्छरदानी में मौत
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी मच्छरदानी बनाई है जिसमें जाल में कीटनाशक लगे हुए हैं. मच्छरदानी के संपर्क में आते ही मच्छर मर जाते हैं.
तस्वीर: Edlena Barros
दवा का छिड़काव
जब मलेरिया का प्रकोप हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो उसके लिए दूसरे उपाए किए जाते हैं. मुंबई की इस तस्वीर में मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है. डीडीटी कीटनाशक का इस्तेमाल प्रभावशाली होता है. हालांकि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
रैपिड टेस्ट
खून की एक बूंद से किया गया रैपिड टेस्ट मिनटों में बता सकता है कि मरीज को मलेरिया है या नहीं. यहां डॉक्टर विदआउट बॉर्डर की एक कार्यकर्ता, अफ्रीकी देश माली में लड़के पर रैपिड टेस्ट कर रही हैं. इस लड़के में मलेरिया की पुष्टि हुई. उपचार के दो दिन बाद वह स्वस्थ हो गया. हालांकि रैपिड टेस्ट हमेशा भरोसेमंद नहीं होते.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दवा बेअसर
दवाइयों की मदद से रक्त में मौजूद विषाणु को खत्म या फिर बढ़ने से रोका जा सकता है. हालांकि दवाओं का असर पैरासाइट पर कम होता जा रहा है. लंबे समय से इस्तेमाल की जा रही मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन अब कुछ इलाकों में प्रभावशाली नहीं है. नई दवाओं की खोज मलेरिया की प्रतिरोधक क्षमता की समस्या से निपटने का एक रास्ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कब आएगा टीका
मलेरिया के लिए अब तक कोई टीका नहीं है. शोधकर्ता टीका बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. रिपोर्टों के मुताबिक इस मामले में सफलता जल्द मिल सकती है.