कौन हैं मणिपुर को 'कांग्रेस मुक्त' करने वाले बीरेन सिंह
प्रभाकर मणि तिवारी
२१ मार्च २०२२
मणिपुर में पहली बार अपने बूते बीजेपी को सत्ता दिलाने वाले मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का राजनीतिक करियर संघर्ष की मिसाल है. ऐसा संघर्ष जो उनकी पुरानी पार्टी कांग्रेस नहीं देख सकी.
विज्ञापन
सोमवार को लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले बीरेन ने किसी पूर्वोत्तर राज्य में किसी बीजेपी नेता के लगातार दूसरी बार यह कुर्सी हासिल करने का रिकार्ड तो बनाया ही है, चुनाव नतीजों के बाद दस दिनों तक कुर्सी के लिए चलने वाली तिकोनी लड़ाई में बाकी दावेदारों को मात देने में भी कामयाबी हासिल की है. एक फुटबालर और पत्रकार के तौर पर अनुभव ने उनको इस कठिन मुकाबले में मुकाम तक पहुंचाया है.
बीरेन सिंह चुनाव अभियान के दौरान ही राज्य की 60 में से कम से कम 40 सीटें जीतने के दावे करते रहे थे. बीजेपी को 40 सीटें तो नहीं मिलीं लेकिन उसने अपने बूते बहुमत का आंकड़ा जरूर पार कर लिया. चुनाव से पहले पार्टी ने किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया था. लेकिन नतीजों के बाद दो और दावेदारों के सामने आने के बावजूद पार्टी के प्रदर्शन ने बीरेन के पक्ष में पलड़ा झुका दिया.
दावेदारों के दो-दो बार दिल्ली दौरे और तमाम केंद्रीय नेताओं से मुलाकात के बावजूद बीरेन अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी पड़े. यही वजह थी कि रविवार को पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षकों निर्मला सीतारमण और किरेन रिजिजू की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में बीरेन को आम राय से नेता चुन लिया गया. दरअसल, पार्टी के जबरदस्त प्रदर्शन के पीछे बीरेन को ही सबसे प्रमुख वजह माना जा रहा था. जिस पार्टी का 2012 तक राज्य में कोई नामलेवा तक नहीं था उसके अपने बूते बहुमत हासिल करने की उम्मीद तो खुद बीजेपी के केंद्रीय नेताओं को भी नहीं थी. ऐसे में पार्टी का प्रदर्शन का सेहरा बीरेन सिंह को मिलना तय था क्योंकि उन्होंने पूरे राज्य में अभियान की कमान संभाल रखी थी.
एक फुटबॉलर के तौर पर उनके करियर को देखते हुए राज्य के राजनीतिक हलकों में यह चर्चा आम है कि गेंद लेकर आगे बढ़ते हुए अपने प्रतिद्वंद्वियों को छकाने की कला ही राजनीति में उनके काम आई है.
फुटबॉल और पत्रकारिता
एक जनवरी, 1961 को मणिपुर की राजधानी इंफाल में पैदा होने वाले बीरेन सिंह ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मणिपुर यूनिवर्सिटी से ही ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी. लेकिन खेल में ज्यादा रुचि होने की वजह से उन्होंने शुरुआत में फुटबॉल को अपने करियर के तौर पर चुना. फुटबॉल में पारंगत होने की वजह से उनको 18 साल की उम्र में ही सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की फुटबॉल टीम में चुन लिया गया. वह राज्य के बाहर खेलने वाले मणिपुर के पहले खिलाड़ी थे. बीरेन साल 1981 में डूरंड कप जीतने के लिए कोलकाता के मोहन बागान को हराने वाली बीएसएफ की टीम का हिस्सा थे. हालांकि, उन्होंने अगले साल ही बीएसएफ टीम से नाता तोड़ लिया. लेकिन मणिपुर टीम के लिए वर्ष 1992 तक खेलते रहे.
वर्ष 1992 में बीरेन सिंह की रुचि पत्रकारिता की तरफ बढ़ी और उन्होंने मणिपुर के ही स्थानीय अखबार नाहरोल्गी थोउदांग में नौकरी शुरू की. पत्रकारिता में भी बीरेन सिंह काफी तेजी से आगे बढ़े और 2001 तक वे संपादक के पद पर पहुंच गए. पत्रकारिता के दौरान ही उन्होंने राजनीति को करीब से देखा और आखिरकार इस क्षेत्र में किस्मत आजमाने का फैसला किया.
राजनीतिक करियर
बीरेन सिंह ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत वर्ष 2002 में क्षेत्रीय पार्टी डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी (डीपीपी) से की. उन्होंने मणिपुर के हिंगांग विधानसभा क्षेत्र से अपनी पहली चुनावी लड़ाई लड़ी और जीती. उन्होंने 2007 में कांग्रेस के टिकट पर सीट बरकरार रखी. वे कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में सतर्कता राज्य मंत्री भी बनाए गए. वर्ष 2007 में एक बार फिर वह इसी विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और उनको सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण, युवा मामले और खेल मंत्री बनाया गया.
वर्ष 2012 में वह तीसरी बार अपनी सीट बचाने में सफल रहे, लेकिन मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने के कारण इबोबी सिंह से उनके संबंध खराब हो गए. आखिरकार अक्टूबर, 2016 में वे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए. वर्ष 2017 में उन्होंने फिर से अपनी सीट से जीत हासिल की उसके बाद उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में वे लगातार पांचवीं बार हिंगांग सीट से चुने गए हैं. इस सीट पर उन्होंने कांग्रेस के शरतचंद्र सिंह को 18 हजार वोटों से पराजित किया.
वरिष्ठ पत्रकार ओ. कंचन सिंह बताते हैं, "बीरेन सिंह ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान पहाड़ पर चलो, हर महीने की 15 तारीख को आम लोगों का दिन और पर्वतीय नेता दिवस जैसी जो योजनाएं शुरू की उससे घाटी और पर्वतीय इलाके के लोगों के बीच पनपी खाई को पाटने में काफी मदद मिली. इन योजनाओं के तहत दुर्गम इलाके में रहने वाले लोग भी महीने के तय दिन को अपने नेताओं और सरकारी अधिकारियों से मुलाकात कर पाते थे.” वह बताते हैं कि बीरेन सिंह को राज्य की नियति बन चुकी आर्थिक नाकेबंदी को खत्म करने, पर्वतीय और घाटी के बीच बढ़ती खाई को पाटने और राज्य में शांति बहाल करने का श्रेय भी दिया जाता है. उनके नेतृत्व में पार्टी के चुनावी और बीते पांच साल के कार्यकाल ने ही तमाम दावेदारों को पीछे छोड़ते हुए बीरेन सिंह के दोबारा मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ किया.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अपने पहले कार्यकाल में बीरेन सिंह के सामने सहयोगी दलों के साथ संतुलन बनाए रखने की जो चुनौती थी अबकी पार्टी के पास बहुमत होने के कारण उनको वैसी चुनौती से तो नहीं जूझना पड़ेगा. लेकिन पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार उनके लिए मुश्किलें जरूर पैदा कर सकते हैं. इन चुनौतियों से बीरेन सिंह कैसे निपटते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी का दायरा लगातार बढ़ा है. डालते हैं एक नजर अभी कहां कहां बीजेपी और उसके सहयोगी सत्ता में हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/S. Kumar
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
तस्वीर: Imago/Zumapress
त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली.
तस्वीर: Reuters/J. Dey
मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन दो साल के भीतर राजनीतिक दावपेंचों के दम पर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. K. Singh
बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. हालिया चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इससे पिछले चुनाव में वह आरजेडी के साथ थे. 2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही बीजेपी ने नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे 43 सीटें मिलीं.
तस्वीर: AP
गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था.
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
हिमाचल प्रदेश
नवंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी की. हालांकि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. इसके बाद जयराम ठाकुर राज्य सरकार का नेतृत्व संभाला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कर्नाटक
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 2018 में वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायकों के इस्तीफे होने के कारण बीेजेपी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई. येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran
हरियाणा
बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में पार्टी को मिले स्पष्ट बहुमत के बाद सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत नहीं मिला लेकिन जेजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई. संघ से जुड़े रहे खट्टर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी समझे जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/M. Sharma
गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के विजय रुपाणी के हाथों में है.
तस्वीर: Reuters
असम
असम में बीजेपी के सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. अब राज्य में फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa
नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
तस्वीर: IANS
मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
तस्वीर: IANS
सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
तस्वीर: DW/Zeljka Telisman
मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
तस्वीर: IANS
2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. हाल के सालों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य उसके हाथ से फिसले हैं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.