क्या रंग लाएगी पाकिस्तान में नए सेना प्रमुख की नियुक्ति
२५ नवम्बर २०२२पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना के प्रमुख के पद पर आसिम मुनीर की नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब सेना और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच तकरार चल रही है. खान ने सेना पर आरोप लगाया है कि कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री पद के उनके हाथ से चले जाने में सेना की भी भूमिका है.
खान तब से सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे हैं. उनका मुनीर के साथ भी एक खास रिश्ता है. आखिर कौन हैं आसिफ मुनीर और क्यों बनाया गया है उन्हें सेना प्रमुख?
सामरिक तैनाती का तजुर्बा
सेना के पूर्व अधिकारियों का कहना है कि मुनीर एक स्कूल शिक्षक के बेटे हैं और वो रावलपिंडी में बड़े हुए. एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि उन्हें सेना की अकादमी में 'सोर्ड ऑफ ऑनर' अवाॉर्ड मिला था.
मुनीर की ऐसे इलाकों में भी तैनाती रही है जो चीन की सीमा के करीब हैं और जिन पर पाकिस्तान का भारत के साथ विवाद है. वो सऊदी अरब में भी काम कर चुके हैं, जो पाकिस्तान का एक प्रमुख वित्तीय समर्थक है.
बाद में उन्होंने पाकिस्तान की दो सबसे प्रभावशाली गुप्तचर एजेंसियों के मुखिया के रूप में काम किया. 2017 में वो मिलिटरी इंटेलिजेंस के प्रमुख रहे और फिर 2018 में वो आईएसआई के प्रमुख बने.
इस पद पर उन्हें बस आठ महीने ही हुए थे जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान के अनुरोध पर उन्हें हटा दिया गया. उन्हें हटाये जाने का कोई कारण भी नहीं दिया गया था. इस समय वो आर्मी के क्वार्टरमास्टर जनरल के पद पर सेवा दे रहे हैं और सेना की आपूर्ति के इनचार्ज हैं.
"स्पष्ट सोच" वाला जनरल
मुनीर बतौर सेना प्रमुख अपना कार्यकाल खत्म करने वाले जनरल कमर जावेद बाजवा के बाद सबसे वरिष्ठ रैंक वाले जनरल भी हैं. मुनीर का 3 साल का कार्यकाल 29 नवंबर को शुरू होगा. मुनीर के साथ काम कर चुके एक पूर्व जनरल ने उन्हें "स्पष्ट सोच" वाला बताया.
बाजवा ने सेना को राजनीति से अलग करने की शपथ ली थी और मुनीर के सामने इसे आगे बढ़ाने की चुनौती होगी. उनके अपने राजनीतिक संबंधों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन विश्लेषकों को सेना के एक गैरराजनीतिक संस्थान बनने पर संदेह है.
खान समेत कई सिविलयन नेता सेना पर उन्हें सत्ता से हटाने का आरोप लगा चुके हैं. सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रह चुके नवाज शरीफ भी सेना पर यह इल्जाम लगा चुके हैं. खान को सत्ता से निकालने में सेना ने किसी भी भूमिका से इंकार किया है, लेकिन विश्लेषकों को लगता है कि खान को सत्ता से बाहर रखने की सेना की कोशिशें मुनीर जारी रखेंगे.
खत्म हो रहा है सेना का संयम?
विश्लेषक जाहिद हुसैन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "राजनीतिक प्रक्रिया बहुत कमजोर है और लोकतांत्रिक संस्थाएं लगभग ढह जाने के कगार पर हैं. ऐसी स्थिति में, सेना अपनेआप शक्ति की मध्यस्थ बन जाती है."
आने वाले दिनों में सेना का रुख आक्रामक होने के संकेत खुद बाजवा ने दिये हैं. बुधवार 23 नवंबर को उन्होंने फेयरवेल भाषण में कहा कि सेना और लोगों के बीच दरार पैदा करने वाले सफल नहीं होंगे. उन्होंने यह भी कहा, "सेना अभी तक संयम से पेश आ रही है लेकिन सबको यह मालूम होना चाहिए कि इस संयम की एक सीमा है."
सीके/एनआर (रॉयटर्स, एएफपी)