डब्ल्यूएचओ: गरीब देशों के साथ भी साझा हो कोरोना का टीका
१९ जनवरी २०२१
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ने कहा है कि कोविड-19 के टीकों को लेकर राष्ट्रवाद की भावना के कारण दुनिया "त्रासदी के कगार" पर है और यह हमारी नैतिक असफलता है. उन्होंने टीकों के समान रूप से वितरण पर जोर दिया है.
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डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने वैक्सीन निर्माताओं और देशों को विश्वभर में वैक्सीन को निष्पक्ष रूप से वितरण करने का आग्रह किया है. गेब्रयेसुस ने कहा है कि टीके के न्यायसंगत वितरण की संभावनाओं पर गंभीर जोखिम है. डब्ल्यूएचओ वैक्सीन वितरण के लिए बनाए गए कार्यक्रम कोवैक्स अगले महीने से शुरू करने वाला है. उन्होंने कहा कि 44 द्विपक्षीय सौदे पिछले साल हो गए थे और इस साल अभी तक 12 करार हो चुके हैं. गेब्रयेसुस ने कहा, "इससे कोवैक्स कार्यक्रम के तहत टीके पहुंचाने में देरी हो सकती है और वही तस्वीर सामने आ सकती है जिससे बचने के लिए कौवैक्स कार्यक्रम को बनाया गया. कोवैक्स कार्यक्रम को जमाखोरी और आर्थिक और सामाजिक बाधाएं दूर कर करने के लिए बनाया गया है." जिनेवा में डब्ल्यूएचओ की कार्यकारिणी की बैठक में उन्होंने कहा कि "पहले मैं" की सोच दुनिया के सबसे गरीब और कमजोर लोगों को जोखिम में डाल देगी. उन्होंने कहा, "इस तरह की कार्रवाई महामारी को और लंबा ले जाएगी." गेब्रयेसुस ने असमानता का उदाहरण देते हुए बताया कि 49 अमीर देशों में लोगों को कोरोना वैक्सीन की 3.9 करोड़ खुराकें दी गईं वहीं एक गरीब देश में लोगों को महज टीके की 25 खुराक ही मिली.
टीका वितरण में भी असमानता
गेब्रयेसुस ने टीकों को लेकर भेदभाव पर किसी देश का नाम नहीं लिया है. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए पूरे विश्व के लोगों को टीके की जरूरत है लेकिन पूरी दुनिया में इस मामले में असमानता की दीवार खड़ी हो गई है. इस बैठक में अफ्रीकी देश बुरकिना फासो के प्रतिनिधि ने कुछ देशों के कोविड-19 की वैक्सीन की ज्यादा खुराकें जमा करने पर चिंता जाहिर किया. डब्ल्यूएचओ कोरोना की वैक्सीन को पूरी दुनिया में समान रूप से पहुंचाने की कोशिश में है.
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि गरीब और अमीर देशों के बीच असमानता की दीवार है और यह टीकों के वितरण में बड़ी रुकावट साबित हो सकती है. साथ ही डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अमीर देश अपने बुजुर्गों और स्वास्थ्यकर्मियों को पहले टीका दे रहे हैं लेकिन यह बिल्कुल ठीक नहीं है कि अमीर देशों के युवाओं और स्वस्थ वयस्कों को टीका पहले मिले और गरीब देशों के स्वास्थ्य कर्मचारियों और जोखिम वाले बुजुर्गों को टीका नहीं मिले.
डॉनल्ड ट्रंप डब्ल्यूएचओ को मिलने वाली राशि रोक रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी के लिए यह बहुत बड़ा झटका होगा क्योंकि सबसे ज्यादा धन उसे अमेरिका से ही मिलता है. जानिए अमेरिका के बाद किस किस का नंबर आता है.
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असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन
डब्यलूएचओ को दो तरह से धन मिलता है. पहला, एजेंसी का हिस्सा बनने के लिए हर सदस्य को एक रकम चुकानी पड़ती है. इसे "असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन" कहते हैं. यह रकम सदस्य देश की आबादी और उसकी विकास दर पर निर्भर करती है.
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वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन
दूसरा है "वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन" यानी चंदे की राशि. यह धन सरकारें भी देती हैं और चैरिटी संस्थान भी. अमूमन यह राशि किसी ना किसी प्रोजेक्ट के लिए दी जाती है. लेकिन अगर कोई देश या संस्था चाहे तो बिना प्रोजेक्ट के भी धन दे सकता है.
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दो साल का बजट
डब्यलूएचओ का बजट दो साल के लिए निर्धारित किया जाता है. 2018-19 का कुल बजट 5.6 अरब डॉलर था. 2020-21 के लिए इसे 4.8 अरब डॉलर बताया गया है. आगे दी गई सूची 2018-19 के आंकड़ों पर आधारित है.
असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन - 81 लाख डॉलर; वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन - 7.8 करोड़ डॉलर; कुल - 8.6 करोड़ डॉलर
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15. चीन
असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन - 7.6 करोड़ डॉलर; वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन - 1 करोड़ डॉलर; कुल - 8.6 करोड़ डॉलर. अमेरिका और जापान के बाद सबसे बड़ा असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन चीन का ही है. (स्रोत: डब्ल्यूएचओ)