भविष्य में महामारी रोकने को अंतरराष्ट्रीय समझौते पर सहमति
२९ नवम्बर २०२१
भविष्य में दुनिया को कोरोना वायरस जैसी महामारियों से बचाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौते का मसौदा तैयार हो गया है. अमेरिका और यूरोप के नेतृत्व में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह मसौदा तैयार किया है.
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महामारी को फैलने से रोकने के लिए सही समय पर एकजुट अंतरराष्ट्रीय प्रयासों की जरूरत के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक प्रस्ताव तैयार किया है. रविवार को अधिकारियों ने बताया कि प्रस्ताव का मसौदा तैयार है और इसे सोमवार से शुरू हो रही डब्ल्यूएचओ की तीन दिवसीय बैठक में विभिन्न देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों के सामने पेश किया जाएगा.
कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन से पैदा हुए नए खतरों के चलते यह प्रस्ताव तैयार हुआ है. उम्मीद की जा रही है कि मई 2024 तक यह समझौता तैयार हो जाएगा. इस समझौते में डाटा और जीनोम सीक्वेंस साझा करने से लेकर वैक्सीन और दवाओं के समान बंटवारे जैसे प्रावधान हैं.
अमेरिका, भारत असहमत थे
संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन के राजदूत साइमन मैनली ने एक बयान में कहा, "महामारी पर अंतरराष्ट्रीय समझौता तैयार करने के लिए एक दल के गठन पर सहमति एक शुरुआत मात्र है. जिस तरह का सहयोगी और लचीला रवैया दिखाया गया है, उससे अच्छे नतीजों की उम्मीद बढ़ गई है.”
ब्रिटेन के अलावा यूरोपीय संघ और बाकी दुनिया के 70 देशों ने एक ऐसे समझौते की जरूरत पर सहमति जताई थी, जिसमें विभिन्न देशों को कानूनन बाध्य बनाया किया सके. हालांकि पिछले हफ्ते अधिकारियों ने कहा था कि अमेरिका, ब्राजील और भारत ऐसे बाध्यकारी समझौते को लेकर सहमत नहीं थे.
एक यूरोपीय कूटनीतिज्ञ ने कहा, "एक मसौदे पर सहमति बन गई है जो हमारे लिए संतोषजनक है. इससे अमेरिका को भी एक रास्ता मिल गया है, जो अब साथ आ गया है.” एक अन्य कूटनीतिज्ञ ने कहा कि यह एक अच्छा नतीजा है और साझा भाषा पर सहमति को लेकर सब खुश हैं.
ओमिक्रॉन का खतरा बढ़ा
कोरोना वायरस अब तक दुनिया में 26 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपना शिकार बना चुका है जिनमें से 54.5 लाख लोगों की जानें गई हैं. दिसंबर 2019 में चीन के वुहान से शुरू हुए इस वायरस के और ज्यादा खतरनाक स्वरूप सामने आ रहे हैं.
तस्वीरेंः ऐसा दिखता है कोरोनायवारस
ऐसा दिखता है कोरोना वायरस
शोधकर्ताओं ने इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप की मदद से कोरोना वायरस की अद्भुत तस्वीरें ली हैं. देखिए कैसा दिखता है यह वायरस, यह कैसे काम करता है और दूसरे वायरसों और इसमें क्या फर्क है.
तस्वीर: Seth Pincus/Elizabeth Fischer/Austin Athman/National Institute of Allergy and Infectious Diseases/AP Photo/AP Photo/picture alliance
कोरोना की तस्वीर
यह है कोविड-19 महामारी को फैलाने वाले एसआरएस-सीओवी-2 की असली तस्वीर. इसके हर कण का व्यास करीब 80 नैनोमीटर होता है. हर कण में वायरस के जेनेटिक कोड यानी आरएनए की एक गेंद होती है. उसकी रक्षा करता है एक स्पाइक प्रोटीन यानी बाहर की तरफ निकले हुए मुकुट जैसे उभार जिनकी वजह से वायरस को यह नाम मिला. यह कोरोना वायरस परिवार का एक हिस्सा है, जिसके और भी सदस्य हैं.
तस्वीर: Peter Mindek/Nanographics/apa/dpa/picture alliance
हवा से प्रसार
इसके कण छोटी छोटी बूंदों और ऐरोसोल के जरिए तब फैलते हैं जब कोई सांस लेता है या खांसता है या बात करता है. यह संक्रमित सतहों के जरिए भी फैलता है.
तस्वीर: AFP/National Institutes of Health
मानव कोशिकाओं में प्रवेश
यह वायरस स्पाइक प्रोटीनों का इस्तेमाल कर कोशिकाओं की सतह पर मौजूद प्रोटीन से जुड़ जाता है. इससे कुछ रासायनिक बदलाव होते हैं जिनकी बदौलत वायरस का आरएनए (इस तस्वीर में हरे रंग में) कोशिकाओं में घुस जाता है. वहां वो कोशिकाओं से आरएनए की प्रतियां बनवाता है. एक कोशिका वायरस के हजारों नए कण (इस तस्वीर में बैंगनी रंग में) बना सकती है, जो फिर दूसरी स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं.
तस्वीर: NIAID/ZUMAPRESS.com/picture alliance
इंसानों के लिए नया
इस तस्वीर में बुरी तरह से संक्रमित एक कोशिका नीले रंग में दिखाई दे रही है. उसे संक्रमित करने वाले वायरस के कण लाल रंग में हैं. यह वायरस फ्लू या जुकाम करने वाले वायरसों से ज्यादा अलग नहीं है लेकिन 2019 से पहले इसका कभी किसी से पाला ही नहीं पड़ा था. इसी वजह से किसी में भी इसके खिलाफ इम्युनिटी नहीं थी.
तस्वीर: NIAID/Zuma/picture alliance
2002 में आया सदी का पहला कोरोनावायरस
2002 में चीन में इंसानों के बीच इस सदी का पहला कोरोनावायरस हमला सामने आया. यह एसआरएस-सीओवी था जिससे एसएआरएस नाम की बीमारी आई. यह बीमारी करीब 30 देशों में फैल गई लेकिन यह उतनी घातक नहीं निकली. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जुलाई 2003 में ही इस पर नियंत्रण कर लिए जाने की घोषणा कर दी थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Center of Disease Control
मिलिए परिवार के एक और सदस्य से
2012 में खोज हुई एमईआरएस-सीओवी की जिसे एक नई फ्लू जैसी बीमारी को जन्म दिया. मध्य पूर्व में पहली बार सामने आने वाले इस बीमारी का नाम एमईआरएस रखा गया. यह कोविड-19 से कम संक्रामक होती है. संक्रमण अमूमन एक ही परिवार के सदस्यों में या अस्पतालों के अंदर फैलता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP/NIAID-RML
एचआईवी: एक और महामारी
इस तस्वीर में पीले रंग में दिख रहा है एड्स बीमारी फैलाने वाला एचआई वायरस. नीले रंग में टी-कोशिकाएं हैं जो हमारे इम्यून सिस्टम का हिस्सा होती हैं और वायरस इसी सिस्टम पर हमला करता है. एसआरएस-सीओवी-2 की ही तरह यह भी आरएनए आधारित वायरस है.
तस्वीर: Seth Pincus/Elizabeth Fischer/Austin Athman/National Institute of Allergy and Infectious Diseases/AP Photo/AP Photo/picture alliance
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पिछले हफ्ते दक्षिण अफ्रीका ने ओमिक्रॉन वेरिएंट की सूचना डब्ल्यूएचओ को दी थी जो अब कई देशों में फैल चुका है. हालांकि दक्षिण अफ्रीकी डॉक्टरों का कहना है कि इस वायरस के लक्षण फिलहाल ज्यादा उग्र नहीं हैं लेकिन सावधानी बरतते हुए कई देशों ने अपनी सीमाएं बंद कर दी हैं.
ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड्स और डेनमार्क में ओमिक्रॉन के मरीज पाए गए हैं. कई देशों ने दक्षिण अफ्रीका के लोगों के अपने यहां आने पर पाबंदी लगा दी है. इस्राएल ने तो अपनी सीमाएं पूरी तरह बंद कर दी हैं. ऑस्ट्रेलिया ने अफ्रीका महाद्वीप के कई दक्षिणी देशों से सिर्फ अपने नागरिकों के आने की ही इजाजत दी है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
सिर्फ बीमारी नहीं फैलाते हैं चमगादड़
कोरोना वायरस का स्रोत माने जाने की वजह से चमगादड़ बड़े बदनाम हो गए हैं, लेकिन असल में धरती पर इनकी काफी उपयोगिता भी है. क्या आप जानते हैं ये सब इनके बारे में?
तस्वीर: DW
ना कैंसर और ना बुढ़ापा छू सके
साल में केवल एक ही संतान पैदा कर सकने वाले चमगादड़ ज्यादा से ज्यादा 30 से 40 साल ही जीते हैं. लेकिन ये कभी बूढ़े नहीं होते यानि पुरानी पड़ती कोशिकाओं की लगातार मरम्मत करते रहते हैं. इसी खूबी के कारण इन्हें कभी कैंसर जैसी बीमारी भी नहीं होती.
ऑस्ट्रेलिया की झाड़ियों से लेकर मेक्सिको के तट तक - कहीं पेड़ों में लटके, तो कहीं पहाड़ की चोटी पर, कहीं गुफाओं में छुपे तो कहीं चट्टान की दरारों में - यह अंटार्कटिक को छोड़कर धरती के लगभग हर हिस्से में पाए जाते हैं. स्तनधारियों में चूहों के परिवार के बाद संख्या के मामले में चमगादड़ ही आते हैं.
तस्वीर: Imago/Bluegreen Pictures
क्या सारे चमगादड़ अंधे होते हैं
इनकी आंखें छोटी होने और कान बड़े होने की बहुत जरूरी वजहें हैं. यह सच है कि ज्यादातर की नजर बहुत कमजोर होती है और अंधेरे में अपने लिए रास्ता तलाशने के लिए वे सोनार तरंगों का सहारा लेते हैं. अपने गले से ये बेहद हाई पिच वाली आवाज निकालते हैं और जब वह आगे किसी चीज से टकरा कर वापस आती है तो इससे उन्हें अपने आसपास के माहौल का अंदाजा होता है.
तस्वीर: picture-alliance/Mary Evans Picture Library/J. Daniel
काले ही नहीं सफेद भी होते हैं चमगादड़
यह है होंडुरान व्हाइट बैट, जो यहां हेलिकोनिया पौधे की पत्ती में अपना टेंट सा बना कर चिपका हुआ है. दुनिया में पाई जाने वाली चमगादड़ों की 1,400 से भी अधिक किस्मों में से केवल पांच किस्में सफेद होती हैं और यह होंडुरान व्हाइट बैट तो केवल अंजीर खाते हैं.
चमगादड़ों को आम तौर पर दुष्ट खून चूसने वाले जीव समझा जाता है लेकिन असल में इनकी केवल तीन किस्में ही सचमुच खून पीती हैं. जो पीते हैं वे अपने दांतों को शिकार की त्वचा में गड़ा कर छेद करते हैं और फिर खून पीते हैं. यह किस्म अकसर सोते हुए गाय-भैंसों, घोड़ों को ही निशाना बनाते हैं लेकिन जब कभी ये इंसानों में दांत गड़ाते हैं तो उनमें कई तरह के संक्रमण और बीमारियां पहुंचा सकते हैं.
कुदरती तौर पर चमगादड़ कई तरह के वायरसों के होस्ट होते हैं. सार्स, मर्स, कोविड-19, मारबुर्ग, निपा, हेन्ड्रा और शायद इबोला का वायरस भी इनमें रहता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इनका अनोखा इम्यूम सिस्टम इसके लिए जिम्मेदार है जिससे ये दूसरे जीवों के लिए खतरनाक बीमारियों के कैरियर बनते हैं. इनके शरीर का तापमान काफी ऊंचा रहता है और इनमें इंटरफेरॉन नामका एक खास एंटीवायरल पदार्थ होता है.
तस्वीर: picture-lliance/Zuma
ये ना होते तो ना आम होते और ना केले
जी हां, आम, केले और आवोकाडो जैसे फलों के लिए जरूरी परागण का काम चमगादड़ ही करते हैं. ऐसी 500 से भी अधिक किस्में हैं जिनके फूलों में परागण की जिम्मेदारी इन पर ही है. तस्वीर में दिख रहे मेक्सिको केलंबी नाक वाले चमगादड़ और इक्वाडोर के ट्यूब जैसे होंठों वाले चमगादड़ अपनी लंबी जीभ से इस काम को अंजाम देते हैं. (चार्ली शील्ड/आरपी)