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समाज

डब्ल्यूएचओः एचसीक्यू दवा का कोविड-19 परीक्षण फिर शुरू होगा

४ जून २०२०

पिछले दिनों डब्ल्यूएचओ ने कोरोना के इलाज में इस्तेमाल हो रही मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के ट्रायल पर अस्थायी रोक लगा दी थी. अब संगठन का कहना है वह इसके परीक्षण को दोबारा शुरू करने जा रहा है.

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तस्वीर: Reuters/L. Nicholson

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पिछले महीने सबको यह कहकर चौंका दिया था कि वह कोरोना वायरस से बचने के लिए मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने हाल ही में कहा था कि उन्होंने दवा का कोर्स पूरा कर लिया है. 25 मई को ही डब्ल्यूएचओ ने एचसीक्यू के कोविड-19 के मरीजों पर परीक्षण पर अस्थायी रोक लगा दी थी. कोविड मरीजों पर दोबारा परीक्षण शुरू करने की डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एधानोम घेब्रेयसस ने जानकारी दी है. इससे पहले शोधकर्ताओं ने नए मरीजों पर एचसीक्यू के साइड इफेक्ट्स को देखते हुए ट्रायल रोक दिया था.

डब्ल्यूएचओ कोरोना वायरस महामारी को फैलने से रोकने के लिए एचसीक्यू समेत कई दवाओं का इस्तेमाल परीक्षण के तौर पर मरीजों पर कर रहा था, लेकिन कुछ शोध में एचसीक्यू को लेकर चिंता जताए जाने के बाद इसका परीक्षण अस्थायी तौर पर रोक दिया गया था. पिछले दिनों लांसेट के शोध में पाया गया था कि एचसीक्यू गंभीर साइड इफेक्ट्स पैदा कर सकती है, इनके इस्तेमाल से खासतौर पर हृदय संबंधी बीमारी हो सकती है. हालांकि एचसीक्यू के परीक्षण रोकने के बाद दूसरी दवाओं के साथ परीक्षण जारी था. लेकिन घेब्रेयसस का कहना है कि विशेषज्ञों ने सभी दवाओं के परीक्षण को जारी रखने की सलाह दी है. इनमें हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन भी शामिल है.

टेड्रोस के मुताबिक, "कार्यकारी समूह प्रमुख शोधकर्ताओं से संवाद करेगा और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के परीक्षण को दोबारा शुरू करेगा." उन्होंने बताया कि 35 देशों में चल रहे डब्ल्यूएचओ के इस परीक्षण कार्यक्रम में 3,500 लोग शामिल हैं. यह दवा उन्हीं मरीजों को दो जाएगी जिन्होंने खुद पर कोरोना दवाओं के परीक्षण की सहमति दे रखी है.

गौरतलब है कि इस दवा का भारत सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और उसने अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और ब्रिटेन जैसे देशों को इसकी बड़ी मात्रा में आपूर्ति की है. डॉनल्ड ट्रंप ने भी इस दवा की मांग भारत से की थी और भारत ने दवा की बड़ी खेप अमेरिका को भेजी थी. डब्ल्यूएचओ की प्रमुख वैज्ञानिक सौम्या स्वामिनाथन ने दवा के अन्य परीक्षण का आग्रह किया है. उन्होंने कहा, "दवा काम करती है या नहीं यह जानना मरीजों के प्रति हमारी जवाबदेही बनती है." साथ ही उन्होंने सुरक्षा निगरानी बरकरार रखने के लिए भी कहा है.

दवा पर संशय

दूसरी ओर क्लीनिकल परीक्षण के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविड-19 से संक्रमित होने के तुंरत बाद हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन लेने से यह सार्थक रूप से असर नहीं करती है और यह संक्रमण रोकने में बेअसर है. अमेरिका और कनाडा में 821 लोगों को शामिल किए गए प्रयोग में दिखाया गया कि यह दवा प्लेसबो की तुलना में बेहतर काम नहीं करती है. यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा के वैज्ञानिकों ने किया है और इसके नतीजे न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे हैं. शोधकर्ताओं ने अपने प्रयोग में उन वयस्कों को शामिल किया जो कोविड-19 पॉजिटिव लोगों के संपर्क में आए थे. यह लोग कोरोना पॉजिटिव के संपर्क में 10 मिनट तक रहे और उस दौरान मरीज से उनकी दूरी छह फीट थी. इन लोगों ने मास्क भी नहीं पहना था. 719 लोगों में काफी अधिक जोखिम नजर आया क्योंकि उन्होंने फेस मास्क नहीं लगाया था और ना ही चेहरे पर शील्ड लगाई थी. दूसरी ओर बाकी लोगों में मध्यम जोखिम दिखा क्योंकि उन्होंने चेहरे को ढंका था लेकिन आंखों पर चश्मा नहीं लगाया था.

प्रयोग में शामिल सभी लोगों को चार दिन के भीतर या तो हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा दी गई या फिर प्लेसबो दी गई. इसके बाद शोधकर्ताओं ने देखा कि कौन-कौन लोग अगले दो हफ्ते में कोरोना मरीज में तब्दील हो जाते हैं. इसकी पुष्टि के लिए शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में जांच का सहारा लिया. शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन 414 लोगों को एचसीक्यू दिया गया उनमें से 49 लोगों को कोरोना वायरस से जुड़ी बीमारी हुई जबकि जिन 407 लोगों को प्लेसबो की खुराक दी गई उनमें से 58 लोगों में कोविड-19 की बीमारी हुई. इस शोध के मुख्य शोधकर्ता और यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा में  संक्रामक रोग चिकित्सक डेविड बौलवेयर कहते हैं, "हमारा डाटा एक दम स्पष्ट है. जोखिम में आने के बाद यह (हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन) वास्तव में काम नहीं करती है."

एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)

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