डब्लूएचओ ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच के लिए महामारी के ग्राउंड जीरो यानी वुहान में विशेषज्ञों का एक दल भेजा है. दिसंबर 2019 में कोरोना वायरस का पहला मामला वुहान में ही सामने आया था.
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डब्लूएचओ की जांच टीम का चीन दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब देश ने आठ महीने में पहली बार कोरोना वायरस से पहली मौत दर्ज की है. दुनिया भर में कोरोना वायरस के नए रूप को लेकर हड़कंप मचा हुआ है. विश्व भर में कोरोना वायरस मामलों की कुल संख्या 9.2 करोड़ से अधिक हो गई है और अब तक करीब 20 लाख लोगों की मौत हो चुकी है. दुनिया के कई देश कोरोना की दूसरी या तीसरी लहर की चपेट में हैं. महामारी के कारण ना केवल जान का नुकसान हो रहा है बल्कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं भी बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं.
चीन के वुहान में गुरुवार को शोधकर्ताओं की एक वैश्विक टीम पहुंची जो यह जांच करेगी कि कोरोना वायरस कैसे फैला. शुरूआत में तो चीन अपने यहां जांच करने के लिए टीम को नहीं आने देना चाह रहा था लेकिन वैश्विक दबाव के बाद उसे सहमति देनी पड़ी. डब्लूएचओ ने 10 सदस्यीय टीम को बीजिंग की मंजूरी मिलने के बाद भेजा है, महीनों तक शी जिनपिंग की सरकार ने जांच दल को आने से रोकने के तमाम कूटनीतिक हथकंडे अपनाए, डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने सार्वजनिक तौर पर चीन की इसके लिए आलोचना भी की थी.
चीन में जांच दल को मिलेंगे सबूत?
वैज्ञानिकों को शक है कि चीन के इसी प्रांत से चमगादड़ या अन्य जानवरों से वायरस इंसानों तक फैला जिसके कारण लाखों लोग मारे जा चुके हैं. चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी उन आरोपों से चिढ़ गई जिसमें कहा गया कि उसने बीमारी को फैलने दिया. इसके बदले पार्टी का कहना है कि वायरस विदेश से आया था, मुमकिन हो आयात किए हुए समुद्री भोजन से, लेकिन वैज्ञानिक इसे मानने से इनकार करते आए हैं.
डब्लूएचओ की अंतरराष्ट्रीय टीम में वायरस एक्सपर्ट के अलावा अन्य विशेषज्ञ शामिल हैं, ये एक्सपर्ट अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, रूस, नीदरलैंड्स, कतर और विएतनाम के हैं. चीनी सरकार के प्रवक्ता ने इस हफ्ते कहा था कि टीम को चीनी वैज्ञानिकों के साथ विचार आदान प्रदान करने का मौका मिलेगा, लेकिन उसने संकेत नहीं दिया कि उन्हें सबूत जुटाने की इजाजत होगी या नहीं.
चीन के चैनल सीजीटीएन की एक पोस्ट में कहा है टीम को दो हफ्ते के लिए क्वारंटीन में जाना होगा और इसी के साथ उनके गले के स्वॉब की जांच होगी. क्वारंटीन में रहने के दौरान डब्लूएचओ की टीम के सदस्य चीनी विशेषज्ञों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए साथ काम कर सकेंगे. ताइवान के चांग गुंग यूनिवर्सिटी में उभरते वायरल संक्रमण अनुसंधान केंद्र के निदेशक शिन-रु-शी कहते हैं, "सरकार को बहुत पारदर्शी और सहयोगी होना चाहिए."
चीनी सरकार ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर भ्रम पैदा करने की कोशिश की, उसने साजिश के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया जिसके बहुत कम सबूत थे, जैसे कि वायरस खराब समुद्री भोजन से फैला होगा. हालांकि अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों और एजेंसियों इन सिद्धांतों को खारिज कर दिया. चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के अधिकारी मी फेंग ने बुधवार को कहा था, "डब्ल्यूएचओ को अन्य स्थानों पर भी इसी तरह की जांच करने की आवश्यकता है."
एक सप्ताह पहले डब्ल्यूएचओ टीम के सदस्य चीन रवाना होने के लिए तैयार थे लेकिन चीन ने ऐन वक्त पर उन्हें वैध वीजा नहीं दिया.
जारी है कोरोना का कहर
जॉन होप्किंस यूनिवर्सिटी की तालिका के मुताबिक वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस मामलों की कुल संख्या 9.2 करोड़ से अधिक हो गई है, जबकि संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या 19.7 लाख से अधिक हो गई हैं. अभी भी अमेरिका दुनिया का सबसे अधिक प्रभावित देश है, जहां संक्रमण के 23,067,796 मामले और 3,84,604 मौतें दर्ज की गईं हैं. संक्रमण के मामलों के हिसाब से भारत 1,05,12,093 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर आता है, जबकि देश में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 1,51,529 हो गई है. भारत में इस बीमारी से ठीक होने वाली की दर 96.51 प्रतिशत है, जबकि मृत्यु दर 1.44 प्रतिशत है.
कोरोना की वैक्सीन जितनी जल्दबाजी में बनी हैं, उसे देखते हुए कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि इसे लेना ठीक भी रहेगा या नहीं. जानिए कौन सी कंपनी की वैक्सीन के क्या साइड इफेक्ट हैं ताकि आपके सभी शक दूर हो जाएं.
कुछ सामान्य साइड इफेक्ट
कोई भी टीका लगने के बाद त्वचा का लाल होना, टीके वाली जगह पर सूजन और कुछ वक्त तक इंजेक्शन का दर्द होना आम बात है. कुछ लोगों को पहले तीन दिनों में थकान, बुखार और सिरदर्द भी होता है. इसका मतलब होता है कि टीका अपना काम कर रहा है और शरीर ने बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी बनाना शुरू कर दिया है.
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बड़े साइड इफेक्ट का खतरा?
अब तक जिन जिन टीकों को अनुमति मिली है, परीक्षणों में उनमें से किसी में भी बड़े साइड इफेक्ट नहीं मिले हैं. यूरोप की यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी (ईएमए), अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) और विश्व स्वास्थ्य संगठन तीनों ने इन्हें अनुमति दी है. एक दो मामलों में लोगों को वैक्सीन से एलर्जी होने के मामले सामने आए थे लेकिन परीक्षण में हिस्सा लेने वाले बाकी लोगों में ऐसा नहीं देखा गया.
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बायोनटेक फाइजर
जर्मनी और अमेरिका ने मिलकर जो टीका बनाया है वह बाकी टीकों से अलग है. वह एमआरएनए का इस्तेमाल करता है यानी इसमें कीटाणु नहीं बल्कि उसका सिर्फ एक जेनेटिक कोड है. यह टीका अब कई लोगों को लग चुका है. अमेरिका में एक और ब्रिटेन में दो लोगों को इससे काफी एलर्जी हुई. इसके बाद ब्रिटेन की राष्ट्रीय दवा एजेंसी एमएचआरए ने चेतावनी दी कि जिन लोगों को किसी भी टीके से जरा भी एलर्जी रही हो, वे इसे ना लगवाएं.
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मॉडेर्ना
अमेरिकी कंपनी मॉडेर्ना का टीका भी काफी हद तक फाइजर के टीके जैसा ही है. परीक्षण में हिस्सा लेने वाले करीब दस फीसदी लोगों को थकान महसूस हुई. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके चेहरे की नसें कुछ वक्त के लिए पेरैलाइज हो गई. कंपनी का कहना है कि अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि ऐसा टीके में मौजूद किसी तत्व के कारण हुआ या फिर इन लोगों को पहले से ऐसी कोई बीमारी थी जो टीके के कारण बिगड़ गई.
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एस्ट्रा जेनेका
ब्रिटेन और स्वीडन की कंपनी एस्ट्रा जेनेका के टीके के परीक्षण को सितंबर में तब रोकना पड़ा जब उसमें हिस्सा लेने वाले एक व्यक्ति ने रीढ़ की हड्डी में सूजन की बात बताई. इसकी जांच के लिए बाहरी एक्सपर्ट भी बुलाए गए जिन्होंने कहा कि वे यकीन से नहीं कह सकते कि सूजन की असली वजह वैक्सीन ही है. इसके अलावा बाकी के टीकों की तरह यहां भी ज्यादा उम्र के लोगों में बुखार, थकान जैसे लक्षण कम देखे गए हैं.
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स्पूतनिक वी
रूस की वैक्सीन स्पूतनिक वी को अगस्त में ही मंजूरी दे दी गई थी. किसी भी टीके को तीन दौर के परीक्षणों के बाद ही बाजार में लाया जाता है, जबकि स्पूतनिक के मामले में दूसरे चरण के बाद ही ऐसा कर दिया गया. रूस के अलावा यह टीका भारत में भी दिया जाना है. जानकारों की शिकायत है कि इसके पूरे डाटा को सार्वजनिक नहीं किया गया है, इसलिए साइड इफेक्ट्स के बारे में ठीक से नहीं बताया जा सकता.
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन भी स्पूतनिक की तरह विवादों में घिरी है. सरकार ने इसे इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए अनुमति दी है लेकिन इसके भी तीसरे चरण के परीक्षणों के बारे में जानकारी नहीं है और ना ही यह बताया गया है कि यह कितनी कारगर है. भारत में महामारी पर नजर रख रही संस्था सेपी की अध्यक्ष गगनदीप कांग ने कहा है कि वे सरकार के फैसले को समझ नहीं पा रही हैं और अपने करियर में उन्होंने कभी ऐसा होते नहीं देखा.
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बच्चों के लिए टीका?
आम तौर पर पैदा होते ही बच्चों को टीके लगने शुरू हो जाते हैं लेकिन कोरोना के टीके के मामले में ऐसा नहीं होगा. इसकी दो वजह हैं: एक तो बच्चों पर इसका परीक्षण नहीं किया गया है और ना ही इसकी अनुमति है. और दूसरा यह कि महामारी की शुरुआत से बच्चों पर कोरोना का असर ना के बारबार देखा गया है. इसलिए बच्चों को यह टीका नहीं लगाया जाएगा. साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी फिलहाल यह टीका नहीं दिया जाएगा.
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सुरक्षित टीका क्या होता है?
जर्मनी में कोरोना पर नजर रखने वाले रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट की वैक्सीनेशन कमिटी के सदस्य के सदस्य क्रिस्टियान बोगडान बताते हैं कि किसी टीके से अगर एक वृद्ध व्यक्ति की उम्र 20 प्रतिशत घटती है लेकिन साथ ही अगर 50 हजार में से सिर्फ एक व्यक्ति को उससे एलर्जी होती है, तो वे ऐसे टीके को सुरक्षित मानेंगे. उनके अनुसार यूरोप में इसी पैमाने पर टीकों को अनुमति दी जा रही है.