अफ्रीकाः तेजी से फैलते कोरोना पर डब्ल्यूएचओ की चेतावनी
२१ जुलाई २०२०
डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि दक्षिण अफ्रीका में कोविड-19 के संक्रमण के तेजी से बढ़ते मामले बाकी महाद्वीप के लिए आने वाले समय में जानलेवा हो सकते हैं.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अफ्रीका में कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर सोमवार को चिंता जाहिर की, खासकर उप-सहारा देशों के लिए. डब्ल्यूएचओ के इमरजेंसी प्रोग्राम के निदेशक माइक रायन ने कहा, "मैं अभी बहुत चिंतित हूं कि हम अफ्रीका में बीमारी में तेजी देख रहे हैं और हमें इसे बहुत ही गंभीरता से लेना चाहिए. उनमें से कई देशों की हालत नाजुक है और वहां संघर्ष जारी है."
कुछ समय पहले तक दुनिया के अन्य देशों की तुलना में अफ्रीका बहुत हद तक अप्रभावित था. यूरोप और अमेरिका कोरोना वायरस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे. अफ्रीकी महाद्वीप में अब तक कोविड-19 के 7,25,000 मामले दर्ज किए जा चुके हैं और इस महामारी से 15,000 से अधिक मौतें दर्ज की गई हैं. लेकिन दक्षिण अफ्रीका के लिए खासकर स्थिति चिंताजनक हो गई है. दक्षिण अफ्रीका में सप्ताहांत में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 5,000 की संख्या को पार कर गई है और देश ने साढ़े तीन लाख से ज्यादा कोविड-19 के मामले दर्ज किए हैं. कोविड-19 की मार सबसे ज्यादा दक्षिण अफ्रीका पर ही पड़ी है.
लेकिन रायन ने चेतावनी दी है कि बाकी के महाद्वीप के लिए इसे चेतावनी के रूप में देखा जा सकता है. उन्होंने कहा, "जबकि दक्षिण अफ्रीका एक बहुत ही गंभीर स्थिति का सामना कर रहा है, मेरा ऐसा मानना है कि महाद्वीप की तत्काल मदद के लिए कार्रवाई नहीं की जाती है तो महाद्वीप भविष्य में गंभीर संकट से घिर सकता है."
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि, "दक्षिण अफ्रीका दुर्भाग्य से एक अग्रदूत हो सकता है, अफ्रीका के बाकी हिस्सों में क्या होगा उसके लिए यह एक चेतावनी हो सकती है."
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अफ्रीका के अन्य देशों के मुकाबले दक्षिण अफ्रीका में पहले महामारी फैली थी. संगठन का कहना है कि कोविड-19 पहले अमीर इलाकों में फैला और अब वह गरीब और ग्रामीण इलाकों तक पैर पसार चुका है.
कोरोना महामारी की शुरुआत हुए आधा साल बीत चुका है. पिछले छह महीनों से वैज्ञानिक इस नए वायरस को समझने में लगे हुए हैं. जानिए कहां तक पहुंची है रिसर्च.
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कहां से हुई शुरुआत?
सोशल मीडिया पर वायरस के फैलाव को ले कर कई किस्से कहानी फैले लेकिन आज तक ठीक तरह से इस बात का पता नहीं चल सका है कि शुरुआत कहां से हुई. चीन के एक मीट बाजार की बात हुई. लेकिन जानवर से इंसान में संक्रमण का पहला मामला कौन सा था, यह आज भी रहस्य ही बना हुआ है.
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कैसा दिखता है वायरस?
चीनी वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड समय में इस नए कोरोना वायरस के जेनेटिक ढांचे का पता लगा लिया था. 21 जनवरी को उन्होंने इसे प्रकाशित किया और तीन दिन बाद विस्तृत जानकारी भी दी. इसी के आधार पर दुनिया भर में वायरस को मारने के लिए टीके बनाने की मुहिम शुरू हुई.
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क्या होगा वैक्सीन में?
सार्स कोव-2 वायरस की सतह पर एस-2 नाम के प्रोटीन होते हैं. यही इंसानी कोशिकाओं से जुड़ जाते हैं और संक्रमित व्यक्ति को बीमार करने के लिए जिम्मेदार होते हैं. वैक्सीन का काम इस प्रोटीन को निष्क्रिय करना या किसी तरह ब्लॉक करना होगा.
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एयर कंडीशनर से संक्रमण
शुरुआत में कहा गया था कि संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से या फिर संक्रमित सतह को छूने से ही यह वायरस फैलता है. लेकिन अब पता चला है कि फ्लू के वायरस की तरह यह भी हवा से फैल सकता है, खास कर वहां, जहां एसी का इस्तेमाल हो रहा हो.
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भीड़ का खतरा
किसी बंद जगह में बड़ी संख्या में लोगों की उपस्तिथि खतरे की घंटी है. इसीलिए दुनिया के लगभग हर देश ने लॉकडाउन का सहारा लिया. अभी भी ज्यादातर देशों में सिनेमा हॉल, ट्रेड फेयर और बड़े इवेंट बंद हैं.
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मास्क का इस्तेमाल
विश्व स्वास्थ्य संगठन शुरू में संक्रमण पर काबू पाने के लिए मास्क के इस्तेमाल से इनकार करता रहा. लेकिन देशों ने उसके खिलाफ जा कर सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनना अनिवार्य किया. हालांकि अधिकतर मामलों में देखा जा रहा है कि लोग मास्क का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.
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बचने का यही तरीका
दो अहम बातें जो शुरू से कही जा रही हैं और जिन पर अब भी कोई दो राय नहीं हैं, वे हैं - साबुन से अच्छी तरह हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग. हालांकि लॉकडाउन खुलने के बाद से सोशल डिस्टेंसिंग को ले कर संजीदगी भी कम हुई है.
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जानवरों से खतरा नहीं
हो सकता है कि आपका पालतू जानवर किसी तरह संक्रमित हो गया हो लेकिन अब तक हुए शोध दिखाते हैं कि इंसानों को उनसे कोई खतरा नहीं है. हालांकि इस दिशा में अभी और शोध चल रहे हैं.
महिलाओं की तुलना में पुरुषों को खतरा ज्यादा है. ए ब्लड ग्रुप के लोगों पर इसका ज्यादा असर होता है. पहले से बीमार लोगों का शरीर वायरस का ठीक से सामना नहीं कर पाता. मधुमेह, कैंसर और हृदय रोगियों को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.
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इम्यूनिटी बढ़ाएं
अब तक हुए सभी शोध इसी ओर इशारा करते हैं कि अगर आपका इम्यून सिस्टम मजबूत है, तो आप वायरस के असर से बच सकते हैं. यही वजह है कि बाजार में तरह तरह के इम्यूनिटी बूस्टर बिकने लगे हैं.
संक्रमण के बाद फिट हो जाने वाले व्यक्ति के खून में वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडी बनी रहती हैं. कुछ देशों में डॉक्टर इन एंटीबॉडी का इस्तेमाल मरीजों को ठीक करने के लिए कर रहे हैं. लेकिन कोरोना काल में लोग खून डोनेट करने से भी डर रहे हैं.
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आईसीयू में क्या होता है?
यूरोप में जब यह वायरस फैला तो डॉक्टर जल्द से जल्द मरीजों पर वेंटिलेटर इस्तेमाल करने लगे. लेकिन अब बताया जा रहा है कि वेंटिलेटर का इस्तेमाल फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसे में अब आईसीयू केवल ऑक्सीजन लगाने पर जोर दे रहे हैं.
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आईसीयू से निकलने के बाद
जहां पहले सिर्फ फेफड़ों पर ध्यान दिया जा रहा था, वहां अब मरीज के आईसीयू से निकलने के बाद बाकी के अंगों की भी जांच की जा रही है क्योंकि कई मामलों में इस वायरस को अंगों के नाकाम होने के लिए जिम्मेदार पाया गया है.
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डायलिसिस की जरूरत
यदि किडनी पर असर हुआ हो, तो डायलिसिस की जरूरत बन जाती है. कोलकाता में एक डॉक्टर मात्र 50 रुपये में लोगों का डायलिसिस कर रहा है. आम तौर पर इसके लिए बड़ा खर्च आता है.
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कौनसी दवा करती है असर?
अब तक इस वायरस से निपटने का कोई रामबाण इलाज नहीं मिला है. डॉक्टर कुछ दवाओं का इस्तेमाल जरूर कर रहे हैं लेकिन ये सभी दवाएं लक्षणों पर असर करती हैं, बीमारी पर नहीं. रेमदेसिविर इस मामले में काफी चर्चित दवा है.
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कब आएगी वैक्सीन?
कुछ लोगों का कहना है कि इस साल के अंत तक टीका बाजार में आ जाएगा, तो कुछ अगले साल की शुरुआत की बात कर रहे हैं. लेकिन टीके आम तौर पर इतनी जल्दी तैयार नहीं होते. और अगर बन भी जाए, तो पूरी आबादी तक उन्हें पहुंचाने में भी वक्त लग जाएगा.
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कैसी है तैयारी?
फिलहाल अलग अलग देशों में 160 वैक्सीन प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है. टीबी की वैक्सीन को बेहतर बना कर इस्तेमाल लायक बनाने की कोशिश भी चल रही है. भारत के सीरम इंस्टीइट्यूट ने प्रोडक्शन की तैयारी कर ली है. इंतजार है तो सही फॉर्मूला मिल जाने का.
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इंसानों पर टेस्ट का मतलब?
जून 2020 के अंत तक पांच टीकों का ह्यूमन ट्रायल हो चुका है. इंसानों पर टेस्ट का मकसद होता है यह पता करना कि इस तरह के टीके का इंसानों पर कोई बुरा असर तो नहीं होगा. हालांकि यह असर दिखने में भी काफी लंबा समय लग सकता है.
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हर्ड इम्यूनिटी कब मिलेगी?
जब आबादी के एक बड़े हिस्से को किसी बीमारी से इम्यूनिटी मिल जाती है, तो उसके फैलने का खतरा बहुत कम हो जाता है. जून के अंत तक दुनिया के एक करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके थे. लेकिन 7.8 अरब की आबादी में एक करोड़ हर्ड इम्यूनिटी बनाने के लिए काफी नहीं है. रिपोर्ट: फाबियान श्मिट/आईबी