डब्ल्यूएचओ ने यूरोप को फटकार लगाते हुए कहा है कि गर्मियों में हालात बेहतर होने के बावजूद कई देशों ने लापरवाही दिखाई और अब उन्हें और भी घातक तीसरी लहर का सामना करना पड़ सकता है.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष दूत डेविड नाबारो ने स्विट्जरलैंड के अखबार सोलोथुर्नर साइटुंग से कहा कि जिस तरह के हालात चल रहे हैं, बहुत मुमकिन है कि 2021 की शुरुआत में यूरोप को महामारी की घातक तीसरी लहर का सामना करना पड़ सकता है. इस वक्त सबकी उम्मीदें वैक्सीन पर टिकी हैं लेकिन नाबारो के अनुसार वैक्सीन के बाजार में आने से पहले यूरोप को शायद काफी बुरे हालात देखने होंगे.
अखबार से बातचीत में नबारो ने कहा, "गर्मियों में जब पहली लहर काबू में आ गई थी, तब वे आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण करने से चूक गए. अब हमारे सामने दूसरी लहर है. अगर अब भी वे जरूरी बुनियादी ढांचा खड़ा नहीं करते हैं, तो अगले साल की शुरुआत में हमारे पास तीसरी लहर होगी."
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एशिया से सीखे यूरोप
नबारो ने यह भी कहा कि यूरोप को एशियाई देशों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है, "वायरस से निपटने के लिए जल्द और ठोस फैसले लेने होते हैं. खास कर शुरुआत में, जब वायरस लोगों के बीच धीरे-धीरे फैल रहा होता है. अगर आप आधे-अधूरे से फैसले लेंगे, तो समस्या बहुत जल्दी ही बिगड़ जाएगी."
गर्मियों में यूरोप में हालात बेहतर थे लेकिन सर्दियां आते ही संक्रमण तेजी से बढ़ने लगा है. 8.4 करोड़ की आबादी वाले जर्मनी में 22 नवंबर को 14 हजार नए मामले दर्ज किए गए. इसकी तुलना में 12 करोड़ की आबादी वाले जापान में 21 नवंबर को केवल 2,596 नए मामले देखे गए. इसी तरह पांच करोड़ की आबादी वाले दक्षिण कोरिया में मात्र 386 नए मामलों ही दर्ज किए गए. दक्षिण कोरिया में तो महामारी की शुरुआत से अब तक कुल मिलाकर लगभग 30,700 मामलों की ही पुष्टि हुई है.
नेताओं की समझ से परे
नबारो के अनुसार एक बड़ी समस्या यह रही कि बहुत से नेताओं को तो यह समझ में ही नहीं आया कि वायरस "एक्स्पोनेंशियली" फैलता है, "अरिथमैटिकली" नहीं, "एक्स्पोनेंशियल का मतलब होता है कि संख्या एक सप्ताह में आठ गुना बढ़ सकती है, दो हफ्तों में यह 40 गुना हो सकती है और तीन हफ्तों में 300 गुना, फिर चार हफ्तों में शायद 1000 गुना से भी ज्यादा और इसी तरह यह बढ़ती रहेगी."
उन्होंने कहा कि इस बीच एशिया के देशों में संख्या अपेक्षाकृत रूप से कम है क्योंकि "लोग पूरी तरह से वायरस के फैलाव को रोकने में लगे हुए हैं... वे दूरी बना कर रखते हैं, मास्क पहनते हैं, बीमार होने पर अलग-थलग रहते हैं, हाथ और सतह साफ करते रहते हैं, जिन लोगों को सबसे ज्यादा खतरा है उन पर विशेष ध्यान देते हैं."
लॉकडाउन हटाने को ले कर भी नबारो ने चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि एशिया ने समय से पहले प्रतिबंधों में ढील नहीं दी, उन्होंने संख्या कम होने का इंतजार किया, जबकि यूरोप ने जल्दबाजी दिखाई और अधूरे फैसले लिए. नबारो ने कहा कि यूरोपीय देशों को एशिया का यह संदेश समझना चाहिए कि "अगर हम चाहते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत हो और हमारी स्वतंत्रता भी बनी रहे, तो हमें कुछ बुनियादी नियमों का पालन करना ही होगा."
भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोविड-19 की वैक्सीन पर काम चल रहा है. अब तक कुछ सफलता जरूर मिली है लेकिन वैक्सीन के साइड इफेक्ट को ले कर चिंता भी जताई जा रही है.
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साइड इफेक्ट
इस वक्त पूरे दुनिया की उम्मीदें कोविड-19 की वैक्सीन पर टिकी हैं. लेकिन यह टीका कोई जादू का घोल नहीं होगा. हर दवा की तरह इसके भी साइड इफेक्ट हो सकते हैं. जरूरी नहीं कि ये हर व्यक्ति पर बुरा असर करे. लेकिन कुछ खास किस्म की एलर्जी रखने वालों को इससे खतरा हो सकता है.
ब्राजील में चीन की कंपनी सिनोवैक की वैक्सीन पर ट्रायल चल रहे थे जिन्हें 9 नवंबर को रोकना पड़ा. ब्राजील के स्वास्थ्य मंत्रालय ने "एक बेहद गंभीर घटना" को इसके लिए जिम्मेदार बताया है लेकिन इस पर और जानकारी नहीं दी है. इन ट्रायल के दौरान एक व्यक्ति की मौत होने के बाद से इस पर विवाद खड़ा हुआ.
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जॉन्सन एंड जॉन्सन
11 अक्टूबर को जॉन्सन एंड जॉनसन को भी अपने ट्रायल रोकने पड़े. इस वैक्सीन पर चल रहे शोध में हिस्सा लेने वाले 60 हजार वॉलंटियर में से एक की तबियत बिगड़ने के बाद यह फैसला लिया गया. हालांकि जॉन्सन एंड जॉन्सन ने यह भी बयान दिया कि यह ब्रेक भी उनके शोध का ही हिस्सा है.
यह वही कंपनी है जिसकी एंटीबॉडी कॉकटेल अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को उनके इलाज के दौरान दी गई थी. ट्रंप ने इसकी काफी तारीफ भी की थी लेकिन दूसरे चरण की टेस्टिंग के बाद इसे भी रोका गया. कंपनी ने "सुरक्षा कारणों" को इसकी वजह बताया था.
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ऑक्सफोर्ड एस्ट्रा जिनेका
इस वैक्सीन से काफी ज्यादा उम्मीदें लगाई गई थीं. भारत में भी इस पर ट्रायल चल रहे थे. लेकिन टेस्टिंग के दौरान एक वॉलंटियर ने कुछ अस्पष्ट लक्षणों के बारे में बताया, जिसके बाद ट्रायल को रोकना पड़ा.
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बायोनटेक+फाइजर
जर्मन कंपनी बायोनटेक और अमेरिकी कंपनी फाइजर ने दावा किया है कि उसने तीसरे चरण की टेस्टिंग को सफलतापूर्वक पूरा किया है और उन्हें 90 फीसदी से ज्यादा नतीजा मिला है. इस शोध में 43 हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया और 28 दिनों में 93 फीसदी लोग वायरस से सुरक्षित पाए गए.
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स्पुतनिक
रूस की वैक्सीन स्पुतनिक शुरू से ही विवादों में रही, लेकिन फाइजर की खबर आने के बाद राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि उनकी वैक्सीन ने भी 90 फीसदी का असर दिखाया. उन्होंने कहा कि रूस में बनी हर वैक्सीन विश्वसनीय है. स्पुतनिक वैक्सीन पर भारत में भी टेस्ट किया जा रही है.
कोरोना वायरस से निपटने के लिए सब कंपनियां आनन फानन में नतीजों तक पहुंचने की कोशिश में तो लगी हैं लेकिन कोई भी वैक्सीन कितनी कारगर है यह समझने में सालों लगता है. बायोनटेक और फाइजर के टीके को लेकर भी अभी यह पता नहीं है कि अलग अलग लोगों पर इसके क्या अलग अलग असर देखने को मिलेंगे.
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लैब से बाजार
यूरोपीय संघ में जनवरी 2021 से लोगों को वैक्सीन देने की बात की जा रही है. लेकिन पहले वैक्सीन किसे मिलेगी, इस पर नियम तय होना बाकी है. अगर जनवरी से टीका बाजार में आता भी है, तो भी पूरी जनता तक पहुंचने में साल भर लग सकता है.