तानाशाह गद्दाफी की मौत के दस साल बाद कहां है उनका परिवार
१० फ़रवरी २०२१
लीबिया में 2011 में तानाशाह मुआम्मर गद्दाफी को सत्ता से बेदखल कर मौत के घाट उतार दिया गया था. लेकिन उनके परिवार के कई सदस्य विद्रोह में बच गए थे. अब वे कहां हैं?
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उत्तरी अफ्रीकी देश लीबिया में गद्दाफी की सत्ता को खत्म हुए दस साल हो गए हैं. गद्दाफी के सात बेटे विद्रोह के दौरान ही मारे गए. इनमें मुतासिब भी शामिल था. उसे 20 अक्टूबर 2011 को सिर्ते में उसी दिन मारा गया जब उसके पिता की भीड़ ने पीट पीटकर हत्या कर दी थी. गद्दाफी के एक अन्य बेटे सैफ अल-अरब की अप्रैल 2011 में नाटो के हवाई हमलों में मौत हुई. इसके चार महीने बाद जब लीबिया में विद्रोह चरम पर था, तब एक अन्य बेटे खामिस की भी मौत हो गई.
लेकिन इस दौरान गद्दाफी परिवार के कुछ सदस्य बच गए. इनमें उनकी पत्नी साफिया और सबसे बड़ा बेटा मोहम्मद शामिल है जो पहली शादी से पैदा हुआ था. गद्दाफी की बेटी आयशा भी बच गई, जो निर्वासन में रह रही है. लेकिन गद्दाफी के बेटे सैफ अल-इस्लाम को लेकर रहस्य बरकरार है. कभी सैफ अल-इस्लाम को गद्दाफी का उत्तराधिकारी माना जाता था. युद्ध अपराधों के सिलसिले में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय को उसकी तलाश है.
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हर चीज को अपने मुताबिक करवाने की सनक, ताकत और अतिमहत्वाकांक्षा का मिश्रण धरती को नर्क बना सकता है. एक नजर ऐसे तानाशाहों पर जिनकी सनक ने लाखों लोगों की जान ली.
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1. माओ त्से तुंग
आधुनिक चीन की नींव रखने वाले माओ त्से तुंग के हाथ अपने ही लोगों के खून से रंगे थे. 1958 में सोवियत संघ का आर्थिक मॉडल चुराकर माओ ने विकास का नारा दिया. माओ की सनक ने 4.5 करोड़ लोगों की जान ली. 10 साल बाद माओ ने सांस्कृतिक क्रांति का नारा दिया और फिर 3 करोड़ लोगों की जान ली.
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2. अडोल्फ हिटलर
जर्मनी के नाजी तानाशाह अडोल्फ हिटलर के अपराधों की लिस्ट बहुत ही लंबी है. हिटलर ने 1.1 करोड़ लोगों की हत्या का आदेश दिया. उनमें से 60 लाख यहूदी थे. उसने दुनिया को दूसरे विश्वयुद्ध में भी धकेला. लड़ाई में 7 करोड़ जानें गई. युद्ध के अंत में पकड़े जाने के डर से हिटलर ने खुदकुशी कर ली.
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3. जोसेफ स्टालिन
सोवियत संघ के संस्थापकों में से एक व्लादिमीर लेनिन के मुताबिक जोसेफ स्टालिन रुखे स्वभाव का शख्स था. लेनिन की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद सोवियत संघ की कमान संभालने वाले स्टालिन ने जर्मनी को हराकर दूसरे विश्वयुद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई. लेकिन स्टालिन ने अपने हर विरोधी को मौत के घाट भी उतारा. स्टालिन के 31 साल के राज में 2 करोड़ लोग मारे गए.
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4. पोल पॉट
कंबोडिया में खमेर रूज आंदोलन के नेता पोल पॉट ने सत्ता में आने के बाद चार साल के भीतर 10 लाख लोगों को मौत के मुंह में धकेला. ज्यादातर पीड़ित श्रम शिविरों में भूख से या जेल में यातनाओं के चलते मारे गए. हजारों की हत्या की गई. 1998 तक कंबोडिया के जंगलों में पोल पॉट के गुरिल्ला मौजूद थे.
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5. सद्दाम हुसैन
इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन की कुर्द समुदाय के प्रति नफरत किसी से छुपी नहीं थी. 1979 से 2003 के बीच इराक में 3,00,000 कुर्द मारे गए. सद्दाम पर रासायनिक हथियारों का प्रयोग करने के आरोप भी लगे. इराक पर अमेरिकी हमले के बाद सद्दाम हुसैन को पकड़ा गया और 2006 में फांसी दी गई.
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6. ईदी अमीन
सात साल तक युगांडा की सत्ता संभालने वाले ईदी अमीन ने 2,50,000 से ज्यादा लोगों को मरवाया. ईदी अमीन ने नस्ली सफाये, हत्याओं और यातनाओं का दौर चलाया. यही वजह है कि ईदी अमीन को युगांडा का बूचड़ भी कहा जाता है. पद छोड़ने के बाद ईदी अमीन भागकर सऊदी अरब गया. वहां मौत तक उसने विलासिता भरी जिंदगी जी.
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7. मेनगिस्तु हाइले मरियम
इथियोपिया के कम्युनिस्ट तानाशाह से अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ लाल आतंक अभियान छेड़ा. 1977 से 1978 के बीच ही उसने करीब 5,00,000 लाख लोगों की हत्या करवाई. 2006 में इथियोपिया ने उसे जनसंहार का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई. मरियम भागकर जिम्बाब्वे चला गया.
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8. किम जोंग इल
इन सभी तानाशाहों में सिर्फ किम जोंग इल ही ऐसे हैं जिन्हे लाखों लोगों को मारने के बाद भी उत्तर कोरिया में भगवान सा माना जाता है. इल के कार्यकाल में 25 लाख लोग गरीबी और कुपोषण से मारे गए. इल ने लोगों पर ध्यान देने के बजाए सिर्फ सेना को चमकाया.
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9. मुअम्मर गद्दाफी
मुअम्मर गद्दाफी ने 40 साल से ज्यादा समय तक लीबिया का शासन चलाया. तख्तापलट कर सत्ता प्राप्त करने वाले गद्दाफी के तानाशाही के किस्से मशहूर हैं. गद्दाफी पर हजारों लोगों को मौत के घाट उतारने और सैकड़ों औरतों से बलात्कार और यौन शोषण के आरोप हैं. 2011 में लीबिया में गद्दाफी के विरोध में चले लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों में गद्दाफी की मौत हो गई.
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10. फ्रांकोइस डुवेलियर
1957 में हैती की कमान संभालने वाला डुवेलियर भी एक क्रूर तानाशाह था. डुवेलियर ने अपने हजारों विरोधियों को मरवा दिया. वो अपने विरोधियों को काले जादू से मारने का दावा करता था. हैती में उसे पापा डुवेलियर के नाम से जाना जाता था. 1971 में उसकी मौत हो गई. फिर डुवेलियर का बेटा भी हैती का तानाशाह बना.
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दर बदर भटकते
अगस्त 2011 में जब राजधानी त्रिपोली पर विद्रोहियों का नियंत्रण हो गया तो साफिया, मोहम्मद और आयशा भागकर पड़ोसी देश अल्जीरिया चले गए. बाद में उन्हें ओमान में इस शर्त पर शरण दे दी गई कि वे कोई राजनीतिक गतिविधियां नहीं चलाएंगे. ओमान के विदेश मंत्री मोहम्मद अब्देल अजीज ने 2013 में एएफपी से बातचीत में यह बात कही थी. आयशा पेशे से वकील है और संयुक्त राष्ट्र की गुडविल एम्बेसेडर रह चुकी है. वह सद्दाम हुसैन का बचाव करने वाली अंतरराष्ट्रीय टीम का हिस्सा रह चुकी है.
गद्दाफी के एक और बेटे हनीबाल ने भी अल्जीरिया में शरण मांगी थी. इससे पहले उसने लेबनान में अपनी लेबनानी मॉडल पत्नी अलीने स्काफ के साथ रहने की कोशिश की. लेकिन लेबनानी अधिकारियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उस पर एक शिया मौलवी मूसा सद्र के बारे में जानकारी छिपाने के आरोप लगे. मूसा सद्र 1978 में अपनी लीबिया यात्रा के दौरान गायब हो गए थे. हनीबाल और उसकी पत्नी को लेकर 2008 में स्विट्जरलैंड में एक राजनयिक विवाद भी हुआ. उन्हें एक लग्जरी होटल में दो घरेलू कर्मचारियों पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
गद्दाफी का एक और बेटा है सादी गद्दाफी, जो अपनी इश्कबाजी के लिए बहुत मशहूर था. वह कभी इटली में पेशेवर फुटबॉलर हुआ करता था. विद्रोह के दौरान वह भागकर नाइजर चला गया, लेकिन बाद में उसे लीबिया प्रत्यर्पित कर दिया गया. वह विद्रोह के दौरान हत्या और दमन के मामलों में वांछित था. अभी वह त्रिपोली की जेल में बंद है और उस पर 2011 में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अपराध के आरोप हैं. इसके अलावा उस पर 2005 में लीबियाई फुटबॉलर शरी अल रायानी की हत्या के भी आरोप हैं.
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हिमलर की खूनी डायरी
सबसे क्रूर नाजी नेताओं में शुमार हाइनरिष हिमलर की एक डायरी सार्वजनिक हुई, जिसमें उसने 1937-38 और 1944-45 यानि दूसरे विश्व युद्ध के पहले और अपने आखिरी दिनों का ब्यौरा दर्ज किया था.
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मॉस्को स्थित जर्मन इतिहास संस्थान (डीएचआई) अगले साल हिमलर की उन डायरियों को प्रकाशित करने जा रहा है जिसमें दूसरे विश्व युद्ध के ठीक पहले और बाद के दिनों में उसकी ड्यूटी के दौरान जो भी घटा वो दर्ज है. कुख्यात नाजी संगठन एसएस के राष्ट्रीय प्रमुख की यह आधिकारिक डायरी 2013 में मॉस्को के बाहर पोडोल्स्क में रूसी रक्षा मंत्रालय ने बरामद की थी.
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डायरी में हिमलर अपने अगले दिन की योजना के बारे में टाइप करके लिखता था. इसे देखकर जाना जा सकता है कि तब हिमलर के दिन कैसे गुजरते थे. इसमें तमाम अधिकारियों, एसएस के जनरलों के साथ रोजाना होने वाली बैठकों के अलावा मुसोलिनी जैसे विदेशी नेताओं से मुलाकात की बात दर्ज है. इसके अलावा आउशवित्स, सोबीबोर और बूखेनवाल्ड जैसे यातना शिविरों के दौरे का भी जिक्र है.
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हिमलर की सन 1941-42 की डायरी 1991 में ही बरामद हो गई थी और उसे 1999 में प्रकाशित किया गया था. हिमलर को अडोल्फ हिटलर के बाद नंबर दो नेता माना जाता था. 23 मई 1945 को ल्यूनेबुर्ग में ब्रिटिश सेना की हिरासत में आत्महत्या करने वाले हिमलर ने अपने जीवनकाल में एसएस प्रमुख के अलावा, गृहमंत्री और रिप्लेसमेंट आर्मी के कमांडर के पद संभाले थे.
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सभी यातना शिविरों के नेटवर्क के अलावा घरेलू नाजी गुप्तचर सेवा का काम भी हिमलर देखता था. हिमलर के अलावा ऐसी डायरी नाजी प्रोपगैंडा प्रमुख योसेफ गोएबेल्स रखता था. इन डायरियों से होलोकॉस्ट के नाम से प्रसिद्ध यहूदी जनसंहार में हिमलर की भूमिका साफ हो जाती है. डायरी में दिखता है कि उसने यातना शिविरों और वॉरसॉ घेटो का भी दौरा किया और वहां यहूदियों की सामूहिक हत्या करवाई.
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जर्मन दैनिक "बिल्ड" में प्रकाशित इस डायरी के कुछ अंशों में दिखता है कि 4 अक्टूबर, 1943 को हिमलर ने पोजनान में एसएस नेताओं के एक समूह को संबोधित किया. इस तीन घंटे के भाषण में हिमलर ने "यहूदी लोगों के सफाए" की बात कही थी. आधिकारिक तौर पर किसी नाजी नेता के होलोकॉस्ट का जिक्र करने के प्रमाण दुर्लभ ही मिले हैं. हिमलर यूरोप के साठ लाख यहूदियों के खात्मे का गवाह और कर्ताधर्ता रहा.
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नाजी काल के विशेषज्ञों को पूरा भरोसा है कि यह डायरी और दस्तावेज सच्चे हैं. रूस की रेड आर्मी के हाथ लगी इस डायरी के 1,000 पेजों को 2017 के अंत तक दो खंडों वाली किताब के रूप में प्रकाशित किया जाएगा.
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पोडोल्स्क आर्काइव में करीब 25 लाख पेजों वाले ऐसे दस्तावेज मौजूद हैं जिन्हें युद्ध के दौरान रेड आर्मी ने बरामद किया था. अब इन्हें डिजिटलाइज किया जा रहा है और रूसी-जर्मन संस्थानों द्वारा प्रकाशित भी.
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डायरी में एक दिन की एंट्री देखिए- 3 जनवरी, 1943: हिमलर अपने डॉक्टर के पास "थेरेपी मसाज" के लिए गया. मीटिंग्स कीं, पत्नी और बेटी से फोन पर बातें कीं और उसी रात मध्यरात्रि को अनगिनत पोलिश परिवारों को मरवा दिया.
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इन दस्तावेजों से हिमलर की विरोधाभासी तस्वीर उभरती है. एक ओर वो सबका ख्याल रखने वाला पारिवारिक व्यक्ति था तो दूसरी ओर अवैध संबंध के तहत मिस्ट्रेस रखता था और उसकी नाजायज संतान भी थी. वो ताश खेलने और तारे देखने का शौकीन था तो यातना शिविरों में आंखों के सामने लोगों को मरते देखने का भी.
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हिमलर की अपनी सेक्रेटरी हेडविग पोटहास्ट के साथ भी दो संतानें थीं. डायरी में उसने 10 मार्च, 1938 को नाजी प्रोपगैंडा प्रमुख योसेफ गोएबेल्स के साथ जाक्सेनहाउजेन के यातना शिविर का दौरा करने और 12 फरवरी, 1943 को सोबीबोर में तबाही को देखने जाने का ब्यौरा लिखा है. ऐसी विस्तृत और पक्की जानकारी पहली बार हिमलर की डायरी के कारण ही सामने आई है.
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कहां है सैफ अल-इस्लाम
नवंबर 2011 में गद्दाफी की मौत के कुछ दिन बाद एक लीबियाई मिलिशिया ने सैफ अल-इस्लाम को पकड़ लिया. चार साल बाद त्रिपोली की एक अदालत ने सैफ अल-इस्लाम की गैर मौजूदगी में उसे विद्रोह के दौरान किए गए अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई. उसे पकड़ने वाले सशस्त्र गुट ने 2017 में घोषणा की कि सैफ अल-इस्लाम को रिहा कर दिया गया है. इस दावे की कभी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पाई.
2019 में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के अभियोजकों ने कहा कि इस बारे में "पुख्ता" जानकारी है कि सैफ अल-इस्लाम पश्चिमी लीबिया के जिनतान इलाके में है. लेकिन जून 2014 में जिनतान से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए त्रिपोली की अदालत की कार्यवाही में हिस्सा लेने के बाद से ना तो सैफ अल-इस्लाम को कभी देखा गया है और ना ही उसका कोई बयान सामने आया है.
अपने अच्छे दिनों में गद्दाफी खुद को "क्रांति का नेता" समझते थे और लीबिया को उन्होंने जमाहिरिया यानी "जनता का राज" घोषित किया था जिसे स्थानीय कमेटियां चलाती हैं. लेकिन गद्दाफी की सत्ता खत्म होने के बाद उनके हजारों समर्थकों ने देश छोड़ दिया और मिस्र और ट्यूनीशिया में जाकर बस गए. इनमें उनके अपने कबीले गदाफा के बहुत से सारे लोग भी थे.
लीबियाई कानून के प्रोफेसर अमानी अल-हेजरिसी कहते हैं, "यह सुनने में अजीब लगता है लेकिन गद्दाफी के राज में गदाफा कबीले ने बहुत मुश्किल समय देखा. जिन लोगों ने गद्दाफी का विरोध किया, उन्हें जेल में डाल दिया गया." काहिरा में गद्दाफी के समर्थकों ने अल जामाहिरिया टीवी नेटवर्क को फिर से शुरू किया. यह नेटवर्क गद्दाफी के राज में प्रोपेगैंडा फैलाता था. तो क्या निर्वासन में रह रहे गद्दाफी समर्थक लीबिया में राजनीतिक परिदृश्य में अब कोई भूमिका अदा कर रहे हैं. अल-हेजरिसी कहते हैं, "मुझे तो ऐसा नहीं लगता. लीबिया के ज्यादातर लोग गद्दाफी की सत्ता को भ्रष्टाचार और देश के राजनीतिक तंत्र को तहस नहस होने की असल वजह मानते हैं."