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अजरबाइजान और अर्मेनिया की नई लड़ाई किस लिये

१४ सितम्बर २०२२

अजरबाइजान और अर्मेनिया के बीच हुए ताजा संघर्ष में कई दर्जन अर्मेनियाई सैनिक और बड़ी संख्या में अजेरी सैनिकों की मौत हुई है. 2020 में दोनों देशों ने जंग लड़ी थी जिसके बाद इसे अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई कहा जा रहा है.

अर्मेनिया और अजरबाइजान के बीच इस हफ्ते फिर लड़ाई शुरू हो गई
अर्मेनिया और अजरबाइजान के ताजा संघर्ष में 100 लोगों के मारे जाने की खबर हैतस्वीर: Alexander Patrin/Tass/dpa/picture alliance

अब तक मिली जानकारी के मुताबिक दोनों तरफ के कम से कम 100 लोगों की मौत हो चुकी है. दोनों देशों के बीच दक्षिणी काकेशस में मौजूद पूर्व सोवियत देश अर्मेनिया और अजरबाइजान कई दशकों से नागोर्नो काराबाख को लेकर लड़ रहे हैं. नागोर्नो काराबाख एक पहाड़ी इलाका है जो अजरबाइजान का हिस्सा था लेकिन 2020 तक यह जगह अर्मेनियाई लोगों से आबाद और पूरी तरह से उन्हीं के नियंत्रण में थी.

2020 में करीब छह हफ्ते तक चली लड़ाई के बाद अजरबाइजान ने नागोर्नो कारबाख और उसके आसपास के इलाकों पर अधिकार जमा लिया. यह लड़ाई रूस की मध्यस्थता में युद्ध विराम के बाद रुकी हालांकि उसके बाद भी वहां अकसर छोटे छोटे संघर्ष होते रहते हैं. यह हालत तब है जबकि रूसी शांति सैनिकों की वहां तैनाती है.

फिलहाल जो संघर्ष छिड़ा है उसमें अर्मेनिया का कहना है कि कई अर्मेनियाई शहरों पर रात में हमले किये गये हैं. दूसरी तरफ अजरबाइजान का कहना है कि वह अर्मेनिया के उकसावे का जवाब दे रहा है.

अजरबाइजान की गोलाबारी के बाद वार्देनिस से उठता धुआंतस्वीर: Alexander Patrin/Tass/dpa/picture alliance

अभी लड़ाई क्यों हो रही है?

यह समय काफी अहम है क्योंकि इसके पहले अर्मेनिया और अजरबाइजान के बीच समझौता कराने में रूस सबसे ज्यादा असरदार रहा है. रूसी राष्ट्रपति के दफ्तर क्रेमलिन ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रपति पुतिन दक्षिणी काकेशस में हिंसा को रोकने के लिये हर संभव कोशिश कर रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि यूक्रेन की लड़ाई ने इलाके में शांति स्थापित करने वाले के रूप में रूस की स्थिति को थोड़ा कमजोर किया है. इस वजह से अजबाइजान को और ज्यादा इलाकों पर अपना दावा करने का मनोबल मिला होगा.

चाथम हाउस थिंक टैंक में रूस और यूरेशिया प्रोग्राम के एसोसियेट फेलो लॉरेंस बोएर्स का कहना है, "मेरे ख्याल से अजरबाइजान में ऐसी भावना उमड़ रही है कि यही समय है जब वह ताकत और अपनी सैन्य बढ़त का इस्तेमाल कर ज्यादा से ज्यादा हासिल कर सकता है."

अजरबाइजान और अर्मेनिया में शांति समझौता कैसा हो इसे लेकर काफी असहमति है. एक तरफ अजरबाइजान नागोर्नो काराबाख के राजनीतिक ओहदे को खत्म कर अर्मेनिया को वहां किसी तरह की भूमिका निभाने से रोकना चाहता है. दूसरी तरफ अर्मेनियाई अधिकारी स्थानीय अर्मेनियाई लोगों के अधिकार सुनिश्चित करना चाहते हैं.

अर्मेनिया के सैन्य अस्पताल के बाहर जमा घायल सैनिकों के रिश्तेदारतस्वीर: Karen Minasyan/AFP/Getty Images

जोखिम क्या है?

अर्मेनिया और अजरबाइजान के बीच एक और युद्ध होने से रूस और तुर्की जैसे बड़ी ताकतों के इसमें उतरने की आशंका है. इसका नतीजा पूरे दक्षिणी काकेशस में अस्थिरता के रूप में सामने आ सकता है. यह इलाका पाइपलाइनों के लिये एक प्रमुख गलियारा है जहां से तेल और गैस की सप्लाई होती है. ऐसे समय में जब यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा की सप्लाई में पहले से ही बाधा आ रही है, एक और सप्लाई लाइन खतरे में घिर सकती है.

रूस का अर्मेनिया के साथ रक्षा गठजोड़ है और वह वहां एक सैन्य अड्डा भी चलाता है. इधर तुर्की अजरबाइजान में तुर्क मूल के लोगों को राजनीतिक और सैन्य समर्थन देता है. अर्मेनिया और अजरबाइजान के बीच जंग और ज्यादा शांति सैनिकों की तैनाती की जरूरत पैदा करेगी. वो भी ऐसे समय में जब रूस उसे मुहैया कराने की स्थिति में नहीं है.

रूस खुद ही एक बड़ी लड़ाई लड़ रहा है और आने वाले दिनों में और उसके लिये उसे आने वाले दिनों में और ज्यादा सैनिकों की जरूरत पड़ सकती है.

दोनों देशों के बीच 2020 में छह हफ्तों तक लड़ाई चली थीतस्वीर: Dimitar Dilkoff/AFP/Getty Images

यूरोपीय संघ की भूमिका

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस अलग थलग पड़ गया है और इसका असर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिख रहा है. यूरोपीय संघ ने अर्मेनिया और अजरबाइजान के बीच सुलह कराने की कुछ कोशिशें की हैं इनमें शांतिवार्ता, सीमा का परिसीमन और परिवहन मार्गों का खुलना शामिल है. हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि नये संघर्ष ने दोनों देशों को शांति समझौते के करीब लाने की कोशिशों को ध्वस्त कर दिया है. जॉर्जियन स्ट्रैटजिक एनलासिस सेंटर के विश्लेषक गेला वासाद्जे का कहना है कि ताजा संघर्ष ने, "ब्रसेल्स एग्रीमेंट्स को व्यावहारिक रूप से बेकार कर दिया है. दोनों देशों के लोगों के विचार और कट्टर हो गये हैं."

यूरोपीय संघ की मध्यस्थता में मई और अप्रैल में दोनों देशों की बीच बातचीत हुई थी और दोनों देश भविष्य के लिये शांति समझौते पर आगे की बातचीत करने के लिये रजामंद हुए थे.

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स, एएफपी)

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