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अरबों में पुरानी मुद्रा छिपाकर रखी हुई है जर्मनी के लोगों ने

टिमोथी रुक्स
१२ जनवरी २०२४

जर्मनी की पुरानी मुद्रा डॉयचे मार्क वर्षों पहले प्रचलन से बाहर हो चुकी है. इसके बावजूद कई लोगों के घरों में बड़ी मात्रा में यह छिपाकर रखी हुई है. आखिर उन्होंने इस मुद्रा को अब तक क्यों नहीं बदला है?

डॉयचे मार्क
डॉयचे मार्कतस्वीर: Patrick Pleul/dpa/picture alliance

जर्मनी में कुछ लोग 2024 की शुरुआत अपने सोफे और तकियों में छुपाए अरबों डॉयचे मार्क से करेंगे. वही डॉयचे मार्क जो अब प्रचलन से बाहर हो चुके हैं.

दरअसल, जर्मनी के लोगों को नकदी से ज्यादा लगाव है. यूरो के चलन में आने के दो दशक से अधिक समय बाद भी लाखों के डॉयचे मार्क (डीएम) सिक्के और अलग-अलग रंग के नोट घरों के दराजों में पड़े हैं या सीवर की नालियों में खो गए.

इस मुद्रा का कुछ हिस्सा उन लोगों या संग्रहकर्ताओं के पास है जो पुरानी यादों को संजो कर रखना चाहते हैं. वहीं, दूसरा हिस्सा उन पर्यटकों के पास हो सकता है जो इसे स्मृति चिन्ह के तौर पर अपने घर ले गए हैं.

2002 में 162.3 अरब मार्क प्रचलन में थे, जिसमें से 7.5 फीसदी को अब तक बैंकों में नहीं लौटाया गया है. तस्वीर: akg-images/picture alliance

विशेषज्ञों का कहना है कि जो देश इस मुद्रा को विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में इस्तेमाल करते थे उनके पास अब भी इसकी कुछ मात्रा जमा हो सकती है. हालांकि, कोई पक्के तौर पर यह नहीं जानता कि कहां कितनी मुद्रा जमा है.

ये मुद्रा प्रचलन से बाहर हो चुकी है, इसलिए खुले बाजार में कोई इसे इस्तेमाल नहीं कर सकता, लेकिन अब भी इसे बदलकर यूरो हासिल किया जा सकता है.

पुरानी मुद्रा का कितना हिस्सा बैंकों में जमा नहीं हुआ है?

वर्ष 2002 की शुरुआत में मार्क को प्रचलन से बाहर कर दिया गया. उसकी जगह पर नई मुद्रा यूरो लाई गई. उस समय 162.3 अरब मार्क प्रचलन में थे, जिसमें से 7.5 फीसदी मार्क को अब तक बैंकों में नहीं लौटाया गया है. इसमें आधे से ज्यादा सिक्के हैं.

जर्मनी के केंद्रीय बैंक बुंडेसबैंक के अनुसार, 2023 के अंत तक 12.24 अरब मार्क अब भी आम लोगों के पास मौजूद हैं. इनमें 5.68 अरब मार्क के नोट और 6.56 अरब मार्क के सिक्के हैं. कुल मिलाकर उनकी कीमत लगभग 6.26 अरब यूरो है.

घरों में बेकार पड़ी यह रकम यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी के लिए काफी मायने रखती है. यह ऐसा समय है जब जर्मनी की सरकार अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने और रेलवे को बेहतर बनाने जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए धन की तलाश में है.

1964 से 1988 तक करीब 15 अरब मार्क एक गुप्त जगह पर रखे गए थे ताकि शीत युद्ध की वजह से अगर बेलगाम मुद्रास्फीति आए तो आर्थिक संकट से बचा जा सके.तस्वीर: Jürgen Fromme/picture alliance/augenklick/firo Sportphoto

डॉयचे मार्क धीरे-धीरे बैंकों में वापस आ रहा है और बैंक को इस गायब नकदी को लेकर किसी तरह की चिंता नहीं है. कोई भी व्यक्ति केंद्रीय बैंक की शाखा में पुराने सिक्के या नोट को बदल सकता है और उतने ही मूल्य की राशि वापस पा सकता है.

हर साल कई लोग पुराने मार्क को बैंकों में जमा कर रहे हैं. लोगों को 1.95583 मूल्य के मार्क के बदले 1 यूरो मिलता है. वहीं, इसे बदलने के लिए किसी तरह का सेवा शुल्क नहीं लिया जाता.

कुछ देशों ने तय की थी समयसीमा

पिछले साल 90 हजार से अधिक लोग केंद्रीय बैंक पहुंचे और उन्होंने 5.3 करोड़ से अधिक का मार्क जमा करके करीब 2.7 करोड़ यूरो लिया.

जमा किए गए कुल मार्क में दो-तिहाई नोट थे, जबकि एक-तिहाई सिक्के थे. सबसे अधिक मार्क बवेरिया राज्य में जमा किए गए. उसके बाद नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया और बाडेन वुर्टेमबर्ग में जमा किए गए. 

सबसे अहम बात यह है कि बैंक लोगों को यह भरोसा देते हैं कि पुरानी मुद्रा को जमा करने की यह सेवा लगातार जारी रहेगी. इसे बंद नहीं किया जाएगा. इस वजह से जर्मनी का मामला थोड़ा अलग है.

जर्मनी के अलावा यूरोजोन के सिर्फ अन्य पांच देशों - ऑस्ट्रिया, आयरलैंड, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया - ने पुरानी मुद्रा बदलने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की है.

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जबकि यूरोजोन के अन्य देशों ने पुरानी मुद्रा को बदलने के लिए समयसीमा तय कर दी थी. फ्रांस में पुराने फ्रैंक को जमा करने के लिए 31 मार्च, 2008 तक का वक्त दिया गया था.

ग्रीस ने अपनी पुरानी मुद्रा ड्रैकमा को बदलने के लिए मार्च 2012 तक का समय दिया था. इसके बाद, इन मुद्राओं के नोट या सिक्के किसी काम के नहीं रहे. भारत में भी नोटबंदी के बाद ऐसा ही नियम लागू किया गया और पुराने नोट बदलने के लिए समयसीमा तय की गई थी.

जर्मनी के लोगों को पसंद है नकद

जर्मनी के लोग इस मामले में भाग्यशाली हैं. किसी को अपने पुराने नोट या सिक्के बदलने की जल्दबाजी नहीं है और कई लोग अब भी पुराने नोट को बदलना नहीं चाहते हैं.

इसकी वजह यह है कि उन्हें नकदी से बेहद लगाव है. आज भी जर्मनी के कई रेस्तरां और कियोस्क के बाहर ‘सिर्फ नकद!' लिखा हुआ दिख जाता है.

बाजार अनुसंधान संस्थान ‘फोर्सा' ने बुंडेसबैंक के लिए हाल में एक अध्ययन किया. इसके मुताबिक, 2021 में कैशलेस पेमेंट में बढ़ोतरी होने के बावजूद जर्मनी में अब भी हर दिन सबसे ज्यादा भुगतान नकद में ही होता है.

हालांकि, 2017 के बाद से नकद भुगतान में तेजी से कमी हुई है. शोधकर्ताओं का कहना है कि वस्तुओं और सेवाओं की कुल खरीदारी के 58 फीसदी हिस्से का भुगतान अब भी नकद में किया जाता है.

हालांकि, कुल टर्नओवर के तौर पर देखें, तो सिर्फ 30 फीसदी खरीदारी के लिए नकद का भुगतान किया गया, क्योंकि बड़े पैमाने पर खरीदारी और ऑनलाइन शॉपिंग के लिए दूसरे तरीकों से भुगतान किया गया.

कोचेम में बनाया गया बुंडेसबैंक का गुप्त बंकर, जिसमें शीत युद्ध के दौरान आर्थिक संकट से बचने के मुद्रा रखी गई थी.तस्वीर: Ina Fassbender/AFP

वहीं, जर्मनी के हर व्यक्ति के बटुए में औसतन 100 यूरो हमेशा होता है. फोर्सा  ने पाया कि एक-तिहाई लोग अभी भी नकदी को भुगतान का अपना पसंदीदा तरीका मानते हैं.

जहां तक पुराने डॉयचे मार्क की बात है, बुंडेसबैंक बोर्ड के सदस्य बर्कहार्ड बायत्स को उम्मीद है कि जल्द ही और भी मार्क बैंकों में वापस आ जाएंगे, खासकर नई पीढ़ी के आने के बाद. उन्होंने दिसंबर, 2023 में समाचार एजेंसी डीपीए को बताया, "विरासत में मिले घरों और अपार्टमेंट की सफाई करते समय डॉयचे मार्क मिलने की संभावना होती है.”

हालांकि, कई लोगों को लगता है कि क्या इन मुट्ठी भर सिक्कों को बैंकों में ले जाना उचित है या उन्हें वापस किसी जार में रख देना चाहिए. बैंकों में मार्क के पहुंचने के बाद उसका सफर यहीं खत्म हो जाता है.

नोटों को साइट पर ही काट दिया जाता है. वहीं, सिक्कों को जर्मनी में मौजूद पांच में से किसी एक टकसाल में भेज दिया जाता है जहां उसमें मौजूद धातु को पिघलाकर उसका इस्तेमाल अन्य कामों में किया जाता है.

शायद यह मार्क के लिए सुखद अंत नहीं है, लेकिन लोगों के लिए मुश्किल समय में कुछ अतिरिक्त नकदी कमाने का तरीका तो है ही.

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