कनाडा में तीन लाख से भी ज्यादा भारतीय छात्र पढ़ते हैं. यहां आप्रवासन नीति में हुए एक बदलाव का असर हजारों छात्रों पर पड़ेगा. हताश होकर हजारों भारतीय छात्र कनाडा में इस बदलाव के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं.
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मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कनाडा के कई शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं और इनमें हजारों छात्र शामिल हैं. भारतीय छात्र मुख्य रूप से प्रिंस एडवर्ड आइलैंड, ओंटारियो, मनिटोबा और ब्रिटिश कोलंबिया प्रांतों में प्रदर्शन कर रहे हैं.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, प्रिंस एडवर्ड आइलैंड में तो छात्रों ने स्थानीय विधायिका भवन के बाहर ही शिविर लगा लिया है. छात्र चिंतित हैं कि कनाडा की आप्रवासन नीति में किए गए हालिया बदलावों के कारण उनसे आगे बढ़ने के मौके छिन जाएंगे और उन्हें कनाडा छोड़कर जाना होगा.
क्यों हो रहा है विरोध
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 26 अगस्त को एलान किया कि उनकी सरकार कम वेतन वाले अस्थायी विदेशी कर्मचारियों की संख्या कम करने जा रही है. अस्थायी विदेशी कर्मचारी कार्यक्रम गैर-कनाडाई लोगों को 'शॉर्ट टर्म' आधार पर काम करने के लिए कनाडा आने का अवसर देता है.
कनाडा में विदेशी छात्र हफ्ते में 24 घंटे ही कर पाएंगे काम
कनाडा सरकार ने भारतीय छात्रों समेत अन्य विदेशी छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ काम करने के नियम बदल दिए हैं. अब छात्र प्रति सप्ताह 24 घंटे ही कॉलेज से बाहर काम कर सकेंगे.
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बदल दिया नियम
कनाडा की सरकार ने विदेशी छात्रों के लिए एक नया नियम बनाया है. इस नियम के मुताबिक विदेशी छात्र कॉलेज से बाहर अब हफ्ते में सिर्फ 24 घंटे ही काम कर सकेंगे.
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पुरानी नीति खत्म
विदेशी छात्रों को कॉलेज कैंपस से बाहर हर सप्ताह 20 घंटे से अधिक काम करने की अनुमति देने वाली अस्थायी नीति 30 अप्रैल, 2024 को समाप्त हो चुकी है और इसे अब आगे नहीं बढ़ाया जाएगा.
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सितंबर से लागू होगा नया नियम
इमिग्रेशन, शरणार्थी और सिटिजनशिप मंत्री मार्क मिलर ने एक बयान में कहा, "हम छात्रों द्वारा प्रति सप्ताह कैंपस से बाहर काम करने के घंटों की संख्या को बदलकर 24 घंटे करना चाहते हैं." नए नियम के मुताबिक सितंबर 2024 से विदेशी छात्र कैंपस से बाहर प्रति सप्ताह 24 घंटे काम कर सकेंगे.
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कोविड के दौरान मिली थी राहत
कनाडा की सरकार ने कोविड-19 के दौरान देश में कामगारों की कमी को पूरा करने के लिए विदेशी छात्रों के लिए काम के घंटों की 20 घंटे की सीमा को अस्थायी रूप से माफ कर दिया था.
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छात्र करें पढ़ाई पर फोकस
मार्क मिलर ने कहा कि जो भी छात्र यहां आते हैं, उन्हें यहां पढ़ाई के लिए जरूर आना चाहिए. वे पढ़ाई पर ध्यान दे सकें, इसलिए ऐसा किया जा रहा है. उन्होंने कहा, "छात्रों को प्रति सप्ताह 24 घंटे तक काम करने की इजाजत देने से वे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देंगे. अगर जरूरी होगा तो काम का विकल्प भी उनके पास होगा."
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कनाडा में कितने भारतीय छात्र
कनाडाई अंतरराष्ट्रीय शिक्षा ब्यूरो की 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक कनाडा में उस साल 3,19,130 भारतीय छात्र थे. कनाडा में कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों में भारतीय छात्रों की संख्या अधिक है.
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अन्य देशों में भी नियम
कई देशों में विदेशी छात्रों के लिए उनकी पढ़ाई के दौरान काम के घंटे तय हैं. जैसे ऑस्ट्रेलिया में नियम है कि विदेशी छात्र दो हफ्ते में 48 घंटे काम कर सकते हैं. उसी तरह से अमेरिकी में विदेशी छात्रों को कॉलेज कैंपस से बाहर काम करने के लिए कई मानदंडों को पूरा करना होता है.
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प्रधानमंत्री ट्रूडो ने कहा कि उनका मंत्रिमंडल अस्थायी प्रवासियों की संख्या में कटौती पर भी विचार कर रहा है. नए फैसलों का उद्देश्य है कनाडा में परमानेंट रेसीडेंसी (पीआर) के लिए नामांकन को 25 प्रतिशत कम करना और साथ ही शिक्षा के लिए दिए जाने वाले परमिटों को भी घटाना.
मिसाल के तौर पर एक फैसला लिया गया है कि ऐसे इलाकों में काम करने के परमिट नहीं दिए जाएंगे, जहां बेरोजगारी दर छह प्रतिशत या उससे ज्यादा है. इससे पहले ट्रूडो सरकार ने जनवरी में फैसला लिया था कि सितंबर 2024 से, पिछले साल के मुकाबले नए अंतरराष्ट्रीय छात्र परमिटों में 35 प्रतिशत की कटौती की जाएगी.
फिर मई में सरकार ने यह भी कहा कि सितंबर के बाद से अंतरराष्ट्रीय छात्रों को विश्वविद्यालय के कैंपस के बाहर हर हफ्ते अधिकतम सिर्फ 24 घंटों तक काम करने की इजाजत दी जाएगी. आप्रवासन मंत्री मार्क मिलर ने कहा है कि अगले तीन सालों में देश की आबादी में अस्थायी निवासियों के अनुपात को भी 6.2 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत तक लाया जाएगा.
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भविष्य को लेकर चिंता
आप्रवासन नीति की इस दिशा से छात्र चिंतित हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं. सिटीन्यूज टोरंटो समाचार वेबसाइट के मुताबिक 70,000 से भी ज्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्रों को इन नियमों की वजह से अपने देश वापस लौटना पड़ सकता है.
इन देशों में पढ़ना पसंद करते हैं भारतीय छात्र
भारतीय छात्र उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अब ज्यादा संख्या में विदेश जा रहे हैं. बेहतर शिक्षा, रोजगार के अवसर और स्कॉलरशिप उन्हें विदेश जाने के लिए आकर्षित कर रहे हैं. जानिए, किन देशों में जा रहे हैं छात्र.
महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, बिहार और यूपी से ज्यादा छात्रा अमेरिका जा रहे हैं. वे वहां एमआईटी, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रहे हैं.
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इंग्लैंड
भारत से विदेश जाने वाले छात्रों की इंग्लैंड भी पसंदीदा जगह है. वे यहां की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, कैंब्रिज, इंपीरियल कॉलेज लंदन, किंग्स कॉलेज और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में दाखिला लेना पसंद करते हैं.
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ऑस्ट्रेलिया
हाल के सालों में ऑस्ट्रेलिया भारतीय छात्रों के लिए पसंदीदा ठिकाना बना है. वे यहां पढ़ाई के बाद आसानी से नौकरी ढूंढ लेते हैं. ऑस्ट्रेलिया के कई विश्वविद्यालय स्कॉलरशिप प्रोग्राम भी चला रहे हैं जिससे छात्रों का वहां जाकर पढ़ना आसान हुआ है.
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जर्मनी
जर्मनी ने हाल के सालों में भारतीय छात्रों को खूब लुभाया है. भारतीय छात्र वहां विज्ञान, मेडिसिन और इंजीनियरिंग में दाखिला ले रहे हैं. भारतीय छात्रों में म्यूनिख टेक्निकल यूनिवर्सिटी, लुडविग मैक्समिलियन यूनिवर्सिटी और बर्लिन में हुम्बोल्ट विश्वविद्यालय पसंदीदा है.
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कनाडा
कनाडा जाने के लिए पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली के छात्र खूब दिलचस्पी दिखाते हैं. वे वहां की यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया और यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बर्टा में दाखिला लेना पसंद करते हैं.
छात्रों के एक समूह 'नौजवान सपोर्ट नेटवर्क' ने वेबसाइट को बताया कि छात्रों को चिंता है कि उनके काम के परमिट जब इस साल के अंत में समाप्त हो जाएंगे, तो उसके बाद उन्हें उनके देश वापस भेज दिया जाएगा.
हजारों छात्रों का कहना है कि उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद पीआर के लिए आवेदन करने की योजना बनाई थी, जो अब पूरी नहीं हो पाएगी. छात्रों ने पढ़ाई के लिए बड़े लोन लिए थे, लेकिन काम और पीआर ना मिल पाने की वजह से कर्ज का भुगतान मुश्किल हो जाएगा. देखना होगा कि आने वाले दिनों में इन छात्रों को कनाडा सरकार की तरफ से कुछ राहत मिलती है या नहीं.