1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजनेपाल

नेपाली कामगारों का पसंदीदा ठिकाना क्यों बन रहा है यूरोप

स्वेच्छा राउत
२३ अगस्त २०२४

विदेशों में नौकरी की तलाश करने वाले नेपाली पारंपरिक रूप से एशिया के नजदीकी देशों के साथ-साथ कतर या दुबई जैसे अरब देशों में जाते रहे हैं. यह रुझान बदलता हुआ दिख रहा है. अब यूरोप उनका पसंदीदा ठिकाना बनता जा रहा है.

पुर्तगाल के एक रेस्तरां की रसोई में काम कर रहे नेपाल के प्रवासी कामगार रितु खत्री. यह तस्वीर जनवरी 2024 की है.
यूरोप के कई देशों ने अपने इमिग्रेशन कानूनों में ढील दी है. इससे विदेशी कामगारों के लिए वीजा हासिल करना आसान हो गया है, खासकर कृषि, हाउसकीपिंग, हॉस्पिटैलिटी और निर्माण कार्य जैसे क्षेत्रों में. यह भी माना जाता है कि यूरोप के देशों में कामगारों का शोषण कम होता है और उन्हें वहां ज्यादा आजादी भी मिलती है.तस्वीर: Patricia De Melo Moreira/AFP/Getty Images

दक्षिण एशिया के नेपाल के पंचथर जिले के नरेंद्र भट्टाराई 2007 में बेहतर अवसर की तलाश में कतर चले गए थे. इससे पहले वह अपने देश में एक लेखक, कवि और महत्वाकांक्षी फिल्म निर्माता के तौर पर आजीविका चला रहे थे. भट्टाराई ने कतर जाने की योजना सावधानी से बनाई. उन्होंने एक एजेंट को काफी पैसे दिए, ताकि उन्हें ज्यादा वेतन वाली ड्राइवर की नौकरी मिल सके.

हालांकि, वहां पहुंचने पर उन्हें निर्माण कार्य में श्रमिक के तौर पर काम करने को मजबूर किया गया. विदेश जाने से पहले उन्हें हर महीने 900 कतरी रियाल, यानी करीब 247 डॉलर मिलने की गारंटी दी गई थी, लेकिन सिर्फ 600 रियाल ही मिले. भट्टाराई ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैंने अपने परिवार को बेहतर जीवन देने का सपना देखा था, लेकिन मैं शोषण का शिकार हो गया."

भट्टाराई को अपना कर्ज चुकाने के लिए कतर में कई सालों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ी. इसके बाद वह फिर से नेपाल लौट आए. कविता और फिल्म निर्माण के क्षेत्र में काम करना शुरू किया और पैसे कमाने का उनका संघर्ष जारी रहा.

भारत के लोगों का नया ठिकाना बन रहा है पुर्तगाल

2019 में वह एक फिल्म स्क्रीनिंग के लिए पुर्तगाल की यात्रा कर रहे थे. इस दौरान उन्हें पता चला कि वह वहां रहने के लिए आवेदन कर सकते हैं और यूरोपीय संघ के देश में कानूनी रूप से काम कर सकते हैं. इसके बाद उन्होंने वहीं रहने का फैसला किया. भट्टाराई ने डीडब्ल्यू से कहा, "यूरोप में लंबे समय तक रहने का मतलब है कि मेरे और मेरे परिवार का भविष्य बेहतर हो सकता है."

पड़ोसी देश भारत लंबे समय से नेपाली कामगारों के लिए रोजगार का एक अहम केंद्र रहा है. नेपाल के कितने लोग भारत में काम कर रहे हैं, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. हालांकि, काठमांडू पोस्ट ने अपनी एक खबर में 2019 की एक माइग्रेशन रिपोर्ट के हवाले से यह संख्या 30 से 40 लाख के बीच बताई. तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS

पुर्तगाल ने बाहरी लोगों के लिए अपना दरवाजा खोला

भट्टाराई उन सैकड़ों नेपालियों में से एक थे, जिन्हें 2019 में पुर्तगाल में काम मिला. नेपाल सरकार के आधिकारिक डेटा से पता चलता है कि 2018 में केवल 25 लोगों को पुर्तगाली वर्क परमिट मिला था, लेकिन अगले वर्ष यह संख्या बढ़कर 461 हो गई.

यूरोपीय अध्ययन 'रीथिंकिंग अप्रोच टू लेबर माइग्रेशन - फुल केस स्टडी पुर्तगाल' के अनुसार, पुर्तगाल को कम कौशल वाले कामगारों की जरूरत थी और वह उन्हें 'विशेष रूप से कृषि और पर्यटन' क्षेत्र में नौकरी करने की अनुमति दे रहा था. 2019 से 2024 के बीच, कई यूरोपीय देशों ने बताया कि उनके यहां नेपाली कामगारों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है. रोमानिया में नेपाली कामगारों की संख्या सबसे ज्यादा 640 फीसदी बढ़ी.

यूरोप क्यों हो रहा ज्यादा लोकप्रिय

कुवैत जैसे देशों में भी इस अवधि में नेपाली कामगारों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल के कामगारों के प्रवासन का ढर्रा बदल रहा है. एशिया और फारस की खाड़ी के आसपास के पारंपरिक ठिकानों को छोड़कर कई कामगार पोलैंड, रोमानिया, पुर्तगाल, माल्टा, हंगरी, क्रोएशिया और अन्य यूरोपीय देश जा रहे हैं.

कुशल कामगारों के लिए जर्मनी आना हुआ और आसान

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यहां उन्हें कमाई के बेहतर अवसर मिल रहे हैं और आसानी से नौकरियां भी मिल रही हैं. समाजशास्त्री टीकाराम गौतम ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचे ने भविष्य के लिए बचत करने की हमारी मानसिकता को बढ़ावा दिया है. वैश्वीकरण की वजह से कामगारों को कई तरह के विकल्प मिल रहे हैं. इसलिए वे ऐसे देश में जाना चाहते हैं, जहां अधिक कमाई कर सकें." हालांकि, सामाजिक प्रतिष्ठा और साथियों का दबाव भी एक बड़ी वजह है.

पुर्तगाल, यूरोप के उन देशों में है जहां माइग्रेशन नीति सबसे ज्यादा खुली हुई है. यहां दक्षिण एशियाई प्रवासियों की बड़ी संख्या खेती, मछली पकड़ने और कैटरिंग जैसे कामों में हैं. पिछले पांच साल में पुर्तगाल में विदेशियों की संख्या दोगुनी हो गई है. तस्वीर: Patricia De Melo Moreira/AFP/Getty Images

नेपाल में जन्मे दीपक गौतम पिछले एक दशक से दुबई में सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम कर रहे हैं. वह इतना कमा लेते हैं कि अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा घर भेज पाते हैं. हालांकि, उनका कहना है कि यूरोप में काम न करने के कारण उन्हें नीची नजरों से देखा जाता है. यानी, समाज में उन्हें ज्यादा प्रतिष्ठा नहीं मिलती है.

उन्होंने बताया, "नेपाली समाज में यूरोप में काम करना प्रतिष्ठित माना जाता है, जबकि खाड़ी में काम करने वाले हम लोगों को असफल माना जाता है." नेपाली समाज यह मानता है कि यूरोप में काम करने के हालात बेहतर हैं, वहां ज्यादा वेतन मिलता है और काम के ज्यादा अवसर उपलब्ध हैं. दीपक कहते हैं कि उन्होंने पोलैंड के वर्किंग वीजा के लिए आवेदन करने की कोशिश की, लेकिन दो बार उन्हें अस्वीकार कर दिया गया.

नेपाल क्यों छोड़ रहे हैं युवा कामगार

अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी) के मुताबिक, नेपाल की जीडीपी में 26.6 फीसदी योगदान उन पैसों का है जो विदेशों में काम करने वाले कामगार अपने घर भेजते हैं. 2023 में इसका अनुमानित मूल्य 11 अरब डॉलर था.

दरअसल, हिमालय की गोद में बसे इस देश में राजनीतिक उथल-पुथल, कमजोर अर्थव्यवस्था, बड़े पैमाने पर रोजगार से जुड़ी योजनाओं की कमी, और मानव संसाधन का सही तरीके से प्रबंधन न हो पाने की वजह से यहां के लोग रोजी-रोटी के लिए दूसरे देशों का रूख करते हैं.

राजनीतिक व्यवस्था, शिक्षा और तकनीक तक पहुंच के मामले में यह देश अपेक्षाकृत खुला और उदार है. श्रम विशेषज्ञ मीना पौडेल के मुताबिक, इन वजहों से नेपाल के लोग जागरूक वैश्विक नागरिक बन गए हैं और सरकार से उनकी अपेक्षाएं बढ़ गई हैं. वह आगे बताती हैं, "वे लोग वैश्विक स्तर पर हो रहे विकास के बारे में जानते हैं, लेकिन वे इन सुविधाओं की तुलना नेपाल में मिलने वाली सुविधाओं से नहीं कर सकते."

अकुशल कामगारों के लिए आसपास कम नौकरियां

हाल के वर्षों में मलेशिया या खाड़ी देशों जैसे देशों ने प्रवासी मजदूरों के लिए मानदंड बढ़ा दिए हैं. पौडेल ने बताया, "नौकरी देने वाले लोग या कंपनियां भी कुशल व्यक्ति की तलाश करने लगी हैं. इससे कम कुशल या अकुशल लोग अन्य विकल्प तलाशने के लिए मजबूर हो रहे हैं."

विदेशी कामगारों को आकर्षित करने के लिए टैक्स में छूट दे रहे ईयू के देश

वहीं, यूरोप के कई देशों ने अपने इमिग्रेशन कानूनों में ढील दी है. इससे विदेशी कामगारों के लिए वीजा हासिल करना आसान हो गया है, खासकर कृषि, हाउसकीपिंग, हॉस्पिटैलिटी और निर्माण कार्य जैसे क्षेत्रों में. साथ ही, यह भी माना जाता है कि यूरोप के देशों में कामगारों का शोषण कम होता है और उन्हें वहां ज्यादा आजादी भी मिलती है.

एक आशियाने की तलाश

04:02

This browser does not support the video element.

यूरोप में बेहतर जीवन के सपने को साकार करना

पिछले साल से जर्मनी अपने कुशल आप्रवासन कानून में बदलाव कर रहा है. इसके तहत, रोजगार की तलाश कर रहे तीसरे देश के नागरिकों के लिए 'अपॉरच्यूनिटी कार्ड' की योजना पेश की गई है.

जर्मनी में नौकरी पाने के सपने के साथ बिजय लिम्बू छह महीने पहले माल्टा पहुंचे थे. इससे पहले वह कतर में काम कर चुके हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मैं अपने कौशल को बेहतर बना रहा हूं और भाषा सीख रहा हूं, ताकि रेजिडेंस परमिट से जुड़ी शर्तें पूरी कर सकूं." हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि प्रवासियों का काम हमेशा अनिश्चित होता है.

नेपाली लेखक नरेंद्र भट्टाराई का नया घर पुर्तगाल इसका एक अच्छा उदाहरण है. हाल ही में हुए कानूनी बदलावों ने उन अप्रवासियों के लिए और भी बाधाएं खड़ी कर दी हैं जो इस देश में काम करना और बसना चाहते हैं. भट्टाराई कहते हैं कि वह पुर्तगाल में मानसिक और आर्थिक रूप से संतुष्ट हैं. इससे उन्हें एक बार फिर से लेखन के प्रति अपने जुनून को जगाने का मौका मिल रहा है. वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि मैं सही समय पर यूरोप आया हूं."

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें