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क्या इंडिया गठबंधन में अकेली पड़ गई है कांग्रेस

आदर्श शर्मा
१९ दिसम्बर २०२४

हरियाणा और महाराष्ट्र में मिली हार के बाद से कांग्रेस की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं. कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा मुश्किलें टीएमसी और एसपी ने खड़ी की हैं. क्या इस आपसी खींचतान से विपक्षी एकता भी प्रभावित होगी?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी कई मुद्दों पर विपक्ष की ओर से अकेले खड़े नजर आ रहे हैंतस्वीर: Indian National Congress party

चार जून, 2024 का गर्मी भरा दिन था. लोकसभा चुनावों के नतीजे सामने आ रहे थे और मैं लोगों की राय जानने और उनके मनोभाव समझने के लिए हाथरस शहर में घूम रहा था. हाथरस लोकसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी अनूप प्रधान लगातार बढ़त बनाए हुए थे. लेकिन, 400 पार का नारा देने वाली बीजेपी बहुमत के आंकड़े से दूर दिख रही थी. हालांकि, अन्य सहयोगी पार्टियों की मदद से सरकार बनाने का इंतजाम हो चुका था.

हाथरस के बीजेपी नेता और कार्यकर्ता एक मैरिज हॉल में बैठकर, एक साथ चुनाव परिणाम देख रहे थे. जब मैं वहां पहुंचा तो टीवी स्क्रीन पर कांग्रेस पार्टी की प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी. मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और राहुल गांधी मीडिया को संबोधित कर रहे थे. उस समय कांग्रेस 99 सीटें जीतती दिख रही थी. खड़गे इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हार और जनता की जीत बता रहे थे. वहीं, राहुल के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान बनी हुई थी.

2014 में 44 और 2019 में 52 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने इस बार 99 लोकसभा सीटें जीत लीं. इससे पार्टी का हौसला काफी बढ़ गया. कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने तो एक बार यह भी कह दिया कि अगर कांग्रेस 20 सीटें और जीत जाती तो ये सभी लोग (भाजपा नेता) जेल में होते. उनका आशय था कि 20 सीटें और जीतने पर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी पार्टियां केंद्र में सरकार बना लेतीं और फिर बीजेपी नेताओं को जेल भेजा जाता. 

हरियाणा चुनाव के बाद बदलने लगे समीकरण

लोकसभा चुनाव के बाद कुछ महीनों तक सब ठीक चला लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद से विपक्षी पार्टियों के आपसी समीकरण बदलने लगे. दरअसल, हरियाणा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत का अनुमान लगाया जा रहा था. लेकिन चुनाव परिणाम इसके बिल्कुल उलट आए. बीजेपी ने 90 में से 48 सीटों पर जीत हासिल की और कांग्रेस 37 सीटों पर ही सिमट गई. इस हार के बाद कांग्रेस को सहयोगी पार्टियों की आलोचना का सामना करना पड़ा.

शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने कहा कि जहां कांग्रेस कमजोर होती है, वहां वह क्षेत्रीय पार्टियों से मदद लेती है लेकिन जहां कांग्रेस खुद को मजबूत मानती है, वहां पर क्षेत्रीय पार्टियों को कोई महत्व नहीं देती है. आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने कहा कि इस चुनाव से मिला सबसे बड़ा सबक यह है कि किसी को "ओवर कॉन्फिडेंट” नहीं होना चाहिए.

दरअसल, हरियाणा में कांग्रेस और आप के बीच सीट बंटवारे को लेकर बातचीत हुई थी लेकिन यह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी थी. दोनों पार्टियों ने फिर अलग-अलग चुनाव लड़ा और दोनों को ही इसका नुकसान उठाना पड़ा. बाद में, आम आदमी पार्टी ने कहा था कि अगर दोनों पार्टियों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा होता तो परिणाम अलग होते.

समाजवादी पार्टी से भी बढ़ी दूरियां

इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ. पार्टी 80 में से 33 सीटें ही जीत सकी. वहीं, समाजवादी पार्टी ने 37 और कांग्रेस ने छह सीटों पर जीत दर्ज की. इस कामयाबी का श्रेय दोनों पार्टियों के गठबंधन को दिया गया. लेकिन हरियाणा चुनाव के बाद इनके बीच भी दूरियां बढ़ने लगीं. दरअसल, हरियाणा में एसपी ने कांग्रेस से कुछ सीटों की मांग की थी लेकिन उसे एक भी सीट नहीं दी गई.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एसपी ने यूपी में इस बात का बदला लिया. तब यूपी की दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने थे. एसपी ने कांग्रेस से बातचीत किए बिना ही इनमें से छह सीटों पर प्रत्याशी खड़े कर दिए. इनमें वह सीटें भी शामिल थीं, जिन पर कांग्रेस चुनाव लड़ना चाहती थी. बाद में कांग्रेस को दो से तीन अन्य सीटों पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया गया लेकिन कांग्रेस इस पर राजी नहीं हुई और उपचुनाव से दूर रही.

कई विपक्षी दलों ने 'इंडिया' के बैनर तले एक साथ आकर बीजेपी को लोकसभा चुनाव 2024 में जवाब देने की सोची थी तस्वीर: Indian National Congress

इसके अलावा, महाराष्ट्र में भी दोनों पार्टियों के बीच असहमति देखी गई. वहां एसपी चाहती थी कि उसे महाविकास अघाड़ी में शामिल किया जाए और पांच सीटों पर चुनाव लड़ने दिया जाए. लेकिन उसकी यह मांग नहीं मानी गई. एसपी के महाराष्ट्र प्रमुख अबू आजमी ने इस पर कहा था कि कांग्रेस ने हरियाणा में हुई हार से कोई सबक नहीं सीखा है और उन्हें लगता है कि हमारी कोई जरूरत नहीं है.

भविष्य में भी कांग्रेस और एसपी के संबंधों में खास सुधार होता नहीं दिख रहा है. अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में एसपी ने आम आदमी पार्टी का समर्थन करने की घोषणा की है. एसपी प्रमुख अखिलेश यादव ने दिल्ली में आयोजित महिला अदालत कार्यक्रम में कहा कि आप को एक बार फिर यहां काम करने का मौका मिलना चाहिए. इस बयान से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है.

ममता बनर्जी ने बढ़ाई कांग्रेस की परेशानी

इस महीने तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस की परेशानी काफी बढ़ा दी है. एक मीडिया इंटरव्यू में ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन की कार्यशैली पर निराशा जाहिर की और कहा कि सबको साथ लेकर चलना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि जिम्मेदारी मिलने पर वे विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने में सक्षम हैं. विपक्ष के कई वरिष्ठ नेताओं ने उनके इस बयान का समर्थन किया है.

एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार ने कहा कि ममता बनर्जी देश की एक प्रमुख नेता हैं और उनमें वह क्षमता है. वहीं, आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने कहा कि वे ममता के साथ हैं और उन्हें इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने दिया जाना चाहिए. इसके अलावा, समाजवादी पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा कि ममता बनर्जी के प्रस्ताव पर चर्चा होनी चाहिए.

हालांकि, कांग्रेस नेताओं को ममता का यह बयान अच्छा नहीं लगा. कांग्रेस सांसद मनिकम टैगोर ने उनके बयान को "एक अच्छा चुटुकला" बताकर खारिज कर दिया. कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा कि जो अपनी पार्टी को बंगाल से बाहर बढ़ावा नहीं दे सकीं, वे राष्ट्रीय स्तर पर कैसे लड़ेंगी. वहीं, बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने कहा कि विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए टीएमसी पर्याप्त बड़ी पार्टी नहीं है.

ईवीएम पर कांग्रेस के रुख पर भी उठे सवाल

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में करारी हार होने के बाद कांग्रेस ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम पर सवाल उठाए थे. इंडिया गठबंधन के सदस्य और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस के इस रुख की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि अगर आप ईवीएम के जरिए जीत मिलने पर जश्न मनाते हैं तो कुछ महीनों बाद चुनाव में हारने पर ईवीएम को खारिज नहीं कर सकते हैं.

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इसके एक दिन बाद, टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा, "अगर किसी को लगता है कि ईवीएम में गड़बड़ी की जा सकती है तो उनके एक प्रतिनिधिमंडल को चुनाव आयोग के पास जाना चाहिए और इस बात का सबूत देना चाहिए कि ईवीएम को हैक करने के लिए कोई मैलवेयर या तकनीक मौजूद है. किसी मुद्दे पर सिर्फ दो-तीन बयान जारी कर देने का कोई मतलब नहीं बनता.”

क्या संसद में एकजुट हैं विपक्षी पार्टियां

संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से ही कांग्रेस अडानी मुद्दे पर काफी आक्रामक है. विपक्ष के सांसदों ने इस मुद्दे पर संसद भवन परिसर में विरोध-प्रदर्शन भी किया. लेकिन एसपी और टीएमसी के सांसद इस प्रदर्शन में शामिल नहीं हुए. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, टीएमसी चाहती थी कि संसद में महंगाई, बेरोजगारी और विपक्षी राज्यों में फंड की कमी जैसे मुद्दों पर चर्चा हो. वहीं, एसपी नेता चाहते थे कि संसद में संभल हिंसा का मुद्दा उठाया जाए.

हालांकि, विपक्षी पार्टियां ‘वन नेशन, वन इलेक्शन' की योजना के खिलाफ एक साथ नजर आईं. विपक्ष के विरोध के चलते, इससे जुड़े दो बिलों को लोकसभा में पेश करने के लिए भी वोटिंग करानी पड़ी. बिलों के पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट पड़े. इसके बाद बिलों को लोकसभा में पेश कर दिया गया. लेकिन विपक्ष का कहना है कि सरकार के पास इन बिलों को पास करवाने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं है.

दरअसल, ये दोनों संवैधानिक संशोधन बिल हैं और इन्हें पास करवाने के लिए दो तिहाई उपस्थित सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी. फिलहाल, सरकार इन दोनों बिलों को विचार विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने के लिए तैयार है. वहीं, विपक्षी पार्टियां पूरी तरह से इसके खिलाफ हैं. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इन बिलों पर भविष्य में होने वाली वोटिंग के दौरान विपक्षी पार्टियों की एकता की असली परीक्षा होगी.

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