फ्रांस में 'चारिवारी' से शुरु हुआ विरोध का ऐसा तरीका
साहिबा खान
२ फ़रवरी २०२४
फ्रांस के किसानों ने फसलों की कम कीमतों और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर तत्काल कार्रवाई की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शनों से दो हफ्ते तक पेरिस को बेचैन रखा. देश में ऐसे विरोध जताने का रहा है लंबा इतिहास.
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जनवरी से ही फ्रांस के किसान सरकार की नीतियों के विरोध में कई सड़कों को बंद कर प्रदर्शन कर रहे हैं. कहीं उन्होंने घास की गठरियां जलाईं तो वहीं एक स्थानीय प्रांत में तरल खाद का छिड़काव किया. किसान सरकार पर नियमों में ढील देने, आयात को सस्ता करने और लागत कम करने में मदद करने का दबाव बनानना चाहते हैं. किसानों ने कहा कि सड़कों पर ट्रैक्टरों की लंबी कतारों के साथ विरोध प्रदर्शन तब तक जारी रहेगा जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं. सत्ता संभालते ही देश के नए प्रधानमंत्री गैब्रिएल अताल के सामने यह पहली बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है.
इस तरह से विरोध-प्रदर्शन करना फ्रांस की जनता के लिए कोई नई बात नहीं है. फ्रांसीसी लोग अपने अतरंगी और अनोखे विरोध-प्रदर्शन के तरीकों के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं. कभी बढ़ती महंगाई को लेकर हजारों लोग सड़कों पर उतर आते हैं. तो कभी सरकारी दफ्तरों पर खाद का छिड़काव करते हैं. मगर फ्रांसीसी लोग विरोध-प्रदर्शन करने में इतने आगे क्यों दिखते हैं? इसके पीछे फ्रांस में एक लंबी परंपरा रही है.
'चारिवारी' है फ्रांस में विरोध प्रदर्शनों की जड़
विरोध जताना फ्रांसीसी संस्कृति और सभ्यता का एक बहुत बड़ा हिस्सा रहा है. मध्यकाल और आधुनिक काल की शुरुआत से ही यूरोपीय लोग 'चारिवारी' नाम के लोक कार्यक्रम में भाग लेते थे. इसमें स्थानीय समुदाय के लोग नैतिक अपराधों के आरोपियों के घरों के बाहर जाते और उस इंसान का सार्वजनिक तौर पर मजाक उड़ाते. ऐसे शख्स के घर के बाहर बर्तन पीट-पीट कर शोर मचाने का भी रिवाज था. फिर समय के साथ-साथ फ्रांस में, चारिवारि का राजनीति में भी चलन बढ़ा और बाद में भ्रष्ट राजनेताओं और अधिकारियों के घरों को भी निशाना बनाया जाने लगा.
तब से, विरोध फ्रांसीसी सार्वजनिक जीवन का एक अभिन्न पहलू बन गया है. फ्रांसीसी क्रांति और पेरिस 1871 का कम्यून फ्रांसीसियों के कड़े विरोध-प्रदर्शन की मिसालें हैं.
जर्मनी में इतनी हड़तालें क्यों हो रही हैं?
जर्मनी में पिछले दिनों कई हड़तालें और विरोध प्रदर्शन हुए, जो आगे भी जारी रह सकते हैं. आइए नजर डालते हैं इन प्रदर्शनों और इनकी वजहों पर.
तस्वीर: Jana Rodenbusch/REUTERS
अगली बड़ी हड़ताल
हड़तालों की इस शृंखला में शुरुआती आगामी हड़तालों से करते हैं. अगली बड़ी हड़ताल 1 फरवरी को होनी है. इसमें हवाई अड्डों की सुरक्षा करने वाले सुरक्षाकर्मी पूरे दिन ड्यूटी पर नहीं रहेंगे. जर्मनी में कामगारों की एक बड़ी यूनियन वेर्डी ने इस हड़ताल का एलान किया है. मेहनताना बढ़ाने समेत कई मांगों को लेकर हो रही इस स्ट्राइक में 25,000 सुरक्षाकर्मी शामिल हो सकते हैं.
तस्वीर: Kai Pfaffenbach/REUTERS
हवाई अड्डों का क्या होगा?
एयरपोर्ट सुरक्षाकर्मियों की हड़ताल से हवाई अड्डों पर सुरक्षा जांच, सामान की जांच और उड़ानों में अड़चन आएगी. पिछले साल मार्च में भी कर्मचारियों ने ऐसा ही कदम उठाया. तब हड़ताल की वजह से जर्मनी के सभी एयरपोर्ट ठप हो गए थे और हवाई यातायात भी प्रभावित हुआ था.
तस्वीर: Christian Mang/REUTERS
स्थानीय परिवहन भी होगा ठप
जर्मनी की ट्रेड यूनियन वेर्डी ने 2 फरवरी को तकरीबन पूरे देश में स्थानीय परिवहन के कर्मचारियों की हड़ताल बुलाई है. यूनियन के मुताबिक, कर्मचारियों पर काम का बहुत दबाव पड़ रहा है और इसी वजह से परिवहन व्यवस्था चरमरा रही है. इस हड़ताल में बस और ट्राम सेवा शामिल है.
तस्वीर: Jana Rodenbusch/REUTERS
यूनिवर्सिटी डॉक्टरों की हड़ताल
जर्मनी के यूनिवर्सिटी अस्पतालों के डॉक्टर 30 जनवरी को हड़ताल पर थे. ये डॉक्टर वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. उनकी यह भी शिकायत है कि काम के घंटे अनियमित हैं और इस व्यवस्था पर प्रतिबंध लगाया जाए. अस्पतालों का प्रबंधन डॉक्टरों के साथ बातचीत कर रहा था, लेकिन कोई समझौता नहीं हो पाया.
तस्वीर: Dominik Bund/IMAGO
बर्लिन में किसानों का प्रदर्शन
जर्मन सरकार ने बजट में बचत के लिए किसानों को दी जाने वाली डीजल सब्सिडी, टैक्स रीफंड और कृषि वाहनों में छूट खत्म करने की योजना बनाई. कृषि क्षेत्र में सब्सिडी घटाने की इस तैयारी पर विरोध जताने सैकड़ों किसान बर्लिन पहुंचे. 18 दिसंबर को उन्होंने ट्रैक्टर से परेड निकाली और सरकार के फैसला वापस न लेने पर देशभर में प्रदर्शन करने की चेतावनी दी.
तस्वीर: Florian Gaertner/photothek/IMAGO
फिर 8 जनवरी को बड़ा विरोध प्रदर्शन
किसानों का विरोध देखते हुए सरकार थोड़ा पीछे हटी. लेकिन, जर्मन फार्मर्स असोसिएशन ने इसे अपर्याप्त बताते हुए 8 जनवरी को देशव्यापी प्रदर्शन किया. इसमें बहुत सारे किसान ट्रैक्टर लेकर बर्लिन के मशहूर ब्रैंडनबुर्ग गेट पर इकट्ठा हुए और देश के कई हाई-वे जाम करके ट्रैक्टर रैलियां निकाली गईं.
तस्वीर: Sean Gallup/Getty Images
अब थी रेल ड्राइवरों की बारी
किसानों के बाद रेलवे कर्मचारियों की यूनियन जीडीएल ने 10 से 13 जनवरी तक हड़ताल बुलाई. इसमें यात्री ट्रेनों और मालगाड़ियों, दोनों के ड्राइवर शामिल थे. रेलवे चालक वेतन बढ़ाने और काम के साप्ताहिक घंटे 38 से 35 करने की मांग कर रहे थे. तीन दिनों की इस हड़ताल से रेलवे को काफी नुकसान हुआ.
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22 जनवरी, एक और रेलवे हड़ताल
जर्मनी की राष्ट्रीय रेल कंपनी डॉयचे बान ने रेल कर्मचारियों को समझौते का जो प्रस्ताव दिया था, उसे कर्मचारियों ने ठुकरा दिया. इसके बाद रेलवेकर्मियों की यूनियन जीडीएल ने छह दिनों की एक और हड़ताल बुलाई. इस बार छह दिन की हड़ताल, अब तक की सबसे लंबी हड़ताल होने वाली थी. अनुमान था कि इससे एक अरब यूरो तक का नुकसान हो सकता है. हालांकि रेलकर्मियों ने योजना से कुछ पहले ही हड़ताल खत्म कर दी.
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नए कानूनों से फ्रांस की विरोध संस्कृति पर असर
फ्रांस की संसद ने हाल के सालों में नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की आलोचना के बावजूद पुलिस की शक्तियां बढ़ाने वाले नए सुरक्षा कानून पारित किए हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे कानून आने वाले समय में देश में मौजूद विरोध-प्रदर्शन की जीवंत संस्कृति को कमजोर कर सकते हैं.
2021 में ऐसा एक कानून फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की पार्टी लाई थी, जिसके विधेयक को बड़े बहुमत के साथ पारित किया गया. इसके अलावा, जुलाई 2023 में भी कई विरोध-प्रदर्शनों के बावजूद फ्रांस ने एक ऐसा बिल पारित किया जो पुलिस को पहले से कहीं ज्यादा शक्तियां देता है. इससे पुलिस को किसी भी संदिग्ध के फोन का कैमरा, माइक और जीपीएस एक्टिवेट करने की छूट मिल गई. कुछ आलोचक मानते हैं कि फ्रांस ऐसी सुरक्षा रणनीतियों को बढ़ावा दे रहा है जिससे लोगों पर निगरानी रखना आसान हो सके.