नीतीश के साथ फिर से क्यों गईं महिला वोटर?
१५ नवम्बर २०२५
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं. इस बार 202 सीटों के साथ एनडीए ने बड़ी जीत दर्ज की है. तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन केवल 35 सीटों पर सिमट गया. ज्यादातर जानकार मान रहे हैं कि एनडीए की इस सफलता में महिलाओं ने निर्णायक भूमिका निभाई है. राज्य में कुल मतदान 67.13 प्रतिशत रहा था. इसमें महिलाओं की हिस्सेदारी 71.78 प्रतिशत थी. जबकि पुरुषों ने 62.98 प्रतिशत मतदान किया था. यानी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं ने चुनाव में अधिक हिस्सेदारी की. हालांकि आप्रवासन की वजह से कई बार पुरुष राज्य से बाहर होते हैं, ऐसे में यह कोई अप्रत्याशित बात नहीं है.
एनडीए की इस जीत को पिछले बीस वर्षों में नीतीश कुमार की महिलाओं के प्रति केंद्रित रही नीतियों का नतीजा भी माना जा सकता है. यह दिखता है कि इन नीतियों ने महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाया है. समय के साथ महिलाओं का नीतीश कुमार पर भरोसा और बढ़ता ही गया. हमारी टीम ने चुनाव के दौरान बिहार की यात्रा की. इस दौरान भी महिलाएं हमसे नीतीश सरकार की योजनाओं का जिक्र करती रहीं.
कौन सी नीतियां रहीं अहम?
साल 2005 में सत्ता संभालने के बाद नीतीश कुमार ने लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया. तब बिहार में महिलाओं की शिक्षा दर 33.57 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 73.91 प्रतिशत हो गई है. नीतीश कुमार ने लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए मुफ्त साइकिल योजना शुरू की थी, इन योजनाओं से मुख्य रूप से माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर में बड़ी कमी दिखी. नीतीश सरकार ने लड़कियों को छात्रवृत्ति और मुफ्त यूनिफॉर्म स्कीम से भी जोड़ा और बारहवीं तक पढ़ाई पूरी करने के लिए प्रोत्साहित किया.
साथ ही बिहार में दसवीं, बारहवीं और ग्रेजुएशन पास करने पर लड़कियों को वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया जाता है. ग्रेजुएशन पूरी करने पर छात्राओं को पचास हजार रूपए तक का पुरस्कार मिलता है. पढ़ाई के बाद महिलाओं के लिए नौकरी और सुरक्षा पर भी नीतीश कुमार ने काम किया है. बिहार में सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण है.
'जंगल राज' का मुद्दा भी किया काम
एनडीए ने इस बार ‘जंगल राज' का मुद्दा जोर‑शोर से उठाया. ये एनडीए की चुनावी प्लानिंग का मुख्य एजेंडा था. इस एजेंडे का मकसद महिलाओं को लालू यादव के दौर के बिहार का डर दिखाना और उन्हें राजद को वोट ना करने के लिए राजी करना था.
फिलहाल बिहार में महिला पुलिसकर्मियों का प्रतिशत भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले काफी अच्छा है. बिहार पुलिस में 37 प्रतिशत महिलाएं हैं. हमारी बिहार की चुनावी यात्रा के दौरान पटना यूनिवर्सिटी में मिली एक छात्रा ने हमसे कहा, "पटना और मुजफ्फरपुर में लड़कियां कोचिंग लेने जा रही हैं. बिहार में महिलाएं उतनी ही सुरक्षित हैं जितनी दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में हैं. भले ही तेजस्वी यादव की छवि अच्छी है. लेकिन उनके कार्यकर्ताओं से डर लगता है."
रही सही कसर जीविका दीदी ने पूरी की
नीतीश सरकार ने पिछले दो दशकों में ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी है. उन्होंने महिलाओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करने के लिए साल 2016 से बिहार के पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया.
हालांकि एनडीए की सफलता में सबसे अहम रही जीविका योजना. चुनावी भाषणों में नीतीश कुमार ने कई बार जीविका दीदियों का जिक्र किया. यह योजना साल 2007 से चल रही है. इसने महिलाओं को संगठित किया है और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया. आज बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 80 प्रतिशत महिलाएं 'जीविका दीदी' से जुड़ी हैं. यही महिलाएं नीतीश कुमार की कोर वोटर हैं. साथ ही वे उनकी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने और नीतीश कुमार के पक्ष में संदेश फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
राजनीतिक विश्लेषक सुनील कश्यप डीडब्ल्यू को बताते हैं कि बिहार की सामाजिक सुरक्षा योजनाएं नीतीश कुमार के पक्ष में काम करती हैं. वह कहते हैं, "नीतीश कुमार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे वृद्ध और विधवा महिलाओं को पेंशन देना. इसका असर इसी चुनाव में छपरा सीट पर दिखा. यहां एनडीए की छोटी कुमारी ने भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव को हराया है. छोटी कुमारी अतिपिछड़ा समाज से आती हैं. पंचायत में आरक्षण के चलते उन्हें जिला परिषद अध्यक्ष बनने का मौका मिला. यह नीतीश कुमार की ईबीसी-केंद्रित राजनीति और आरक्षण नीतियों का परिणाम है."
तेजस्वी का महिलाओं को साधने का फॉर्मूला हुआ फेल
महिला वोटरों को लुभाने के लिए तेजस्वी यादव ने पिछले साल दिसंबर में ‘माई‑बहन मान योजना' शुरू करने की बात कही थी. इस योजना के तहत उनकी सरकार बनने पर हर गरीब और वंचित महिला को 2500 रुपये दिए जाने का वादा किया गया था.
वहीं महिला वोटरों का समर्थन बनाए रखने के लिए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत चुनाव से ठीक पहले दस हजार रुपये सीधे महिलाओं के बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिए. इसका लाभ राज्य की 25 लाख महिलाओं को मिला. यह राशि लोन नहीं है और ना ही इसे लौटाना होगा.
बिहार के 34 प्रतिशत से अधिक परिवार हर महीने सिर्फ छह हजार रूपए या उससे कम पर गुजर-बसर करते हैं. गरीब परिवारों के लिए, खासकर अनुसूचित जाति और अति पिछड़ा वर्ग के परिवारों के लिए, एक बार में मिले दस हजार रूपए उनकी एक महीने की आमदनी के बराबर थे. हम जहानाबाद में कई ऐसी महिलाओं से मिले, जिन्हें ये राशि मिली थी. गांव की इन महिलाओं ने इस राशि से बैल, बकरी या पशु खरीदे थे.
ऐसा ही असर उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त मिले गैस सिलेंडर का भी था. दोनों ही योजनाओं में लाभ सीधे महिलाओं के नाम पर दिया गया. महिलाओं तक सीधे पहुंचने वाली योजनाएं अक्सर वोट में भी बदलती हैं. इस बार भी ऐसा ही हुआ.
इस दस हजार रुपये के ट्रांसफर का मुकाबला तेजस्वी यादव ने एक अन्य घोषणा से करने की कोशिश की लेकिन महिलाओं ने उस पर भरोसा नहीं दिखाया. तेजस्वी यादव ने महिलाओं को मकर संक्रांति पर तीस हजार रुपये देने का एलान किया था.
पटना में महिलाओं ने हमें बताया कि तेजस्वी यादव बार‑बार राशि बढ़ाकर लालच दे रहे हैं. जबकि नीतीश कुमार भरोसा बढ़ाने की बात करते हैं.
विपक्ष शराबबंदी को नहीं बना पाया मुद्दा
राजनीतिक विश्लेषक प्रियदर्शी रंजन ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा था कि नीतीश कुमार नैतिक राजनेता दिखना चाहते हैं. शराबबंदी महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा से सीधे जुड़ी नीति है. नीतीश कुमार ने साल 2016 में शराब पर पूरी तरह पाबंदी लागू कर दी थी.
प्रशांत किशोर ने चुनाव के दौरान बयान दिया था कि उनकी पार्टी जन सुराज सत्ता में आई, तो एक घंटे में शराबबंदी हटाई जाएगी. उनका तर्क था कि बिहार में अवैध शराब का कारोबार बढ़ा है. जिससे राज्य को करोड़ों रुपये का राजस्व नुकसान हुआ. एनडीए ने इस बयान का अपने पक्ष में इस्तेमाल किया.
महिलाओं से भावनाओं के जरिए जुड़ा गया
एनडीए ने महिलाओं को जोड़ने के लिए छठ की भावनाओं का भी सहारा लिया. बीजेपी शासित राज्यों जैसे हरियाणा ने बिहार से आए मजदूरों के लिए छठ पर मुफ्त बस सेवा शुरू की.
सुनील कश्यप बताते हैं, "बिहार के लिए छठ पूजा एक इमोशन है. इसे भी चुनावी कैंपेन का हिस्सा बनाया गया. पूजा महिलाओं की आस्था से जुड़ा त्योहार है. नीतीश कुमार छठ पूजा को यूनेस्को की सूची में शामिल कराने की बात करते हैं. इस बार द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में छठ पूजा में हिस्सा लिया था. महिला वोटरों के लिए ये छोटे मगर असरदार प्रयास मायने रखते हैं."
नतीजे दिखाते हैं कि इन सारे ही प्रयासों का बीजेपी और एनडीए को भरपूर फायदा भी मिला.