जर्मनी छोड़ने का फैसला क्यों कर रहे हैं कई प्रवासी?
४ जुलाई २०२५
जियानिस एन (बदला हुआ नाम) ने 18 साल की उम्र में ग्रीस के सामोस द्वीप को छोड़कर जर्मनी में सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का फैसला किया. उन्हें जर्मनी इसलिए पसंद आया, क्योंकि उन्होंने सुना था कि यहां सभी लोगों को समान अवसर मिलता है और देश सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है. हालांकि, 2020 में मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद उन्होंने जर्मनी से अपने वतन वापस लौटने का फैसला किया. वो भी जर्मनी में 16 साल गुजारने के बाद.
वह कहते हैं, "मुझे जर्मनी लाने वाली हर चीज अब यहां नहीं रही और एक समय पर मैंने सोचा, बस इतना ही काफी है. मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे, अगर कभी हुए भी, तो इस देश में बड़े हों.”
उन्होंने एक फ्रीलांसर के तौर पर अपनी किस्मत आजमाने से पहले, पश्चिमी जर्मनी के एसेन शहर में निजी क्षेत्र में प्रोजेक्ट मैनेजर और बाद में सार्वजनिक क्षेत्र में पुल निर्माण करने वाले सिविल इंजीनियर के रूप में काम किया. अब 39 वर्षीय इस व्यक्ति ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैंने हर संभव प्रयास किया, ताकि मैं जर्मनी में अपनी जिंदगी बसा सकूं, लेकिन मुझे लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा.”
उन्होंने चौंकाने वाली एक घटना को याद करते हुए बताया, "मैं एक निर्माण स्थल पर काम कर रहा था और क्लाइंट ने अंतिम बिल का भुगतान करने से इनकार कर दिया, जो एक लाख यूरो से अधिक का था. उसका जवाब था कि मैं तुम्हें जर्मनी में अमीर नहीं बनने दूंगा.” जियानिस ने कहा कि इससे यह साफ पता चल रहा था कि उसके अंदर विदेशी मूल के लोगों के प्रति किस हद तक नाराजगी और द्वेष था.
इससे जियानिस को यह एहसास हो गया कि उन्हें कभी भी सच में इस समाज ने नहीं अपनाया था. यह उनके देश छोड़ने का सबसे बड़ा कारण बना. जब उन्हें समझ आ गया कि चाहे वे कितने भी घुल-मिल जाएं, उन्हें हमेशा ‘ग्रीक' के तौर पर ही देखा जाएगा, तब उन्होंने आखिरकार जर्मनी छोड़ने का फैसला किया. उन्होंने बताया, "पहले विश्वविद्यालय में आलसी ग्रीक कहा जाता है, फिर कार्यस्थल पर भ्रष्ट ग्रीक. मुझे ग्रीक होने पर गर्व है, लेकिन इसके पीछे छुपे पूर्वाग्रह अंततः मेरे लिए हानिकारक साबित हुए.”
जर्मनी छोड़ने पर विचार कर रहे हैं 25 फीसदी प्रवासी
जर्मनी में जियानिस एन. के सामने आने वाली चुनौतियों की ही झलक इंस्टीट्यूट फॉर एम्प्लॉयमेंट रिसर्च की ओर से प्रकाशित एक नए अध्ययन में देखने को मिली है. 18 से 65 वर्ष की आयु के बीच जर्मनी आए 50,000 प्रवासियों के सर्वेक्षण के आधार पर, अध्ययन में पाया गया कि चार में से एक व्यक्ति जर्मनी छोड़ने पर विचार कर रहा है.
इस अध्ययन में, उन शरणार्थियों को शामिल नहीं किया गया है जिन्हें अब तक जर्मनी में कानूनी रूप से रहने की मान्यता नहीं मिली है. यह सर्वे दिसंबर 2024 से अप्रैल 2025 के बीच किया गया. इससे पता चलता है कि जिन लोगों के जर्मनी छोड़ने की सबसे अधिक संभावना है, वे उच्च शिक्षित, सफल और जर्मन समाज में अच्छी तरह घुल-मिल गए हैं. जर्मनी को इन्हीं लोगों की सबसे ज्यादा जरूरत है.
अध्ययन के मुताबिक, जर्मनी छोड़कर जाने की इच्छा लोगों की अपनी खूबियों, समाज में उनके घुलने-मिलने के तरीके, आर्थिक कारणों और समाज द्वारा उन्हें कितना स्वीकार किया जाता है, इन सभी चीजों के मिले-जुले असर से पैदा होती है.
सर्वे में शामिल लोगों ने यह भी बताया कि वे परिवार, राजनीतिक असंतोष, ज्यादा टैक्स, और नौकरशाही की वजह से भी जर्मनी छोड़ना चाहते हैं. जर्मनी में रहने वाले लगभग एक चौथाई लोग प्रवासी पृष्ठभूमि से हैं. सिर्फ 2015 के बाद से अब तक लगभग 65 लाख लोग जर्मनी आए हैं, उनमें से कई सीरियाई और यूक्रेनी हैं.
जर्मन भाषा की जानकारी के बिना यहां रहना मुश्किल
33 वर्षीय साइबर सिक्योरिटी इंजीनियर उत्कू सेन ने भी अलग-थलग किए जाने की इसी भावना की वजह से तीन साल बाद जर्मनी छोड़ दिया. सेन ने डीडब्ल्यू को बताया कि बर्लिन में उनका पहला वर्ष तो ‘हनीमून' की तरह बीता, लेकिन बाद में उन्हें यह अहसास हुआ कि जर्मन भाषा पर अच्छी पकड़ के बिना नए व्यक्ति के लिए जीवन कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
उन्होंने बताया, "एक तुर्की व्यक्ति के रूप में, मुझे हमेशा दूसरे दर्जे का नागरिक जैसा महसूस होता था. मुझे लगता था कि जर्मन समुदाय का हिस्सा बनने में दशकों लगेंगे, शायद यह कभी हो भी न पाए.”
बहुत सारे तुर्क क्यों ले रहे हैं जर्मनी की नागरिकता?
जर्मनी में हर दिन होने वाले भेदभाव के बारे में तुर्की भाषा में एक यूट्यूब वीडियो पोस्ट करने के तुरंत बाद सेन लंदन चले गए. इस वीडियो को करीब पांच लाख बार देखा गया. वीडियो में उन्होंने जर्मनी में जीवन की तुलना ‘द सिक्स्थ सेंस' में ब्रूस विलिस के किरदार से की. वह कहते हैं, "आपके आस-पास एक ऐसी दुनिया है जहां आप शामिल नहीं हो पाते. आप एक अदृश्य आत्मा की तरह भटकते रहते हैं. दूसरे लोगों को यह भी पता नहीं है कि आप मौजूद हैं और आप उनसे जुड़ भी नहीं सकते.”
सेन ने कहा कि अंग्रेजी में बातचीत करने में सक्षम होने से लंदन में उनका जीवन बहुत आसान हो गया. उन्होंने बताया, "जर्मनी के विपरीत, ब्रिटिश लोग आमतौर पर विदेशियों और अलग-अलग संस्कृतियों के लोगों को ज्यादा आसानी से अपनाते हैं और उनके प्रति खुले विचार रखते हैं. मुझे यहां कभी कोई भेदभाव नहीं झेलना पड़ा. इसी वजह से मुझे यहां समाज का हिस्सा होने का अहसास होता है और इस देश के प्रति मेरा लगाव बढ़ गया है.”
जर्मन भाषा पर अच्छी पकड़ के बावजूद हमेशा आपको मदद नहीं मिलती
मूल रूप से बुल्गारिया की रहने वाली कलिना वेलिकोवा के मुताबिक, जर्मन भाषा में धाराप्रवाह बोलने से भी चुनौतियां खत्म नहीं होती हैं. 35 वर्षीय वेलिकोवा ने बॉन में नौ साल तक पढ़ाई की और सामाजिक कार्य में योगदान दिया. वह कहती हैं कि उन्हें पहली बार विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान अलग-थलग महसूस हुआ, भले ही वह जर्मन भाषा में पारंगत थीं.
उन्होंने बताया, "मैं कभी नहीं भूलूंगी कि लोगों ने मुझे अपनाने में कितना समय लगाया, यहां तक कि साथ पढ़नी वाले छात्रा के रूप में भी. मैं एक दिन किसी से बात करती थी और अगले दिन वे ऐसे बर्ताव करते थे जैसे वे मुझे जानते ही न हों. मेरे यहां ऐसा बिल्कुल नहीं होता.”
धीरे-धीरे, समाज से लगातार दूरी महसूस होने का यह अहसास उन पर काफी ज्यादा असर डालने लगा. वह कहती हैं, "मैं धीरे-धीरे रूखी होती जा रही थी. मुझे लगा कि जैसे मुझे जर्मनी से नफरत सी होने लगी है और मैं ऐसा होने देना नहीं चाहती थी.”
वेलिकोवा 2021 में बॉन छोड़कर वापस अपने देश बुल्गारिया की राजधानी सोफिया चली गईं, जहां वह अब प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में काम करती हैं. उन्होंने कहा, "बेशक, यहां भी हर दिन नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन कुल मिलाकर मेरी जिंदगी खुशहाल हुई है, भले ही मैं कम कमाती हूं और ज्यादा काम करती हूं.”
प्रवासन के मामले में 'बहुत बारीक रेखा' पर चल रहा है जर्मनी
बर्लिन में रॉकवुल फाउंडेशन इंस्टीट्यूट फॉर द इकोनॉमी एंड द फ्यूचर ऑफ वर्क के निदेशक और अर्थशास्त्री क्रिस्टियान डस्टमान के मुताबिक, समाज में घुलने-मिलने के लिए जर्मन भाषा की जानकारी अब भी एक बड़ी जरूरत बनी हुई है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जर्मन भाषा सीखना बेहद जरूरी है. यह सिर्फ नौकरी और कारोबार के लिए ही नहीं, बल्कि प्रवासियों को समाज में घुलने-मिलने के लिए भी अहम है.
डस्टमान ने कहा कि ऐसा सोचना कि यहां का माहौल लोगों का स्वागत नहीं करता, यह सिर्फ जर्मनी तक ही सीमित नहीं है. वह कहते हैं, "अगर आप यूके में ऐसा सर्वे करते हैं, तो जर्मनी जैसी ही प्रतिक्रियाएं मिलेंगी.”
जर्मनी में उत्तराधिकारी की कमी से बंद हो रही है कंपनियां
डस्टमान ने यह भी कहा कि किसी देश में जितने अधिक अप्रवासी आते हैं, वहां की आबादी में उतनी ही अधिक चिंताएं पैदा होती हैं. उन्होंने बताया, "इससे ऐसी संस्कृति विकसित हो सकती है जिससे कुछ अप्रवासियों को नाराजगी हो सकती है.”
बर्टेल्समान फाउंडेशन की ओर से 2024 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जर्मनी में आप्रवासन के बारे में लोगों की चिंता बढ़ रही है. धुर-दक्षिणपंथी पार्टी 'ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी)' के लिए बढ़ते समर्थन से यह बात साफ तौर पर जाहिर होती है. इस पार्टी ने जर्मनी के फरवरी 2025 के चुनाव में आप्रवासन से जुड़ी चिंताओं का फायदा उठाया और दूसरी सबसे मजबूत पार्टी बन गई.
जर्मनी में बहुत से लोग प्रवासियों के जर्मनी आने के संभावित नकारात्मक परिणामों को लेकर चिंतित हैं. जैसे, कल्याणकारी देश के लिए बढ़ती लागत, शहरी क्षेत्रों में आवास की कमी और स्कूल प्रणाली के भीतर बढ़ती चुनौतियां. डस्टमान के मुताबिक, राजनीति में बहुत अधिक संतुलन बनाना पड़ता है. इस दौरान यह ध्यान रखना पड़ता है कि स्थानीय लोगों पर ज्यादा दबाव न पड़े, क्योंकि इससे दक्षिणपंथी पार्टियां मजबूत होती हैं. साथ ही, नए आए लोगों का भी स्वागत करना होता है, क्योंकि वे हमारी अर्थव्यवस्था और समाज के जरूरी अंग हैं.
सांस्कृतिक बदलाव की जरूरत
अनास्तासियोस पेनोलिडिस का मानना है कि भले ही राजनीति को सामाजिक सामंजस्य और खुलेपन के बीच संतुलन बनाना जरूरी है, लेकिन असली बदलाव समाज में उससे भी कहीं ज्यादा अंदर तक होना चाहिए.
शरणार्थी शिविर के फील्ड मैनेजर के तौर पर काम करने वाले पेनोलिडिस सात साल पहले जर्मनी आए थे. उनका मानना है कि प्रवासियों के सामने आने वाली चुनौतियों को हल करने के लिए समाज के बड़े हिस्से को शिक्षित करना जरूरी है. उन्होंने बताया, "अधिक राजनीतिक और सामाजिक शिक्षा देना, नस्लवाद जैसी समस्याओं का मुकाबला करने के लिए नई संस्थाओं की स्थापना करना, और निम्न-आय वर्ग के लोगों पर कम टैक्स लगाना बेहद जरूरी है.”
पेनोलिडिस ने आगे बताया कि वह और उनकी प्रेमिका दोनों पूरे समय काम करने के बावजूद बमुश्किल गुजारा कर पाते हैं. उन्होंने बिना बच्चों वाले अविवाहित लोगों के लिए ज्यादा टैक्स की आलोचना की और उसे अनुचित व हतोत्साहित करने वाला बताया.
33 वर्षीय पेनोलिडिस ने कहा कि वह हाल ही में ग्रीस लौटने पर विचार कर रहे हैं. उनका कहना है कि इसके मुख्य कारण टैक्स से जुड़े नियम के साथ-साथ वह नस्लवाद है जिसका सामना उन्हें अभी करना पड़ रहा है.
फिर भी, पेनोलिडिस की उम्मीद अब तक पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि अगर बेहतर बदलाव होता है, तो वह जर्मनी में रहना और परिवार बढ़ाना चाहेंगे. उनके मुताबिक, जर्मनी का भविष्य सिर्फ अच्छी नीतियों पर ही नहीं टिका है, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करता है कि यहां का समाज उन लोगों को कैसे देखता है और उन लोगों का साथ किस तरह देता है जो इसे अपना घर मानते हैं.